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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
[१०५५] भगवन् ! चरम-अचरमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रथमसमयउद्देशक के अनुसार जानना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है' ।
[१०५६] इस प्रकार ये ग्यारह उद्देशक हैं । इनमें से पहले, तीसरे और पांचवें उद्देशक के पाठ एकसमान हैं । शेष आठ उद्देशक एकसमान पाठ वाले हैं । किन्तु चौथे, (छठे), आठवें और दसवें उद्देशक में देवों का उपपात तथा तेजोलेश्या का कथन नहीं करना ।
| शतक-३५ शतकशतक-२ से १२ । [१०५७] भगवन् ! कृष्णलेश्यी-कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! इनका उपपात औधिक उद्देशक अनुसार समझना । किन्तु इन बातों में भिन्नता है । भगवन् ! क्या वे जीव कृष्णलेश्या वाले हैं ? हाँ, गौतम ! हैं । भगवन् ! वे कृष्णलेश्यी कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कितने काल तक होते हैं ? गौतम ! वे जघन्य एकसमय तक और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त तक होते हैं । उनकी स्थिति भी इसी प्रकार जानना । शेष पूर्ववत् यावत् अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं । इसी प्रकार क्रमशः सोलह महायुग्मों पूर्ववत् कहना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' ।
___ भगवन् ! प्रथमसमय-कृष्णलेश्यी कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रथमसमयउद्देशक के समान जानना । विशेष यह हैभगवन् ! वे जीव कृष्णलेश्या वाले हैं ? हाँ, गौतम ! वे कृष्णलेश्या वाले हैं । शेष पूर्ववत्। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' । औधिकशतक के ग्यारह उद्देशकों के समान कृष्णलेश्याविशिष्ट शतक के भी ग्यारह उद्देशक कहने चाहिए । प्रथम, तृतीय और पंचम उद्देशक के पाठ एक समान हैं । शेष आठ उद्देशकों के पाठ सदृश हैं । किन्तु इनमें से चौथे, (छठे), आठवें और दसवें उद्देशक में देवों की उत्पत्ति नही होती । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' । नीललेश्या वाले एकेन्द्रियों का शतक कृष्णलेश्या वाले एकेन्द्रियों के शतक के समान कहना चाहिए । इसके भी ग्यारह उद्देशकों का कथन उसी प्रकार है । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' । कापोतलेश्या-सम्बन्धी शतक कृष्णलेश्याविशिष्ट शतक के समान जानना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यह इसी प्रकार है'।
भगवन् ! भवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! औधिकशतक के समान जानना । इनके ग्यारह ही उद्देशकों में विशेष बात यह है-भगवन् ! सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्व भवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्म विशिष्ट एकेन्द्रिय के रूप में पहले उत्पन्न हुए हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । शेष कथन पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' ।
भगवन् ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! कृष्णलेश्या-सम्बन्धी द्वितीय शतक के समान जानना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' । नीललेश्या वाले भवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्मएकेन्द्रिय शतक का कथन तृतीय शतक के समान जानना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' ।