Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० १, मृगादेवी गौतमस्वामि-संवादः ९१ नागतोऽस्मीति संक्षिप्तार्थः, 'तत्थ णं' तत्र=तेषु तव पुत्रेषु खलु 'जे से तव जेढे मियापुत्ते दारए जाइअंधे जाइअंधरूवे' योऽसौ तव ज्येष्ठो मृगापुत्रो दारको जात्यन्धो जात्यन्धरूपः, 'जं णं तुम' यं खलु त्वं 'रहस्सियंसि भूमिघरंसि' राहसिके भूमिगृहे अन्यजनेनाऽविदिते भूम्यधोवत्तिनि गृहे, 'रहस्सिएणं भत्तपाणेणं' राहसिकेन भक्तपानेन 'पडिजागरमाणी२ विहरसि' प्रतिजाग्रती२= सावधानं पालयन्ती२ विहरसि, 'तं णं अहं' तं खलु अहं 'पासिउं' द्रष्टुं 'हव्वमागए' शीघ्रमागतः ॥ ९॥ इन पुत्रों को देखने के लिये यहां पर नहीं आया हूँ, किन्तु'तत्थ णं जे से तव जेट्टे मियापुत्ते दारए जाइअंधे जाइअंधरूवे' इन सबी से जो तेरा ज्येष्ठ पुत्र मृगापुत्र है, और जो जन्मान्ध और जन्मांधरूप है, 'जं गं तुम रहस्सियंसि भूमिघरंसि' जिसे तुम अपने महल के एकान्त भोयरे में रक्खा है और जिसे तुम 'रहस्सिएणं भत्तापाणेणं' गुप्तरूप से भोजन-पान देकर 'पडिजागरमाणीर विहरसि' पालन-पोषण कर रही हो 'अहं तं णं पासिङ हबमागए' मैं उस तुम्हारे पुत्र को देखने के लिये यहां पर आया हूं।
भावार्थ-चलते२ जब वे मृगादेवी के महल में प्रविष्ट हुए, तब महल में आते हुए उन्हें देखकर मृगादेवी हर्षित हुई और अधिक से अधिक आनंदित एवं संतुष्टचित्त होकर बडे ही विनय के साथ उनके समक्ष सात-आठ कदम जाकर वंदन नमस्कार करने के पश्चात् गौतम भगवान से बोली कि-हे भदन्त ! कहिये, आज पुत्राने लेवा भाटे ही भाव्यो नथी, परन्तु 'तत्थ णं जे से तव जेटे मियापुत्ते दारए जाइअंधे जाइअंधरूवे' मे सब भा रे तारे! मोटो पुत्र भृ॥पुत्र छ, भने मध तथा माध३५ छ 'जं णं तुमं रहस्सियंसि भूमिघरंसि' જેને તમે તમારા મહલના એકાન્ત ભાગના ભેંયરામાં રાખે છે, અને જેને તમે 'रहस्सिएणं भत्तपाणेणं' शुस३५थी लान-पान मापी 'पडिजागरमाणी२ विहरसि' पासन-पोषय श रह्यो छ।, 'अहं तं गं पासिउं हव्वमागए' हुत તમારા પુત્રને જોવા માટે અહીં આવ્યું છે.
ભાવાર્થ –ચાલતાં-ચાલતાં જ્યારે તેમણે મૃગાદેવીના મહેલમાં પ્રવેશ કર્યો, ત્યારે મહેલમાં આવતા તેમને જોઈને મૃગાદેવી હર્ષ અને વધારેમાં વધારે આનંદ પામીને અર્થાત સંતુષ્ટ ચિત્ત થઈને, મહાન વિનય સાથે એમના સમક્ષ સાત-આઠ પગલાં આગળ જઈને, વંદન નમસ્કાર કરીને પછી ગોતમ ભગવાનને કહેવા લાગી કે
શ્રી વિપાક સૂત્ર