Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०९ उ.३२ सू०२ उद्वर्तनानिरूपणम् निरंतरं येइंदिया उबट्टांति ? ' हे भदन्त ! सान्तरं किं द्वीन्द्रियाः उद्वर्तन्ते ? किं वा निरन्तरम् उद्वर्तन्ते ? भगवानाह- गंगेया ! संतरंपि बेइंदिया उव्वदति, निरन्तरंपि बेइंदिया उबट्टति ' हे गाङ्गेय ! सान्तरमपि द्वीन्द्रिया उद्वर्तन्ते, निरन्तरमपि द्वीन्द्रिया उद्वर्तन्ते ' एवं जाव वाणमंतरा' एवं द्वीन्द्रियोक्तरीत्या यावत् श्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-मनुष्या वानव्यन्तरा अपि सान्तरमपि उद्वर्तन्ते, निरन्तरमपि उद्वर्तन्ते । गाङ्गेयः पृच्छति-'संतरं भंते ! जोइसिया चयंति ? पुच्छा' हे भदन्त ! सान्तरं किं ज्योतिष्काच्यवन्ति ? निरन्तरं वा ज्योतिष्काश्च्यवस्ति ? इति पृच्छा, भगवानाह-' गंगेया ! संतरंपि जोइसिया चयंति, निरंतरंपि जोइसिया चयंति, एवं जाव वेमाणियावि ' गाङ्गेय ! सान्तरहे गांगेय ! ( संतरंपि बेइंदिया उव्वति निरंतरंपि बेइंदिया उव्वदृति ) बेइन्द्रिय जीव अपने उत्पत्ति स्थानसे दोनों तरह से निकलते हैं-सान्तर निकलते हैं और निरन्तर भी निकलते हैं ( एवं जाव वाणमंतरा) इसी तरह से-द्वान्द्रियों के निकलने की उक्त रीति के अनुसार यावत्त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय तिर्यश्च, मनुष्य एवं वानव्यन्तर भी अपने २ उत्पत्ति स्थान से समयादि रूप काल के व्यवधान में भी निकलते हैं और विना व्यवधान के-लगातार भी निकलते रहते हैं।
अथ गांगेय प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(संतरं भंते ! जोइसिया चयंति पुच्छा) हे भदन्त ! ज्योतिषिक देव क्या सान्तर निकलते हैं या निरतर निकलते रहते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गंगेया) हे गांगेय ! (संतरं पि जोइसिया चयंति, निरंतरंपि जोइसिया चयंति ) हे गांगेय! ज्योतिषिक देव सान्तर भी निकलते हैं और निरंतर भी
महावीर प्रभुन। उत्तर-"गगेया! 8 गेय ! ( सतरपि बेइंदिया उपटुंति, निरंतरपि वेइंदिया उव्वति ) मेन्द्रिय ७३ मन्ने ४ारे पोताना ઉત્પત્તિ સ્થાનમાંથી નીકળે છે. સાન્તર પણ નિકળે છે અને નિરંતર લગાતાર) ५५ नाणे छ. ( एवं जाव वाणमतरा) से प्रभारी श्रीन्द्रिय छ, यसरि ન્દ્રિય જીવે, પંચેન્દ્રિય તિય, મનુષ્ય અને વાવ્યન્તરો પણ પિતાપિતાના ઉત્પત્તિ સ્થાનમાંથી સમયાદિ રૂપ કાળના વ્યવધાન સહિત પણ નીકળે છે અને વિના વ્યવધાનથી (લગાતાર) પણ નીકળે છે.
सांगेय मारना -(संतर भंते ! जोइसिया चयति पुच्छा) હે ભદન્ત ! તિષિક દેવેનું ચ્યવનરૂપ નિષ્ક્રમણ શું સાન્તર ( કાળના આંતરા સહિત) થયા કરે છે કે નિરંતર ( લગાતાર ) થયા કરે છે?
महावीर प्रसुन उत्तर-“गांगेया ! गांगेय! (सतरपि जोइसिया चयति, निरंतरपि जोइखिया पति) च्यातिषिदेव। सान्त२ ५ नीछे
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૮