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भगवती-४१/-/१/१०६८
से उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! यदि वे जीव आत्म-अयश से उत्पन्न होते हैं तो क्या वे आत्मयश से जीवनिर्वाह करते हैं अथवा आत्म-अयश से जीवननिर्वाह करते हैं ? गौतम ! वे आत्म-अयश से करते हैं ।
भगवन् ! यदि वे आत्म-अयश से अपना जीवननिर्वाह करते हैं, तो वे सलेश्यी होते हैं अथवा अलेश्यी होते हैं ? गौतम ! वे सलेश्यी होते हैं । भगवन् ! यदि वे सलेश्यी होते हैं तो सक्रिय होते हैं या अकिश्य होते हैं ? गौतम ! वे सक्रिय होते हैं । भगवन् ! यदि वे सक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो जाते हैं यावत् सर्वदुःखों का अन्त कर देते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ।
___ भगवन् ! राशियुग्म-कृतयुग्मराशिरूप असुरकुमार कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों के कथन अनुसार यहां जानना । पंचेन्द्रियतिर्यञ्च तक इसी प्रकार कहना । विशेषवनस्पतिकायिक जीव यावत् असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं, शेष पूर्ववत् ।।
.. मनुष्यों से सम्बन्धित कथन भी वे आत्म-यश से उत्पन्न नहीं होते, किन्तु आत्मअयश से उत्पन्न होते हैं, तक कहना । भगवन् ! यदि वे आत्म-अयश से उत्पन्न होते हैं तो क्या आत्म-यश से जीवन-निर्वाह करते हैं या आत्म-अयश से जीवन निर्वाह करते हैं । गौतम ! आत्म-यश से भी और आत्म-अयश से भी जीवन निर्वाह करते हैं । भगवन् ! यदि वे आत्मयश से जीवन-निर्वाह करते हैं तो सलेश्यी होते हैं या अलेश्यी होते हैं ? गौतम ! वे सलेश्यी भी होते हैं और अलेश्यी भी । भगवन् ! यदि वे अलेश्यी होते हैं तो सक्रिय होते हैं या अक्रिय होते हैं ? गौतम ! वे किन्तु अक्रिय होते हैं । भगवन् ! यदि वे अकिश्य होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध, बुद्ध, मुक्त यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं ? हाँ, गौतम ! करते हैं । भगवन् ! यदि वे सलेश्यी हैं तो सक्रिय होते हैं या अक्रिय होते हैं ? गौतम ! वे सक्रिय होते हैं । भगवन् ! वे सक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध होते हैं यावत् सब दुःखों का अन्त करते हैं ? गौतम ! कितने ही इसी भव में सिद्ध होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त कर देते हैं और कितने ही उसी भव में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त नहीं होते, यावत् सर्व दुःखों का अन्त नहीं कर पाते ।।
भगवन् ! यदि वे आत्म-अयश से जीवन निर्वाह करते हैं तो वे सलेश्यी होते हैं या अलेश्यी होते हैं ? गौतम ! वे सलेश्यी होते हैं । भगवन् ! यदि वे सलेश्यी होते हैं तो सक्रिय होते हैं अथवा अक्रिय होते हैं ? गौतम ! वे सक्रिय होते हैं । भगवन् ! यदि वे सक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त कर देते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ।
वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक-सम्बन्धी कथन नैरयिक के समान है । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' ।
| शतक-४१ उद्देशक-२ । [१०६९] भगवन् ! राशियुप्म-त्र्योजराशि-परिमित नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत्-ये तीन, सात, ग्यारह, पन्द्रह संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । सान्तर पूर्ववत् । भगवन् ! वे जीव जिस समय त्र्योजराशि होते हैं, क्या उस समय कृतयुग्मराशि