Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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विपाकश्रुते ततः खलु ‘से पूसणंदी राया' स पुष्पनन्दी राजा 'सिरीदेवीए' श्रीदेवीनाम्न्याः 'मायाए' मातुः ‘भत्ते यावि होत्था' भक्तश्चाप्यभवत् । 'कल्लाकल्लिं' कल्याकल्यि प्रतिदिनं 'जेणेव सिरी देवी' यत्रैव श्रीदेवी 'तेणेव उवागच्छइ' तत्रैगोपागच्छति, उपागत्य पायपडणं' पादपतनं 'करेइ' करोति, 'करित्ता' कृत्वा तां मातरं 'सयपागसहस्सपागेहिं तेल्लेहि' शतयाकसहस्रपाकैः तैलेः 'अभिगावेई' अभ्यङ्गयति, 'अद्विसुहाए१, मंसमुहाए२, तयासुहाए३, रोममुहाए४' अस्थिसुखया१, मांसमुखया२, त्वकमुखया३, रोमसुखया४ च-अस्थि-मांस त्वम्-रोमसुखोत्पादिकया 'चउन्विहाए' चतुर्विधया 'संवाहणाए' संवाहनया शरीरवैयावृत्त्या 'संवाहावेइ' संवाहयति-संमर्द यति, 'संवाहावित्ता' संबाह्य शरीरसंमर्दनं कृत्वा तत्पश्चात् सुरमायाए भत्ते यावि होत्था' और अपनी माता श्रीदेवी का भक्त भी हो गया । 'कल्लाकलि जेणेव सिरी देवी तेणेव उवागच्छइ' वह प्रतिदिन जहां पर श्रीदेवी होती वहां जाता 'उवागच्छित्ता पायपडणं करेइ' और उनके चरणों में अपना मस्तक रखता । 'करित्ता सयपागसहस्सपागेहि तेल्लेहि अभिगावेइ' नमस्कार करने के बाद वह फिर अपनी माता की शतपाक वाले एवं हजार पाकवाले तैलों द्वारा मालिश करता, मालिश हो चुकने पर फिर वह उसके शरीर का इस प्रकार से मर्दन करता कि जिससे उसे 'अद्विमुहाए, मंससुहाए, तयासुहाए, रोमसुहाए' अस्थियों में सुख मिलता, मांसपेसियों में आराम पहुँचता, शरीर की त्वचा में सुख मालूम पडता एवं रोमराजि में जिससे उसे आनंद आता । इस प्रकार 'चउबिहाए संवाहणाए संवाहावेई' पुष्पनंदि कुमार इस४ चार प्रकार की वैयावृत्य (वेयावच्च) से प्रतिदिन अपनी जननी को आराम पहुँचाता रहता । इतना ही नहीं किन्तु वह जब भने यावि होत्था' भने पोतानी माता श्रीवाना मत पY 45 गया. 'कल्लाकल्लि जेणेव सिरी देवी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता पायपडणं करेइ' भने तेमन यरमा पोतानु शिर समता 'करित्ता सयपागसहस्सपागेहिं तेल्लेहि अभिगावेइ' नभः४२ ४ा पछी शपोताना भाताना शतपावाणां मने ७०१२ પાકવાળા તૈલેદ્વાર મલિશ કરતે, અને માલિશ પૂરું થયા બાદ તેમના શરીરનું भईन ४२ (यांपतो) ना ५ ते२ 'अद्विसुहाए, मंसमुहाए, तयासुहाए, रोमसुहाए 11भा, भांसपेसीमामा सुन भने माराम भगतो तो, शरी२ચામડીમાં સુખ જણાતું અને નાનાં-નાનાં રૂવાડામાં આનંદ મળતું હતું. આ પ્રમાણે 'चउबिहाए संवाहणाए संवाहावेइ' ०५नही सुभा२ ते ४ यार प्रा२नी वैयाનૃત્ય (સેવા) થી હંમેશાં પિતાને માતાને આરામ પહોંચાડતે, એટલું જ નહીં
શ્રી વિપાક સૂત્ર