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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद इससे पूर्व अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, तक जानना । वे स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी या नपुंसकवेदी होते हैं । संज्ञी होते हैं शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार सोलह ही युग्मों में परिमाण आदि की वक्तव्यता पूर्ववत् जानना | 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' । यहाँ भी म्यारह उद्देशक पूर्ववत् हैं । प्रथम, तृतीय और पंचम उद्देशक एक समान हैं और शेष आठ उद्देशक एक समान हैं तथा चौथे, आठवें और दसवें उद्देशक में कोई विशेषता नहीं है । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'।
| शतक-४०/शतकशतक-२ से २१ [१०६६] भगवन् ! कृष्णलेश्यी कृतयुग्म-कृतयुग्मराशियुक्त संज्ञीपंचेन्द्रिय कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! संज्ञी के प्रथम उद्देशक अनुसार जानना । विशेष यह है कि बन्ध, वेद, उदय, उदीरणा, लेश्या, बन्धक, संज्ञा, कषाय और वेदबंधक, इन सभी का कथन द्वीन्द्रियजीव-सम्बन्धी कथन समान है । कृष्णलेश्यी संज्ञी के तीनों वेद होते हैं, वे अवेदी नहीं होते । संचिट्ठणा जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट अन्तमुहर्त अधिक तेतीस सागरोपम की होती है और उनकी स्थिति भी इसी प्रकार होती है । स्थिति में अन्तमुहूर्त अधिक नहीं कहना चाहिए । शेष प्रथम उद्देशक के अनुसार पहले अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, तक कहना । इसी प्रकार सोलह युग्मों का कथन समझ लेना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' |
भगवन् ! प्रथमसमयोत्पन्न कृष्णलेश्यायुक्त कृतयुग्म-कृतयुग्मराशि वाले संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! इनकी वक्तव्यता प्रथमसमयोत्पन्न संज्ञीपंचेन्द्रियों के उद्देशक अनुसार जानना । विशेष यह कि भगवन् ! क्या वे जीव कृष्णलेश्या वाले हैं ? हाँ, गौतम ! हैं । शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार सोलह ही युग्मों में कहना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है' । इस प्रकार इस कृष्णलेश्याशतक में ग्यारह उद्देशक हैं । प्रथम, तृतीय
और पंचम, ये तीनों उद्देशक एक समान हैं । शेष आठ उद्देशक एक समान हैं । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' ।
[१०६७] नीललेस्या वाले संज्ञी की वक्तव्यता भी इसी प्रकार समझना । विशेष यह कि संचिट्ठणाकाल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम है । स्थिति भी इसी प्रकार है । पहले, तीसरे, पांचवें इन तीन उद्देशकों के विषय में जानना चाहिए । शेष पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है' । इसी प्रकार कापोतलेश्याशतक के विषय में समझ लेना चाहिए । विशेष-संचिट्ठणाकाल जघन्य एक समय
और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागरोपम है । स्थिति भी इसी प्रकार है तथा इसी प्रकार तीनों उद्देशक जानना । शेष पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' ।
तेजोलेश्याविशिष्ट (संज्ञी पंचेन्द्रिय) का शतक भी इसी प्रकार है । विशेष यह है कि संचिट्ठणाकाल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम है । स्थिति भी इसी प्रकार है | किन्तु यहाँ नोसंज्ञोपयुक्त भी होते हैं । इसी प्रकार तीनों उद्देशकों के विषय में समझना चाहिए । शेष पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' । तेजोलेश्याशतक के समान पद्मलेश्याशतक है । विशेष-संचिट्ठणाकाल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तमुहुर्त अधिक दस सागरोपम है । स्थिति भी इतनी ही है, किन्तु इसमें