Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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विपाकश्रुते
टीका
'तए णं से' इत्यादि ।
'त णं से सागरदत्ते सत्यवाहे ' ततः खलु स सागरदत्तः सार्थवाहः 'जहा विजयमित्ते' यथा विजयमित्रः = अत्रैव द्वितीयाध्ययनोक्तविजयमित्रसार्थवाहवत् - लवण - समुद्रमध्ये 'कालधम्मुणा संजुत्ते' कालधर्मेण संयुक्तो जातः मृत इत्यर्थः, 'गंगादत्ता वि' गङ्गदत्तापि सागरदत्तस्य भार्या गङ्गदत्तापि लक्ष्मीविनाशं पोतविनाशं पतिमरणं चानुचिन्तयन्ती२ कालधर्मेण संयुक्ता जाता मृता 'उंबरदत्ते' स उदुम्बरदतो दारकः 'निच्छूढे' निक्षिप्तः = स्वकाद् गृहाद् निष्कासितः 'जहाउज्झियए' यथा उज्झितकः - उज्झितकवत् । ततः खलु स उदुम्बरदतो दारकः स्वाद् गृहान्निसृतः सन् पाटलिपण्डे नगरे गृङ्गाटकत्रिकचतुष्कचत्वरमहापथपथेषु परिभ्रमति ।
'तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे ० ' इत्यादि ।
' तर णं से सागरदत्ते सत्थवाहे ' किसी एक समय की बात है कि वह सागरदत्त सार्थवाह 'जहा विजय मित्ते ' द्वितीय अध्ययन में वर्णित विजयमित्र सार्थवाह की तरह 'कालधम्मुणा संजुत्ते' लवण समुद्र में डूब कर मर गया । 'गंगदत्तावि' गंगदत्ता भी अपने पति का अचानक मरण सुन कर एवं जहाज के लवण समुद्र में डूब जाने से समस्त लक्ष्मी का विनाश जान कर दुःखित हो मर गई 'जंबरदत्ते निच्छूढे' वहां के राजपुरुषों ने उदुम्बरदत्त को चाल-चलन से भ्रष्ट होने के कारण 'जहा उज्झियए' पूर्व में वर्णित उज्झित दारक की तरह घर से बाहर निकाल दिया । 'तर णं तस्स उंबरदत्तस्स दारगस्स अण्णया कयाई सरीरगंसि जगमगमेव सोलस रोगायंका पाउन्भूया' घर से बहार निकाला
'तर णं से सागरदत्ते सत्थवाहे ०' छत्याहि.
'त से सागरदत्ते सत्थवाहे' हे मे समयनी वात छे डे ते सागरछत्त सार्थवाह 'जहा विजयमित्ते' जीन अध्ययनमां वर्णित विश्यभित्र सार्थवाह प्रमाणे 'कालधम्पुणा संजुत्ते' सवयु समुद्रमां डूमीने भर पाभ्यो, 'गंगदत्तावि' गगहत्ता પણ પેાતાના પતિનું અચાનક મૃત્યુ સાંભળીને તથા લવણુ સમુદ્રમાં વહાણુ ડૂબી જવાથી तमाम लक्ष्मीनो नाश था गयो महीने हुःजीत थहने भर चाभी "उंबरदत्ते निच्छूढे' त्यांना रामपुरुषोमे उहु मरहत्तनी व्यास-थलगत भ्रष्ट होवाना अरणे 'जहा उज्झियए अन्जित ६२४ प्रभागे धरथी महार आढी भूञ्ज्यो, 'तर णं तस्स उंबरदत्तस्स दारगस्स अण्णया कयाई सरीरगंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायंका पाउब्भूया'
શ્રી વિપાક સૂત્ર