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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
युक्त शरीरवाले, लक्षणों और व्यंजनों से सम्पन्न, मान-उन्मान-प्रमाण से युक्त एवं सर्वांगसुन्दर शिशु का प्रसव किया । तत्पश्चात् दासियों ने देखा कि धारिणी देवी ने नौ मास पूर्ण हो जाने पर यावत् पुत्र को जन्म दिया है । देख कर हर्ष के कारण शीघ्र, मन से त्वरा वाली, काय के चपल एवं वेग वाली वे दासियाँ श्रेणिक राजा के पास आती हैं । आकर श्रेणिक राजा को जय-विजय शब्द कह कह बधाई देती हैं । बधाई देकर, दोनों हाथ जोड़कर, मस्तर पर आवर्तन करके, अंजलि करके इस प्रकार कहती हैं
हे देवानुप्रिय ! धारिणी देवी ने नौ मास पूर्ण पूर्ण होने पर यावत् पुत्र का प्रसव किया है । सो हम देवानुप्रिय को प्रिय निवेदन करती हैं । आपको प्रिय हो ! तत्पश्चात् श्रेणिक राजा उन दासियों के पास से यह अर्थ सुनकर और हृदय में धारण करके हृष्ट-तुष्ट हुआ । उसने उन दासियों का मधुर वचनों से तथा विपुल पुष्पों, गंधों, मालाओं और आभूषणों से सत्कार-सन्मान किया । सत्कार-सन्माक करके उन्हें मस्तकधौत किया अर्थात् दासीपन से मुक्त कर दिया । उन्हें ऐसी आजीविका कर दी कि उनके पौत्र आदि तक चलती रहे । इस प्रकार आजीविका करके विपुल द्रव्य देकर विदा किया ।
तत्पश्चात् श्रेणिक राजा कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाता है । बुलाकर इस प्रकार आदेश देता है-देवानुप्रिय ! शीघ्र ही राजगृह नगर में सुगन्धित जल छिड़को, यावत् उसका सम्मार्जन एवं लेपन करो, श्रृंङ्गाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख और राजमार्गों में सिंचन करो, उन्हें शुचि करो, रास्ते, बाजार, वीथियों को साफ करो, उन पर मंच और मंचों पर मंच बनाओ, तरह-तरह की ऊँची ध्वजाओं, पताकाओं और पताकाओं पर पताकाओं से शोभित करो, लिपा-पुता कर, गोशीर्ष चन्दन तथा सरस रक्तवन्दन के पाँचों उंगलियों वाले हाथे लगाओं, चन्दन-चर्चित कलशों से उपचित करों, स्थान-स्थान पर, द्वारों पर चन्दन-घटों के तोरणों का निर्माण कराओ, विपुल गोलाकार मालाएं लटकाओ, पांचों रंगों के ताजा और सुगंधित फूलों को बिखेरो, काले अगर, श्रेष्ठ कुन्दरुक, लोभान तथा धूप इस प्रकार जलाओ कि उनकी सुगंध से सारा वातावरण मघमघा जाय, श्रेष्ठ सुगंध के कारण नगर सुगंध की गुटिका जैसा बन जाय, नट, नर्तक, जल्ल, मल्ल, मौष्टिक, विडंवक, कथाकार, प्लवक, नृत्यकर्ता, आइक्खग-शुभाशुभ फल बतानेवाले, बांस पर चढ़ कर खेल दिखानेवाले, चित्रपट दिखानेवाले, तूणा-वीणा बजानेवाले, तालियां पीटनेवाले आदिलोगों से युक्त करो एवं सर्वत्र गान कराओ । कारागार से कैदियों को मुक्त करो । तोल और नाप की वृद्धि करो । यह सब करके मेरी आज्ञा वापिस सौंपो । यावत् कौटुम्बिक पुरुष कार्य करके आज्ञा वापिस देते हैं ।
तत्पश्चात् श्रेणिक राजा कुंभकार आदि जाति रूप अठारह श्रेणियों को और उनके उपविभाग रूप अठारह को बुलाता है । बुलाकर इस प्रकार कहता है-देवानुप्रिय ! तुम जाओ
और राजगृह नगर के भीतर और बाहर दस दिन की स्थितिपतिका कराओ । वह इस प्रकार है - दस दिनों तक शुल्क लेना बंद किया जाय, गायों वगैरह का प्रतिवर्ष लगनेवाला कर माफ किया जाय, कुटुंबियों-किसानों आदि के घर में बेगार लेने आदि के राजपुरुषों का प्रवेश निषिद्ध किया जाय, दंड न लिया जाय, किसी को ऋणी न रहने दिया जाय, अर्थात् राजा की तरफ से सबका ऋण चुका दिया जाय, किसी देनदार को पकड़ा न जाय, ऐसी घोषणा कर दो तथा सर्वत्र मृदंग आदि बाजे बजवाओ । चारों ओर विकसित ताजा फूलों की मालाएँ