Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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विपाकश्रुते
॥ मूलम् ॥
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तए णं से दुज्जोहणे चारगपालए सोहरहस्स रण्णो बहवे चोरे य पारदारिए य गंठिभेयए य रायावकारी य अणधारए य बालघायए य वीसंभघायए य जूयकरे य खंडपट्टे य पुरिसेहिं गिण्हावेs, गिण्हावित्ता उत्ताणए पाडेइ, पाडित्ता लोहदंडे मुहं विहाडे, विहाडित्ता अप्पेगइए तत्तं तंबं पेज्जेइ, अप्पेगइए तउयं पेज्जेइ, अप्पेगइए सीसगं पेज्जेइ, अप्पेगइए कलकलं पेज्जेइ, अप्पेगइए खारतेल्लं पेज्जेइ, अप्पेगइए तेणं चेव अभिसेगं करेइ, अप्पेगइए उत्ताणए पाडेइ, पाडित्ता आसमुत्तं पेज्जेइ, अप्पेगइए हत्थिमुत्तं पेज्जेइ जाव महिसमुत्तं पेज्जेइ, अप्पेrइए हेट्टामुहे पाडेइ, पाडित्ता बलस्स वमावेइ, अप्पेगइए तेणं, चेव उवीलं दलयइ, अप्पेगइए हत्थंदुयाहिं बंधावे, अप्पेrइए पायंदुयाहि बंधावेइ, अप्पेगइए हडिबंधणे कारेइ, अप्पेrइए णियलबंधणे कारेइ, अप्पेगइए संकोडिय - मोडिए कारेइ, अप्पेrइए संकलबंधणे कारेइ, अप्पेगइए हत्थबिच्छू के डंक के समान विषाक्त शस्त्रों के पुंज के पुंज घर में रहते थे । फिर इसके यहां तीखी सूइयों का, डांग लगाने की लोहे की सलइयों का, छोटे२ मुद्गरों का भी संग्रह रहता था । इसी प्रकार इसके यहां गुप्ति आदि शस्त्रों का, छुरियों का, कुठारों का, नखों को काटने वाली नहरणियों का एवं दर्भ के अग्रभाग की तरह तीक्ष्ण हथियारों का भी ढेर का ढेर जमा हुआ रहता था ॥ सू० ४ ॥
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ડંખ જેવા વિષાકત શસ્ત્રોના ઢગલા તેના ઘરમાં રહેતા હતા, તે વિના તીખી તીખી સુઈએ, ડામ લગાવવાની લેાઢાની સળીએ, નાના નાના મુદ્ગરને પણ સ ંગ્રહ રહેત હતા, આ પ્રમાણે તેને ઘેર ગુપ્તિ આદિ શસ્ત્રોના, છરીએના, કુઠારાના નરણીયે ના અને દઈના અગ્રભાગ જેવી તીક્ષ્ણ ધારવાળાં ચિઆરાના મોટા-મોટા ઢગલા જમા रहेता हता. (सू० ४)
શ્રી વિપાક સૂત્ર