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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
'वह बालक बाल्यावस्था को पार करके कला आदि के ज्ञान में परिपक्व होकर, यौवन को प्राप्त होकर शूर-वीर और पराक्रमी होगा । वह विस्तीर्ण और विपुल सेना तथा वाहनों का स्वामी होगा । राज्य का अधिपति राजा होगा । तुमने आरोग्यकारी, तुष्ठिकारी, दीर्घायुकारी और कल्याणकारी स्वप्न देखा है । इस प्रकार कहकर राजा उसकी प्रशंसा करता है।
[१४] तत्पश्चात् वह धारिणी देवी श्रेणिक राजा के इस प्रकार कहने पर हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई । उसका हृदय आनन्दित हो गया । वह दोनों हाथ जोड़कर आवर्त करके और मस्तक पर अंजरि करके इस प्रकार बोली-देवानुप्रिय ! अपने जो कहा है सो ऐसा ही है । आपका कथन सत्य है । संशय रहित है । देवानुप्रिय ! मुझे इष्ट है, अत्यन्त इष्ट है, और इष्ट तथा अत्यन्त इष्ट है । आपने मुझसे जो कहा है सौ यह अर्थ सत्य है । इस प्रकार कहकर धारिणी देवी स्वप्न को भलीभांति अंगीकार करती है । राजा श्रेणिक की आज्ञा पाकर नाना प्रकार के मणि, सुवर्ण और रत्नों की रचना से विचित्र भद्रासन से उठती है । जिस जगह अपनी शय्या थी, वहीं आती है । शय्या पर बैठती है, बैठकर इस प्रकार सोचती है -
____ 'मेरा यह स्वरूप से उत्तम और फल से प्रधान तथा मंगलमय स्वप्न, अन्य अशुभ स्वप्नों से नष्ट न हो जाय' ऐसा सोचकर धारिणी देवी, देव और गुरुजन संबंधी प्रशस्त धार्मिक कथाओं द्वारा अपने शुभ स्वप्न की रक्षा के लिए जागरण करती हुई विचरने लगी ।
[१५] तत्पश्चात् श्रेणिक राजा ने प्रभात काल के समय कोटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और इस प्रकार कहा-हे देवानुप्रिय ! आज बाहर की उपस्थानशाला को शीघ्र ही विशेष रूप से परम रमणीय, गंधोदक से सिंचित, साफ-सुथरी, लीपी हुई, पांच वर्षों के सरस सुगंधित एवं बिखरे हुए फूलों के समूह रूप उपचार से युक्त, कालागुरु, कुंदुरुक्क, तुरुष्क तथा धूप के जलाने से महकती हुई, गंध से व्याप्त होने के कारण मनोहर, श्रेष्ठ सुगंध के चूर्ण से सुगंधित तथा सुगंध की गुटिका के समान करो और कराओ । मेरी आज्ञा वापिस सौंपो ! तत्पश्चात् वे कौटुम्बिक पुरुष श्रेणिक राजा द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर हर्षित हुए । उन्होंने आज्ञानुसार कार्य करके आज्ञा वापिस सौंपी । तत्पश्चात् स्वप्न वाली रात्रि के बाद दूसरे दिन रात्रि प्रकाशमान प्रभात रूप हुई । प्रफुल्लित कमलों के पत्ते विकसित हुए, काले मृग के नेत्र निद्रारहित होने से विसस्वर हुए । फिर वह प्रभात पाण्डुर-श्वेत वर्ण वाला हुआ । लाल अशोक की कान्ति, पलाश के पुष्प, तोते की चोंच, चिरमी के अर्धभाग, दुपहरी के पुष्प, कबूतर के पैर और नेत्र, कोकिला के नेत्र, जासोद के फूल, जाज्वल्यमान अग्नि, स्वर्णकलश तथा हिंगूल के समूह की लालिमा से भी अधिक लालिमा से जिसकी श्री सुशोभित हो रही है, ऐसा सूर्य क्रमशः उदित हुआ । सूर्य की किरणों का समूह नीचे उतरकर अंधकार का विनास करने लगा। बाल-सूर्य रूपी कुंकुम से मानो जीवलोक व्याप्त हो गया । नेत्रों के विषय का प्रसार होने से विकसित होनेवाला लोक स्पष्ट रूप से दिखाई देना लगा । कमलों के वन को विकसित करनेवाला तथा सहस्त्र किरणों वाला दिवाकर तेज से जाज्वल्यमान हो गया ।
शय्या से उठकर राजा श्रेणिक जहाँ व्यायामशाला थी, वहीं आता है । आकरव्यायाम-शाला में प्रवेश करता हैं । प्रवेश करके अनेक प्रकार के व्यायाम, योग्य, व्यामर्दन, कुश्ती तथा करण रूप कसरत से श्रेणिक राजा ने श्रम किया, और खूब श्रम किया । तत्पश्चात् शतपाक तथा सरत्रपाक आदि श्रेष्ठ सुंगधित तेल आदि अभ्यंगनों से, जो प्रीति