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ज्ञाताधर्मकथा-१/-/१/३३
घंटियों के समूह के मधुर और मनोहर शब्द हो रहे हौं, जो शुभ, मनोहर और दर्शनीय हो, जो कुशल कारीगरों द्वारा निर्मित देदीप्यमान मणियों और रत्नों की धुंघरुओं के समूह से व्याप्त हो, स्तंभ पर बनी हुई वेदिका से युक्त होने के कारण जो मनोहर दिखाई देती हो, जो चित्रित विद्याधर-युगलों से शोभित हो, चित्रित सूर्य की हजार किरणों से शोभित हो, इस प्रकार हजारों रूपों वाली, देदीप्यमान, अतिशय देदीप्यमान, जिसे देखते नेत्रों की तृप्ति न हो, जो सुखद स्पर्शवाली हो, सश्रीक स्वरूप वाली हो, शीघ्र त्वरित चपल और अतिशय चपल हो, और जो एक हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाती हो । वे कोटुम्बिक पुरुष हृष्ट-तुष्ट होकर शिविका उपस्थित करते हैं । तत्पश्चात् मुघकुमार शिविका पर आरूढ हुआ और सिंहासन के पास पहुंचकर पूर्वदिशा की ओर मुख करके बैठ गया ।
तत्पश्चात् जो स्नान कर चुकी हैं, बलिकर्म कर चुकी हैं यावत् अल्प और बहुमूल्य आभरणों से शरीर को अलंकृत कर चुकी हैं, ऐसी मेधकुमार की माता उस शिविका पर आरूढ हुई । आरूढ होकर मेघकुमार के दाहिने पार्श्व में भद्रासन पर बैठी । तत्पश्चात् मेघकुमार की धायमाता रजोहरण और पात्र लेकर शिविका पर आरूढ होकर मेघकुमार के बायें पार्श्व में भद्रासन पर बैठ गई । मेघकुमार के पीछे श्रृंगार के आगार रूप, मनोहर वेषवाली, सुन्दर गति, हास्य, वचन, चेष्टा, विलाक, संलाप, उल्लाप करने में कुशल, योग्य उपचार करने में कुशल, परस्प मिले हुए, समक्षेणी में स्थित, गोल, ऊँचे, पुष्ट, प्रीतिजनक और उत्तम आकार के स्तनोवाली एक उत्तम तरुणी, हिम, चाँदी, कुन्दपुष्प और चन्द्रमा के समान प्रकाश वाले, कोरंट के पुष्पों की माला से युक्त धवल छत्र को हाथों में थामकर लीलापूर्वक खड़ी हुई ।
तत्पश्चात् मेघकुमार के समीप श्रृंगार के आगार के समान, सुन्दर वेषवाली, यावत् उचित उपचार करने में कुशल श्रेष्ठ तरुणियां शिविका पर आरूढ हुई । आरूढ होकर मेघकुमार के दोनों पार्यों में, विविध प्रकार के मणि सुवर्ण रत्न और महान् जनों के योग्य, अथवा बहुमूल्य तपनीयमय उज्जवल एवं विचित्र दंडी वाले, चमचमाते हुए, पतले उत्तम और लम्बे बालों वाले, शंख गुन्दपुषश्प जलकण रजत एवं मंथन किये हुए अमृत फेन के समूह सरीखे दो चामर धारण करके लीलापूर्वक वीजती-वींजती हुई खड़ी हुई । तत्पश्चात् मेघकुमार के समीप श्रृंगार के आगार रूप यावत् उचित उपचार करने में कुशल एक उत्तम तरूणी कावत् शिविका पर आरूढ हुई । आरूढ होकर मेघकुमार के पास पूर्व दिशा के सन्मुख चन्द्रकान्त मणि वज्ररत्न और वैडूर्यमय निर्मल दंडी वाले पंखे को ग्रहण करके खड़ी हुई । तत्पश्चात् मेघकुमार के माता-पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया । बुला कर इस प्रकार कहा'देवानुप्रियो ! शीघ्र ही एक सरीखे, एक सरीखी त्वचा वाले, एक सरीखी उम्र वाले तथा एक सरीखे आभूषणों से समान वेष धारण करनेवाले एक हजार उत्तम तरुण कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाओ। यावत् उन्होंने एक हजार पुरुषों को बुलाया । तत्पश्चात् श्रेणिक राजा के कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा बुलाये गये वे एक हजार श्रेष्ठ तरुण सेवक हृष्ट-तुष्ट हुए । उन्होंने स्नान किया, यावत् एक-से आभूषण पहनकर समान पोशाक पहनी । फिर जहाँ श्रेणिक राजा था, वहाँ
आये । आकर श्रेणिक राजा से इस प्रकार बोले - हे देवानुप्रिय ! हमें जो करने योग्य है, उसके लिए आज्ञा दीजिए।
तत्पश्चात् श्रेणिक राजा ने उन एक हजार उत्तम तरुण कौटुम्बिक पुरुषों से कहा