Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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विपाकश्रुते
महावीरेण अन्भणुन्नाए समाणे हट्ठे तुट्ठे समणस्स भगवओ महावीरस्स' ततः खलु स भगवान गौतमः श्रमणेन भगवता महावीरेणाभ्यनुज्ञातः सन् हृष्टस्तुष्टः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य 'अंतियाओ' अन्तिकात् = समीपात् 'पडिनिक्खमइ' प्रतिनिष्क्रामति = निर्गच्छति, 'पडिनिक्खमित्ता' प्रतिनिष्क्रम्य, 'अतुरियं' अत्वरितं मनःस्थैर्यात्, 'जाव' यावत्, अत्र यावच्छन्दादेवं द्रष्टव्यम् - 'अचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरओ ईरियं' अचपलं-कायचापल्याभावात्, अस्वरितमचपलमिति - द्वयं क्रियाविशेषणम् । तथा 'असंते' असंभ्रान्तः = संभ्रमरहितः 'जुगंतरपलोयणाए दिट्ठी' युगान्तरप्रलोकनया दृष्ट्या - युगं = यूपस्तत्प्रमाणो-झूसराप्रमाणः - चतुर्हस्तप्रमाणो भूमिभागोऽपि युगम्, तस्यान्तरे - मध्ये प्रलोकनं यस्याः सा तथा तथा दृष्ट्या = चक्षुषा 'पुरओ' पुरतः = अग्रे 'ईरियं' ईर्याम् – ईर्ष्या - गतिः, अत्रेर्याशब्देन गतिविषयो मार्गोऽपि गृह्यते, अतः ईर्ष्या - मार्ग, 'सोहेमाणे सोहे - माणे' शोधयन् शोधयन् = प्रेक्षमाणः प्रेक्षमाणो 'जेणेव मियागामे णयरे तेणेव गोयमे' वे गौतमस्वामी 'समणेणं भगवया महावीरेणं' श्रमण भगवान महावीर प्रभु द्वारा 'अन्भणुन्नाए समाणे' आज्ञा पाकर हट्ठे तुट्ठे बहुत ही अधिक आनंदित होते हुए, 'समणस्स भागवओ महावीरस्स अंतियाओ' उन श्रमण भगवान महावीर के पास से 'पडिनिक्खमइ' निकले, और 'पडिनिक्खमित्ता' निकलकर 'अतुरियं' धीरे धीरे 'जाव' - 'जाव' शब्द से यहाँ पर 'अचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरओ ईरियं' यहाँ तक संगृहीत हुआ है । इसका अर्थ यह है- मानसिक स्थिरता से 'युक्त और कायिक चपलता से रहित होकर, झूसराप्रमाण या चार हाथ प्रमाण आगे की भूमि का अच्छी तरह से अवलोकन करनेवाली दृष्टि से मार्ग को 'सोहेमाणे२' देखते देखते ईर्यासमिति
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'तए णं' भगवाननी मे प्रभा आज्ञा प्राप्त अने 'से भगवं गोयमे' ते गौतम स्वामी 'समणं भगवया महावीरेणं' श्रमाणु लगवान महावीर अभु દ્વારા 'अन्भणुनाए समाणे' आज्ञा भेजवाने 'हट्ठे तुट्ठे' हुन वधारे मानंद यामीने 'समute भगवओ महावीरस्स अंतियाओ' ते श्रमण भगवान महावीरना पासेथी 'पडिनिक्खमइ' नीडज्या, भने 'पडिनिक्खमित्ता' नीणीने 'अतुरियं' धीरे धीरे 'जाव' मडीं' 'जाव' शम्हथी 'अचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरओ ईरियं' भेटला होना संग्रह थयेलो छे, मानो अर्थ मे अभागे छे માનસિક સ્થિરતાથી યુકત અને કાયિક ચપળતાથી રહિત થઈને, ધાંસરા પ્રમાણુ અર્થાત્ ચાર હાથ પ્રમાણે આગળ કરીને ભૂમિનું સારી રીતે અવલાકન थई शडे तेवी दृष्टिथी भागने 'सोहेमाणे२' लेतां २ र्यासमितिपूर्व गमन पुरीने
શ્રી વિપાક સૂત્ર