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भगवती-३४/१/३/१०३६ करते हैं । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।।
| शतक-३४/१ उद्देशक-३ [१०३६] भगवन् ! परम्परोपपन्नक एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पांच प्रकार के, यथा-पृथ्वीकायिक इत्यादि । उनके चार-चार भेद वनस्पतिकायिक पर्यन्त कहना । भगवन् ! परम्परोपपन्नक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्व-चरमान्त में मरणसमुद्धात करके रत्नप्रभापृथ्वी के यावत् पश्चिम-चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न हो तो वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! इस अभिलाप से प्रथम उद्देशक के अनुसार यावत् लोक के चरमान्त पर्यन्त कहना ।
भगवन् ! परम्परोपपन्नक पर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक जीवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा वे आठ पृथ्वीयों में हैं । इस प्रकार प्रथम उद्देशक में उक्त कथनानुसार यावत् तुल्य-स्थिति तक कहना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
| शतक-३४/१ उद्देशक-४ से ११ | [१०३७] इसी प्रकार शेष आठ उद्देशक भी यावत् 'अचरम' तक जानने चाहिए । विशेष यह है कि अनन्तर-उद्देशक अनन्तर के समान और परम्पर-उद्देशक परम्पर के समान कहना चाहिए । चरम और अचरम भी इसी प्रकार है । इस प्रकार ये ग्यारह उद्देशक हुए ।
| शतक-३४ शतकशतक-२ | [१०३८] भगवन् ! कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पांच प्रकार । उनके चार-चार भेद एकेन्द्रियशतक के अनुसार वनस्पतिकायिक पर्यन्त जानना।
भगवन् ! कृष्णलेश्यी अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वचरमान्त में यावत् उत्पन्न होता है ? गौतम ! औधिक उद्देशक के अनुसार लोक के चरमान्त तक सर्वत्र कृष्णलेश्या वालों में उपपात कहना चाहिए ।
भगवन् ! कृष्णलेश्यी अपर्याप्त बादरपृथ्वीकायिक जीवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? गौतम ! औधिक उद्देशक के इस अभिलाप के अनुसार 'तुल्यस्थिति वाले' पर्यन्त कहना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । इस प्रकार-प्रथम श्रेणी शतक समान ग्यारह उद्देशक कहना ।
| शतक-३४ शतकशतक-३ से ५ | [१०३९] इसी प्रकार नीललेश्या वाले एकेन्द्रिय जीव का तृतीय शतक है । [१०४०] कापोतलेश्यी एकेन्द्रिय के लिए भी इसी प्रकार चतुर्थ शतक है । [१०४१] तथा भवसिद्धिक-एकेन्द्रिय विषयक पंचम शतक भी समझना चाहिए ।
शतक-३४ शतकशतक-६ | [१०४२] भगवन् ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! औधिक उद्देशकानुसार जानना । भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक भवसिद्धिक-कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! औधिक उद्देशक के अनुसार जानना ।
भगवन् ! परम्परोपपन्नक कृष्णलेश्यी-भवसिद्धिक कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम !