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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
से बोला- देवानुप्रिय ! तुम निश्चिन्त रहो और विश्वास रक्खो । मैं तुम्हारी लघु माता धारिणी देवी के दोहद की पूर्ति किए देता हूं ।' ऐसा कहकर अभयकुमार के पास से निकलता है । उत्तरपूर्व दिशा में, वैभारगिरि पर जाकर वैक्रियसमुद्घात करता है । समुद्घात करके संख्यात योजन प्रमाण वाला दंड निकालता है, यावत् दूसरी बार भी वैक्रियसमुद्घात करता है और गर्जना से युक्त, बिजली से युक्त और जल-बिन्दुओं से युक्त पाँच वर्ण वाले मेघों की ध्वनि से शोभित दिव्य वर्षा ऋतु की शोभी की विक्रिया करता है । जहाँ अभयकुमार था, वहाँ आकर अभयकुमार से कहता है- देवानुप्रिय ! मैंने तुम्हारे प्रिय के लिए- प्रसन्नता की खातिर गर्जनायुक्त, बिन्दुयुक्त और विद्युतयुक्त दिव्य वर्षा- लक्ष्मी की विक्रिया की है । अतः हे देवानुप्रिय ! तुम्हारी छोटी माता धारिणी देवी अपने दोहद की पूर्ति करे ।
तत्पश्चात् अभयकुमार उस सौधर्मकल्पवासी पूर्व के मित्र देव से यह बात सुन - समझ कर हर्षित एवं संतुष्ट होकर अपने भवन से बाहर निकलता है । निकलकर जहाँ श्रेणिक राजा बैठा था, वहां आता है । आकर मस्तक पर दोनों हाथ जोड़कर इस प्रकार कहता है - हे तात ! मेरे पूर्वभव के मित्र सौधमकल्पवासी देव ने शीघ्र ही गर्जनायुक्त, बिजली से युक्त और पाँच रंगों के मेधों की ध्वनि से सुशोभित दिव्य वर्षाऋतु की शोभा की विक्रिया की है । अतः मेरी लघु माता धारिणी देवी अपने अकाल- दोहद को पूर्ण करें । तत्पश्चात् श्रेणिक राजा, अभयकुमार से यह बात सुनकर और हृदय में धारण करके हर्षित व संतुष्ट हुआ । यावत् उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलवाया । बुलवाकर इस भांति कहा- देवानुप्रिय ! शीघ्र ही राजगृह नगर में श्रृंगाटक, त्रिक, चतुष्क और चबूतरे आदि को सींच कर यावत् उत्तम सुगंध से सुगंधित करके गंघ की बट्टी के समान करो । ऐसा करके मेरी आज्ञा वापिस सौंपो । तत्पश्चात् कौटुम्बिक पुरुष आज्ञा का पालन करके यावत् उस आज्ञा को वापिस सौंपते हैं, अर्थात् आज्ञानुसार कार्य हो जाने की सूचना देते हैं ।
तत्पश्चात् श्रेणिक राजा दूसरी बार कौटुम्बिक पुरुषों को बुलवाता है और बुलवाकर इस प्रकार कहता है- 'देवानुप्रियो ! शीघ्र ही उत्तम अश्व, गज, रथ तथा योद्धाओं सहित चतुरंगी सेना को तैयार करो और सेचनक नामक गंधहस्ती को भी तैयार करो ।' वे कौटुम्बिक पुरुष भी आज्ञा पालन करके यावत् आज्ञा वापिस सौंपते हैं । तत्पश्चात् श्रेणिक राजा जहाँ धारिणी देवी थी, वहीं आया । आकर धारिणी देवी से इस प्रकार बोला- 'हे देवानुप्रिय ! तुम्हारी. अभिलाषा अनुसार गर्जना की ध्वीन, बिजली तथा बूंदाबांदी से युक्त दिव्य वर्षा ऋतु की सुषमा प्रादुर्भूत हुई है । अत एव तुम अपने अकाल- दोहद को सम्पन्न करो ।'
तत्पश्चात् वह धारिणी देवी श्रेणिक राजा के इस प्रकार कहने पर हृष्ट- तृष्ट हुई और जहाँ स्नानगृह था, उसी और आई । आकर स्नानगृह मे प्रवेश किया अन्तःपुर के अन्दर स्नान किया, बलिकर्म किया, कौतुक, मंगल और प्रायश्चित्त किया । फिर क्या किया ? सो कहते हैं- पैरों में उत्तम नूपुर पहने, यावत् आकाश तथा स्फटिक मणि के समान प्रभा वाले वस्त्रों को धारण किया । वस्त्र धारण करके सेचनक नामक गंधहस्ती पर आरूढ़ होकर, अमृतमंथन से उत्पन्न हुए फेन के समूह के समान श्वेत चामर के बालों रूपी बीजने से बिजाती हुई खाना हुई । तत्पश्चात् श्रेणिक राजा ने स्नान किया, बलिकर्म किया, कौतुक, मंगल, प्रायश्चित्त किया, अल्प किन्तु बहुमूल्य आभूषणों से शरीर को सुशोभित किया । सुसज्जित होकर, श्रेष्ठ