Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 704
________________ विपाकश्रुते निक्षेपः समाप्तिवाक्यं पूर्ववत् । स चैवम्-एवं खलु हे जम्बूः ! श्रमणेन भगवता महावीरेण यावत् सिद्धिगतिस्थानं संप्राप्तेन दुःखविपाकानां-दुःखविपाकनामकस्य प्रथमश्रुतस्कन्धस्य नवमस्याध्ययनस्यायमर्थः प्रज्ञप्त इति । 'त्ति बेमि, इति ब्रवीमीति पूर्ववत् ॥ सू० २१ ॥ ॥ इति श्री-विश्वविख्यात-जगवल्लभ-प्रसिद्धवाचक-पञ्चदशभाषाकलितललितकलापालापक-प्रविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थनिर्मायक-वादिमानमर्दक-श्रीशाहूच्छत्रपतिकोल्हापुरराजप्रदत्त- जैन शास्त्राचार्य '-पदभूषित-कोल्हापुरराजगुरु-बालब्रह्मचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री-घासीलालव्रतिविरचितायां विपाकश्रुते दुःखविपाकनामक-प्रथमश्रुतस्कन्धस्य विपाकचन्द्रिकाख्यायां व्याख्यायाम् 'देवदत्ता' नामक-नवममध्ययनं सम्पूर्णम् ॥ १। ॥ ९ ॥ कर सौधर्म स्वर्ग में देव होगी, वहां से च्यवकर महाविदेह में जन्म लेकर वहां से सिद्धिगति को प्राप्त करेगी। 'णिक्खेवो' सुधर्मा स्वामी कहते हैं-हे जंबू! श्रमण भगवान महावीर स्वामीने इस नववें अध्ययनका जो भाव फरमाया है 'त्तिबेमि' उसी प्रकार मैंने तुम से कहा है। सू०२१॥ ॥ इति श्री विपाकश्रुतके दुःखविपाकनामक प्रथमश्रुतस्कन्ध की 'विपाकचन्द्रिका' टीका के हिन्दी अनुवाद में 'देवदत्ता' नामक नवम अध्ययन सम्पूर्ण ॥ १-९॥ સંયમ લઈને મરણ પામ્યા પછી સૌધર્મ સ્વર્ગમાં દેવ થશે, ત્યાંથી ચવીને મહાविहेमा म सधन त्यांथी सिद्धितिने प्राप्त २0. 'णिक्खेवो' सुधा स्वामी કહે છે. હે જમ્મુ ! શ્રમણ ભગવાન મહાવીર સ્વામીએ આ નવમા અધ્યયનના જે माप 3 ता 'त्तिबेमि' ते प्रमाणे में तमने ॥ छ. (सू० २१) भात विश्रुता 'दुःखविपाक' मा प्रथम श्रुतधनी 'विपाकचन्द्रिका' Aslil गुती मनुवामा 'देवदत्ता' नाम नभु अध्ययन सम्पू॥१६॥ શ્રી વિપાક સૂત્ર

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