Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 686
________________ ६६८ - विपाकश्रुते दारियं' देवदत्तां दारिकाम् 'उवणीय' उपनीतांसमीपमागतां 'पासइ' पश्यति 'पासित्ता' दृष्ट्वा 'हट्टतुटु०' हृष्टतुष्टहृदयः 'विउलं' विपुलम् 'असणं४' अशनादिकं चतुर्विधमाहारम् उचक्खडावेइ' उपस्कारयति, ' उवक्खडावित्ता' उपस्कार्य 'मित्तणाइ०' मित्रझातिनिजकस्वजनसम्बन्धिपरिजनान् ‘आमंतेइ' आमन्त्रयति-आह्वयति 'जाप' यावत्-तान् विपुलेन पुष्पवस्त्रगन्धमाल्यालंकारेण 'सक्कारेइ सम्माणेई' सत्करोति सम्मानयति, सकारिता सम्मानित्ता सत्कृत्य संमान्य 'पूसणंदिकुमारं देवदत्तं दारियं' पुष्पनन्दिकुमारं देवदत्तां दारिकां च 'पट्टयं' पट्टकं पट्टकोपरि 'दूरोहेइ' दूरोहयति आरोहयति-उपवेशयति 'दूरोहित्ता' दूरोहय 'सेयापीएहिँ' श्वेतपीतैः रजतसुवर्णमयैः 'कलसेहिं कलशैः 'मज्जावेइ' मज्जयति-स्नपयति 'मज्जावित्ता' मज्जयित्वा स्नपयित्वा 'वरणेवत्थियं' वरनेदारियं' देवदत्ता दारिका को 'उवणीयं' अपने पास आई हुई 'पास' देखा, 'पासित्ता' देखकर वह 'हट्टतुट्ठ० विउलं असणं४ उवक्खडावेइ' बहुत अधिक हर्षितचित्त हुआ । बाद में उसने चारों प्रकार के आहार को अधिकसे अधिक मात्रा में तयार करवाया । 'उबक्खडावित्ता' तयार करवा कर 'मित्तणाइ० आमंतेइ ' उसने अपने मित्रादि परिजनों को आमंत्रित किया। 'जाव सक्कारेइ सम्माणेई' उनके साथ बैठ कर उसने खूब मनमाना भोजन किया और सबको करवाया। पश्चात् गंध माला आदिकों से सबका सत्कार और सन्मान कर उसने 'पूसणंदिकुमारं देवदत्त दारियं पट्टयं दूरोहेइ' पुष्पनदि कुमार को एवं देवदत्ता को पाट पर बैठाये 'दरोहित्ता सेयापीएहि कलसेहिं मज्जावेइ' बैठा कर चांदी और सोने के कलशों से उनका अभिषेक कराया। दारियं देवता मा४ि-ॐन्याने 'उवणीयं ' पोताना पासे सावली 'पासई' २त्यारे 'पासित्ता'ने ते 'हतु४० विउलं असणं४ उलक्खडावेइ 'यित्तमा घर હર્ષ પામ્યા, પછીથી તેણે ચાર પ્રકારના આહારને વધારેમાં વધારે પ્રમાણથી તૈયાર કરાવ્યા. 'उवक्खडावित्ता' तैयार ४शवीन 'मित्तणाइ० आमंतेइ तेथे पोताना भित्र परिसनाने मात्रय सापान सोसाव्या. 'जाव सक्कारेइ सम्माणेइ' भने तेमानी સાથે બેસીને તેણે ખૂબ મન–ભાવતાં ભેજન કર્યા અને સૌને ભેજન કરાવ્યાં. પછી अध, भाव मा १3 सीना स२ भने सन्मान ४ा पछी तणे 'पूसणंदिकुमार देवदत्तं दारियं पट्टयं दूरोहेइ' ०पन ही भार भने हेपत्ताने पाट ७५२ मेसायर्या. 'दरोहित्ता सेयापीएहिं कलसेहि मज्जावेइ सारीर यांही-सोनांना साथी तभने। मनिष ४२।०ये। ' मज्जावित्ता वरणेवत्थियं करेइ ' मलि (या थ/ શ્રી વિપાક સૂત્ર

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