Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० २, उज्झितकपूर्वभववर्णनम्
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सा तथा 'पंड्यमुही' पाण्डुक्तिमुखी - पाण्डुरीभूतवदना 'जाव' यावत्, यावच्छब्देन - 'ओमंथियनयणचयणकमला जहोचियं पुप्फवत्थगंधमलालंकारं अपरिभुंजमाणी करयलमलियव्व कमलमाला ओहयमणसंकप्पा' इति संग्रहः । अवमथितनयनवदनकमला = अधः कृतनेत्रमुखकमला यथोचितं = यथायोग्यं पुष्पवस्त्रगन्धमाल्यालङ्कारम् अपरिभुञ्जाना=असेवमाना करतलमलिता = हस्ततलमर्दिता कमलमालेव कान्तिहीना. अपहृतमनःसंकल्पा= कर्त्तव्याकर्त्तव्य विवेक विकला सती ध्यायति=आर्तव्यानं करोति ॥ भ्र० ७ ॥
बिलकुल पीला पड गया, 'ओमंथियनयणवयणकमला' चिंता के मारे उसके नेत्र और मुख नीचे की ओर ही रहता था, 'जहोचियं पुष्फ वत्थगंध मल्लालंकारं अपरिभुंजमाणी' पुष्प, वस्त्र, गंध, माला और अलंकारों को भी यथोचितरूप से धारण नहीं करती, वह 'करयलमलिय व् कमलमाला' हाथ से कुचली हुई कमलमाला के समान कान्तिहीन हो गई और 'ओsaniकपा झियाय ' आर्त्तध्यान में ही अपना सब समय व्यतीत करने लगी ॥
भावार्थ:- एक समय की बात है कि वह उत्पला गर्भवती हुई। जब उसका गर्भ ठीक तीन माह का हो चुका तब गर्भ के प्रभाव से उसे इस प्रकारका एक दोहला उत्पन्न हुआ कि - वे माताएँ धन्य हैं, और उन्ही का जन्म और जीवन सफल है जो अपने दोहलों की पूर्ति जानवरों के मांस के साथ अनेक प्रकार की मदिरा के सेवन से करती हैं। खुद खाती पीती हैं और दूसरों को भी खिलाती पिलाती रहती हैं। उन जैसी भाग्यशालिनी और શાભહીન બની ગયું. અને એકદમ પીળી પડી ગઇ, તે ' ओमंथियनयणवयण कमला' चिंताना अरगुश्री तेनां नेत्र भने भुख नीचे रहेतां-ढणेसां रखेतां. 'जहोचियं पुष्पवत्थगंधमल्लालंकारं अपरिभुंजमाणी' इस, वस्त्र, थंडन, भाला नेसरीने पशुले तेवा प्रभाशुभां धारा ४रती नडि, 'करयलमलियन्व कमलमाला' ते हाथ वडे उरीने थरी नाणेसी भजनी भाषा समान अन्तिहीन as of 'ओहयमण संकप्पा झियायइ' भने ध्यानमा पोतानो तमाभ સમય વીતાવવા લાગી.
ભાવાથ એક સમયની વાત છે કે ઉપલા ગર્ભવતી થઇ, જ્યારે તેને ગ બરાબર ત્રણ માસનો થયા ત્યારે તે ગના પ્રભાવથી તેને એવા પ્રકારના એક દોહલો ઉત્પન થયો કે તે માતાઓ ધન્ય છે, અને તેનો જન્મ તથા જીવન સફળ છે કે જે પોતાના દોહલાની પૂર્તિ જાનવરોનાં માંસ સાથે અનેક પ્રકારના મદિરાસેવનથી अरेछे, युद्ध पोते जाय-पीये छे, मने जीनने पशु भवरावे -पीवरावे छे, तेनां नेवी
શ્રી વિપાક સૂત્ર