Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 763
________________ विपाकश्रुते 'पभू णं' प्रभुः समर्थःशक्तः खलु 'भंते' हे भदन्त ! 'सुबाहुकुमारे' सुबाहुकुमारः 'देवाणुप्पियाणं' देवानुप्रियाणां भवताम् अंतिए' अन्तिके 'मुंडे भवित्ता' मुण्डो भूत्वा 'अगाराओ' अगारात्गृहं परित्यज्येत्यर्थः 'अणगारियं' अनगारितांसाधुतां 'पव्वइत्तए' प्रत्रजितुम् ? अनगारितां स्वीकर्तुं समर्थः किम् ? इति भावः । भगवानाह-'हंता पभू' हन्त ! प्रभुः-हे गौतम ! सुबाहुकुमारः संयमग्रहणे समर्थोऽस्तोति भावः। 'हन्त' इति उक्तार्थस्वीकृतिवाचकमव्ययम् ॥ मू० ८॥ तए णं से भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाइं हत्थिसोसाओणयराओ पुप्फकरंडाओ उज्जाणाओ कयवणमालप्पियस्स जक्खस्स जक्खाययणाओपडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ। तए णं से सुबाहुकुमारे समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे विहरइ ॥ सू०९॥ की हैं और उन्हें अच्छी तरह से यह भोग भी रहा है। 'पभू णं भंते ! सुबाहुकुमारे देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पचइत्तए' श्री गौतम पूछते हैं कि हे भदन्त । यह सुबाहुकुमार देवानुप्रिय-आप के पास धर्म श्रवण कर द्रव्य एवं भावरूप से मुंडित हो घर का परित्याग करके प्रव्रज्या लेने के लिये समर्थ है क्या ? प्रश्न के समाधान निमित्त प्रभुने कहा 'हंता पम्' हां ! गौतम ! यह सुबाहुकुमार संयम ग्रहण करने में समर्थ है ॥ सू० ८॥ प्राप्त ४ छ, भने गहु सारी शते ते मागवी रह्या छ 'पभू णं भंते ! सुबाहु कुमारे देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए' શ્રી ગૌતમ પૂછે કે-હે ભદન્ત ! તે સુબાહુકુમાર દેવાનુપ્રિય–આપના પાસે ધર્મ સાંભળી દ્રવ્ય અને ભાવરૂપથી મુંડિત થઈને ઘરને ત્યાગ કરીને પ્રત્રજ્યા (દીક્ષા લેવા માટે समर्थ छ ? प्रश्नना समाधान निभित्ते प्रभुम्मे ध्यु 'हंता पभू' ! गौतम! से સુબાહુકમાર સંયમ ગ્રહણ કરવામાં સમર્થ છે કે સૂ૦ ૮ છે શ્રી વિપાક સૂત્ર

Loading...

Page Navigation
1 ... 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809