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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
__ नमो नमो निम्मलदसणस्स ज्ञाताधमकथा अंगसूत्र-६-हिन्दी अनुवाद
॥ श्रुतस्कन्ध-१॥
(अध्ययन-१-उत्क्षिप्त) [१] सर्वज्ञ भगवंतो को नमस्कार उस काल में उस समय में चम्पा नामक नगरी थी। वर्णन उववाईसूत्र अनुसार जानना ।
२] उस चम्पा नगरी के बाहर, ईशानभाग में, पूर्णभद्र नामक चैत्य था । (वर्णन)। [३] चम्पा नगरी में कूणिका नामक राजा था । (वर्णन) ।
[४] उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के शिष्य आर्य सुधर्मानामक स्थविर थे । वे जातिसम्पन्न, बल से युक्त, विनयवान्, ज्ञानवान्, सम्यक्त्ववान्, लाघववान्
ओजस्वी, तेजस्वी, वचस्वी, यशस्वी, क्रोध को जीतनेवाले, मान तो जीतनेवाले, माया को जीतनेवाले, लोभ को जीतनेवाले, इन्द्रियों को जीतनेवाले, निद्रा को जीतनेवाले, परीषहों को जीतनेवाले, जीवित रहने की कामना और मृत्यु के भय से रहित, तपःप्रधान, गुणप्रधान, करण, चरण, निग्रह, निश्चय, आर्जव, मार्दव, लाघव, क्षमा, गुप्ति, मुक्ति, विद्या, मंत्र, ब्रह्मचर्य, नय, नियम, सत्य, शौच, ज्ञान, दर्शन और चारित्र में प्रधान, उदार, घोर, घोखती घोरतपस्वी, उत्कृष्ट ब्रह्मचर्य का पालन करनेवाले, शरीर-संस्कार के त्यागी, विपुल तेजोलेश्या को अपने शरीर में ही समाविष्ट करके रखनेवाले, चौदह पूर्वो के ज्ञाता, चार ज्ञानों के धनी, पाँच सौ साधुओं से परिवृत, अनुक्रम से चलते हुए, एक ग्राम से दूसरे ग्राम में विचरण करते हुए, जहाँ चम्पा नगरी थी और जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था, उसी जगह आये । यथोचित अवग्रह को ग्रहण किया, ग्रहण करके संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे ।
[५] तत्पश्चात् चम्पा नगरी से परिषद् निकली । कूणिक राजा भी निकला । धर्म का उपदेश दिया । उपदेश सुनकर परिषद् जिस दिशा से आई थी, उसी दिशा में लौट गई । उस काल और उस समय में आर्य सुधर्मा अनगार के ज्येष्ठ शिष्य आर्य जम्बू नामक अनगार थे, जो काश्यप गोत्रीय और सात हाथ ऊँचे शरीरवाले, यावत् आर्य सुधर्मा से न बहुत दूर, न बहुत समीप अर्थात् उचित स्थान पर, ऊपर घूटने और नीचा मस्तक रखकर ध्यानरूपी कोष्ठ में स्थित होकर संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरते थे ।
तत्पश्चात् आर्य जम्बू नामक अनगार को तत्त्व के विषय में श्रद्धा हुई, संशय कुतूहल, विशेषरूप से श्रद्धा संशय और कुतूहल हुआ । तब वह उत्थान करके उठ खड़े हुए और जहां आर्य सुधर्मा स्थविर थे, वहीं आये । आर्य सुधर्मा स्थविर की तीन बार दक्षिण दिशा से आरम्भ करके प्रदक्षिणा की । वाणी से स्तुति की और काया से नमस्कार किया । आर्य सुधर्मा स्थविर