Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 747
________________ २२ विपाकश्रुते थेरा जाइ संपण्णा जाव पंचहिं समणसएहिं सद्धिं संपखिडा पुव्वाणुपुवि चरमाणा गामाशुगामं दूइजमाणा जेणेव हत्थिणाउरे णयरे जेणेव सहसंववणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पा भावेमाणा विहरति । तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसाणं थेराणं अंतेवासी सुदत्ते णामं अणगारे उराले जाव तेउलेस्से मासं मासेणं खममाणे विहरइ ॥ सू० ५ ॥ टीका भगवान् सुबाहुकुमारस्य पूर्वभवं कथयति ' एवं खलु' इत्यादि । ' एवं खलु गोयमा' एवं खलु हे गौतम ! 'तेणं कालेणं तेणं समएणं' तस्मिन् काले तस्मिन् समये 'इहेव जंबूदीचे दीवे भारदेवासे' इहैव जम्बूद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे 'हत्थिणाउरे णामं णयरे होत्था' हस्तिनापुरं नाम नगरमासीत् । तत् कीदृशम् 'रिद्ध०' ऋद्धस्तिमितसमृद्धम्, 'तत्थ णं हल्थिणाउरे णयरे' तत्र खलु हस्तिनापुरे नगरे 'सुमुहे णामं गाडावर परिवसई' सुमुखो ' एवं खलु गोयमा !' इत्यादि । गौतम के इस प्रकार पूछने पर प्रभुने कहा कि ' एवं खलु गोयमा' 'तेणं कालेणं तेणं समएणं' उस काल में और उस समय में 'हेव जंबूद्दीचे दीवे भारहे वासे हथिणाउरे णामं णयरे होत्या' इस जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में हस्तिनापुर नामका नगर था 'रिद्ध३' जो ऋद्ध, स्तिमित एवं समृद्ध था । 'तत्थ णं हत्थिणाउरे गयरे सुमुहे णामं गाहावई परिसर' उस हस्तिनापुर नगर में सुमुख नामका एक गाथापति ' एवं खलु गोयमा ! ' छत्याहि. गौतमे मा प्रमाणे पूछ्युं त्यारे प्रधुं :-' एवं खलु गोयमा' हे गौतम! ' तेणं कालेणं तेणं समएणं ' ते डास भने ते सभयने विषे ' इहेव जंबूद्दीवे ara भार वासे हथिणाउरे णामं णयरे होत्था' या भूद्वीपना भरतक्षेत्रमां हस्तिनापुर नामर्नु नगर हेतु 'रिद्ध' ? ऋद्ध स्तिमित भने समृद्ध तु 'तत्थ णं हत्थिणारे णयरे सुमुहे णामं गाहावई परिवसइ ' ते इस्तिनापुर नगरभां सुभु नामना मेऽ गाथायति रहेता हता. 'अड्ढे' ते धनाहि वैभव संपन्न डता, શ્રી વિપાક સૂત્ર

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