Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 756
________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० २, अ० १, सुबाहुकुमारवर्णनम् ३१ भावयुक्तेन दायकेन 'पडिग्गाहगसुद्धेणं' प्रतिग्राहकशुद्धन-शुद्धप्रतिग्राहकेण निरतिचारतपःसंयमसम्पन्नेन, 'तिविहेणं' त्रिविधेन शुद्धेन द्रव्यादित्रयेण, 'तिकरणसुद्धेणं' त्रिकरणशुद्धेन-दायकस्य शुद्धेन मनोवाकायलक्षणकरणत्रयेण मुदत्ते अणगारे' सुदत्तेऽनगारे 'पडिलाभिए समाणे' प्रतिलम्भिते भिक्षान्नग्रहणेन प्रतिलाभदानाभिमुखीकृते सति, 'संसारे परित्तीकए' संसारः परीतीकृतः परि समन्तात् इतः गत इति परीतः, अपरीतः परीतः कृत इति परीतीकृतः अल्पीकृत इति यावत् । 'मणुस्साउए णिवद्धे' मनुष्यायुष्कं निबद्धम् । 'गिर्हसि य' गृहे च 'से' तस्य, मुमुखस्य गाथापतेः 'इमाई' इमानि वक्ष्यमाणानि पञ्च 'दिव्वाई' दिव्यानि=देवकृतानि ‘पाउब्भूयाई' भादुर्भूतानि 'तं जहा' तद्यथा तानि पञ्चदिव्यानि यथा 'वसुहारा' वसुधारा-सुवर्णदृष्टिः, 'बुट्टा' वृष्टा देवैः सुवर्णदृष्टिः कृतेत्यर्थः १। 'दसद्धवण्णे कुसुमे णिवाइए' दशार्धवर्णानि कुसुमानि निपातितानि, दशार्धवर्णानि पञ्चवर्णानि कुसुमानि= पुष्पाणि निपातितानि देवैर्वषितानि २ । ' चेलुक्खेवे कए ' चेलोत्क्षेपः कृतः= ककी शुद्धिसे-उदार भावयुक्त अपनी शुद्धिसे 'पडिग्गाहगसुद्धेणं' प्रतिग्राहक की शुद्धिसे-अतिचार रहित तप और संयमके आराधक सुदत्त जैसे अनगारकी शुद्धिसे, इन तीन प्रकार की शुद्धियों से, एवं तीन करण की शुद्धिसे अर्थात् शुद्ध मन वचन और कायसे 'सुदत्ते अणगारे पडिलाभिए समाणे संसारे परित्तीकए' सुदत्त अनगारको आहार दान देने पर अपना संसार अल्प किया। 'मणुस्साउए णिवद्धे' एवं मनुष्यायु का बंध किया । "गिहंसि य से इमाइं पंच दिव्याई पाउन्भूयाई' मुनि के प्रभावसे उसके घर पर पांच दिव्य बातें देवकृत हुई। 'तं जहा' वे इस प्रकार हैं-'वसुहारा वुट्टा,१ दसवण्णे कुसुमे णिवाइए, २ चेलुक्खेवे पोतानी शुद्धिया 'पडिग्गाहगसुद्धणं' प्रतियानी शुद्धिथी-मतिया२ २हित त५ भने સંયમના આરાધક સુદત્ત જેવા અણગારની શુદ્ધિથી, આ ત્રણ પ્રકારની શુદ્ધિથી એવું aey ४२णोथी शुद्धिथा अर्थात शुद्ध भन क्यन मने आयाथी 'मुदत्ते अणगारे पडिलाभिए समाणे संसारे परित्तीकए' सुत्त २मारने हान-(मा.२) सापान पोतानो संसार माछो ध्य.. 'मणुस्साउए णिबद्धे' के प्रमाणे मनुष्यानी मायुष्यन। ५] ५ ४. 'गिहंसि य इमाई पंच दिव्याइं पाउब्भूयाइ' भुनिन हान सायु ते पुश्यना प्रभाथी तेना घरमा पांय दिव्य पात-देवत थ तं जहा। ते मा प्रमाणे 'वसुहारा वुट्टा१, दसवण्णे कुसुमे णिवाइए२, चेलुक्खेवे શ્રી વિપાક સૂત્ર

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