Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० २, अ० १, सुबाहुकुमारवर्णनम् २५ यस्य स तथा, 'मासं मासेणं' मासमासेन-मासेन मासेन मासं मासं व्याप्येत्यर्थः 'खममाणे' तीवेण तपसा कालं यापयन् 'विहरई' विहरति ।। सू० ५ ॥
॥ मूलम् ॥ तए णं से सुदत्ते अणगारे मासखमणस्स पारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, जहा गोयमसामी तहेव धम्मघोसे थेरे आपुच्छइ जाव अडमाणे सुमुहस्स गाहावइस्स गिहं अणुपविट्टे । तए णं से सुमुहे गाहावई सुदत्तं अणगारं एजमाणं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ट० आसणाओ अब्भुटेइ, अब्भुद्वित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पाउयाओ ओमुयइ,
ीमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करित्ता सुदत्तं अणगारं सत्तटुपयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयहत्थेणं विउलं असणं पाणं स्वाइमं साइमं पडिलाभेस्सामि त्ति कटु तुहे. पडिलाभेमाणे तुठे, पडिलाभिएत्ति तुढे ॥ सू० ६॥
टीका 'तए णं से सुदत्ते' इत्यादि । तए णं से सुदत्ते अणगारे' ततः खलु स सुदत्तोऽनगारः 'मासक्खमणपारणगंसि' मासक्षपणपारणके 'पढमाए पोरिकरनेवाली तेजोलेश्या को अपने शरीर के भीतर संकुचित करके रखे हुए थे और जो मास-मास-क्षपण की तपस्या करते हुए विचरते थे।।सू०५॥
'तए णं से' इत्यादि ।
'तए णं' इसके बाद से सुदत्ते अणगारे' वे सुदत्त अनगार લેશ્યાને પોતાના શરીરની અંદર સંકુચિત કરીને રાખી હતી. અને જે માસમાસ ક્ષપણની તપસ્યા કરતા થા વિચરતા હતા. (સૂ૦ ૫)
'तए णं से' त्यादि 'तए णं' ते ५छी 'से मुदत्ते अणगारे ते सुत्त २ २ 'मासक्ख
શ્રી વિપાક સૂત્ર
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