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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
तत्पश्चात् उस मेघकुमार के माता-पिता ने अनुक्रम से नामकरण, पालने में सुलाना, पैरों से चलाना, चोटी रखना, आदि संस्कार बड़ी-बड़ी ऋद्धि और सत्कारपूर्वक मानवसमूह के साथ सम्पन्न किए । मेघकुमार जब कुछ अधिक आठ वर्ष का हुआ अर्थात् गर्भ से आठ वर्ष का हुआ तब माता-पिता ने शुभ तिथि, करण और मुहूर्त मे कलाचार्य के पास भेजा । कलाचार्यने मेधकुमार को, गणित जिनमें प्रधान है ऐसी, लेखा आदि शकुनिरुत तक की बहत्तर कलाएँ सूत्र से, अर्थ और प्रयोग से सिद्ध करवाईं तथा सिखलाईं । . वे कलाएँ इस प्रकार हैं लेखन, गणित, रूप बदलना, नाटक, गायन, वाद्य बजाना, स्वर जानना, वाद्य सुधारना, समान ताल जानना, जुआ खेलना, लोगों के साथ वाद-विवाद करना, पासों से खेलना, चौपड़ खेलना, नगर की रक्षा करना, जल और मिट्टी के संयोग से वस्तु का निर्माण करना, धान्य निपजाना, नया पानो उत्पन्न करना, पानी को संस्कार करके शुद्ध करना एवं उष्ण करना, नवीन वस्त्र बनाना, रंगना, सीना और पहनना, विलेपन की वस्तु को पहचानना, तैयार करना, लेप करना आदि, शय्या बनाना, शयन करने की विधि जानना आदि, आर्या छंद को पहचानना और बनाना, पहेलियाँ बनाना और बूझना, मागधिका अर्थात् मगध देश की भाषा में गाथा आदि बनाना, प्राकृत भाषा में गाथा आदि बनाना, गीति छंद बनाना, श्लोक बनाना, सुवर्ण बनाना, नई चांदी बनाना, चूर्ण गहने घड़ना, आदि तरुणी की सेवा करना-स्त्री के लक्षण जानना पुरुष के लक्षण जानना अश्व के लक्षण जानना हाथी के लक्षण जानना गाय-बैल के लक्षण जानना मुर्गों के लक्षण जानना छत्र-लक्षण जानना दंडलक्षण जानना वास्तुविद्या-सेना के पड़ाव के प्रमाण आदि जानना नया नगर बसाने आदि की व्यूह-मोर्चा रचना सैन्यसंचालन प्रतिचार-चक्रव्यूह गरुड़ व्यूहू शकटव्यूह रचना सामान्य युद्ध करना विशेषयुद्ध करना, अत्यन्त विशेष युद्ध करना अट्ठि युद्ध मुष्टियुद्ध बाहुयुद्ध लतायुद्ध बहुत को थोड़ा और थोड़े को बहुत दिखलाना खड्ग की मूठ आदि बनाना धनुष-बाण कौशल चाँदी का पाक बनाना सोने का पाक बनाना सूत्र का छेदन करना खेत जोतना कमल की नाल का छेदन करना पत्रछेदन करना कुंडल आदि का छेदन करना मृत (मूर्छित) को जीवित करना जीवित को मृत (मृततुल्य) करना और काक धूक आदि पक्षियों की बोली पहचानना ।
[२६] तत्पश्चात् वह कलाचार्य, मेघकुमार को गणित-प्रधान, लेखन से लेकर शकुनिरुत पर्यन्त बहत्तर कलाएँ सूत्र से, अर्थ से और प्रयोग से सिद्ध कराता है तथा सिखलाता है । माता-पिता के पास वापिस ले जाता है । तब मेघकुमार के माता-पिता ने कलाचार्य का मधुर वचनों से तथा विपुल वस्त्र, गंघ, माला और अलंकारों से सत्कार दिया, सन्मान किया । जीविका के योग्य विपुल प्रीतिदान दिया । प्रीतिदान देकर उसे विदा किया ।
[२७] तब मेघकुमार बहत्तर कलाओं में पंडित हो गया । उसके नौ अंग-जागृत से हो गये । अठारह प्रकार की देशी भाषाओं में कुशल हो गया । वह गीति में प्रीति वाला, गीत और नृत्य में कुशल हो गया । वह अश्वयुद्ध स्थयुद्ध और बाहुयुद्ध करनेवाला बन गया। अपनी बाहुओं से विपक्षी का मर्दन करने में समर्थ हो गया । भोग भोगने का सामर्थ्य उसमें आ गया । साहसी होने के कारण विकालचारी बन गया ।
तत्पश्चात् मेघकुमार के माता-पिता ने मेघकुमार को बहत्तर कलाओं में पंडित यावत् विकालचारी हुआ देखा । देखकर आठ उत्तम प्रासाद बनवाए । वे प्रासाद बहुत ऊँचे थे ।