Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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विपाकश्रुते
एवं शौर्यदत्तस्य मत्स्यबन्धस्य चरित्रं वर्णयित्वा भगवानाह - ' एवं खलु गोमा' इत्यादि । एवं खलु हे गौतम ! 'सोरियदत्ते मच्छंधे ' शौर्यदत्तो मत्स्यबन्धः ' पुरापोराणाणं ' पुरापुराणानां = पूर्वभवोपार्जितानां ' जाव विहरइ ' यावत् = दुवीर्णानां दुष्मतिक्रान्तानामशुभानां कर्मणां पापकं फलवृति-विशेषं प्रत्यनुभवन् विहरति ॥ सृ० ८ ॥
॥ मूलम् ॥
सोरियदत्ते णं भंते! मच्छंधे इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छ िक िववजिहिइ ! गोयमा ? सत्तरिवासाई परमाउं पालित्ता कालमासे कालं किञ्च्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए संसारो तहेव जाव पुढवीस । से णं तओ हत्थिणाउरे णयरे मच्छत्ताए उववजिहि । से णं तओ मच्छिएहिं होकर कुशशरीर हो गया। यहां यावत् शब्द से 'भुक्खे लुक्खे निम्मंसे अचम्मारणद्धे' अन्न खाने को रुचि चली जाने से यह वुभुक्षित रहने लगा, शारीरिक कांति से रहित होने से यह बिलकुल रूक्ष बन गया । मांस की वृद्धि से रहित होने के कारण निर्मास और चमडी हड्डियों में अटका रहने के कारण यह अस्थिचर्मावनद्ध हो गया। इस प्रकार की परिस्थितिसंपन्न बना हुआ यह आज अपने जीवन के दिनों को निकाल रहा है । इस प्रकार शौर्यदत्त मच्छीमार के चरित्र को वर्णन करके भगवान ने कहा 'एवं खलु गोयमा ! सारियदत्ते मच्छंधे पुरापोराणाणं जाव विहर' इस प्रकार हे गौतम ! यह शौर्यदत्त मच्छीमार पूर्वभव में उपार्जित दुचीर्ण, दुष्प्रतिक्रान्त, अशुभ पाप कर्मों के पापमय फल को भोग रहा है | सू० ८ ॥
शरीर (हुमणेो) थह गये।, अहीं यावत् शब्दथी 'भुक्खे लक्खे निम्मंसे अचिम्मावणवे ' मना भवानी ३थी गंध थवाथी ते लग्यो रहेवा लाग्यो भने शरीरनी કાંતિ નાશ પામવાથી તે એકદમ રૂક્ષ-બની ગયા. માંસની વૃદ્ધિ રહિત થવાથી હાડકામાં ચામડી ચેટી રહેવા લાગી તે કારણથી અસ્થિચમાંવનદ્ધ ( માત્ર હાડકાં અને ચામડીવાળા) થઇ ગયા. આ પ્રકારની પરિસ્થિતિસ પન્ન થયેલા તે હવે પોતાના જીવનના દિવસે કાઢે छे. या प्रमाणे शौर्यहत्त भरीभारना यरित्रनुं वार्जुन ने लगवाने उछु ' एवं खलु गोयमा ! सोरियदत्ते मच्छंधे पुरापोराणाणं जाव विहरइ ' म प्रमाणे हे गौतम! તે શૌય દત્ત મચ્છીમાર પૂર્વભવમાં ઉપાર્જિત દુધ્ધી, દુષ્પ્રતિક્રાન્ત, અશુભ પાપકર્માંના पापभय इणने लोगवी रह्यो छे. ( सू० ८ )
શ્રી વિપાક સૂત્ર