Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 765
________________ विपाकश्रुते कुमारे' स सुबाहुकुमारः 'समणोवासए जाए' श्रमणोपासको जातः द्वादशत्रतधारी श्रावको जातः । कीदृशः ? इत्याह- अभिगयजीवाजीवे' अभिगतजीवाजीवः= सम्यगविज्ञातजीवाजीवस्वरूपः 'जाव' यावत्-'फासुयएसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं समणे णिग्गंथे'-प्रासुकैषणीयेन अशनपानखाद्यस्वाधेन श्रमणान् निग्रन्थान् 'पडिलाभेमाणे' प्रतिलम्भयन् 'विहरई' विहरति ॥ मू० ९ ॥ ॥ मूलम् ॥ तए णं से सुबाहुकुमारे अण्णया कयाइं चउद्दसटमुदिट्रपुण्णमासिणीसु जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमजित्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता अहमभत्तं गिण्हित्ता पोसहसालाए पासाहिए अट्ठमभत्तिए पोसहं पडिजागरमाणे विहरइ ॥सू० १०॥ टीका 'तए णं' इत्यादि । 'तए णं' ततः खलु ‘से सुबाहुकुमारे' स सुबाहुवहां से विहार करके ये देश में विहार करने लगे । 'तए णं' इसी अंतर में 'से सुबाहुकुमारे समणो वासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे विहरइ' वह सुबाहुकुमार श्रमणोपासक हो गया-१२ व्रतधारी श्रावक बन गया। जीव और अजीव तत्व के स्वरूप का ज्ञाता भी हो गया, और प्रासुक एषणीय चतुर्विध आहारों का निर्ग्रन्थ मुनियों को दान देता हुआ विचरने लगा ॥ सू० ९॥ ___'तए णं से' इत्यादि। 'तए णं से सुबाहुकुमारे' उसके बाद वह सुबाहुकुमार 'अग्णया 48२ ४ा. 'पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ' त्यांथी वि.२ रीने ते शमां विडा२ ४२१। साया. 'तए णं ते सभये 'से सुबाहुकुमारे समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे विहरई' ते सुषमा२ ५५] श्रभो। પાસક થઈ ગયા–બાર વ્રતધારી શ્રાવક બની ગયા જીવ અને અજીવ તત્વના જાણકાર પણ બની ગયા, પ્રાસુક, એષીય ચતુર્વિધ આહારનું નિર્ચન્થ મુનિઓને દાન આપતા वियर। दाया. (सू०८) 'तए णं से' त्या. શ્રી વિપાક સૂત્ર

Loading...

Page Navigation
1 ... 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809