Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री यतीन्द्रविहार-दिग्दर्शन (तृतीय-भाग-सचित्र) रचयिताव्याख्यानवाचस्पत्युपाध्यायमुनिश्रीयतीन्द्रविजयजी महाराज Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीराजेन्द्रप्रवचनकार्यालय-सिरीझ 17. श्रीकच्छभद्रेश्वरतीर्थयात्रा-लघुसंघवर्णन पाहत श्रीयतीन्द्रविहार-दिग्दर्शन। (तृतीय-भाग-सचित्र) संयोजकःव्याख्यानवाचस्पत्युपाध्यायमुनिराज श्रीमदयतीन्द्रविजयजी महाराज / जिसकोमुनिश्रीविद्याविजयजी-सागरविजयजी के उपदेश से बागरा-(मारवाड ) निवासीवीसापोरवाड शा० प्रतापचन्द धूराजी जैनने छपाव के प्रसिद्ध किया / श्रीवीरनिर्वाण 2461 / मूल्यम् / विक्रमसंवत् 1991 25 राजेन्द्रसूरि संवत् 29 / पठनपाठनम् / / सन् 1935 इस्वी. मुद्रकः-शाह गुलाबचंद लल्लुभाई, महोदय प्री. प्रेस-भावनगर. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ R- 52-53 5555====-SER श्रीगुरुचरणार्पण-पत्रम् / ==ssessog HESESEGESSES असकौ हि गुरुतरसंसृतिप्रवर्द्धिको शिथिलाचारिणी श्रीपूज्यतामपहाय श्रेयस्करं श्रीवीरपथमाश्रित्य पूर्वजानां विशुद्धं पन्थानं विशुद्ध्या क्रियया प्रदर्य निजविहरणैः सूपदेशैश्च बहून् भव्यान् प्रबोधं प्रबोधं जैनाभासकूपदेशपिञ्जरे निपतिताञ्जनान् स्वीयसदुपदेशैविशुद्धैः श्रवःसुखावहैश्च समुद्धृतिवान् / सार्धशतद्वय्या शरदा जातिबाह्यतां गतवतां चीरोलाऽऽख्यनगरीयश्राद्धा नामनायासेनैवाऽमोघाऽऽत्मोपदेशेन पुनर्जातौ नायितवांश्च, सन्तोषितवांश्च निजाऽसीमया साहित्यसमृद्ध्या विबुधानशेषान् / हृद्यैरागमीयैस्तत्वभृतैर्वचोभिश्चाऽऽर्हताऽनाहतादिसमस्तजनतासु निजां ख्याति प्रथयाञ्चकार / कोरंट-स्वर्णगिरि-भाण्डवपुरीयतीर्थत्रयं समुद्धार्य तत्र प्राथम्यमयाश्चक्रे / ____एवम्भूतसर्वतन्त्रस्वतन्त्र-जगत्पूज्य-सुजनाम्भोजदिवाकराऽऽबालब्रह्मचर्यरतानां योगीन्द्राणाममीषांश्रीमद्विजयराजेद्रसूरीश्वराणां सकल मङ्गलकारि-चरणपङ्केरुहयोरेतद् श्रीयतीन्द्रविहारदिग्दर्शन नामानमैतिहासिकं ग्रन्थं सादरं समर्पयामि / वाचक-मुनियतीन्द्रविजयः। =zeszcze AaseSPSSSES 25-SS Sasases REFess DESESE55 -SEESesy Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जगत्पूज्य-प्रभुश्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज / ORIG पीयूषतुल्यरसमिश्रवचोविलासर्यस्तूतुषत्सकलभव्यजनानमन्दम् / प्रापीपवन्निजपदैरखिलां धरित्री, राजेन्द्रसूरिगणराजमहं तमीडे // 1 // श्री महोदय प्रीन्टींग प्रेस, दाणापीठ-भावनगर. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राथमिक-वक्तव्य। प्रौढाश्रीश्चतुरैः समं परिचितिर्विद्याऽनवद्यानवा, नानाभाषितवेषलिप्यधिगतिः कुन्दावदातं यशः / धीरत्वं मनसः प्रतीतिरपि च स्वीये गुणौघे सतां, मानात्को न गुणोदयः प्रसरतिक्ष्मामंडलाऽऽलोकनात् // 1 // -भूमंडल का अवलोकन करने से प्रचुर (बहुत) लक्ष्मी मिलती है, विद्वानों के साथ परिचय होता है, नयी नयी सुन्दर विद्याएँ प्राप्त होती हैं, नाना प्रकार की भाषा, वेश और लिपियों का ज्ञान होता है, कुन्दपुष्प के समान उज्वल यश मिलता है, मन की दृढता होती है, और सत्पुरुषों का सन्मान करने से निजगुणों पर विश्वास जमता है। संसार में ऐसा कौन गुण है ?, जो देशाटन से विकाश और प्राप्त न हो। नजंति चित्तभासा, तहय विचित्ता उ देसनीइओ। अञ्चब्भुयाइं बहुसो, दीसंति महिं भमंतीहिं // 1 // विचित्र भाषा, विचित्र देशनीतियों का ज्ञान और अनेक आश्चर्यजनक घटनाओं का पता पृथ्वीमंडल पर भ्रमण करनेवालों को मिलता है। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दर असल में जैनकथानुयोग के उक्त सूक्त असत्य नहीं, अक्षरशः सत्य हैं / जो साधु साध्वी शिथिलताओं का आश्रय लेकर, या श्रावक श्राविकाओं के मोह में नगरपिंडोलक बन उनके ज्ञान, क्रिया, बुद्धि और धार्मिक साहस का विकाश कभी नहीं होता, प्रत्युत वे वास्तविक लोकोपकार और ज्ञानलाभ से वञ्चित रहते हैं। इतना ही नहीं, वल्कि वे विहाराऽभाव से अपने शरीरबल और दुष्प्राप्य संयम-धर्म को भी खो बैठते हैं। ऐसे कूपमंडुकवत् विहार सिथिल साधु साध्वियों को न व्यावहारिक चातुर्य और न संयम-धर्म का लाभ मिलता है। ___ जो साधु साध्वी वर्षावास के सिवाय शेषकाल में मर्यादा पूर्वक ग्रानुग्राम अप्रतिबद्ध विहार करते रहते हैं, वे अपनी श्रुत, संयम, क्रिया और शरीर संपत्ति की सुरक्षा करने का उद्धार और शासन प्रभावना का पारमार्थिक सामर्थ्य प्रगट करके उभय लोक में प्रशंसा पात्र बनते हैं। अतएव अनेक गुण प्राप्ति और लोगों को धर्मोपकार करने के लिये जैनमुनिवरों को प्रामानुग्राम अप्रतिबद्ध विहार करते ही रहना ताम्बूल पेय रु प्रवीणनर, मोली सके न कोय / ज्यों ज्यों चले विदेश में, त्यों त्यों महंगे होय // 1 // Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वनके जडखड शोभि पुनि, परदेशन में जाय / नर होके घरमें ठरें, तृण से लघु कहाय // 2 // न पुनि नर घर बेठत हि, तिनु हानि नित होय / लत्ते तूटत ऋण बढत, कीरति करे न कोय // 3 // _ विहार न करने से संसारियों के साथ प्रतिबन्ध, उपकार लाभ का अभाव, लोगों में अपमान, ममत्व की वृद्धि, देश भाषओं की अनभिज्ञता और रत्नत्रय ( ज्ञान, दर्शन तथा चारित्र) की विराधना आदि दोष प्रगट होते हैं। इसीसे शास्त्रकारोंने साधु साध्वीयों को वार वार विहार करते रहने का आदेश दिया है / पादविहार का मार्मिक स्वरूप बताते हुए एक गुजराती साक्षरने लिखा है कि_ 'पाविहार' 5 धवननु मे छे. ધર્મપ્રચાર માટે મક્કમ-શાંત પાદવિહાર જેવું બીજું એક પણ ઉત્તમ સાધન નથી. જૈનમુનિએ વાહનને ઉપયોગ નથી કરતા. તેમના પાદવિહારના પ્રતાપે માર્ગમાંના ગામડાઓ ગામડામાં વસતા અબૂઝ ભેલા-ભદ્રક ભાઈ–બહેનો એમના, ઉપદેશને લાભ મેલવે છે. સંયમ અને ત્યાગને પ્રત્યક્ષ પ્રભાવ નિહાલે છે. પગપાલા વિહાર કરતા મુનિરાજે તથા પરિત્રા કેના જે સંદેશ, ઉપદેશ, ભારતવર્ષના એક ખૂણેથી બીજા પૂણા સુધી પ્રચાર પામ્યા છે તે આ પ્રવાસને મહિમા 1 विना विहारं प्रतिबन्धभावो, न चोपकारो लघुता ममत्वम् / . - न देशभाषावगमो मुनीनां, रत्नत्रयस्यापि विराधना भवेत् // 1 // सदयवत्सचरित्र.. Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સિદ્ધ કરે છે. કેટલાકને આ પ્રકારનો વિહાર આશ્ચર્ય પમાડશે. ઝડપી વેગવાલા વાહનોની વચ્ચે પાદવિહારને આશ્રય લે છે અર્થ સાધક લાગશે. પણ શુદ્ધ ચારિત્રને અથવા તે અંત:કરણને સંદેશ લોકોને ઘેર પહોંચતા કરે છે, તે ઝડપ કરતાં પણ ધૈર્ય અને શાંતિની વધુ જરૂર રહે છે. ધર્મપ્રચાર ઉતાવલથી સિદ્ધ નથી થતું. જે બહુ ઝડપથી ફેલાય છે તે કાં તો લાગણીને અથવા તો બુદ્ધિને સ્પશીને અદશ્ય થઈ જાય છે. જાદુઈ ખેલ કરી બતાવનાર જોતજોતામાં આંબાને ફલ આવતાં દેખાડી શકે. પણ એ ફલ દેખાવ પૂરતાં જ હોય છે. ઝડપી ધર્મપ્રચાર પણ ઉતાવળે આંબા પકાવવા જેવો બની રહે છે. વિવિધ પ્રકારના વાહનોની બહુલતા વચ્ચે પણ પાદવિહાર કેટલો પૂજાય છે તે જૈન મુનિઓના વિહાર અને લોકેના તેમના પ્રત્યેના આદર ઉપરથી સમજાય છે. આજે એ વિહાર સંકુચિત તેમજ વધારે પડતા ભારવાલા બન્યા છે એ વાત બાજુએ રાખીએ, તો પણ પાદવિહાર લેકે પકારક અને ધર્મપ્રચારનું મહેટામાં મહેતું સાધન છે એ નિર્વિવાદ વાત છે. પાદવિહારની સાથે ધર્મપ્રચારની ધગશ, લેકકલ્યાણની ઝંખના, અને યુગબલને અનુરૂપ યુક્તિયુક્ત ઉપદેશ જેડાય તે ધર્મપ્રચારકે, રાષ્ટ્ર અને ધર્મની પણ અપૂર્વ સેવા કરી શકે. पादविहार का सिद्धान्त कितना उपयोगी और स्वपर को हितकर है, यह उक्त लेखों से स्पष्ट ही जान पड़ता है, अतएव इस विषय को विशेष लंबाना निष्फल है / एक दिन वह था कि जैनमुनि अनेक परीषहोपसगों को सहकर Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दूर दूर देशों तक अपने विहारों को लंबाते थे और जैनेतरों को भी बडे प्रेम से अपना कर उन्हें धार्मिक मर्म समझाते थे। जिसके फलस्वरूप में भारतवर्ष के एक कोने से दूसरे कोने तक जहाँ देखो वहाँ, जैनों की ही जाहोजलाली दिखाई देती थी / परन्तु जब से जैनमुनिवरों में शिथिलताओंने प्रवेश किया, उनके लम्बे विहार कम पडे और उनके विहार का क्षेत्र अमुक मर्यादा में ही रह गया। तब से जैनधर्म, या उसके माननेवाले जैनों की विशालता भी संकुचित हो गई. अथवा यों समझिये कि नहीं के रूपमें परिणत हो गई। गत वीश वर्षों में अन्य समाजों की संख्या में आर्यसमाजियों की पौनेचार लाख, बौद्धों की इक्कीस लाख, मुसलमानों की पौने त्रेसठ लाख और क्रिश्चियनों की अठारह लाख की वृद्धि हुई है। तब जैनों के धुरन्धर आचार्यादि उपदेशक रहते हुए भी उनकी संख्या में पौने दो लाख की कमी हुई है। इसका कारण क्या है ?, जैन साधु साध्वियों की शिथिलता, या और कुछ। आर्यसमाजी, बौद्ध, मुसलमान और क्रिश्चियनों के मिशनरी ( उपदेशक) प्रतिगाँव और प्रति जंगलों में गरीबों के मददगार, अनाथों के नाथ, असहायों के सहायक, अशिक्षितों के शिक्षक, रोगियों के रोग विनाशक और दुःखियों के बेली बन कर, सब को अपनाते और उनके "लिये तन-धन निछरावल करते हैं। इसीसे उनकी संख्या Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है / जैन, या जैनसाधु, साध्वियों में अपनाने का गुण नहीं, वास्तविक उदारता नहीं और सहकार गुण नहीं है। इससे प्रतिवर्ष उनका हास होता जा रहा है और यदि ऐसाही बना रहा तो एक दिन अभाव की भी नोबत बजे विना नहीं रहेगी / आधुनिक साधुसंस्था का सहकार कितना विचित्र है ?, इस विषय में मुनिविद्याविजयजी का लेख वांचो, जो 'समयने ओलखो' नामक गुजराती पुस्तक के पृष्ठ 14 में दर्ज है। જેનસમાજનું મુખ્ય અંગ-સાધુ સાધ્વી એમાં કેટલે અસહકાર છે ? એક સાધુ એક કામ કરે, એને બીજે અનુમોદશે નહિં, બકે ચુપ પણ નહિ રહે, પરંતુ તે પોતાની શકિતને ઉપગ તે કાર્યને તોડી પાડવામાંજ કરશે. એક સાધુ એક ગામે જે ઉપદેશ આપી ગયા હોય, એથી વિપરીતજ બીજા આવીને ઉપદેશ આપશે. એક સાધુ અપવિત્ર કેશર વાપરવાની ના પાડશે. તો બીજે પવિત્ર કે અપવિત્રને ખ્યાલ દૂર કરાવી તેને વાપરવાની જ હિમાયતી કરશે. એક સાધુ સાધારણ ખાતાની પુષ્ટિ કરશે, તે બીજે તેના ઉપદેશને કાપવા માટે જ દેવદ્રવ્યને વધારવાની હિમાયત કરશે. એક શુદ્ધ વસ્ત્રો વાપરવાની હિમાયત કરશે, તે બીજે તેનું ખંડન કરશે. એક જ્ઞાનપ્રચારની આવશ્યકતા બતાવશે, તે બીજે ખાસ ઈરાદા પૂર્વકજ ઉજમણા, ઉપધાન અને સંઘ કાઢવા તરફ જોર દેશે. એક કે સંસ્થા માટે કેઈ ગૃહસ્થને ઉપદેશ આપશે, તે બીજે તેને ના પાડશે. સાધુઓની Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ આ સ્થિતિથી સમાજની ત્રિશંકુ જેવી સ્થિતિ થાય એમાં આશ્ચર્ય શું છે ? इस प्रकार समयानभिज्ञ, विरोधिभाव-पोषक, और असहकारोत्पादक पामर उपदेशकों ( साधु-साध्वियों ) के उपदेश से क्या जनता पर कुछ असर पड़ सकता है ? और धर्म, या समाज की वृद्धि हो सकती है ?, कभी नहीं / ऐसे पामरोचित विरोधी उपदेशों से तो उपदेशकों का अपमान और धर्म समाज की प्रतिदिन हानि ही होना संभव है। ऐसे उपदेशकों के विहारों से समाज, धर्म और जनता को न कभी फायदा हुआ, न कभी होगा और न कभी होता है / ___मुनिवरो ! अब आप यदि समाज और धर्म का अभ्युदय करना चाहते हो, तो सहकारप्रिय बन कर जैनेतरों को अपनाना सीखो और शिथिलताओं को जलाञ्जली देकर अपना विहारक्षेत्र बिशाल बनाओ, तभी आपका साधु-जीवन सफल होगा और उसीसे आपलोग सामाजिक अभ्युदय के दर्शन पुनः कर सकोगे, अन्यथा नहीं / अस्तु. प्रस्तुत श्रीयतीन्द्रविहारदिग्दर्शन का यह तृतीय भाग भी अप्रतिबद्ध लम्बी मुसाफिरी ( पादविहार ) का द्योतक जानना चाहिये / इसमें हमारे विशाल विहार क्षेत्र में आये हुए रास्ते के गाँव, उनमें श्वेताम्बर जैनगृहों की संख्था, जिनालय, धर्मशाला, उपाश्रय और उनके प्रशस्ति-लेख, आदि प्राचीन अर्वाचीन ऐतिहासिक और भौगोलिक सामग्री आले Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खित है, जो इतिहास लेखकों के लिये उपयोगी और पादविहार करनेवाले जैन साधु-साध्वियों के लिये मार्ग दर्शक है / इसके परिशिष्ट में संस्कृतमय प्रशस्ति लेखों का हिन्दी अनुवाद भी दर्ज है जिससे प्रशस्तिलेखों का भाव निःसंदेह समझ में आ सकता है। इसका प्रथम भाग सं० 1986 में फतापुरा (मारवाड) के श्रीसौधर्मबृहत्तपोगच्छीय-जैनसंघ के तरफ से और द्वितीय भाग हरजी (मारवाड) के श्रीसौधर्मबृहत्तपोगच्छीयजैनसंघ के तरफ से संवत् 1987 में छपकर प्रकाशित हुआ था। उनके प्रकाशित होते ही कतिपय मुनिवर और प्रसिद्ध संस्थाओंने योग्य अभिप्राय देकर उनको हार्दिक धन्यवाद के साथ अपनाये थे / आज हम इसका तृतीय भाग भी उसी सजधज के साथ वाचकों के शुभ करकमलों में उपस्थित करते हैं / आशा है कि पाठक पूर्व प्रकाशित दो भागों के समान इसे भी अपना कर हमे सफल मनोरथ बनावेंगे। ___ इस तृतीय भाग को अस्मच्छिष्य मुनिश्रीविद्याविजयजी और मुनिश्रीसागरानन्दविजयजी के सदुपदेश से बागरा (मारवाड) निवासी धर्मचुस्ता, आर्हद्धर्मानुरक्ता, तपोरता और सद्गुणानुरागरसिका सुश्राविका गेनीबाई के पुत्ररत्न शा. प्रतापचन्द्र धूराजीने सर्व साधारण को उपहार ( भेट ) देने के लिये छपाकर प्रसिद्ध किया है / अतएव उनको हार्दिक Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धन्यवाद दिया जाता है और सूचित किया जाता है कि इसी प्रकार इतर सद्गृहस्थों को भी अत्युपयोगी साहित्य प्रकाशन का हार्दिक उत्साह दिखाकर निजोपार्जित सल्लक्ष्मी का अलभ्य लाभ प्राप्त करना चाहिये / संसार में साहित्य-प्रचार ही समाज, धर्म तथा आत्मजागृति का मुख्य अंग माना गया है और इसीसे मनुष्य सत्याऽसत्य का निर्णय करने में सफल-मनोरथ होता है / इत्यलं विस्तरेण. ॐ शान्तिः ! शान्तिः !! शान्तिः ! ! ! यत्पादपबमनिशं स्मरतां नराणां, धर्मे मतिः क्षितितले विपुला च कीर्तिः / गेहे सुमङ्गलमनारतसम्पदाप्ती, राजेन्द्रसूरिरिह शन्तनुतां ससङ्घ // 1 // वीरनिर्वाण 2461 / व्याख्यानवाचस्पत्युपाध्यायकार्तिकशुक्ला 5 रवि . मुनिश्रीयतीन्द्रविजय / ता० 11-11-34 ) मु० श्रीसिद्धक्षेत्र-पालीताणा / Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 12) व्याख्यानवाचस्पतिमहोपाध्याय-श्रीमदयतीन्द्रविजय मुनिपुङ्गवानां द्रुतविलम्बितछन्दोभिः स्तुत्यष्टकम् / वृजिनराशिनिराकरणक्षम, प्रबुधवाचकवृन्दशिरोमणिम् / सकलशास्त्रविचारणदक्षिणं, नमत धीर-यतीन्द्रगुरुम्परम् / 1 / नमत सादरमेनमनारतं, श्रमणसद्गुणशोभिवपुःश्रियम् / .. जगति तत्त्वविदामतितोषदं, गुरुयतीन्द्रमनीहमलोभिनम् / 2 / करुणया परया जगदद्भुतं, सदसि निर्जितवादिमतिप्रभम् / परमपावनमानतशर्मद, गुरुयतीन्द्रमहर्निशमानुमः / / दिशति यञ्चरणाम्बुजसेवनं, निरघधर्मकृतामिह देहिनाम् / सुखसमृद्धिमहाधनितादिकं, गुरुयतीन्द्रमघच्छिदमानुमः / / / रतिपतिच्छविजित्वररूपिणं, शशिसमानसुशीतलकारिणम् / श्रमणसेवकसंसृतितारिणं, नमत धीर-यतीन्द्रगुरुं प्रभुम् / 5 / प्रतिदिशोदितकीर्तिलताजुषं, सुजनवारिजराशिदिवाकरम् / कुमतनागमहाङ्कुशमद्वयं, परिणुमो गुरुधीर-यतीन्द्रकम् / 6 / सदसि वागधिपोपममर्थिनां, नवपयोदमिवेष्टवसुप्रदम् / सकलविश्वजनीनपुरःसरं, परिणुमो गुरुधीर-यतीन्द्रकम् / / श्रुतिसुखावहधर्मसुदेशनां, मधुरया गिरया ददतं सदा / सकलजीवदयारतमानसं, नमत धीर-यतीन्द्रगुरुं जनाः / / अष्टकं कृतवानेत-द्विजयान्तिक " उत्तमः" उपाध्यायगुरोरस्य, कृपयाऽसीमया मुदा / 9 / मुनिउत्तमविजयः। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पतीन्द्रविजयजीमहाराजा दी 18 जन्म 194. TROLLOT COCONO रिमपिज सरायरो MTS... गाररु-शिष्यासामालकूता हर दीक्षा 1855 नएज्य. उपाध्याय पर ANA NEELELIANCE TUTTO KARAN मधुराऽतिप्रिया चैव, भारती यस्य शोभते / स श्रीयतीन्द्रविजयो, जयतान्मुनिसत्तमः // 1 // श्री महोदय प्रिन्टींग प्रेस, दाणापीठ-भावसगर. Page #17 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीकच्छभद्रेश्वरतीर्थयात्रालघुसंघवर्णनसहित श्रीयतीन्द्रविहार-दिग्दर्शन। तीन भुवनके विपद-विदारक, तारन-तरन नमस्ते, वसुधातल के निरमल भूषन, दूषन-दहन नमस्ते / तीन लोक के परमेश्वर जिन, विगत-विकार नमस्ते, अति-गंभीर जगत-जलनिधि के शोषनहार नमस्ते // 1 // वृत्वा वैराग्यदीक्षामहितहितहिते बोधयित्वा यतीन्द्रान्, धृत्वा धर्म जिनोक्तं यमनियमयुतं शर्मदं कर्मदारम् / कृत्वा शब्दार्थपूर्ण सकलकविमतं शाब्दराजेन्द्रकोशं, हृत्वा जाड्यन्धकारं जगति विजयतां पूज्यराजेन्द्रसूरिसर विक्रमसंवत् 1990 ज्येष्ठवदि 5 के दिन सियाणा ( मारवाड ) में आचार्य श्रीमद्विजयभूपेन्द्रसूरिजी महाराज की शुभ सेवा में बागरा-निवासिनी सुश्राविका गेनीबाईने अर्ज की कि 'मेरी भावना कच्छ-भद्रेश्वरयात्रा का लघु संघ निकालने की है, उसमें आप भी मुनि परिवार सह पधारने की कृपा करें / ' आचार्य महाराजने फरमाया कि 'तुम्हारी भावना अच्छी है, परन्तु अभी Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 14 ) समय अनुकूल नहीं है, चातुर्मास के भी दिन समीप हैं और कतिपय सामाजिक अनिवार्य कारणों के सबब से हम इस महायात्रा का लाभ अभी नहीं ले सकते / इस साल का चोमासा उपाध्यायजी श्रीयतीन्द्रविजयजी का सिद्धक्षेत्र-श्रीपालीताणा में होगा / अतएव अगर तुम्हारी भावना ही है, तो श्रीभद्रेश्वरतीर्थयात्रा का संघ पालीताणा से निकालना / चातुर्मास बाद मुनिश्रीयतीन्द्रविजयजी को तुम्हारे संघ में जाने का आदेश दिया गया है।' इस प्रकार पालीताणा से भद्रेश्वर का संघ निकालने का निश्चय होने बाद, सं० 1990 ज्येष्ठवदि 11 के दिन प्रातःकाल में आचार्य महाराज के साथ ही प्राचीनतीर्थ श्रीजीरावलीपार्श्वनाथ की यात्रा के लिये हमारा विहार हुआ और जीरावली पार्श्वनाथ से ज्येष्ठसुदि 2 के दिन सूरिजी की आज्ञा से श्रीपालीताणा तरफ विहार हुआ / वस, इसी विहार के दरमियान रास्ते में आये हुए छोटे बडे गाँवों का प्राचीनअर्वाचीन हाल, उनमें श्वेताम्बर जैनों की घरसंख्या, जिनमन्दिर, धर्मशाला, उपाश्रय की संख्या, उनके प्रशस्ति और शिलालेख इस भाग में दर्ज किये जाते हैं। अन्त में प्रथम परिशिष्ट तरीके 'कच्छ-भद्रेश्वरतीर्थयात्रा लघुसंघ' का ऐतिहासिक वर्णन भी सन्दर्भित है। 1 मोटा-गाम___ यह गाँव मांगुनदी के बायें तट पर आबाद है / इसमें वीशा ओशवाल श्वेताम्बर जैनों के 100 घर हैं, Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जो अच्छे भावुक हैं / यहाँ एक दो मंजिला सुन्दर उपाश्रय और दो मंजिली एक धर्मशाला है। धर्मशाला के ऊपरी होल में जैनपाठशाला भी है, जिसमें जैनबालकों को धार्मिक, व्यावहारिक और संगीत की शिक्षा दी जाती है / उपाश्रय के पास ही सुन्दर शिखरवाला जिनालय है, जिसमें मूलनायक श्री ऋषभदेवप्रभु की सर्वाङ्गसुन्दर एक हाथ बडी प्रतिमा स्थापित है / इसके बाह्यमंडप में दो कायोत्सर्गस्थ जिनप्रतिमा विराजमान हैं, जो विक्रमीय 13 वीं शताब्दी की प्रतिष्ठित और श्वेतवर्ण हैं। गाँव से पश्चिम मांगुनदी के दहिने तट पर एक ही कम्पाउन्ड में गोडिपार्श्वनाथ और ऋषभदेव का शिखरबद्ध मन्दिर है / गोडिपार्श्वनाथ का मन्दिर पाडीवगाँव निवासी शा० कपूरचंद लालचंदने सं० 1975 में बनवाया है / इसका प्रवेश-द्वार देलंदरवासी शा० भूताजी मेघाजी के तरफ से बना है / इसीके पास सिद्धाचलपट बांधने का मकान सं० 1976 चैत्रवदि 8 के दिन ठाकुर किसोरसिंहजी के समय में फुगणीगाँववाले शा० जेसाजी गमनाजी के तरफ से बनाया गया है। मन्दिर में मूलनायक श्रीगोडीपार्श्वनाथ की श्वेतवर्ण प्रतिमा स्थापित है, जो नवीन है / इसके सामने श्रीगोडीपार्श्वनाथ के चरण विराजमान हैं। इन पर इस प्रकार का लेख है Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 16 ) १-"श्रीवुहाडानगरे समवायसंघमुख्यश्रीसमस्तसंघेन श्रीगोडी-पार्श्वनाथना पादुका कारिता. सकलभट्टारकपुरन्दरश्रीविजयजिनेन्द्रसूरीश्वरोपदेशात् समस्तवाचकचक्रचूडामणि-महोपाध्याय श्रीलाभविजय तच्छिष्य पंडित श्रीसौभाग्यविजय तच्छिष्य मुनिसिंहैः प्रतिष्ठिता, सं० 1845 माहसुदि 10 सोमवारे।" इसके दहिने तरफ ऋषभदेवमन्दिर है, जिसमें मूलनायक श्रीऋषभदेव की श्यामवर्ण सवा हाथ बडी प्रतिमा विराजमान है। इसके दोनों पसवाडे श्वेतवर्ण एक एक हाथ बडी शीतलनाथ और अनन्तनाथ की मूर्ति स्थापित है। मूलनायक की पालगटी का लेख नीचे मुताबिक है 2-" सं० 1951 माघशुक्ले पंचम्यां श्रीबीजोवानगरसंघेन श्रीऋषभबिंब कारापितं, भद्दारक विजयराजसूरिभिः प्रतिष्ठितं, श्रीमत्तपागच्छे श्रीवरकाणातीर्थे / " इस मन्दिर के नीचे की शाला कालन्द्री गाँववाले शा० भावाजी रगाजीने सं० 1975 श्रावणवदि 7 के दिन सरूपसिंहजी ठाकुर के समय में बनवाई है / प्रवेशद्वार के वायें तरफ का कारखाना सं० 1978 फाल्गुन वदि 13 शुक्रवार के दिन कालंद्रीवाले शा० पदमाजी Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - (17) मयाचंदने बनवाया है / इसके पास ही छोटा बगीचा है, जिसमें केवडा, गुलाब, मोगरा, अमरूद, दाडिम, निम्बू, आम और केला, आदि के झाड लगे हुए हैं। इस पवित्र स्थान के उपलब्ध लेखों में इस स्थान का नाम 'वुहाडानगर' मिलता है, परन्तु मोटा-गाम वाले लोग इसका नाम 'कोटडा' कहते हैं। यह स्थान आत्मध्यानी और योगाभ्यासियों के लिये बड़ा शान्ति दायक है। 2 फुगणी यहाँ ओशवाल श्वेताम्बरजैनों के 20 घर हैं, जो भावुक हैं / गाँव में एक छोटी धर्मशाला, एक जैनपाठशाला और एक शिखरबद्ध जिनमन्दिर है, जो नया बना है, इसकी प्रतिष्ठा अभी नहीं हुई / दर्शन के लिये मन्दिर के एक छोटे कमरे में धातुमय चोवीशी विराजमान है। 3 मेर-मांडवाडा मेर नामक छोटी पहाडी की ढालू जमीन पर यह गाँव वसा हुआ है / इसमें ओशवाल जैनों के 50 घर हैं, जो विवेकशून्य और गाडी वाडी लाडी के प्रेमी यतियों के उपासक हैं। पहाड की ढालू जमीन पर शिखरबद्ध जिनालय है, जो अपनी सज-धज में अद्वितीय, सुन्दर और दर्शनीय है / परन्तु यहाँ के अज्ञानी ओशवाल Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 18 ) जैन मंदिर में ही कबूतरों के लिये धान्य डालते हैं, इससे मन्दिर में कबूतरों की बीटें अधिक होने से आशातना होती और वह उसकी सुंदरता में आघात पहोंचाती है / इस जिनालय में मूलनायक श्रीमुनिसुव्रतस्वामी की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है, जो गाँव से आधकोश के फासले पर आये हुए ' मेर' गाँव से लाकर यहाँ विराजमान की गई है। कहा जाता है कि मोटा-गाम के मन्दिर की ऋषभमूर्ति और मेर-मांडवाडा की मुनिसुव्रत मूर्ति इन दोनों की अञ्जनशलाका एक साथ और एकही लग्नमें हुई है और इनको राजा संप्रतिने भरवाई हैं। इस गांव के महाजन मेरगाँव से आकर यहाँ वसे हैं, इसीसे इसका नाम 'मेरमांडवाडा' रखा गया है, ऐसा यहाँ के वासिन्दों का कहना है / गाँव में एक सामान्य धर्मशाला और एक छोटा उपासरा है / उपाश्रय में एक विवेकशून्य पतित यति रहता है, जो सभ्यता से रहित है। 4 आमलारी. यहाँ ओशवाल जैनों के अन्दाजन 20 घर हैं। गाँव के लगते ही बाह्य-भाग में एक शिखरबद्ध जिनालय है, जिसमें मूलनायक श्रीपार्श्वनाथ की सर्वाङ्गसुन्दर एक हाथ वडी श्वेतवर्ण प्रतिमा विराजमान है / यहाँ पूजा का प्रबन्ध प्रशंसा जनक नहीं है। Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 दांतराई इस गाँव में ओशवालजैनों के भक्ति-भाववाले 125 घर हैं / एक उपाश्रय और एक दो मंजिली धर्मशाला और इसके पास ही एक प्राचीन शिखरबद्ध सुन्दर मन्दिर है / मन्दिर में मूलनायक पार्श्वनाथप्रभु की श्यामवर्ण एक वेंत बडी प्रतिमा विराजमान है / इसमें कुल पाषाणमय प्रतिमा 11, और धातुमय पंचतीर्थी 3 हैं, जो प्राचीन हैं। इस गाँव में योग्य मुनिराजों के उपदेश की खास आवश्यकता है। 6 जीरावला- यह अति प्राचीन तीर्थ-स्थान है, जो प्रायः सारे भारतवर्ष में प्रसिद्ध है। यहाँ हरसाल दूर दूर देशों के यात्री यात्रार्थ आते हैं / यह स्थान अर्बुदाचल के नीचे आये हुए अणादरा गाँव से पश्चिम 14 माइल के फासले पर है। यहाँ दैवतगिरि पहाड की ढालू जमीन पर बड़ा विशाल वावन देवकुलिकाओं से शोभित शोधशिखरी जिनमन्दिर है, जिसमें मूलनायक श्रीनेमिनाथ की वादामीरंग की सुन्दर प्रतिमा पूर्व सम्मुख विराजमान है / तीर्थनायक जीरावली 'पार्श्वनाथ' इसीसे लगते उत्तर दिशा की देहरी में विराजमान हैं। कहा जाता है कि-विद्यमान पार्श्वनाथ . प्रतिमा वरमाण निवासी सेठ धांधलशाह को मोरिवा Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (20) पहाड की सहलीनदी की समीपवर्ती गुफा में से प्राप्त हुईथी / सेठने यहाँ लाकर महोत्सव पूर्वक स्थापन की। वाद में 'टोबा' के पठानोंने उस प्रतिमा के नव टुकडे कर दिये / तब धांधलशाहने कहीं से दूसरी पार्श्वनाथ प्रतिमा मंगवा के स्थापन करने का विचार किया। लेकिन अधिष्ठायकदेवने स्वप्न में सेठ को कहा कि-खंडित पार्श्वनाथप्रतिमा के टुकड़ों को कंसार में दबा कर मन्दिर में रख देना और नववें दिन निकाल के उसीको स्थापन करना / सेठने ऐसा ही किया, परन्तु सातवें दिन किसी गाँव का संघ आया, संघपतिने नाकारा देते हुए भी दर्शनातुरता से सातवें दिन ही उस प्रतिमा को कंसार से बाहर निकाल ली, जिससे उसमें सांधे रह गई, जो अब तक ज्योंकी त्यों दिखाई देती हैं / वस, धांधलशाहने उसी पार्श्वनाथ-प्रतिमा को गादीनशीन कर दी, और दूसरी पार्श्वनाथ-प्रतिमा को उसके समीपवाली दूसरी देवकुलिका में विराजमान कर दी। यह प्रतिमा भी बड़ी सुन्दर, प्राचीन और दर्शनीय है। मुख्य जिनमन्दिर के चारों ओरकी 52 देवकुलिकाएँ भी विक्रम सं० 1415 से 1483 तक की बनी हुई हैं और वे बृहत्तपागच्छ, मलधारीगच्छ, उपकेशगच्छ, ... 1 जीरावला से आध कोश पश्चिम में यह गाँव है / Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 21 ) अंचलगच्छ, कृष्णर्षिगच्छ और ब्रह्माणगच्छ के आचार्यों के उपदेश से बनाई गई हैं / प्रत्येक देवकुलिका के द्वारशाख और भीति स्तम्भों के ऊपर बनवानेवालों के नाम के शिलालेख लगे हुए हैं। पास ही में 'जीरावला' गाँव है, जिसमें ओशवालों के ६और पोरवाड़ों के 4 घर हैं, जो पक्के तीर्थमुंडिये और तीनतेरह की कहावत को चरितार्थ करनेवालेहैं। 7 वरमाण___ यह गाँव बांगानदी के वांये तट पर वसा हुआ है। पुराने जमाने में यह अच्छा आबाद शहर था / इसके चारों ओर प्राचीनता के द्योतक सेंकडो भूमिशायी खंडेहर, और स्थान स्थान पर पतिताऽवशिष्ट वापिकाएँ दिखाई देती हैं। यहाँ के उपलब्ध लेखों में इसका प्राचीन नाम 'ब्रह्माणनगर' मिलता है / गाँव में सुन्दर कोरणीदार एक सौधशिखरी प्राचीन मन्दिर है, जिसमें मूलनायक श्रीमहावीरप्रभु की वादामीरंग की साढ़े तीन हाथ बड़ी प्रतिमा स्थापित है, जो विक्रमीय दशवीं शताब्दी की प्रतिष्ठित है। मूल मन्दिर के प्रवेशद्वार के दोनों तरफ पार्श्वनाथ की तीन तीन हाथ बडी श्वेतवर्ण दो कायोत्सर्गस्थ मूर्तियाँ है, जो सर्वाङ्गसुन्दर और दर्शनीय हैं। इनके आसन पर इस प्रकार का लेख हैं- ३-"सं० 1351 वर्षे माघवदि१ सोमे प्राग्वा Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 22) टज्ञातीय श्रे० साजण, भा० राहा, पु० पूनसिंह, भा० पद्मा लज्जालू, पुत्र पद्म, भा० मोहिनीपुत्रैर्विजयसिंहसूरेरुपदेशाजिनयुगलं कारितं / " ४-"सं० 1351 वर्षे ब्रह्माणगच्छे चैत्ये मडा हडीयपूनसिंहभार्यापदमलपुत्र-पद्मदेवैर्जिनयुगलं कारितं, प्रतिष्ठितं श्रीविजयसिंहसूरिभिः।” मूल-मंडप के एक स्तंभ का लेख 5-" सं० 1446 वर्षे वैशाखवदि 11 बुधे ब्रह्माणगच्छीयभट्टारकश्रीमत्सुव्रतसूरिपट्टे श्रीमदीश्वरसूरिपट्टे श्रीविजयपुण्यसूरिपट्टे श्रीरत्नाकरसूरिपट्टे श्रीहेमतिलकसूरिभिः पूनसिंहश्रेयोऽर्थ मंडपः कारापितः।” . दक्षिणदेवकुलिका की छत में पद्मशिला कालेख ६-"सं० 1242 वैशाखसुदि 15 वार सोमे श्रीमहावीरबिंबम् ,श्रीअजितस्वामीदेवकुलिकायाः पूणिगपुत्र ब्रह्मदत्त-जिनहाप-वन्ना-मना-सायबप्रमुखैः पद्मशिला कारापिता, सूत्रधार पूनडेन घटिता।" यहाँ के वासी जैनों का कहना है कि महावीर-मन्दिर से पूर्व अस्सी कदम दूर एक विशालकाय 52 जिनालय Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 23) मन्दिर था, जो इस समय भूमिशायी हो गया है, उसके मूलनायक श्रीऋषभदेव की 4 // हाथ बडी खंडित प्रतिमा उसी जगह भंडार दी गई है / इसके बहुत से घडे हुए पत्थर अमदावाद में हठीभाइने लेजा कर अपनी बाडी के जिनालय में लगाये हैं / गाँव के बाहर पश्चिम तरफ बांगानदी के किनारे पर अति विशाल मोहक नक्सीदार ब्रह्माणस्वामी (सूर्यदेव ) का देवल है, जो इस समय भग्नाऽवशिष्ट है / इसके विशाल स्तंभों पर सं० 1016, 1315, 1342, और 1356 के चार लेख लगे हुए हैं जिनसे मालूम होता है कि-इसके स्तंभ और मंडप मुख्य देवल के बाद पटी० माहणसिंह शा० थारुसुत-णागदेव धारसिंहने बनवाये हैं। एक स्तंभ का लेख इस प्रकार है 7-" सं० 1356 वर्षे ज्येष्ठवदि 5 सोमे ब्रह्माणमहास्थाने महाराजकुलश्रीविक्रमसिंहकल्याणविजयराज्ये पाटी० राजा वीषड भार्या लखनदेवीभिः ब्रह्माणस्वामिमंडपं कारापितं / यहाँ ओशवालजैनों के 3 घर हैं, जो नहीं जैसे हैं। यहाँ के छोटे पहाड में एक श्वेतपाषाण की खान भी है, जिसमें सेलवाडा की खान जैसा श्वेतवर्ण पका पत्थर निकलता है, जो यहाँ के मन्दिरों में लगाया गया है और अब भी मंदिरों के वास्ते यहाँ से लेजाया जा रहा है। Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (24) 8 मंडार___ इसमें अच्छे भावुक और गुणीसाधुओं के प्रेमी ओशवालजैनों के अन्दाजन 250 घर हैं। गाँव में दो सौधशिखरी जिनालय हैं / जिसमें पोसाल का मन्दिर प्राचीन और इसके मूलनायक श्रीधर्मनाथ हैं, जो श्वेतवर्ण एक हाथ बड़े हैं। इसके मूल. प्रवेशद्वार के दहिने तरफ तीन हाथ बडे विमलनाथ और पार्श्वनाथ के दो कायोत्सर्गस्थ बिम्ब हैं, जो ब्रह्माणगच्छीय श्रीविमलमूरि से सं० 1259 वैशाखसुदि 5 बुधवार के दिन प्रतिष्ठित हुए हैं। दूसरा महावीर-मन्दिर जो नवीन बनाया गया है / यहाँ से एक कोश के फासले पर ' गूंदरी' गाँव है, जिसमें ओशवालजैनों के 2 घर हैं, जो अनियतवासी हैं। वस, यहाँ सिरोही रियासत की हद पूरी होती है और पालणपुर की हद का आरम्भ होता है / 9 आरखी___ पालणपुरस्टेट का यह छोटा गाँव है / इसमें वृद्धशाखीय पोरवाड जैनों के 15 घर, एक छोटा उपाश्रय, एक धर्मशाला और एक छोटे शिखरवाला जिनमन्दिर है। इसमें मूलनायक श्रीऋषभदेव और श्रीमहावीरप्रभु की श्वेतवर्ण भव्य प्रतिमा विराजमान है। 10 पांथावाडा एक छोटी पहाडी के नीचे ढालू जमीन पर यह गाँव Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 25) वसा हुआ है / इसमें पोरवाडजैनों के 45 और ओशवाल जैनों के 5 घर हैं, जो कलहप्रिय और साधु-प्रेम विरहित हैं / जैनों के तरफ से झोला खाती हुई एक स्कूल भी है, जिसमें जैनबालकों को व्यावहारिक शिक्षा दी जाती है / यह स्कूल एक योग्य मास्तर के प्रयत्न से ही प्रचलित है, उसके अभाव में इसका चलना मुस्किली भरा है। गाँव में एक सामान्य उपाश्रय और एक जीर्णधर्मशाला है / उपाश्रय के पास छोटे शिखरवाला जिनमन्दिर है, जिसमें मूलनायक श्रीऋषभदेव की सवा हाथ बड़ी श्वेतवर्ण मूर्ति स्थापित है। 11 दांतीवाडा बनासनदी के पश्चिम तटपर यह कस्वा आबाद है। इसमें पोरवाडजैनों के 15 और ओशवालजैनों के 15 घर हैं, जो अच्छे भावुक, धर्मप्रेमी और साधु, साध्वियों की प्रेमसे भक्ति करनेवाले हैं / गाँव के मध्यभाग में एक सौधशिखरी जिनालय जो विक्रमीय 11 वीं शताब्दी का बना हुआ है और इसमें मूलनायक श्रीऋषभदेव की सर्वाङ्ग सुन्दर डेड हाथ बडी श्वेतवर्ण प्रतिमा स्थापित है। मूलनायक की अञ्जनशलाका सं० 1226 में तपागच्छनायक श्रीविजयसोमसूरि के हाथ से राउल गजसिंह के समय में हुई है / इसके सामने खेलामंडप में दहिनी तस्क श्रीपञ्चप्रभस्वामी की दो हाथ बडी सुन्दर प्रतिभा Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 26 ) है, जो यहाँ से दक्षिण 1 // कोश के फासले पर आये हुए 'खोडल' गाँव के एक कणबी के कुए में से निकली है। इस पर लेख नहीं है, लेकिन चिह्नों से ज्ञात होता है कि यह विक्रमीय 13 वीं शताब्दी की प्रतिष्ठित है। सं० 1897 का बना हुआ एक उपाश्रय है जिसके एक ताक में एक हाथ बडी श्वेतवर्ण श्रीमहावीरप्रभु की भव्यमूर्ति स्थापित है, जो पासवाले पहाड़ के एक टुब्बे से निकली और 12 वीं सीकी प्रतिष्ठित है / इस गाँव का प्राचीन नाम 'दांतापाटक ' है, जो विगड़कर ' दांतावाडा' हो गया है / 12 भूतेडी__यहाँ ओशवालों के 5 और पोरवाड़ों के 10 घर हैं, जो साधुओं के उपदेशाऽभाव से श्रद्धाविहीन और अन्य देवों के उपासक हो गये हैं। गाँव में एक छोटा दो मंजिला उपाश्रय है, उसके एक कमरे में एक जिनप्रतिमा स्थापित है, जिसकी पूजा भी बराबर नहीं होती / इस प्रान्त में योग्य उपदेशक और क्रियापात्र साधु साध्वियों के विहार की पूरी आवश्यकता है। 13 पालणपुर- बनासकांठा के पूर्वभाग में यह पालनपुर संस्थान की राज्यधानी का मुख्य शहर है / इसके चारों तरफ मजबूत कोट बना हुआ है और शहर से बाहर निकलने के लिये Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 27 ) चार बड़े दरबाजे हैं। शहर में चारो ओर पक्की सडकें और विद्युत की रोशनी लगी हुई है। शहर के बाह्य प्रदेश में भी चारों दिशा में बाग बगीचे और बाडियाँ लगी हुई हैं / यहाँ मूर्तिपूजक श्वेताम्बरजैनों के 500 और स्थानकयासी जैनों के 300 घर हैं। जैनों के दोनों दलों में परस्पर संप अच्छा है / यहाँ के मूर्तिपूजक जैनों में गच्छकदाग्रह बिलकुल नहीं हैं। शहर के मध्य भाग में तपागच्छ का बडा आलिशान दो मंजिला उपाश्रय है, जो सं० 1812 में बना है / अच्छे विद्वान्मुनिवरों का उतारा इसी विशाल उपाश्रय में होता है, इसके अलावा जुदे जुदे मुहल्लों में पांच उपाश्रय और भी हैं, जो पीछे से बने हैं / गाँव से बाहर सिद्धपुर जानेवाली सडक के वांये किनारे, आध कोश के फासले पर दादावाडी स्थान है, जो हवा के लिये अच्छा है / कार्तिक और चैत्री पूनम के दिन सिद्धाचल का पट दादावाडी में ही बांधा जाता है और शहर के सभी जैन यहाँ पट के दर्शन करने को आते हैं / मूर्तिपूजकों के तरफ से जैनपाठशाला और जैनकन्याशाला स्थापित है, जिसमें जैन बालकबालिकाओं को धार्मिक तालिम दी जाती है / शहर में स्थानकवासियों का भी अच्छा स्थानक और पाठशाला है। इनके अलावा सरकारी मदर्से और स्कूल भी हैं / पालणपुर में जैननवयुवक अंग्रेजी के अधिक Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 28 ) अभ्यासी होने से धर्मप्रेम से प्रतिदिन हटते हुए दिखाई देते हैं, परन्तु वृद्धलोगों में धार्मिक प्रेम अच्छा मालूम होता है / इस शहर का प्राचीन नाम प्रह्लादनपुर है / इस संस्थान ( राज्य ) का विस्तार 1766 चोरस माइल है और इसके उत्तर-पूर्व तरफ पर्वत की खीणों में 300 चोरस माइल का विस्तारवाला जंगल है, उसमें इमारती लक्कड, जलाने का इंधन, गूंद तथा बीडियों के उपयोगी पत्रवाले सेंकडो वृक्ष हैं। __ शहर में चार जिनमन्दिर हैं, जिनमें सब से बड़ा प्रथम श्रीपल्लविया-पार्श्वनाथ का है, जो भूमिगृह सहित तिमंजिला कहा जा सकता है / इसके मूलनायक पार्श्वनाथजी श्वेतवर्ण 18 इंची बड़े सर्वाङ्ग-सुन्दर हैं। इसकी भमती में 12 इंची बड़े श्रीगोडी-पार्श्वनाथजी, और मेड़ी ऊपर 33 इंच बड़े शान्तिनाथजी, 38 इंच बड़े शीतलनाथजी तथा 17|| इंच बड़े चौमुख आदिनाथजी विराजमान हैं। दूसरा मन्दिर शान्तिनाथ का है-इसमें सफेदवर्ण 26 इंची बड़े मूलनायक श्रीशान्तिनाथजी, इसकी मेडी पर 18 इंची बड़े श्रीसंभवना 1-" संवत् 1747 वर्षे मासोत्तममासे वैशाखमासे शुक्लपक्षे 6 तिथौ शुक्रवासरे समस्तश्रीसंघपालनपुरवास्तव्य श्रीशांतिनाथप्रासादस्य जीर्णोद्धारः कारापितं, पं० श्रीनयविजयगणिशिष्याणुमोहनविजयगणिप्रतिष्ठितं / " (8) Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 29 ) थजी, भूमिगृह में 28 इंची बडे श्रीऋषभदेवजी, 17 इंची बडे श्रीमहावीरस्वामी, और 14 इंची बडे श्रीसीमन्धरस्वामी, विराजमान हैं। इनके सिवाय इसमें एक सप्ततिशतजिनपट्टेक स्थापित है, जो बड़ा सुन्दर है / तीसरा मन्दिर आदिनाथ का है-इसमें मूलनायक वादामी रंग के, 21 इंची बडे श्रीकेसरियानाथजी, इसकी मेड़ी पर 14 इंची बडे श्रीपार्श्वनाथजी, और चौथे मन्दिरमें 47 इंच बडे श्रीनेमिनाथजी, तथा 25 इंची बडे श्रीशान्तिनाथजी विराजमान हैं। 14 जगाणा पालनपुर रियासत का यह छोटा गाँव है, जो मुसलमानों की आबादी से भरपूर है / इसमें ओशवाल-पोरवाड जैनों के साधारणस्थितिवाले 25 घर हैं / छोटी दो धर्मशाला और एक प्राचीन छोटा शिखरबद्ध जिनमंदिर है, जिसमें मूलनायक श्रीऋषभदेव की एक हाथ बडी श्वेतवर्ण सुन्दर और दर्शनीय प्रतिमा स्थापित है। . 1-" संवत् 1331 वैशाखवदि 4 श्रीकोरंटकगच्छे चैत्ये श्रेष्ठिजगपालभार्या जसमा, तत्पुत्र वीराकेन मातुः श्रेयोऽर्थे श्रीसीमन्धरस्वामिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च / " ( 9) 2-" समस्तश्रावकश्राविकासमुदायेन सत्तरिसयजिनप्रतिमाकारापिता, श्रीकोरंटकगच्छश्रीमानाचार्यसंताने प्रतिष्ठितं श्रीसर्वदेवसूरिमिः।” (10) Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (30) 15 भजादर बी. बी. एन्ड सी. आई. रेल्वे के छापी स्टेशन से आधा माइल दूर यह गाँव आबाद है / ओशवाल-पोरवाड जैनों के यहाँ 10 घर हैं / छोटा उपाश्रय और उसीके ऊपरी भाग में श्रीऋषभदेव की पौन हाथ बडी श्वेतवर्ण प्रतिमा स्थापित है। 15 सिद्धपुर कुमारिका ( सरस्वती) नदी के वांये तट पर यह शहर वसा हुआ है, जो जैनेतरों के तीर्थों में से एक है / इसमें औदिच्यब्राह्मण, बोहरा, मुसलमान, पाटीदार और घांचियों की वस्ती अधिक है / कहा जाता है कि-बादशाही समय में औदिच्यब्राह्मणों को विटाल कर बोहरा जाति यहीं कायम की गई थी। आज भी यहाँ औदिच्यों के 1200 और बोहराओं के 2000 घर आबाद हैं / सुन्दर सेंकडों श्रेणिबद्ध अंग्रेजी फेसन की हवेलियों और बंगलों के कारण यह शहर बडा रवन्नकदार देख पडता है / यहाँ चन्द्रप्रभ और सुलतानपार्श्वनाथ के दो कोरणी धोरणीवाले शिखरबद्ध मन्दिर हैं / दोनों मन्दिरों के नीचे दुकाने हैं, उनका 1500 रुपिया सालियाना भाडा आता है / इसीसे यहाँ के मन्दिरों का पूजा आदि का खर्चा निभता है / शहर में स्टेशन, पोष्ट-तार ऑफिस, सरकारी Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (31) स्कूल, पक्की सडकें और सर्वत्र विजली की रोशनी है। यहाँ प्रतिवर्ष जैनेतर यात्री बहुसंख्या में आते हैं और इसका दूसरा नाम 'मातृगया तीर्थ' है। 16 उंझा वडोदा रियासत का यह अच्छा कस्बा है, जो अपनी प्राचीनता को अब भी दिखा रहा है / इसमें पोरवाडजैनों के 50 और ओशवालजैनों के 200 घर है, जो विमलगच्छ के हैं। यहाँ अंग्रेजीफेसन का विशाल तिमंजिला उपाश्रय और उसीके लगती एक धर्मशाला है / कस्बे में जैनपाठशाला, जैनलायब्रेरी और सेठ मगन रविकिरणदास सार्वजनिक पुस्तकालय भी है / यहाँ तीन जिनालय हैंजिनमें प्रथम सबसे बड़ा कुन्थुनाथ का मन्दिर है, जो 25 देवकुलिकावाला, त्रिशिखरी और विक्रमीय 12 वीं शताब्दी का प्रतिष्ठित है। इसके वीचके जिनालय में मूलनायक श्रीकुन्थुनाथजी और दोनों बाजु के जिनालयों में श्रीमहावीरस्वामी तथा श्रीअजितनाथस्वामी सपरिकर विराजमान हैं। देवकुलिकाओं में पाषाणमय एक एक प्रतिमा, शिखर की मेडी पर श्रीशीतलनाथादि प्रतिमा और इस मन्दिर के वांये तरफ एक कमरे में चोमुख मन्दिर जिसमें पांच मेरू तुल्य पांच चोमुख प्रतिमा एक ही चत्वर पर स्थापित हैं। इस जिनालय में पाषाणमय कुल जिनप्रतिमा 42 और धातुमय पंचतीर्थयाँ 58 हैं, जो विक्रमीय 12 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (32 ) से 14 वीं शताब्दी तक की प्रतिष्ठित हैं / दूसरा मन्दिर जिसमें श्वेतवर्ण सवाहाथ बडी श्रीशांतिनाथ की और तीसरे गृहमन्दिर में धातुमय श्रीशांतिनाथ-पंचतीर्थी प्रतिमा विराजमान है। शहर के पूर्व किनारे पर 'उमयादेवी' का शिखरबद्ध देवल है, जो एक छोटे परकोटे से घिरा हुआ है / यह देवी पटेलियाओं ( कणबियों ) की कुलदेवी है / कणबियों का अन्ध-विश्वास है कि-' प्रति बारहवें वर्ष सिंहस्थ में देवीजी विवाहमुहूर्त का परचा (पत्र) देती हैं / ' वस, उसी परचे के विश्वास पर एक ही दिन एक साथ भारतवर्षीय कणबियों में विवाह-विधान हो जाता है / इण्डिया भर के सभी कणवी प्रतिवर्ष उमयादेवी का जुहार करने को आते हैं / इस देवी का पूजारी अच्छा मालदार है, प्रतिवर्ष उसके हजारों रूपयों की आवक है। 17 ईठोर इस छोटे गाँव में दशा पोरवाडों के 25 घर हैं, जिनमें 10 घर जैनेतर (वैष्णव ) और शेष जैन हैं / एक छोटा उपासरा और एक गृहमन्दिर है, जिसमें दर्शनार्थ धातुमय छोटी पंचतीर्थी स्थापित है। 18 देऊ... मांडस्टेशन से पूर्व आधा माइल दूर यह गाँव वसा Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 33 ) है। इसमें श्रीमालजनों के 8 घर हैं, जो अच्छे भावुक हैं। यहाँ छोटा शिखरबद्ध प्राचीन जिनालय है, जिसका जीर्णोद्धार यहीं के जैनोंने कराया है। इसमें मूलनायक श्रीमहावीरप्रभु की वादामीरंग की श्वेतवर्ण एक हाथ बडी भव्य मूर्ति स्थापित है, जो प्राचीन है / 19 महेसाणा सुन्दर चोहटा और श्रेणिबद्ध हाटों से अलंकृत यह शहर देखने लायक है / इसमें चारों तरफ पक्की सडकें और सड़कों पर एलेक्ट्री की रोशनी झगमगा रही है। शहर के लगता ही स्टेशन भी है, जिससे शहर का विस्तार दुगुणा देख पडता है। शहर में श्वेताम्बर जैनों की बडी बडी तीन धर्मशाला और पांच उपाश्रय हैं / यहाँ जैनश्रेयस्करमंडल और उसके आश्रित श्रीयशोविजयजी जैन पाठशाला अच्छे प्रबन्ध के साथ प्रचलित है / इस पाठशाला से प्रतिवर्ष अनेक जैन बालक सार्थ पंचप्रतिक्रमण, जीव विचार, नवतत्त्व, दंडक, संग्रहणीसूत्र और कर्मग्रन्थ की परीक्षा में उत्तीर्ण होकर निकलते हैं / संस्कृत में मार्गोपदेशिका, हैमलघुप्रक्रिया और प्राकृतव्याकरण का भी इसमें अभ्यास कराया जाता है / मंडल के तरफ से पाठशालाओं में अभ्यास कराने योग्य साहित्य और प्राचीन प्रकरणादि ग्रन्थ भी प्रतिवर्ष छपाकर अल्पमूल्य Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 34 ) में वेचे जाते हैं और अब तक इस संस्था के तरफ से अनेक उपयोगी ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं / शहर में श्वेताम्बरजनों के श्रेणीबद्ध पांच और छुटकर पांच, एवं दश जिनालय हैं, जो अच्छे दर्शनीय और यात्रा करने लायक हैं। इनमें सब से बड़ा, देवकुलिकाओं से अलङ्कृत और पचरंगी लादियों से मोहित करनेवाला सौधशिखरी मनरंगा-पार्श्वनाथ का जिनालय है। इसके मूलनायक श्रीपार्श्वनाथप्रभु की सर्वाङ्क-सुन्दर प्रतिमा है, जो प्रभावशालिनी और पूजनीय है / जिनमन्दिरों की तालिका नीचे मुताबिक है मूलनायक-जिनप्रतिमा शि प्रतिमा किस मोहल्ले में 1 मनरंगा-पार्श्वनाथ | शिखरबद्ध 2 श्रीकुन्थुनाथजी 3 श्रीपद्मप्रभस्वामी 4 श्रीमहावीरस्वामी 5 श्रीशान्तिनाथजी 6 श्रीसंभवनाथजी 7 श्रीशान्तिनाथजी धूमटदार 8 श्रीसुमतिनाथजी | शिखरबद्ध 9 श्रीऋषभदेवजी , 10 श्रीऋषभदेवचरण- देवकुलिका युगल Mm wom भाटवाडा नाके जेठामेताकी खडकी संघवी की पोलमें पारेख की खडकी में पारेख की खडकी में संभवनाथकी पोल पटवाकी पोलमें हबेली के पास मोचीवाडा में शहर के बाहेर 2 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इनमें नम्बर 7 वाला सं० 1853 में, नं० 8 वाला सं० 1951 में, नं० 9 बाला सं० 1946 में और नंबर 10 वाला सं० 1856 में बना, और नं०१ से 6 तक के जिनालय इनके. पहले के बने हुए समझना चाहिये / इन में नंबर 7 वाला मंदिर पटवा कपूरचंद ऋषभचंद का और नं० 9 वाला वीरचंद करमचंद का बनवाया हुआ है / 20 बोरीया यहाँ श्रीमाल जैनों के धर्मप्रेमी और गुणानुरागी 8 घर हैं। एक छोटा उपाश्रय और ऊपर के होल में धातुमय जिनपंचतीर्थी विराजमान है / इसमें आंजणा कणवियों की वस्ती अधिक है / इससे थोडी दूर बी. बी. एन्ड सी. आई रेल्वे का स्टेशन भी है। 21 झोटाणा झोटाणा-रेल्वे स्टेशन से दहिने तरफ चार फाग दूर यह गाँव वसा है / श्रीमालजैनों के यहाँ 40 घर हैं, जो जैन मुनिवरों के पूर्ण-भक्त हैं। एक उपाश्रय और एक शिखरबद्ध जिनालय है, जिसमें मूलनायक श्रीऋषभदेव की भव्य प्रतिमा स्थापित है। यहाँ पोस्ट ऑफिस और कपास कातने की तीन झीणें हैं। गाँव छोटा होने पर भी शहर के समान शोभित है। Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 36 ) 22 श्रीभोयणी जैनों के पवित्र तीर्थों में से यह एक पवित्र तीर्थस्थान है, जो भोयणी रेल्वे स्टेशन से चार फर्लाग पूर्व में है। इसके चोतरफ का प्रदेश मारवाड के समान रेतीला और पीलुके वृक्षों से आच्छादित है / यहाँ का हवा पानी शुद्ध होने से गरमी के दिनों में गुजरात काठीयावाड के अनेक जैनयात्री यहाँ स्थिरवास करते हैं। यात्रियों के ठहरने के लिये यहाँ तीन विशाल धर्मशालाएँ बनी हुई हैं और खाने योग्य सभी सामान मिलता है। धर्मशाला के मध्यभाग में तीर्थनायक श्रीमल्लिनाथप्रभु का त्रिशिखरी अतिसुन्दर जिनालय है, उसमें श्री मल्लिनाथजी की सर्वाङ्ग-सुन्दर एक हाथ बडी श्वेतवर्ण जिनप्रतिमा मूलनायक के स्थान पर विराजमान है। यह प्रभावशालिनी मूर्ति सं० 1930 वैशाखसुदि 15 शुक्रवार के दिन भोयणी गाँव की सीमा में केवलपटेल के खेत से प्रगट हुई थी और उसके वाद संघ के तरफ से मन्दिर बनवा कर, उसमें सं० 1943 माघसुदि 10 गुरुवार, सन् 1887 फेबु. वारी ता, 3 के दिन महा-महोत्सव के साथ स्थापन की गई है। 23 कूकवा यहाँ श्रीमालजैनों के 2 घर, एक छोटा उपाश्रय, Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 37 ) और एक शिखरबद्ध जिनालय है, जिसमें श्रीपार्श्वनाथ की छोटी भव्य और प्राचीन प्रतिमा विराजमान है। 24 देबोज कटोसनरोड से वीरमगाँव जानेवाली रेल्वे लाइन से आधा माइल पश्चिम यह गाँव है / यहाँ श्रीमालजैनों के 12 घर, एक उपाश्रय, और एक जिनमन्दिर है, जिसमें श्रीपार्श्वनाथ की भव्य प्रतिमा स्थापित है। 25 वणी.. वीरमगाम तालुके का यह छोटा गाँव है, जो वणीरोड से दो माइल पश्चिम वसा है / गाँव के बाहर अच्छा तालाव हैं जिसमें बारहो मास जल भरा रहता है / इस गाँव के बाद साँवली, ढांकी और लीलापुर इन तीनों गाँवों के कुओं का जल खारा ( अपेय ) है। ग्रीष्मकाल में तो खारा जल भी दुष्प्राप्य ही समझना चाहिये / अस्तु, यहाँ श्रीमालजैनों के 9 घर, एक छोटा उपासरा और एक जिनगृहालय है। 26 लीलापुर- इसमें श्रीमालजैनों के भावशून्य 15 घर, एक उपासरा और एक गृहजिनालय है जिसमें एक हाथ बडी श्वेतवर्ण ऋषभदेवजी की प्रतिमा स्थापित है / इस गाँव का Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 38 ) खारा जल यहाँ के बासिन्दों के लिये हितकर है, लेकिन आगन्तुक मुसाफिरों के लिये तो पखाल लगानेवाला है। 27 लखतर___ यह थाना-लखतर स्टेट का अच्छा शहर है / इसके चारों तरफ मजबूत कोट बना हुआ है, जिसमें चार बडे दरवाजे हैं। शहर में सर्वत्र पक्की सडकें हैं और पूर्व दरबाजे के पास एक बडा तालाव है, जो बारहो मास जल से परिपूर्ण भरा रहता है / तालाव के तट पर पातालनल (मोरिंगा) लगा हुआ है, जिसके कारण तालाव का जल खूटता नहीं है / यहाँ के तालुकदार झाला राजपूत हैं, जो गिरासिया कहलाते हैं / इस तालुक के अधिकार में थाना के 24 और लखतर के 48 गाँव हैं / शहर से लखतररेल्वे स्टेशन 1 माइल पश्चिम में है और यहाँ पोस्टतार ऑफिस, तथा स्कूल भी है। शहर में मन्दिरमार्गी तपागच्छीय श्रीमालजैनों के 30 और स्थानकवासी लोंकागच्छ के 80 घर हैं / बीच बाजार में सौधशिखरी जिनालय है, जो सं० 1935 में बनाया गया है / इसमें मूलनायक श्रीऋषभदेवजी की वादामी वर्ण की सवा दो हाथ बडी प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा जिनालय का पाया खोदते समय सं० 1932 में निकली थी। मन्दिर के सामने एक छोटी धर्मशाला है, जिसकी भींत पर एक शिलालेख लगा है कि Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 39 ) છે અહત નમ:, આ ઉપાસરાનું મકાન શ્રીમાનગઢના રહીશ સંઘવી ફૂલચંદ કમલસી તરફથી શ્રીતપાગ૭ના ચતુર્વિધ શ્રીસંઘને ધર્મકરણ કરવા સારૂં રૂા. 2001) ખચી બંધાવી લખતર તપાગચ્છને શ્રીસંઘને અર્પણ કર્યું છે. સંવત્ 1965 ના ફાગણ વદિ 1 સોમવાર. શ્રીસંઘને દાસ નેણસી ફૂલચંદ. 28 सीयाणी लींबडीस्टेट की प्राचीन राज्यधानी का यह सदर स्थान है / इसकी कुल आबादी 2000 मनुष्यों की है और इसके चारो तरफ का जंगली प्रदेश वृक्षशून्य तथा खारीवाला है / साठ वर्ष पहले यहाँ जैनों के बहुत घर आबाद थे / इस समय इसमें मूर्तिपूजक जैनों के 15 और स्थानक वासियों के 15 घर हैं, जोसामान्य स्थितिवाले हैं / यहाँ एक अच्छा शिखरबद्ध जिनालय है, जो राजा संप्रति का बनवाया माना जाता है / इसमें मूलनायक श्रीशान्तिनाथजी की 1 हाथ बडी वादामी रंग की प्रतिमा और उनके दोनों बगल में सवा दो हाथ बडी अभिनन्दन और आदिनाथ की प्रतिमा विराजमान हैं। इसके वामभाग में चोमुख देवालय है, जिसमें आधे हाथ बडी शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ, आदिनाथ और महावीर ये चार प्रतिमा विराजसान हैं, जो सं०१५२५ भाद्रवावदि 6 प्रतिष्ठित हैं। इसके पास ही उपाश्रय, धर्मशाला और भोजनशाला एक ही कंपाउन्ड में है। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 40 ) 29 लींबडी काठियावाड-गुजरात में यह लींबडी संस्थान का मुख्य शहर है, जो भोगावा नदी के उत्तर तट पर वसा है / यहाँ के दरबार प्रथम सीयाणी में रहते थे, परन्तु दरवार हरभमजी द्वितीयने अपनी राज्यधानी का मुख्य स्थान इसीको कायम किया, तब से अब तक राज्यधानी यही कायम है / इसका बाजार चौडा और अंग्रेजी फेसन की एक साइड की दुकान श्रेणियों से शोभित है / शहर में सर्वत्र पक्की सडकें और उन पर विजली की रोशनियाँ लगी हुई हैं। यहाँ मूर्तिपूजक तपागच्छीय जैनों के 400 और लोंकागच्छ के 400 घर हैं, जो वीशाश्रीमाली और दशाश्रीमाली विभाग में विभक्त हैं। ___यहाँ सौधशिखरी दो जिनालय हैं, सब से बडा जो मोटा मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है, वो प्राचीन है / इसमें श्वेत वर्ण 1 // हाथ बडी श्रीशान्तिनाथप्रभु की मूर्ति मूलनायक है और इसमें कुल पाषाणमय प्रतिमा 43, धातुमय 3 और धातु के गट्टाजी 23 हैं / इस जिनालय की बनावट आगे के भाग में राजमहल के समान और अति मनोमोहक है। दूसरा जिनालय त्रिशिखरी है, जो विशाल, दर्शनीय और मोटा बाजार में स्थित है। इसको यहाँ के जैन Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 41 ) शान्तिनाथ का मन्दिर कहते हैं, परन्तु यह वास्तव में बाहुस्वामी (विहरमानजिन) का मन्दिर है। इसमें सब मिला कर पाषाणमय 38, धातुमय 11 और धातुके गट्टाजी 15 एवं 64 प्रतिमा हैं। इसमें मूलनायक श्री बाहुस्वामी की वादामी रंग की 1 हाथ बडी प्रतिमा स्थापित है। जिसका लेख- . __"संवत् 1893 माघसित 10 बुधे मुंबई वास्तव्य ओशवालज्ञातीय-वृद्धशाखायां नाहटा गोत्रे सेठ शा० करमचंद, तत्पुत्र से० अमीचंदेन श्रीबाहुजिनबिंब कारितं, खरतरपिप्पलियागच्छे जं० यु० भ० श्रीजिनचन्द्रसूरिविराजमाने प्रतिष्टितं च ज० यु० भ० श्रीजिनभद्रसूरिभिः खरतरगच्छे श्रीपालीताणानगरे” इस जिनालय के ऊपर के होल में दर्शनीय एक ज्ञानभंडार है, जिसमें ताडपत्र पर लिखी हुई 6 और कागदों पर लिखी 3238 प्रतियाँ सुरक्षित हैं / इनके अलावा 550 मुद्रित ( छपे हुए ) ग्रन्थ भी संग्रहित हैं / प्रत्येक प्रति मजबूत वेस्टनों से दोनों तरफ पाटलियाँ लगा कर बांधी हुई हैं और लक्कड के बने फेंसी रंगीन डब्बों में बडी सुन्दरता के साथ नम्बर वार सुरक्षित हैं। इस प्रकार की ग्रन्थ गोठवणी अभी तक किसी ज्ञानभंडार की Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 42 ) देखी नहीं गई / इस मंडार का सूचीपत्र भी अकारानुक्रम से ऐतिहासिक हकीगत सहित प्रवर्तक श्रीकान्तिविजयजी के शिष्य पंन्यास चतुरविजयजीने तैयार किया है, जो शाह जीवणचंद शाकरचंद जबेरी मानदमंत्री-आगमोदयसमिति के तरफ से लींबडीजैनज्ञानभंडारनी हस्तलिखितप्रतिओनुं सूचीपत्र ' इस नाम से छप कर प्रसिद्ध हो चुका है / इसमें सुरक्षित ग्रन्थप्रतियों के लिये कपाट, डब्बे, पाटली और वेस्टन आदि के खर्च निमित्त रु. 2501) वढवाणकेम्पनिवासी-वीशाश्रीमालीज्ञातीय सेठ मगनलाल वाघजीने अर्पण किये हैं। ज्ञानमन्दिर का लेख શાહ હરખ ઝબેરચંદ તરફથી તેના પત્ની દીવાલીબાઈ ના સ્મરણાર્થે આ જ્ઞાનમંદિરના મકાન માટે રૂા. 5101) આપવામાં આવ્યા છે. સંવત્ 1979 शहर में पायचंदगच्छ, अंचलगच्छ, भट्टारकगच्छ, खरतरगच्छ और तपागच्छ के जुदे जुदे उपाश्रय विद्यमान हैं, लेकिन इस समय सभी जैन तपागच्छ के ही कहलाते हैं और तपागच्छ की ही प्रतिक्रमणादि क्रिया करते हैं, अतः इतर गच्छों का अब यहाँ नामशेष ही रह गया है / तपागच्छवालों का दो मंजिला विशाल उपाश्रय है और एक दो मंजिली धर्मशाला है। धर्मशाला के ऊपर के मंजिल में साधुओं के ठहरने, चोमासा करने और व्याख्यान वांचने योग्य जुदे जुदे विशाल होल Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 43 ) बने हुए हैं, और नीचे भोजनशाला और वर्द्धमान आमल ओलीतप खाता है / धर्मशाला के प्रवेशद्वार की दहिनी भीत पर शिलालेख नीचे मुताबिक लगा हुआ है દેસી રતનસી પીતાંબરની ભારજા બાઈ પુરીબાઈએ આ ધરમશાલા બંધાવી છે. સંવત્ 179 ના શ્રાવણ વદિ 3 ને ભેમ. તેના મુખીયા દેસી લાલચંદ હાથીએ જણાવી છે તપાગચ્છના સંઘ સારૂં. स्थनकवासियों में जो लींबडी समुदाय है, वह इसी गाँव के नाम से प्रकाश में आया है / लखतर, सीयाणी, बढवाण, चूडा, राणपुर, आदि गाँवों में जो स्थानकवासी हैं, वे प्रायः इसी लींबडीसंप्रदाय के हैं। इस संप्रदाय में साधु और आर्याओं (साध्वियों) की अधिक संख्या होने से गुजरात काठीयावाड में इस संप्रदाय के माननेवालों की संख्या अधिक है / लींबडी शहर में मूर्तिपूजक और स्थानकवासी दोनों संप्रदाय के जैनों के तरफ से प्रथक प्रथक् गुरुकुल बॉर्डिंगहाउस प्रचलित हैं, जिनमें स्व स्व धर्मानुकूल जैन बालक बालिकाओं को व्यावहारिक और धार्मिक शिक्षण दिया जाता है। 30 लालियाद यहाँ श्रीमालजैनों के 8 घर हैं, जो विवेकशून्य, धर्मप्रेम रहित और अन्यदेवोपासक हैं। एक छोटा उपासरा Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 44 ) भी है, जिसमें दो साधुओं का स्थिरवास मुस्किल से हो सकता है / यहाँ साधु साध्वियों को आहार-पानी मिलना भी दुर्लभ है। 31 चूड़ा ध्रांगधरा तालुके का यह गाँव है जो पक्की सडकें, पोस्ट, तार ऑफीस और रेल्वेस्टेशन से शोभित है / यहाँ मन्दिरमार्गी श्रीमालजैनों के ७५और स्थानकवासी (लोंकागच्छ) के 75 घर हैं। दोनों के उपाश्रय और स्थानक जुदे जुदे बने हुए हैं / महाजनों के तरफ से एक पांजरापोल ( गौशाला) भी है जिसमें गाय, भेंस, आदि ढोर संग्रहित हैं / मध्य बाजार में एक सौधशिखरी सुन्दर जिनालय भी है, जिसमें मूलनायक श्रीसुविधिनाथजी की एक हाथ बडी वादामीरंग की मनोहर प्रतिमा विराजमान है / इसके अलावा इसमें पाषाणमय प्रतिमा 10, धातुमय पंचतीर्थयाँ 13 और गट्टाजी 15 स्थापित हैं। मंदिर के खेलामंडप की भींत पर एक शिलालेख भी लगा है १२-"श्रीचूडानगरेमहाराजश्रीरायसिंघजीना वखते खस्तिश्री संवत् 1916 वर्षे शाके 1781 प्रवर्त्तमाने उत्तरायणगते सूर्ये मासोत्तममासेपौषमासे शुक्लपक्षे 7 सप्तम्यां बुधवासरे श्रीमा Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ ( 45 ) लीज्ञातीय लघुशाखयां साहश्री 5 श्रीयशवंतशाह तत्पुत्र शा० सोमजी, तथा शा० मानजी, तथा सा० माधो, तथा सा० खेमा, तथा सा० रणमल, तथा सा० राजा, सा० वस्ता, सा० झपूर, सा० नाथा-समस्तपरिवारसहितः श्रीसुविधिनाथजी चैत्यकारितं प्रतिष्ठितं च, श्रेयस्तात् भवतु कल्याणमस्तु / " 32 राणपुर धंधुका एजन्सी में गोमानदी के तट पर यह गाँव वसा है, जो 6000 मनुष्यों की आबादीवाला है / इसमें तपागच्छ के 75 और स्थानकवासियों के 75 घर हैं। दोनों के उपाश्रय, स्थानक, जैनपाठशाला और कन्याशाला कायम हैं / मध्यबाजार में अतिसुरम्य सौधशिखरी जिनमन्दिर है, जिसमें मूलनायक श्रीसुमतिनाथजी की दो फुट बडी श्वेतवर्ण भव्य प्रतिमा विराजमान है। इसकी पालगटी के आसन पर लिखा है कि 13-" सं० 1879 फागणवदि 12 तिथौ शनिवासरे ओशवंशीयनीनाकेन श्रीसुमतिजिनबिंब कारितं, प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छीय भट्टारक श्रीहर्षसूरिभिः लछमनपुर्या, शुभं भवतु।” मूलनायक के दोनों तरफ पार्श्वनाथजी और सुपा Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 46 ) वनाथजी की भव्य मूर्चियाँ प्रतिष्ठा के समय शा. दीपचंद झबेर के पुत्र डूंगरसी तथा ब्रजलालने चढावा के 1001) रुपया देकर विराजमान किये हैं। प्रतिष्ठा के समय भन्दिर के ऊपर शा० मानसंग नानजी के नाम से उनके पुत्र के पुत्र शा० हकमचंद मूलजी के पौत्र धीरजलाल प्रेमचंदने चढावा के रु. 1351) देकर स्वर्णकलश, और शा० कालीदास बोधजीने रु. 1001) देकर धजादंड चढाया और मंदिर की मेडी ऊपर शा० नीमचंद कमाभाइ के पुत्र जगजीवन तथा पौत्र जीवराजने रु. 1651) देकर मूलनायक श्रीपार्श्वनाथजी विराजमान किये / उपरोक्त सत्कार्य करनेवाले सद्गृहस्थों के नाम के जुदे जुदे गुजराती में मंदिर की भींत पर शिला-लेख भी लगे हुए हैं। 33 खस (खह) इस गाँव में श्रीमालीजैनों के 36 घर हैं, जो तपागच्छ और स्थानकवासी विभाग में विभक्त हैं, लेकिन दोनों धर्मभावना से शून्य और विवेकविहीन हैं। यहाँ एक उपासरा, एक स्थानक और एक गृहजिनालय है, जिसमें धातुमय 'जिनपंचतीर्थी' स्थापित है। 34 सालगपुर, इस छोटे गाँव में श्रीमालजैनों के दो घर हैं, जो Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 47 ) नहीं जैसे हैं / यहाँ साधु-साध्वियों को ठहरने योग्य उपाश्रय का साधन नहीं है, जैनेतर स्थानों में ठहरना पडता है, परन्तु यहाँ के जैनेतर जैन साधु-साध्वियों के द्वेषी हैं, इससे ठहरनेयोग्य स्थान मुस्किल से मिलता है। 35 लाठीदड भावनगर तालुके का यह छोटा, पर अच्छा गाँव है, इसमें श्रीमालीजनों के पच्चीस घर, एक उपाश्रय और छोटे शिखरवाला एक जिनालय है, जिसमें सवाफुद् वडी श्वेतवर्ण श्रीचन्द्रप्रभस्वामी की सुन्दर प्रतिमा स्थापित है। यहाँ स्टेट के तरफ से स्कूल भी है, जिसमें जैन अजैन बालकों को गुजराती शिक्षा दी जाती है / 36 सांगाबदर-- यह इसके नाम के मुताबिक ही गुणवाला छोटा गाँव है, जो भावनगरस्टेट का है / स्टेट के तरफ से यहाँ स्कूल है, जिसमें जैन जैनेतर बालकों को व्यावहारिक शिक्षण मिलता है। श्रीमालजैनों के इसमें 6 घर हैं, जो सामान्यस्थितिवाले और विवेक रहित हैं। 37 सांढा-रतनपर-- इसमें श्रीमालजैन के 4 घर हैं, जो अच्छे भावुक हैं, परन्तु यहाँ जिनमन्दिर न होने से साधु साध्वी अपने Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 48 ) विहार के दरमीयान इस गाँव को छोड़ देते हैं / गाँव में पोस्ट ऑफिस और स्कूल भी है / 38 उमराला रेतीली-कालुनदी के उत्तर तट पर यह कस्बा वसा है, जो भावनगर स्टेट के तालुके का है / इस तालुके के नीचे 42 गाँव हैं, जिनकी सार संभाल यहाँ का तालुकदार करता है / यहाँ पोस्टऑफिस, सरकारी स्कूल और कन्याशाला भी है, स्टेशन यहाँ धोलाजंकसन है, जो तीन कोश के फासले पर है / इसमें श्रीमालीजैनों में मूर्तिपूजकों के 20 और स्थानकवासियों के 90 घर हैं / गाँव में एक गुंबजदार छोटा पर अतिमनोहर जिनालय है, जिसमें सर्वाङ्गसुंदर दो फुद् बडी वादामीरंग की मूलनायक श्रीअजितनाथस्वामी की प्रतिमा विराजमान है। इसके पवासन पर लिखा है कि 14-" संवत् 1867 वर्षे शाके 1773 प्रवर्त्तमाने उत्तरायणगते श्रीसूर्ये उत्तरगोलावलम्बिने मासोत्तममासे शुभकार्ये वैशाखमासे कृष्णपक्षे तिथौ षष्ठीश्रीवुधवासरे श्रवणनक्षत्रेब्रह्मायोगेतदिने सूर्योदयादिष्ट घटी४ तत्समयेवृषलग्ने वहमाने लग्नाधिपो भृगुलग्ननवांशे तृतीये मीनाख्ये गुरुदैवतेऽस्यां शुभग्रहनिरीक्षितकल्याणवतीवेलायां Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (49) श्रीउमरालाग्रामे श्रीनवीनप्रासादे संघमुख्यश्रीसंघसमस्तश्रीमत्तपागच्छे श्रीवीसाश्रीमालीज्ञातीयेन श्रीअजितनाथजिनबिंबं स्थापितं, श्रीभट्टारक श्री 108 विजयदेवेन्द्रसूरीश्वरराज्ये सकलपंडितशिरोमणि पं० गणि अमरविजय-पं० श्री 7 प्रेमसत्कन स्वहस्तेन / ले० मु० झवेरसागरेण प्रभावसत्केन, श्रीअजितनाथजी प्रसादात्, श्रीशुभं भवतु / " जिनालय के वामभाग में धर्मशाला है, जो अहमदावादवाले हेमाभाई की बनवाई हुई है / इसमें वर्द्धमान आंबिल खाता है, जिसमें शा० हेमचंद मूलचंद के तरफ से पर्वतिथियों में और ओलीतप में आंबिल कराये जाते हैं / जिनालय के सामने दो मंजिला उपाश्रय है, जिसके नीचे के होल के एक विभाग में साध्वियों के उतरने का स्थान और उसके ऊपर जैनपाठशाला है, जिसमें जैन वालक स्वतः धार्मिक अभ्यास करते हैं / उपाश्रय की ऊपरी मेडी पर साधुओं के उतरने और व्याख्यान वांचने योग्य होल है / उपाश्रय की भींत पर एक शिला-लेख इस प्रकार लगा है આ ઉપાશ્રય શ્રી ઉમરાલાના રહેનારા તપાગચ્છી વીસાશ્રીમાલી દેસી દિયાલ બેચર તથા તેની ભાર્યા બાઈ રામે Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 50 ) આત્મકલ્યાણાર્થે કરાવી તેમાં ધાર્મિક ક્રિયા કરવા માટે શ્રી સંઘને અર્પણ કર્યો છે. રૂા. 1501) આપ્યા સં. 1976 माश्विन. 39 सणोसरा भावनगर रियासत का यह छोटा गाँव है, परन्तु कतिपय बंगलों और स्कूल के मकानों के कारण एक छोटे शहर जैसा दिखाई देता है। बाजार में पक्की सडक और लाइन बद्ध दुकानें बनी हुई हैं। इसमें श्रीमालजैनों के 10 घर हैं, जो धर्मप्रेम से रहित और जैनेतरों से भीगये गुजरे हैं / वस, गिरिराज की छांया पडने के कारण यहीं से तीर्थमुंडिये महाजनों का आरंभ होता है। यहाँ शिखरबद्ध एक जिनालय है, जिसमें मूलनायक श्रीऋषभदेव और उनके दोनों तरफ श्रेयांसनाथ तथा महावीरस्वामी की सवा सवा हाथ बडी बादामीरंग की प्रतिमा विराजमान है / इनमें ऋषभदेव मूर्ति संवत् 1473 की और दोनों तरफ की मूर्तियाँ सं० 1921 की प्रतिष्ठित हैं। इस जिनालय में इस प्रकार शिलालेख है 15 "विक्रम सं० 1972 माघसुदि 11 चन्द्रवारे सणोसराग्रामे भावनगरीय वीसा ओशवाल परि० धोल पुरुषोत्तमद्रव्यात्त्रष्टिद्वये श्रीआदीश्वरजिनबिंबं स्थापितं श्रीमत्तपागच्छे गणिश्री Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (51) मुक्तिविजयजी तच्छिष्यमुनिवर्य-मोतीविजयेन प्रतिष्ठितं श्रीरस्तु।” __एक दो मंजिला उपाश्रय और उसके पिछले भाग में छोटी धर्मशाला है / उपाश्रय में ऊपर नीचे एक ही मतलब के दो शिलालेख लगे हैं, जो इस प्रकार हैं આ ઉપાશ્રય શ્રીઅમદાવાદવાલા સંઘવી મેહલાલભાઈ ગોકલદાસ ઝબેરીએ બંધરાવી શ્રીજૈનવેતાંબરમૂર્તિપૂજક સંઘને અર્પણ કર્યો છે. સં. 1984 ભાદ્રપદ, સોંસરા. 40 नवागाम भावनगरताबे का यह छोटा गाँव है / इसमें श्रीमा- . लीजैनों के 8 घर हैं, जो सामान्य स्थिति के होने पर भी अच्छे भावुक हैं / यहाँ एक उपाश्रय और उसीके पास जूने फेसन की बडी धर्मशाला है, जो सं० 1916 में बनी है। 41 जमणवाव राजा नवघणजी द्वितीय के दंडपति जाम्बभट का वसाया हुआ यह छोटा गाँव है, इसका असली नाम 'जाम्बवाव' है, जो बिगड़ कर वर्तमान नाम हो गया है / इसमें एक उपाश्रय और उसीके उपरि होल में धातुमय छोटी छोटी तीन जिनप्रतिमा हैं / गाँव में जैनों के 7 घर हैं, जो गिरिराज के समीपवर्ती होने से तीर्थमुंडिये हैं। Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 52 ) 42 पालीताणा काठीयावाड ( गोहिलवाड ) के भावनगर संस्थान के मध्यभाग में एक महाल के समान यह संस्थान है। इसका विस्तार 290 चोरस माइल और इसके अधिकार में 99 गाँव हैं, जो पालीताणा, गारीयाधार, मानविलास और ठाडच मोखडका; इन चार परगनों में विभक्त है / इस संस्थान की कुल जनसंख्या 58000 के अन्दाजन हैं / इस संस्थान की राज्यधानी का पालीताणा मुख्य शहर है, जो गिरिराज ( शत्रुजय ) से सवा माइल दूर उत्तर में आबाद है और खारोनदी के पश्चिम तट पर वसा हुआ है / इसका प्राचीन नाम 'पादलिप्तपुर' है और वीर सं० 367 में नागार्जुनयोगीने अपने गुरु जैनाचार्य श्रीपादलिप्तसूरिजी के नाम से इसको हवामहेल के पास हाथीआधार नामक स्थान पर वसाया था। उसके ध्वंस होने वाद धमधमिया में अटकेश्वर महादेव के पास यह दूसरी वार वसा और उसके भी नाश हो जाने पर तीसरी वार वर्तमान पालीताणा वसा है / यहाँ के वर्तमान दरबार ( ठाकुर ) बहादुरसिंहजी के. सी. आई. ई. गोहिलराजपूत हैं / इनके पूर्वजों में से सेजकजी गोहिल के तृतीय कुंवर शाहाजीने मारवाड से आकर प्रथम मांडवी गाँव में और वाद गारीयाधार में अपना राज्य कायम किया / शाहाजी के वंशज पृथ्वीराज गोहिलने बादशाही थाणादार को Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यतीन्द्र तीर्था विहार धिराज शत्रुजम तृतीय महा भाग तीर्थ अानंद प्रेस-भावनगर. Page #59 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 53) निकाल कर निज राज्यधानी पालीताणा में कायम की, जो अब तक उन्हीं के वंशजों के अधिकार में कायम है। शहर में हिन्दु और मुसलमानों के सिवाय वीशाश्रीमाली जैनों के 400, दशाश्रीमालीजैनों के 100, वीशाओशवालों के 8, सोरठियादशाजैनों के 50 और भावसार जैनों के 8 घर आबाद हैं, जिनकी जनसंख्या 2000 के अन्दाजन है / यहाँ के जैन एक ही तपागच्छ के होने पर भी दो विभाग में विभक्त ( बंटे हुए ) हैं-१ मोटी-टोली और नानी-टोली / दोनों टोली के उपाश्रय जुदे, धर्मक्रिया जुदी, और धर्मोत्सवयोग्य सर सामान भी जुदा है / इनमें पारस्परिक ममत्त्वभाव भी अधिक है और ये एक दूसरे के धार्मिक उत्सवों में भाग नहीं लेते। शहर में तपागच्छ, अंचलगच्छ और खरतरगच्छ; इन तीनों के उपाश्रय बने हुए हैं, परन्तु इस समय सभी तपागच्छ में मिल गये हैं, इससे यहाँ अंचल और खरतरगच्छ का नाम शेष ही रहा समझना चाहिये / शहर में सौधशिखरी और उत्तम नकशी से शोभित आदिनाथ का मन्दिर जो ' मोटा देहरासर' के नाम से प्रसिद्ध है / इसको दीवबंदर निवासी सेठ रूपचंद भीमजीने सं० 1817 में बनवाया है और इसमें मूलनायक श्रीऋषभदेव की सर्वाङ्ग सुन्दर श्यामवर्ण की तीन फुद् बडी प्रतिमा विराजमान है, जो तपागच्छीय श्रीपूज्य श्रीदयासूरि Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (54) प्रतिष्ठित है / दूसरा मन्दिर गोडीपार्श्वनाथ का है, जिसको सं० 1850 में सूर्यपुर वासिनी हेमकोर सेठाणीने बनवाया है। यह मन्दिर आणंदजी कल्याणजी की पेढी को सुपुर्द होने से उनने उसको अन्दाजन एक लाख रुपया लगा कर फिरसे दो मंजिला बनवाया और सं० 1991 (गुजराती 1990) ज्येष्ठसुदि 11 शनिवार के दिन महामहोत्सव के साथ श्रीगोडीपार्श्वनाथ की श्यामवर्ण की चार फुद् बडी प्राचीन प्रतिमा विराजमान की है। यह प्रतिमा वैराटनगर (धोलका) के जैनमन्दिर से यहाँ लाई गई है / इनके सिवाय खरतरगच्छीय यतिलखमीचंदजी के उपाश्रय की मेडी पर श्रीशान्तिनाथ की प्रतिमा, और ललितासर के तट पर एक छोटी देवकुलिका में आदिनाथप्रभु के चरण स्थापित हैं / यह देवकुलिका खुली न रहने के कारण दर्शकों को आदिनाथ-चरण के दर्शन का लाभ नहीं मिलता। ललितसर तालाव वस्तुपाल तेजपालने अपनी स्त्री 'ललितादेवी' के नामसे बनवाया था, जो इस समय भग्नाऽवशिष्ट है / शहर के बाहर की धर्मशालाओं में यहाँ छे जिनालय हैं-सेठ नरसीनाथा की चेरीटी धर्मशाला के ऊपरी होलमें गृहमन्दिर, जिसमें वादामीवर्ण की तीन फुट बड़ी मूलनायक श्रीचन्द्रप्रभस्वामी की प्रतिमा स्थापित है, जो सं० Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 55 ) 1928 में प्रतिष्ठित हुई है और इसमें पाषाणमय कुलप्रतिमा 25 हैं / दूसरा मन्दिर केशवजी नायक की चेरीटी धर्मशाला के पिछले भाग में है, जो गृहदेवालय है / इसमें ऋषभ, चन्द्रानन, वारिषेण और वर्द्धमान इन चार शाश्वत जिनेश्वरों की श्वेतवर्ण दो दो फुट वडी चारो दिशा में एक एक प्रतिमा विराजमान है, जो सं० 1921 की प्रतिष्ठित हैं / तीसरा गृहमन्दिर केशवजी नायक की पत्नी वीरबाई की पाठशाला में है / इसमें मूलनायक श्रीमहावीरप्रभु की श्वेतवर्ण सवा फुट बडी प्रतिमा है, जो सं० 1921 की प्रतिष्ठित है / यह मन्दिर विक्रम संवत् 1954 में नया बना है। इसके वायें तरफ के होल में जैन पाठशाला और लायब्रेरी है, जिसमें साधु साध्वी जुदी जुदी नियत टाइम पर व्याकरणादि ग्रन्थों का अभ्यास करते हैं। चोथा छोटा शिखरबद्ध जिनालय मोती सुखिया की धर्मशाला में है। इसमें मूलनायक श्रीऋषभदेव आदि 16 पाषाणमय जिनप्रतिमा स्थापित हैं, जो सं० 1948 में यहाँ प्रतिष्ठोत्सव सह स्थापन की गई हैं / पांचवां शिखरबद्ध जिनालय जसकुंवरसेठाणी की धर्मशाला में है, इसके मूलनायक श्रीचिन्तामणिपार्श्वनाथ हैं, जो यहाँ सं० 1949 में विराजमान किये गये हैं। छट्ठा जिनालय मुर्शिदाबादवाले बाबू माधवलालजी की धर्मशाला में है / इसमें मूलनायक श्रीसुमतिनाथ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (56) की बादामीरंग की ढाइ फुट बडी भव्य प्रतिमा विराजमान है, जो 'सांचादेव' के नाम से प्रसिद्ध और सं० 1958 में यहाँ स्थापन हुई है / इसके सिवाय कल्याणभुवन के पीछे दादावाडी के नाम से प्रसिद्ध जगह पर गुंबजदार छत्री में खरतरगच्छीय श्रीजिनदत्तसूरिजी की मूर्ति, तथा जिनकुशलसूरि और जिनदत्तसूरि के चरण और उसके बाह्य ताक में श्रीनेमनाथ आदि 5 जिनप्रतिमा स्थापित हैं। इससे थोडी दूर पूर्व-दक्षिण तरफ जलनलटांकी के पास एक चत्वर के ऊपर पीलवृक्ष के नीचे दो छोटी देवकुलिकाओं में श्रीआदिनाथप्रभु के दो जोड चरण स्थापित हैं, जो प्राचीन हैं और सिद्धाचल की जूनीतलेटी के नाम से प्रसिद्ध हैं। पर्युषण में स्थानीय जैनसंघ चैत्यपरिपाटी करता हुआ यहाँ आकर चैत्यवन्दनादि करके वापिस लौटता है। शहर से उत्तर-पूर्व में धांधरका नदी के दक्षिण तट पर चत्वर बद्ध एक छोटी देहरी में प्राचीन समय के श्रीगोडीपार्श्वनाथ के चरण स्थापित हैं / चैत्र आश्विन के ओलीतप में दशमी के दिन ओलीतप करनेवाले यहाँ दर्शनार्थ जाकर धजा चढ़ाते हैं। देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण-ज्ञानभंडार 1, हेमचंद्राचार्य पुस्तकालय 2, अम्बालाल-ज्ञानभंडार 3, वीरवाई-पुस्तकालय 4, नीतिसूरि-जैनलायब्रेरी 5, तलकचंद माणेकचंद Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (57 ) लायब्रेरी 6, और खरतरगच्छीय-यतिज्ञानभंडार 7 ये सात पुस्तकालय (ज्ञानभंडार ) हैं, जिनमें हस्तलिखित संस्कृत, प्राकृत जैनागमों और मुद्रित ग्रंथों का अच्छा संग्रह है, जो उनके अभ्यासी विद्वानों और साधु-साध्विओं को सीखने, वांचने के लिये दिये जाते हैं / इसके अलावा लायबेरियों में जैन जैनेतर साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक पत्र भी आते हैं, जो वांचने के लिये विना छूट से मिल सकते हैं। शहर में हेमचन्द्राचार्य-जैनपाठशाळा 1, बुद्धिसिंह पाठशाला, 2 धनपतसिंह-पाठशाला 3, बालाश्रमबोर्डिंग 4, श्रीयशोविजयजैनगुरुकुल 5, जिनदत्तमूरि-ब्रह्मचर्याश्रम 6, वीरबाई-पाठशाला 7, और सिद्धक्षेत्र-श्राविकाश्रम 8 ये आठ संस्थाएँ ज्ञानाभ्यास के लिये प्रचलित हैं / इनमें धार्मिक और व्यावहारिक शिक्षण जैनबालक बालिकाओं को दिया जाता है / कतिपय पाठशालाओं में तो साधु, साध्वी और श्राविकाओं को विना फीस लिये व्याकरण, काव्य और आगम ग्रन्थों का अभ्यास कराया जाता है। ये सभी पाठशालाएँ स्थायीफंड और जैनयात्रियों के आधार पर ही जीवित हैं। अंध, अपंग, अशक्त और निराधार महाजनों के लिये यहाँ सदाव्रत भी है-जिनमें प्रातःकाल रोटी-दाल Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 58 ) और संध्या को चावल-खीचडी का भोजन जिमाया जाता है / रसोडे और भोजनशाला भी हैं, इनमें जैन साधु साध्विओं को गरमपानी और गौचरी व्होराई जाती है / इसके अलावा यहाँ वर्द्धमान-आंबिलतप खाता भी प्रचलित है, जिसकी स्थापना वयोवृद्ध सिद्धिविजयजी के शिष्य कल्याणविजयजी के उपदेश से हुई है। इसमें हमेशां स्थानीयजैन और बाहर के जैनयात्रियों को आँबिल करने का अच्छा प्रबन्ध है। शहर के मध्य में मोटा मन्दिर के पास सेठ आणंदजी कल्याणजी की पेढी है, जो सारे भारतवर्ष के जैनों की स्थापित पेढी मानी जाती है और गिरिराज की आम सत्ता पेढी को प्राप्त है। तीर्थाधिराज श्रीसिद्धाचल की सेवा के लिये नवाणुं यात्रा करने, चोमासा रहने, नवकारसी करने और संघजीमन (स्वामिवात्सल्य), टोली, उपधान, छट्ट-अट्ठमादितप करने करानेवालों से पेढी जो नकरा लेती है, वो नीचे मुताबिक है१ नवकारसी / 7 वरसीतप के पारणा 31) 2 संघ-जीमन 8 छट्ट-अट्टम के पारणा 3 / ) 3 नवाणुं टोली 111) 9 सिद्धितप का पारणा 2) 4 चोमासी टोली 5 / ) 10 मासीतप का पारणा 2) 5 चोसठ प्रहरी पौषध के | 11 उपधानप्रवेश का 12) पारणा 8) 12 प्रथमोपधान प्रवेश का२॥) 6 पर्युषण के पारणा 21) | 13 द्वितीयोपधान प्रवेश का 6) Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (59) 14 तृतीयोपधानप्रवेश का 4) | 26 शान्तिस्नात्र भणानेका 25 / ' 15 उपधान में एकासणा की | 27 अष्टोत्तरिस्नात्रपूजा का 15 // टोली का 5 / ) | 28 चांदी की नांद का 111) 16 उपधानमें ऑबिल की | 29 लक्कड की नांद का 5 / ) टोली का 3) | 30 तीर्थमाल पहेरने का 51) 17 नवाणुं मूंगी टोलीका 11 / ) | 31 रथयात्रा निकालने का 25) 18 नवाणुंयात्रा की पास 1) | 32 चावलसे मंडल पूरने का 2 // 19 चोमासा करने की पास 1 // 33 समवसरण मंडाने का 2) 20 वरसीतप करने की पास 1 // 34 सोनाचांदी के रथ का 35) 21 छट्ठ अट्ठम तपकी पास | 35 एक मेना (म्याना) का 1 // ) 22 पूजा भणाने का 5 / ) 36 घोडा सिपाईयों का 1 // ) 23 पंचतीर्थ का संघ निकाल- 37 इन्द्रध्वजा का 5 / ) नेका 51) | 38 कोतल प्रति घोडे का 2) 24 बारह कोश की प्रदक्षिणा 39 सादे प्रति घोडे का 1) संघ का 21, | 40 काष्ठहस्ती का 11) 25 छगाउ की प्रदक्षिणा 41 प्रतिमा स्थापने का 1) संघ का 15 / ) | 42 टेलिया फेरने का / ) गिरिराज के ऊपर आदिनाथप्रभु के दरबार में मंदिर के विशाल चोक में सोने चांदी के दो घोडे सहित नकशीदार रथ, पालखी, ऐरावत हाथी, गाडी और सुमेरु आदि सामग्री की सजावट से रथयात्रा निकलाने का 25 / ) रुपया नकरा लिया जाता है / इसी प्रकार पेढी से नवाणुं यात्रा, चोमासा करनेवाले और एक महीना रहनेवाले यात्री यदि गोदडा और वरतन लेवें, तो उनको दर गोदडा दीठ आठ आना, दर गादला दीठ बारह आना, और Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 60 ) प्रति वरतन का एक आना देना पड़ता है। यदि गोदडा गादला गम जाय, या रद हो जाय तो प्रतिगोदडे का 8) और प्रति गादले का 4) रुपया, तथा वरतन खो, या फूट जाय तो उसकी पूरी कीमत पेढी में भरना पड़ती है। शेष छुटकर यात्रियों से प्रति गोदडे का दो पैसा, प्रति गादले का और प्रतिवरतन का भाडा एक पैसा लिया जाता है / डूंगर पर, या नीचे पूजा, पखाल, आरति, वरघोडा आदि के घीकी बोली का भाव मण एक का 5) और सुपना, पालणा, उपधानमाल आदि के घीकी बोली का भाव एक मण का 2 // ) रुपया है। यहाँ किसी भी धर्मशाला, या वंडे में नवकारसी, स्वामीवच्छल, और टोलियों का जीमण किया जाय तो जीमनेवालों के सिवाय परोसा आदि में दूना माल उपडता है। किसी किसी वक्त ऐसा भी मौका बनता है कि माल को परोसावाले ले जाते हैं और जीमनेवाले जातिभाई अर्द्धभुक्त, या योंही रह जाते हैं / परोसा लेनेवाले पेढी, धर्मशाला और राज के नौकर हैं, जो जाति के जैनेतर राजपूत, कोली, भील और मुसलमान हैं, यात्रियों के ठहरने के लिये यहाँ बड़ी बड़ी दो मंजिली आलीशान धर्मशालाएँ बनी हुई हैं / जिनकी संख्या नीचे मुताबिक हैं Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (61) शहर की धर्मशाला१ मोतीकडीया की को. 12 | 11 सूरजमल वखतचंद की . 2 लल्लुभाई पानाचंद की 8 12 गोरजी का डेला . 3 हठीभाई जेसंगभाइ की 17 | 13 ऊजमबाई की 4 अमरचंद जसराज की 17 14 भंडारी की 17 5 मोतीशाहसेठ की 41 | 15 पीपलावाला की . 6 जोरावरमल पटवा की 8 16 डाह्याभाई का ओरडा 3 7 हेमाभाईसेठ की 23 | 17 दयाचंदभाई की . 8 सेठ हेमाभाइकी हवेली 19 | 18 हेमाभाई का वंडा 56 9 सात ओरडा की 18 | 19 पालीताणा महाजन की . 10 मसालिया की 4 शहर के बाहर की धर्मशाला२० नरसीनाथा की कोठरियाँ 63 21 नरसीकेशव की (1921) . 22 देवसी पूनसी की (1936) 23 मोती सुखिया की (1948) 24 रतनचंद मगनलाल की (1949) 25 माधोलाल दुगड की (1950) 26 जसकुंवरबाई की / (1951) 27 वीरबाईपाठशाला (1954) 28 बाबूपन्नालालजी की (1955) 29 कोटावाला की (1955) 30 रणसी देवराज की (1956) 31 सोभागचंद कपूरचंद की (1957) 32 जेचंद रणछोड की (1957) 33 मगनमोदी की (1958) , 47 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , 36 (62) 34 नगीनदास कपूरचंद की (1968) 35 नाहरबिल्डिंग (1969) 36 माणकचंद चंपालाल की (1969) 37 पुरबाई कच्छी की (1971) 38 महाजन का वंडा (1976) 39 धनपतिसिंह का मकान (1982) 40 भगवानजी तिलोकचंदकी 1985) 41 कल्याणमलभवन (1986 42 भावसार जैन की (1987) 43 शांतिमवन (1988) 44 जीवननिवास (1989) 45 चांन्दभवन (1990) शहरकी धर्मशालाओं में अमरचंद जसराज, हठीभाई, लल्लुभाई और मोतीशाहसेठ ये चार यात्रियों के उतरने और मसालिया, सातओरडा, भंडारी और ऊजमवाई ये चार धर्मशाला साधु-साध्विओं के उतरने में काम आती हैं, शेष अनुपयुक्त हैं। शहर बाहर की सभी धर्मशाला यात्रियों और साधु-साध्विओं के ठहरने के लिये ही काम आती हैं / धर्मशाला बनानेवाले मालिकों की देख-रेख बराबर न होने और धर्मशालाओं के मुनीम लांचखाउ होने से यात्रियों को यहाँ बड़ी दिक्कतें सहना पडती और घंटों खोटी होना पड़ता है। तीर्थ पवित्र है, लेकिन यहाँ के प्रायः सभी लोग यात्रियों को लूटने और तकलीफ देनेवाले हैं। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (63) 43 पवित्रतीर्थ-श्रीसिद्धाचल शहर पालीताणा से दक्षिण-पश्चिम कोण में सवा माईल के फासले पर शत्रुजय नामका पवित्र नगाधिराज (पहाड ) है, जो जैन शास्त्रानुसार प्रायः शाश्वत और भारतवर्ष में तीर्थाधिराज माना जाता है। उत्सर्पिणीकाल के प्रथमारक में 7 हाथ, द्वितीयारक में 12 योजन, तृतीयारक में 50 योजन, चतुर्थारक में 60 योजन, पंचमारक में 70 योजन, और षष्ठारक में 80 योजन / इसी प्रकार अवसर्पिणीकाल के प्रथमारक में 80 योजन, द्वितीयारक में 70 योजन, तृतीयारक में 60 योजन, चतुर्थारक में 50 योजन, पंचमारक में 12 योजन और षष्ठारक में सात हाथ का इसके विस्तार का प्रमाण है / ऋषभदेवभगवान के समय में यह 8 योजन ऊंचा, 50 योजन मूल में विस्तारवाला और 10 योजन ऊपर के भाग में विस्तारवाला था। इस प्रकार उत्सर्पिणी अवसपिणी काल में इसकी वंध-घट और घट-वध होती रहती है। परन्तु सर्वथा नाश किसी काल में नहीं होता, इसीसे यह तीर्थ प्रायः सदा शाश्वत माना गया है / इसके पूर्वदिशा में सूर्यवन, पश्चिम में चन्द्रवन, दक्षिण में लक्ष्मीवन और उत्तर में कुसुमवन था, जो वर्तमान में नामशेष ही रह गया है / इस तीर्थाधिराज के 108 गुणनिष्पन्न Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (64) नाम हैं, परन्तु उनमें इक्कीश नाम मुख्य हैं, जो 'शत्रुजयमहात्म्य' ग्रन्थ में इस प्रकार लिखे हैं१ शत्रुजय, 2 रैवतगिरि, 3 सिद्धक्षेत्र, 4 सुतीर्थराज, 5 ढंक, 6 कपर्दि, 7 लोहित, 8 तालध्वज, 9 कदंबगिरि, 10 बाहुबलि, 11 मारुदेव, 12 सहस्राऽऽख्य, 13 भगीरथ, 14 अष्टोत्तरशतकूट, 15 नगेश, 16 शतपत्र, 17 सिद्धिराद्, 18 सहस्रपत्र, 19 पुण्यराशि, 20 सूरप्रिय और 21 कामदायी। श्रीपादलिप्ताचार्य-रचित ' शबूंजय महातीर्थकल्प' में ये इक्कीस नाम इस तरह गिनाए हैं-- विमलगिरि मुत्तिनिलओ, सत्तुंजसिद्ध पुंडरीओ। सिरिसिद्धसेहरो सिद्धपचओ सिद्धराओ अ // 2 // बाहुबली मरुदेवो, भगीरहो सहसपत्त सयवत्तो / कूडसयअयुत्तरो, नगाहिराओ सहसकमलो // 3 // ढंको कोडिनिवासो, लोहिच्चो तालज्झओ कयंबुत्तो। सुरनरमुणिकयनामो, सो विमलगिरि जयउ तित्थं // 4 // --1 विमलगिरि, 2 मुक्तिनिलय, 3 शत्रुजय, 4 सिद्धक्षेत्र, 5 पुंडरीक, 6 श्रीसिद्धशेखर, 7 सिद्धिपर्वत, 8 सिद्धराज, 9 बाहुबली, 10 मरुदेव, 11 भगीरथ, 12 सहस्रपत्र, 13 शतपत्र, 14 अष्टोत्तरशतकूट, 15 नगाधिराज, 1 ग्रन्थों में जो नाम भेद देख पड़ते हैं, वे सब पाठान्तर समझना चाहिये। Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (65) 16 सहस्रकमल, 17 ढंक, 18 कोटिनिवास,१९ लौहित्य, 20 तालध्वज, और 21 कदम्ब / ये इक्कीस नाम देव, मनुष्य और मुनिवरों के दिये हुए हैं। इस गिरिराज के ऊपर अनन्त भव्यजीव सिद्ध हुए और आगामीकाल में सिद्ध होवेंगे / इसका ऐसा कोई मी स्थान खाली नहीं है, जहाँ से जीव सिद्ध न हुए हों, इसीसे 'कांकरे कांकरे अनन्त सिद्ध हुए ' ऐसा कहा जाता है। वर्तमान जिनेश्वरों के शासनकाल में इस पवित्रतम गिरिराज के ऊपर ज्ञानावरणीय आदि घन-घाति, अपाति कर्मों को समूल खपाकर पुंडरीक गणधर पांच क्रोड, नमि-विनमि दो क्रोड, द्राविड-बारिखिल्ल दश क्रोड, साम्ब-प्रद्युम्न साढे आठ क्रोड, राम-मरत तीन क्रोड, अजितसेनजिन 17 कोड, सोमयशा 13 क्रोड, भरतनंदन-सूर्ययशा एक लाख, भरतजी पांच क्रोड, पांडव 20 क्रोड, नारदऋषी 91 लाख, शांतिनाथ के अणगार 1 क्रोड 52 लाख 55 हजार 777, अजितनाथ के अणगार 10 हजार, दमितारी 14 हजार, वैदर्मी 4400, सागरराजर्षी 1 क्रोड, वसुदेव स्त्रियाँ 35 हजार, थावच्चापुत्र एक हजार, शैलक 500, पन्थक 500, समुद्रमुनि 700 और संप्रतिजिन के धावच्चा गणधर 1000 मुनि के परिवार से सिद्ध हुए हैं। Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (66) शहर से भाता-तलेटी तक पक्की सडक बनी हुई है, तांगे, गाडी और मोटरें यहीं तक आती जाती हैं। भाता-तलेटी में ऊपर से यात्रा करके वापिस उतरनेवाले यात्रियों को भाता मिलता है और गर्मपानी पीनेवालों के लिये ठारा हुआ गरम पानी तैयार रहता है / भाता-तलेटी से वीश कदम आगे जाने पर 'जयतलेटी' आती है। यहाँ छोटी छोटी 28 देहरियाँ हैं, जिनमें जिनेश्वरों के चरण स्थापित हैं / यात्री प्रथम यहींपर गिरिराज को भेटने के लिये चैत्यवन्दन करते हैं, वस यहीं से गिरिराज का चढाव शुरू होता है, जो रामपोल तक अंदाजन चार माईल का है। जयतलेटी से तीर्थाधिराज की टोकों के किले तक चार हडे ( पहाडी टेकरियों के सम विसम चढ़ाव ) आते हैं / प्रथम हड़ा के चढाव में-७२ जिनालय सौधशिखरी बाबू का मन्दिर, धोली-परब और भरतचक्री के चरण; द्वितीय हडा के चढाव में कुमारकुंड, लीली-परव, वरदत्त गणधर के पादुका, आदिनाथ के पगल्या, नेमनाथ के पगल्या; तृतीय हडा के चंढाव में छालाकुंड, हीरा-परब, हिंगुलादेवी, और कलिकुंडपार्श्वनाथ के चरण, और चतुर्थ हडा के चढाव में-नानो मानमोडीयो, मोटो मानमोडियो, रोगहरकुंड, अमर-परब, चार शाश्वत जिनेश्वरों के पगल्या, . श्रीपूज्य की देहरी, हीरबाईकुंड, जे. पी. परब, द्राविड Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 67 ) वारिखिल्ल-अइमत्ता-नारद इन चार महर्षियों की श्यामवर्णी कायोत्सर्गस्थ मूर्तियाँ, भूषणकुंड ( बावलकुंड ), राम-भरत-शुकराज-शैलक-थावच्चा; इन पांच मुनिवरों की कायोत्सर्गस्थ प्रतिमा, हनुमारद्वार, जाली-मयाली उवयाली, इन तीन की कायोत्सर्गस्थ प्रतिमा, इतने दर्शनीय स्थान आते हैं / रास्ते में हरएक कुंड और परब के पास यात्रियों को विश्राम लेने के लिये विसामे बने हुए हैं और परबों में गरम, ठंडा दोनों तरह के जल हाजिर रक्खे जाते हैं, जिससे यात्रियों को बडी शाता पहुंचती है / रास्ते के चारों हडों के चढाव में हिंगलाज को हडा अति कठिन है। इसका ऊंचा तीखा चढाव होने से यात्री चढ़ते चढते थक जाते हैं / इस हडे को पार किये वाद यात्रियों के मन में सहज विचार हो उठता है कि 'अब तो पार लगे, गिरिराजाधिपति को अभी जाकर भेटते हैं।' इस हडे के विषय में कहावत भी है कि-" हिंगलाजनो हडो, केडे हाथ दइ चढो / फूट्यो पापनो घडो, बांध्यो पुन्यनो पडो॥" जाली-मयालीटेकरी से 25 कदम आगे जाने पर तीर्थाधिराज का मजबूत बाह्य किला आता है, जो चार माइल चोरस विस्तारवाला है और इसमें प्रवेश करने के लिये मुख्य रामपोल दरवाजा तथा दो छोटी वारियाँ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (68) हैं / किले के अन्दर नव टोंके हैं और प्रतिटोंक का किला ( कोट) अलग अलग है, जो प्रतिटोंक की हद का घोतक है / एक टोंक से दूसरी टोंक में जाने के लिये प्रतिकोट में बारियाँ बनी हुई हैं। हरएक टोंक में पानी के टांके हैं, जो बारहो मास जलपूर्ण रहते हैं और टोंकों की रक्षा के वास्ते टोंकों के मुख्य प्रवेशद्वार के दरीखाने में पहरादार (सिपाही) बैठे हुए हैं / हरएक टोंक दर्शनीय सौधशिखरी भव्य जिनालयों से शोभित है और संगमरमर की पचरंगी लादियों से उनके आंगन, इस कदर सजे हुए हैं कि देखनेवालों को देखते देखते तृप्ति नहीं होती और न वहाँ से हठने की इच्छा होती। अतएव जिस मनुष्यने इस पवित्रतम तीर्थाधिराज की यात्रा एक वार भी कर ली हो, उसी का जन्म सफल है। कहा भी है किते पुन्यवंता नर जाणिये, कीधी शत्रुजे यात्र / ते नर राने रोया जाणो, जेणे न करी तेनी यात्र // 1 // दीन उद्धार न कीधो जेणे, न लह्यो शास्त्र विचार / गिरि शत्रुजे जे नवि चढ्यो, एले गयो तस अवतार // 2 // जन्म सफल कीधो नर जेणे, लक्ष्मी सुमार्गे स्थापि / श_जे जइ प्रासाद कराव्या, तस कीर्ति जग व्यापि // 3 // ___ अस्तु, नव टोंकों के नाम, उनमें बड़े मन्दिर, देव. कुलिका ( छोटे-मन्दिर), जिनप्रतिमा और चरण-पादुका की संख्या-दर्शक तालिका इस प्रकार है Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (69) - - देहरासर देहरियाँ 700 302 1893 - MITHLEAM टोंकों के नाम जिनमू-चरणपादु- स्थापना र्तियाँ का जोड संवत् 1 विमलवसहि 1663 कर्माशाहोद्धार रतनपोल 2 234 | 1451 2 209 1587 नरसी केशवजी नायक 2 1921 2 मोतीवसहि |16 132 2463 1893 3 बालावसहि प्रेमावसहि 1843 5 हेमावसहि 1886 6 ऊजमवसहि 1893 7 शाकरवसहि 1893 8 छीपावलहि 1791 9 चोमुखटोंक ) 12 1675 खरतरवसहि / 11 4156 / 1675 सेठ केशवजी नायक | कुल टोटल 106 731 11384, 8961 विक्रमीय | ___ इस तालिका में गिरिराज की नव टोंकों के जिनमन्दिर और देवकुलिकाओं (देहरिओं) में पाषाणमय छोटी बडी जिनप्रतिमाओं की ही संख्या बताई गई है, जिनमें चार सहस्र क्ट की चार हजार जिनप्रतिमा भी सामिल Swas a G 149 - Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (70) हैं / इनके सिवाय धातु की जिनप्रतिमा, ॐकार-हाँकार गत-जिनप्रतिमा, सिद्धचक्रगट्टा, आचार्यप्रतिमा, मुनिप्रतिमा, अष्टमंगल, देवी-देव की, और सेठ-सेठाणी की मूर्तियाँ अलग समझना चाहिये / इस पवित्रतम गिरिराज पर चढ़ने के लिये जयतलेटी के मुख्य रास्ते के सिवाय तीन रास्ते (मार्ग) और भी हैं-१ शत्रुजीनदी में स्नान करके 'भाठीवीरड़ा' के रास्ते से आदिनाथ के चरणयुग के दर्शन और बायें तरफ की मोखरका टेकरी पर देवकी षट्नन्दन के चरणयुगों के दर्शन किये वाद रामपोल दरवाजा आता है / यह भाठीना वीरडानी पाग' कहलाती है, शत्रुजीनदी से रामपोल तक अन्दाजन तीन माइल का चढाव है / 2 रोहिशालापाग जो गिरिराज के किले की रामपोल से दक्षिण सेतगंगा ( शत्रुजीनदी) के पास पहाड की ढालू जमीन पर है / इसका सीधी टोंच का चढाव रामपोल तक अन्दाजन चार माइल का है। इसके रास्ते में एक जलकुंड और एक छोटी देहरी में आदिनाथ के दर्शनीय चरणयुगल आते हैं। 3 घेटीपाग का रास्ता जो गिरिराज के किले से पश्चिम दो माईल का है / इसके नीचे समतल भूमि पर आदपुर नामका छोटा गांव है, जो भरतचक्री का वसाया हुआ माना जाता है और इसका प्राचीन नाम आदिपुर है। यह पुराने समय में अच्छा आबाद शहर था, जो इस समय Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 71 ) एक छोटे गामडे के रूप में दिखाई देता है। आदपुर से पचास कदम ऊंचे चढने पर घेटीपाग आती है। यहाँ एक सुन्दर नकशीदार छत्री में आदिनाथ के चरणयुग स्थापित हैं। यहाँ से लगभग अर्धभाग ऊंचे चढने पर एक देहरी में चोवीश जिनेश्वरों के चरणयुगल आते हैं। बाद एक माइल ऊंचे जाने पर किले की बारी आती है। जो यात्री जयतलेटी के रास्ते से ऊंचे चढ कर तीर्थनायक को भेट कर घेटीपाग की यात्रा करके, वापिस तीर्थनायक के दर्शन कर जयतलेटी आते हैं, उनके गिरिराज की दो यात्रा हुई मानी जाती हैं। गिरिराज की तीन प्रदक्षिणा हैं-प्रथम डेढ़ कोश की, जो नव टोंकों के किले बाहर रामपोल से दहिने तरफ से फिर कर हनुमानद्वार होकर रामपोल आने पर पूर्ण होती है और यात्री इसको 'दोढ गाउनी प्रदक्षिणा' कहते हैं। द्वितीय छ कोश की प्रदक्षिणा जो रामपोल के दहिने तरफ के रास्ते से शुरू होती है / मोखरका टेकरी के पासवाले मार्ग से आधा कोश जाने पर 'उलकाजल' नामक स्थान आता है / यहाँ एक छोटी देहरी में आदिनाथ के चरणयुगल हैं, उनके दर्शन करके पौन कोश आगे जाने पर चिल्लणतलावडी' आती है। यहाँ दो छोटी देवकुलिकाओं में अजितनाथ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 72) और शान्तिनाथ के पगल्या स्थापित हैं। सुधर्मगणधर के शिष्य चिल्लणतपस्वी संघसमूह के साथ यहाँ आये / संघ के मनुष्यों को जोर की प्यास लगी और जल विना उनके प्राण जाने का समय आ लगा / चिल्णमुनिने संघ की रक्षा के वास्ते स्वलब्धिबल से वहाँ तालाव बना दिया / वस, उसी समय से इसका नाम चिल्लणतलावडी प्रसिद्ध हुआ / जैनेतर लोग इस स्थान का नाम 'चन्दनतलावड़ी' कहते हैं। इसीके पास एक लंबी पत्थर की चटान है, जो 'सिद्धशिला' कहाती है। इस पर यात्री सोते, बैठे, या खडे रह कर ध्यान करते हैं और कोई कोई लोटते भी हैं। इसके आगे दो माईल जाने पर भाडवोडूंगर ( भद्रकगिरि) नामका शिखर आता है, जो गिरिराज का ही एक शिखर माना जाता है। इसके ऊपर कृष्णपुत्र शाम्ब और प्रद्युम्न फाल्गुनसुदि 13 के दिन साढी आठ क्रोड मुनि के परिवार से मोक्ष गये हैं / यहाँ से चार माइल आगे बढ़ने पर सिद्धवड (जूनी तलेटी) आती है / यहाँ एक देहरी में आदिनाथ के चरणयुगल और उसके पास एक विशाल वडका दरख़त है, जो सिद्धवड़ के नाम से प्रख्यात है / इसके नीचे अनशन करके अनन्तमुनि मोक्ष गये हैं, इसीसे यह सिद्धवड पूज्य समझा जाता है / यहाँ से चार माईल के फासले पर पालीताणे वापिस आने पर यह प्रदक्षिणा पूरी होती है / Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 73 ) कितने एक यात्री सिद्धवड से घेटीपाम चढ़ कर विमल वसहि के दर्शन करके जयतलेटी आते हैं। तृतीय प्रदक्षिणा बारह कोश की है, जो पालीताणा से आरंभ होती है / शहर पालीताणा से दक्षिणपूर्व-कोण में 7 माईल दूर शत्रुजीनदी के दहिने तट पर भंडारिया गाँव आता है, जिसमें श्रीमालजैनों के 20 घर और एक गृहमन्दिर है / मन्दिर में श्रीआदिनाथादि तीन प्रतिमा विराजमान हैं। भंडारिया से दो माईल आगे जाने पर 'बोदानोनेस' गाँव आता है, जिसका प्राचीन नाम कदंबपुर है / यह गाँव कामलिया (अहीरजाति के) लोगों का है, और वही इसके गिरासदार हैं / गाँव में एक आणंदजी कल्याणजी की धर्मशाला बनी हुई है, जिसमें दो हजार यात्री ठहर सकते हैं। इसके पास ही कदम्बगिरि नाम की पहाडी है, जो गिरिराज का ही एक शिखर माना जाता है। जैनेतर लोग इसको 'कमलानो डूंगर' कहते हैं / इसका चढाव अन्दाजन ढाई मीलका है, और इसके ऊपर गत चोवीशी के निर्वाणी तीर्थङ्कर के 'कदम्ब' नामक गणधर एक क्रोड मुनि के परिवार से मोक्ष गये हैं, इसीसे यह स्थान तीर्थ-स्वरूप माना गया है। कहा जाता है, कि दीवाली के दिन शुभवार, उत्तरायण-संक्रान्ति में यहाँ मंडल (ध्यान) करने से देव प्रत्यक्ष होकर इच्छित वर. Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (74) दान देते हैं / यहाँ कदम्बनिर्वाण की जगह पर एक देवकुलिका में आदिनाथ और कदम्बगणधर के चरण युगल (पगल्या) विराजमान हैं। इसके पास ही 'कमला देवी' का स्थान है, जो बोदानोनेस के गिरासिया कामलिया लोगोंने अन्दाजन 70 वर्ष पहले बनाया है। यह कामलियाओं की कुलदेवी है, इससे वे इस स्थान पर फाल्गुन सुदि 14 के दिन कमला की होली का त्योहार मनाते और मानता ( जुहार) करते हैं। गाँव से कुछ दक्षिण में आणंदजी कल्याणजी की धर्मशाला के निकटवर्ती श्री महावीरस्वामी का विशाल सौधशिखरी मन्दिर है, जो 52 जिनालय और तपागच्छीय नेमिसूरिजी के उपदेश से नया बनाया गया है। इसमें मूलनायक श्री महावीरप्रभु की अतिसुन्दर प्रतिमा, अतीत-अनागत-वर्तमान-कालीन चोवीशी जिन की प्रतिमा, विहरमान वीश जिनेश्वरों की प्रतिमा, और वीरप्रभु के ग्यारह गणधरों की प्रतिमा विराजमान हैं, जो सभी अर्वाचीन हैं / इस जिनालय की प्रतिष्ठा और इसमें स्थापित प्रतिमाओं की अञ्जनशलाका विक्रम संवत् 1989 फाल्गुन सुदि 3 के दिन आचार्य नेमिसूरिजीने की है। इसका मुहूर्त्त बराबर न होने और विधि विधान की बेपरवाही होने से प्रतिष्ठाञ्जनशलाकोत्सव में बहुत उपद्रव Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 75 ) हुआ था / अर्थात् उत्सव के प्रथम दिन मन्दिर के कोट की दीवाल पड गई 1, दूसरे दिन मंजूरों के झोंपड़ों में आग लगी जिससे एक छोकरी के प्राणपखेरु उड़ गये 2, तीसरे दिन अखंड ज्योत बुझ गई और मंगलकलश फूट गया 3, चौथे दिन कुंभस्थापनावाला कलश फूट गया 4, पांचवे दिन वायुगोटा के आने से तंबु उड गये और तंबु के स्तंभ की प्रचंड चोट लगने से एक स्त्री मर गई 5, छडे दिन जोर की वर्षा पडने से दर्शकों को महान् कष्ट भुगतना पडा 6, सातवें दिन भोजनयोग्य रजक खुटजाने से दर्शकयात्रियों को भूखा रहना पडा 7, आठवें दिन दर्शकयात्रियों में चोरों की भीति उत्पन्न हुई 8, नवमें दिन बीमारी चालु होने का हल्ला हुआ 9 और दशवें दिन मूलनायक श्री महावीरप्रभु की मूर्ति को तख्तनशीन करते ही दर्शकयात्रियों में दस्त और वमन की बीमारी शुरू हो गई जिससे सब यात्री बोदानानेस से बमुश्किल अपने अपने घर पहूंचे / घर जाने पर भी. पंदरा रोज तक यात्रियों को दस्त और वमन की बीमारी से पीडित होना पड़ा 10 / बोदानानेस गाँव से दो माईल के फासले पर 'चोक' गाँव आता है, जो सेतलगंगानदी के दक्षिण तट पर वसा है। इसमें श्रीमालजैनों के 10 घर, यात्रियों के ठहरने को एक धर्मशाला और एक गृहजिनालय है, जिसमें श्रीआदि Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 76 ) नाथभगवान् की भव्य छोटी प्रतिमा विराजमान है। यहाँ से शत्रुजीनंदी के उत्तर तट पर हस्तगिरि नाम की छोटी पहाडी आती है, जो चोकगाँव से अर्धा माईल दूर है। इसका चढाव अन्दाजन दो माईल का है और इसके ऊपरी टोंचपर एक देहरी में प्राचीन समय के आदिनाथप्रभु के चरणयुगल स्थापित हैं / ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान पर भरतचक्रवर्ती का हस्ती शुभध्यान से मर कर देवता हुआ और उसने भरत को नमस्कार करके कहा कि मैं तीर्थराज के ध्यान से देवता हुआ हूं। भरतचक्रीने हाथी के स्मरणार्थ 'हस्तगिरि' तीर्थ कायम किया / अस्तु, यहाँ की यात्रा करके चोक और जालिया माँव होकर वापिस पालीताणे आने से यह प्रदक्षिणा पूरी होती है। चोक से दो माईल जालिया और जालिया से 6 माईल पालीताणा होता है। १-गत चोवीसी के केवलज्ञानी जिनेश्वर का स्नात्राभिषेक करने के वास्ते ईशानेन्द्रने स्वर्गगङ्गा को भूमि पर उतारी। वह वैताढ्य-पर्वत की जमीन में गुप्त वहती हुई शत्रुजय के पास प्रगट हुई। इससे इसका नाम शत्रुजी, या सेतगंगा हुआ। इसका जल पवित्र, रोगहर, हलका और बुद्धिपर्द्धक है। इसके जाडेगल्ले में छाने हुए जल से जयणा पूर्वक स्मान करके गिरिराज पर जाकर आदिनाथ प्रभु की सेवा-पूजा करने से अनेक जन्मों के संचित पापकों का नाश होता है। Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 77 ) इस पवित्रतम गिरिराज के शरण में आकर कार्तिक सुदि पूर्णिमा के दिन द्राविड-वारिखिल्ल महर्षी दश क्रोड मुनि के साथ, फाल्गुनसुदि 8 के दिन प्रथम तीर्थकर प्रभुऋषभदेवस्वामी पूर्वनवाणुं वार पधारे और फाल्गुनसुदि 13 के दिन शांव-प्रद्युम्न साढे आठकोड महर्षीयों के साथ, और चैत्रसुदि पूर्णिमा के दिन श्रीऋषभदेवप्रभु के प्रथम गणधर ऋषभसेन (पुंडरीकस्वामी) पांच क्रोड मुनि के साथ मोक्ष गये हैं / इसलिये उनकी यादगारी के निमित्त कार्तिकी-चैत्री पूर्णिमा और फाल्गुनशुक्लाष्टमी के यहाँ तीन मेले मुकरर हैं। चोथा मेला आषाढसुदि चतुर्दशी का है, जो वर्ष का आखिरी है / वर्षाऋतु के चार मास तक वारिश, नीलफूल और जीवजात की पैदाइश अधिक होने से गिरिराज की यात्रा वन्द रहती है। इसलिये चातुर्मास के पहले यात्रियों को यात्रा का लाभ लेने के निमित्त चौथा मेला कायम है। चारो मेलाओं में देशी और विदेशीय हजारों जैन जैनेतर आ कर गिरिराज की स्पर्शना, सेवा, पूजा श्रीसंघवात्सल्य का यथाशक्ति लाभ १-गिरिराज की सिद्धवडतलाटी के पास आइपरगाँव की आंबाबाडी में फाल्गुनसुदि 13 का मेला अच्छा भराता है / अष्टमी के मेला के बजाय यह अधिक रौनकदार है, इसमें दश हजार यात्री तक आते हैं और संघजमण ( स्वामिवात्सल्य ) भी होता है / Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 78 ) प्राप्त करके निज मानवजीवन को सफल करते हैं। कार्तिकी पूर्णिमा के दिन मेलेकी बड़ी नवकारसी मगसिर (गुजराती कार्तिक) वदि 1 के दिन कायमी होती है, जो मुर्शिदाबाद निवासी रायबहादुर बाबू धनपतिसिंहजी के तरफ से यावचन्द्रदिवाकरौ नियत है / चैत्रीपूर्णिमा की नवकारसी भी विदेशी जुदे जुड़ गृहस्थों के तरफ से हुआ करती है, जो अनियत है और टोलियाँ (छोटे जीमन) तो यहाँ हरसाल अगणित होते ही रहते हैं। गिरिराज श@जय की यात्रा करने के लिये हजारों यात्री प्रतिवर्ष, प्रतिमास और प्रतिदिन आते हैं / उनके जान-माल की रक्षा करने के लिये पालीताणा ठाकुर को रखोपा की वार्षिक रकम ठहराव मुताबिक सं० 1896 में प्रतिवर्ष 4500) पेंतालीससौ रुपया, सं० 1921 में 10000) दश हजार प्रतिवर्ष, और सं० 1942 से 1982 तक चालीस वर्ष के ठहराव पर प्रतिवर्ष 15000) रुपया आणंदजी कल्याणजी की पेढी तरफ से दिये जाते थे। परन्तु अब सं० 1984 से 2019 तक पेंतीस वर्ष के ठहराव पर प्रतिवर्ष 60000) साठ हजार रुपया दिया जाता है / इतना रुपया मिलने पर भी पालीताणा ठाकुर के तरफ से यात्रियों को चाहिये वैसी शाता नहीं मिलती। अस्तु. यह तीर्थ अतिशय प्रभावशाली है और जैनशास्त्र Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (79) कारोंने इसकी महिमा का वर्णन करते हुए यहाँ तक लिखा है कि अट्ठावय सम्मेए, पावा चंपाइ उजिंतनगे य / वंदित्ता पुण्णफलं, सयगुणं तंपि पुंडरीए // 13 // -अष्टापद, सम्मेतशिखर, पावापुरी, चंपापुरी और गिरनार आदि तीर्थों को वन्दन करने से जो लाभ होता है, उससे शतगुणा लाभ ( पुण्य ) एक बार पुंडरीकगिरि (सिद्धाचल ) को वन्दन करने से होता है-मिलता है। 'कुमारपालराजाना रासनु रहस्य' नामक गुजराती पुस्तक में लिखा है कि नन्दीश्वरद्वीप की यात्रा से दुगुणालाभ कुंडलद्वीप की, तिगुणा रूचकद्वीप की, चौगुणा गजदन्तागिरिकी, पांचगुणा जंबूवृक्षगतचैत्य की, षड्गुणाधिक धातकीखंडद्वीप की, 22 गुणा पुष्करद्वीप की, 100 गुणा मेरुगतचैत्यों की, 1000 गुणाधिक सम्मेतशिखर की, लाखगुणाधिक कंचनगिरि की, दश"लाखगुणाधिक अष्टापद की, और क्रोडगुणाधिक लाभ श्रीसिद्धाचल की यात्रा करने से मिलता है / पृष्ठ 299 / Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (80) . हमारे विहार के दरमियान सीयाणा (मारवाड) से पालीताणा तक रास्ते के गाव . नंबर. गाँव नाम. उपासरा. धर्मशाला. मुकाम संवत् 1990 : . | जैनधर | ه ज्येष्ठ वदी 11 ,, 12 م مه سه له م م : ज्येष्ठव.३० सु.. سه د س 1 सवणा 2 मोटागाम 3 फुगणी 4 मेरमांडवाडा 5 आमलारी 6 दांतराई जीरावला 8 बरमाण मेगरीवाडा 10 मंडार 11 गूंदरी 12/ आरखी 13 पांथावाडा 14 भाडली 15 कोटडा 16 जेगोल दांतीवाडा 18 रामपुरा भूतेडी 20 पालनपुर م م ه م . . م م . س س م :: . تم Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (82) 0 15 1 0 ܩ |21/ जगाणा 22 मजादर 23 सिद्धपुर ܚ 0 0 ܚ ऊंझा ईठोर 0 ܩ 0 जेतलवासण ܘ 0 देऊ ܩ rrrrrrrr mm in m ܘ 0 तलाटी मेसाणा वोरियावी ܘ / ܩ 0 " 14 0 जोटाणा ܩ 0 ܘ 32 कटोसन रोड 33/ भोयणी ܩ ज्ये. सु.१५ अषाढ वदी 2-3 ܩ 0 ܩ 0 . * * * 0 ܩ 0 ܘ 0 ܣ m m ܩ 0 0 x कूकवा देत्रोज 36, रामपुरा अघारी वीरमगाम वणी सांवली ढांकी लीलापुर लखतर 44 तलवडी चडवाणा 46 वरसाडी ܘ * ܘ 0 x 0 0 ܩ 0 x 0 ܩ 0 ܘ 1 0 0 0 ܘ 0 ܘ 0 Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 50 72 सिद्धाचल 71 पालीताणा जामणवाव 68 सणोसरा नवागाम 61 वावली 66 पीपराली | उमराला 61 मांड 63 लोआणा वावडी सांडारतनपर 60 सांगावदर 59 लाठीदड 58 सांगलपुर 57 रेफडा 56 खस 55 नानी वाव 54 खोखन्ने 53 राणपुर 52 चूडा लालीयाद . .' 50 लींबडी 49 भलगामडा .. 48/ गागरेटी 47) सीयाणी = ه ه ه ه ه ه ه سه ه = ه ه ه ه ه ه ه ه 5 ه م ع د سه بع / 3 256 . ..: 5 6 . . . . . . . . . . . 150 . .. * : (82) 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 आष सुदि 1 __ 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ అఅఅల్లు His R RAR = -కత - 222 52 ఆలు: అని తెలి తల తలలతో= -Seerases सुश्रावक शा. प्रतापचंद धूराजी / जन्म सं. 1979 फाल्गुन शुक्ल 3, बागरा (मारवाड) = = S -అతE ఆ అల్ -అఅఅఅల్ શ્રી મહોદય પ્રેસ-ભાવનગર Page #91 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FFFEELESELELESELFIELTSELFEE पञ्चचामर-छन्दसि पार्श्व-वीरस्तुतिःसमस्तसम्पदर्पकः सुकच्छदेशमण्डनं, भवातितप्तजीविनां प्रपालकः समाघहा / सदाऽजरामरत्वदः स पार्श्वनाथ ईश्वरो, के ददातु शर्म सर्वदान्तिमो जिनश्च नः प्रभुः॥१॥ Devend Recroen Secre श्रीपार्श्व-वीरजिनपतिभ्यां नमः / श्रीकच्छभद्रेश्वरतीर्थयात्रा लघुसंघ। a) (विक्रम संवत् 1990-1991) श्रीवीरः सुखदोऽस्तु सर्वजगतां वीरप्रभु संस्तुवे, वीरेणाभिहतो मनोभवरिपुर्वीराय तस्मै नमः / वीरात्कमहतिः कृतिर्विजयते वीरस्य तीर्थेशितुपर वीरे भक्तिरजस्लमस्तु विमला वीरप्रभो! पाहि माम् 1 - FELLEFFFFFFFFFFFFE Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ proacroscow तीर्थयात्रा का फल 8 ध्याने पल्यसहस्रसंभवमधं प्रक्षीयतेऽभिग्रहे, तल्लक्षोत्थमनेकसागरकृतं मार्गे समुल्लंधिते / तीर्थस्याश्रयणेऽभ्युपैति सुगतिर्देवाननाऽऽलोकने, श्रीसौख्यादितदर्चने सुरपदं तत्तीव्रभावे शिवम् // 1 // तीर्थ का ध्यान करने से हजार पल्योपम का किया, तीर्थ जाने का अभिग्रह लेने से लाख पल्यो- 2 पम का किया हुआ, यात्रार्थ गमन करने से अनेक सागरोपम का किया हुआ पाप नाश होता है / तीर्थ का आश्रय लेने से सद्गति, दर्शन करने से सौभाग्य सुखादि समृद्धि, पूजा करने से स्वर्ग संपत्ति और है भावपूजा (तीव्रभावना) करने से मोक्ष प्राप्ति होती है है / जब अकेले ही तीर्थयात्रा करने से इतना लाभ 8 6 मिलता है, तब संघ निकाल कर छहरी पालते हुए अनेक श्रावक श्राविकाओं के सहित तीर्थसेवा और 8 2 उसमें भावपूर्वक जिनेश्वरों की द्रव्य भाव पूजा , करने से अपरिमित लाभ मिलनग कौन आश्चर्य है। wcowwwwcom Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीयतीन्द्रविहारदिग्दर्शन-तृतीय भाग 6 9 - वीरनिर्वाण 23 में परमार्हत-श्रेष्टिदेवचन्द्र-श्राद्धवर्य संस्थापित श्रीभद्रेश्वर (पार्श्व-वीर ) महातीर्थ, कच्छ बागड-कंठी / श्री महोदय प्री. प्रेस भावनगर. प्रस भावनगर, Page #95 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जगत्पूज्य-प्रभुश्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरेभ्यो नमः / श्रीकच्छभद्रेश्वरतीर्थयात्रालघुसंघ। यत्पादपद्मस्मृतिसन्नतिभ्यां, सद्बुद्धिकीर्ती जगदद्वितीये / गच्छन्ति लोकाः स हि शर्म दद्याद् , राजेन्द्रसूरिः सकलेऽत्र सङ्के / / 1 // मरुधरदेशीय पिल्वाहिकामंडल-मंडन प्राचीनतम श्रीसुवर्णगिरितीर्थ से दक्षिण-पूर्व कोण में 12 माईल दूर मारवाड-बागरा जे. आर. रेल्वे स्टेशन के पास 1 माईल पूर्व में 'बागरा' नामका कस्बा है, जो जोधपुर रियासत १-जालोर परगने का यह प्राचीन नाम है / २-यह वर्तमान में सोनागिर, सोवनगढ, जालोरगढ और जालोर का किला इन नामों से प्रसिद्ध है / यह तीर्थ जे. आर. माईल दूर है। किले पर यक्षवसति ( महावीरजिनालय ) 1, अष्टापदावतार (चोमुख-जिनालय) 2 और कुमारविहार ( पार्श्वनाथ जिनालय ) 3 ये तीन सौधशिखरी जिनमन्दिर हैं, जो अतिप्राचीन, उत्तुंग और दर्शनीय हैं / Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 86 ) के जालोर-परगने की हुकुमत के नीचे दासपा ठाकुर के अधिकार ( ताबे) में है / इसमें मार्बुल-पाषाणमय चोवीस जिनालय श्रीपार्श्वनाथप्रभु का सौधशिखरी जिनमन्दिर 1 और दो बडी धर्मशालाएँ हैं / यहाँ श्वेताम्बरत्रिस्तुतिक जैनसंप्रदाय के अन्दाजन 250 घर हैं, जो विवेकी, श्रद्धालु, गुणानुरागी और गुणी साधुओं की अच्छी कदर करनेवाले हैं और प्रायः सभी जैनघर धन तथा कुटुंब से सुखी हैं। इसीसे इस प्रान्त में 'देहली में आगरो ने जालोरी में वागरो' यह कहावत मशहूर है / इनमें शा० प्रतापचंद धूराजी अच्छे धर्मचुस्त श्रीमन्त श्रावक हैं, जो जाति के वीसा पोरवाड़ जैन और हरएक धर्मकार्य में उत्साह पूर्वक भाग लेनेवाले हैं / श्रीकच्छभद्रेश्वरयात्रालघुसंघ' शा० प्रतापचंद धूराजीने सिद्धक्षेत्र-श्रीपालीताणा से संवत् 1990 मार्ग १-इसके पुराने नाम जाबालीपुर, जालंधर, जालीन्धर, और जालीपुर हैं / इसका संक्षिप्त इतिहास जानने की इच्छावालों को ' श्रीयतीन्द्रविहारदिग्दर्शन' का प्रथम भाग के पृष्ठ 169 से 185 तक का लेख वांचना चाहिये, जो 'श्रीराजेन्द्रप्रवचनकार्यालय. मु. खुडाला, पो० फालना ( मारवाड़ ) इस पते पर मिलता है / २-श्रीविक्रम संवत् 1990 वर्षे, शालिवाहनशाके 1855 Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शीर्षशुक्ल 11 सोमवार (सन् 1933 ता० 27 नवम्बर) के दिन निकाला / इस संघ में हम तीन मुनि, कंचनश्री आदि चार साध्वियाँ और बागरा, सीयाणा, साथू, भूति, थराद आदि मारवाड-गुजरातदेशीय गाँवों के तीस श्रावक श्राविका साथ में थे, जिनका वाहन, चोकी, भोजन आदि का कुल खर्च संघपति प्रतापचंद धूराजीने स्वयं उत्साह पूर्वक किया था। निर्धारित मुहूर्त के अनुसार सिद्धक्षेत्र-श्रीपालीताणा से शुभलग्न-वेला में संघ का प्रयाण हुआ और क्रमशः प्रवर्त्तमाने दक्षिणारा. 11 9 मं. . यनगते भास्करे माच. 12 .१०श. 8 र. सोत्तममासे मार्ग शीर्षमासे शुक्लपक्षे 7 बु. तिथौ 11 घट्यः ४८।३,चन्द्रवासरे, उत्तराषाढा नक्षत्रे 5 के. घट्यः 13 / 46, सिद्धियोगे, बबकरणे घट्यः 18 / 21, सूर्योदयादिष्टनाड्यः 10 / 10 एवमादिपञ्चाङ्गशुद्धावत्रदिने कल्याणवतीवेलायां शा० प्रतापचन्द्रजी धूराजी सज्जित-श्रीकच्छभद्रेश्वरतीर्थयात्रालघुसंघस्य प्रयाण-मुहूर्तः श्रेष्ठः, शुभम् / Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 88 ) मगसिर सुदि 11 घेटी, 12 मानगढ, 13 गारीयाधार, 14 सनोलिया, 15 सनली, इन गाँवों में सन्मान पूर्वक ठहरता हुआ पोषवदि प्रथम 1 के दिन सुवह 9 बजे संघ वड़ोदास्टेट के शहर अमरेली में पहुंचा। अमरेली जैनसंघने भारी जुलुश के साथ संघ का स्वागत किया और विविध भोज्य सामग्री से संघ-भक्ति का लाभ लिया। संघपति प्रतापचंद धूराजीने स्थानीय संघ को इकट्ठा करके यहाँ संघजमण (स्वामिवच्छल) की रजा मांगी, लेकिन शहर के जैनों में दो धडे होने से पारस्परिक कलह के कारण रजा नहीं मिली। अमरेली से प्रयाण करके संघ पोषवदि द्वितीय 1 को भंडारिया, 2 को बगसरा, 3 को माऊंझंझवा, 4 को गलत, 5 को खारचिया में सन्मान-सत्कार सह ठहरता और संघभक्ति का लाभ लेता, लिवाता हुआ हस्तिनापुर-हनुमानधारा के रास्ते से पौषवदि 6 के दिन तीन वजे संध्या को गिरनारजी के पवित्र स्थान सहसावन (सहस्राम्र-वन )में पहुंचा और यहाँ श्रीनेमिनाथ के चरणयुगलों का दर्शन पूजन करके अपूर्वानन्द निमग्न हुआ। पौषवदि 7 को सुबह सहसावन से ऊपर चढ कर संघ ऊपर कोट में गया और यहाँ दो रोज ठहर कर ऊपर कोट गत सभी जिनालयों और पांचवीं टोंक आदि पवित्र स्थानों के दर्शन-पूजन का संघने लाभ प्राप्त किया / पोषवदि Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9 को नीचे उतर कर संघ तलेटी होकर अन्दाजन 10 वजे जूनागढ आया / सेठ देवचंद-लखमीचंद-जैनश्वेताम्बर पेढीने प्रशंसनीय जुलुश के साथ संघ का स्वागत (सामेला) किया / संघपति के तरफ से यहाँ एक स्वामिवात्सल्य हुआ और जुदे जुदे खाताओं में यथाशक्ति अच्छी रकम भी दी गई। जूनागढ से श्रीसंघ सन्मान सह रवाने होकर पौषवदि 11 के दिन वडाल आया / यहाँ हरजी (मारवाड़) वाले सुश्रावक जवानमल वीराजी के तरफ से नवकारसी, और संघवी तरफ से सेर सेर मिश्री की लहाणी हुई / 12 जेत. लसर-जंक्सन, 13 पीठडिया, 14 गोमटा में मुकाम करता और स्थानीय संघ की भक्ति का लाभ लेता लिवाता हुआ पौषकृष्णा अमावास्या के दिन ग्यारह बजे गोंडलशहर में आया / यहाँ के जैनसंघने संघ का सरकारी लबाज में और बेंड के साथ दर्शनीय स्वागत किया और विविध प्रीतिभोजनों से संघ-सेवा की। संघपतिने स्थानीयसंघ की रजा लेकर जिनालय में सिद्धचक्रजी की पूजा भणाई, श्रीफल की प्रभावना वांटी और मोसमपाक की नवकारसी की / पौषसुदि 2 के दिन प्रातःकाल में श्रीसंघ गोंडल से रवाना हुआ और 3 का मुकाम रीबडा में करके 4 के दिन 11 वजे राजकोट पहुंचा। राजकोट संघने बेन्डवाजा आदि समारोह से Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 90 ) संघ का सामेला किया और संघको दो दिन रोक कर विविध भोजनों से संघभक्ति का लाभ लिया / संघपतिने यहाँ नोकारसी की रजा न मिलने से सेर सेर शक्कर की ल्हाणी और जिनालय में पूजा भणाकर श्रीफल की प्रभावना वांटी / पौषसुदि 7 के प्रातःकाल में संघ राजकोटसे रवाने होकर 7 खोराणा, 8 सींधावदर, 9 जडेसर, 10-11 लजाई आदि गाँवों में सन्मान सह मुकाम रखता हुआ पौषशुक्ला 12 को दश बजे मोरबी में आया। मोरबी जैनसंघने दबदबा भरे जुलुश से संघ का सामेलास्वागत किया और अति आग्रह पूर्वक संघ को माघ (गुजराती पोस ) वदि 6 तक रोक कर दश दिन पर्यन्त जुदे जुदे सद्गृहस्थोंने प्रीतिभोजनों से संघभक्ति का अलभ्य लाभ लिया। मोरवी-संघ के अत्याग्रह से यहाँ दशो दिन हमारा व्याख्यान जुदे जुदे विषयों पर होता रहा / व्याख्यान में श्रावक श्राविकाओं की संख्या अन्दाजन 400 के होती थी। संघपति के तरफ से व्याख्यान में हमेशा प्रभावना वांटी जाती थी। इसी स्थिरता के दरमियान श्री अमृतविजय-जैनपाठशाला और कन्याशाला के जैनबालक बालिकाओं की पाण्मासिक परीक्षा ली गई। परीक्षा के समय 51 बालक और 51 बालिकाएँ उपस्थित थे / पंचप्रतिक्रमणमूल, नवस्मरणमूल और जीव Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 91 ) विचार सार्थ की परीक्षा में प्रायः सभी बालक बालिकाओं का अभ्यास सफल मनोरथ पाया गया / परीक्षा के अन्त में स्थानीय संघ के तरफ से बालक बालिकाओं को धार्मिक पुस्तकों का इनाम और संघपति प्रतापचंदधूराजी के तरफ से प्रीतिभोजन दिया गया / अस्तु, यहाँ संघपतिने जिनमन्दिर में साजबाज के साथ बडी पूजा भणा कर शहर में तपागच्छीय जैनों को संघजमण दिया / माघकृष्ण 7 के दिन मोरबी से प्रयाण कर संघ 7-8 वेला, 10 जेतपुर, 11 खाखरेची में ठहरता और संघभक्ति का लाभ लेता लिवाता हुआ द्वादशी के दिन दश वजे सुवह वेणासरगाँव आया / स्थानीय संघने संघ का स्वागत प्रशंसा जनक किया / संघपति के तरफ से भी यहाँ एक दिन अधिक ठहर कर, स्थानीय संघ को प्रीतिभोजन दिया गया / वस, इसी गाँव की सीमा से कच्छ की हद शुरू होती है और कच्छीय भयंकर रण के दर्शन होते हैं। माघकृष्ण (गुजराती पोसवदि) 14 के दिन वेणासरगाँव से संघ प्रातःकाल में पांच वजे रवाने होकर आधा कोश रणकांधी, पांच कोश का रण और साढे तीन कोश की कांधी विना रुकावट के पसार कर साढे तीन बजे माणाबा गाँव पहुंचा / संघ में सभी श्रावक श्राविका छरी पालते पैदल चलनेवाले थे, इसलिये नव कोश लंबी मुसाफरी के कारण सब थक गये / Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 92 ) माणाबागाँव में भुजनेरश का सरहदी थाणा है / यहाँ सिला, या विना सिला हुआ कपडा, भोजन के वापरे, या विना वापरे हुए वरतन, घटित, या अघटित सोना चांदी और खाने योग्य अधिक वस्तु आदि का प्रतिसेंकडा 16) रुपया दाण चुकाना पड़ता है और यह दाण आवक जावक दोनों वस्तु पर समान ही है। लेकिन यह दाण (कर) संघवी प्रतापचंदधूराजी को संघ के मान के खातिर माफ किया गया था। माणावागाँव से ही भुजनरेश का सिक्का प्रचलित होता है / सिके के नाम इस प्रकार हैं-पावला ( एक आना ) आधियो ( दो आना ) कोरी ( चार आना-चोअन्नी ) अढीयो (दश आनी) पांचियो (सवा रुपिया) त्रांबियो ( एक पाई ) दोकड़ो ( दो पाई ) ढींगलो ( एक पईसा ) ढब्बु (दो पईसा) सारे कच्छदेश में इन्हीं सिक्कों का चलन है / व्यापारी वर्ग के सिवाय कलदार (गवर्मेन्टी) रुपये को कोईभी नहीं लेता। माणाबा से माघकृष्ण अमावस को संघ रवाने होकर अन्दाजन सुवह साढ़े दश बजे कटारियातीर्थ पहुंचा / सेठ वर्धमान-आणंदजी पेढीने संघ का सामेलादि स्वागत अच्छा किया / यहाँ संघने दो दिन मुकाम रखके तीर्थनायक श्रीमहाप्रभु की सेवा-पूजा का लाभ प्राप्त किया और संघपतिने जिनालय के जीर्णोद्धारखाते में सवासो कोरी अर्पण की। कटारियातीर्थसे माघशुक्ल द्वितीया के Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 93 ) दिन संघ प्रयाण करके 2 ललियाणा, 3 बोंध, 4 भचाऊ, 5 चीरई, 6 भीमासर, आदि गाँवों में एक एक दिन की स्थिरता करता हुआ, सातम के दिन अंजार शहर में पहुंचा / शहर के बाहर ' मोड वणिग ज्ञातीय-मांजी देवकरण धर्मशाला' में संघने तीन दिन का मुकाम रक्खा और शहर जिनालयों के दर्शन पूजन का लाभ प्राप्त किया / यहाँ अंचलगच्छीय सेठ सोमचंद धारसीने प्रीतिभोजनादि से संघ का अवर्णनीय स्वागतसन्मान किया। माघशुक्ल 10 के दिन संघ अंजार से निकल कर और भूवडगाँव में एक दिन ठहर कर सुदि 11 के दिन सुवह साढे नौ बजे प्राचीनतम श्रीभद्रेश्वरतीर्थ पहुंचा। सेठ वर्द्धमान-कल्याणजी पेढ़ीने संघ का भारी समारोह के साथ सामेला स्वागत किया और इस स्वागत की शोभा बढाने और श्रीसंघ के दर्शन करने के लिये भुज, मांडवी, देसलपुर, अंजार आदि गाँव नगरों के कतिपय सद्गृहस्थ भी उपस्थित हुए थे। विशाल धर्मशाला में संघ का मुकाम होने बाद संघपति प्रतापचंद धूराजीने संघसमुदाय सह तीर्थपति प्रभु महावीरस्वामी और पार्श्वनाथस्वामी को सुवर्ण पुष्पों से वधाया, चैत्यवन्दनादि भावस्तव किया और स्नान मजन करके विधिपूर्वक पूजा-भक्ति की / ग्यारस-बारस के दिन प्रभु की लाखीणी अंगी Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 94 ) रचना और रोशनी के साथ विविध नाटक भक्ति संघवीके तरफ से कराई गई और त्रयोदशी के रोज प्रभु की लाखीणी अंगीरचना पूर्वक नवपदपूजा भणा के भूति (मारवाड़ ) निवासीनी सुश्राविका नोजीबाई के तरफ से नवकारसी हुई / पूर्णिमा के दिन संघवी के तरफ से भारी जुलुश के साथ श्रीपंचकल्याणक पूजा भणा के प्रभावना और नवकारसी हुई / पूर्णिमा के रोज ही तीर्थपति-श्रीमहावीरस्वामी के जिनालय के विशाल मंडप में संघने एकत्रित होकर विविध गान-मान के साथ शा० प्रतापचन्द धूराजी को तिलक करण पुरस्सर संघ-माला पहरा के जय जयारख की ध्वनि की / उसी समय संघपतिने अभिवर्द्धित भाव से तीर्थ के जुदे जुदे खातों में साढ़े पांचशो कोरी अर्पण की और कारखाने के मुनीम नोकरों को उनके सन्तोष लायक इनाम दिया / इस प्रकार अलभ्य तीर्थ-सेवा का लाभ प्राप्त करके फाल्गुनकृष्ण द्वितीया गुरुवार के प्रातःकाल में संघ भद्रेश्वर से वापिस रवाने हुआ और क्रमशः 2 भूवड,३-४ अंजार, 5 भीमासर, 6 चीरई, 7 भचाऊ, 8-9 सामखीयारी, 10 जंगी, 11 आणंदपुर (वांढिया), 12 सीकारपुर आदि छोटे बड़े गाँवों में मुकाम करता और सन्मान पूर्वक श्रीसंघ-भक्ति करता, कराता हुआ फाल्गुन वदि 14 के दिन 11 बजे पेथापर आया। यहाँ के संघने संघ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 95 ) का प्रशंसनीय स्वागत किया और संघपतिने यहाँ नवकारसी की, तथा पाणी-परब खाते में 100 कोरी अर्पण की / यहाँ से फाल्गुन सुदि 1 को संघ उपड कर रणकांधी पर रात रहा और द्वितीया के दिन पांच कोश का रण, आधे कोश की कांधी पसार करके संघ सकुशल वेणासर गाँव पहुंचा। यहाँ एक दिन अधिक विश्राम लेकर संघ फाल्गुनसुदि 4 को सुवह वेणासर से रवाने होकर अनुक्रम से 4 घाटीला, 5 वांटावदर, 6 हलवद, 7 ढबाणा, 8 कोंढ, 9 करमाद, 10 परमारनीटीकर, 11 सायला, (भगतनोगाम), 12 नोली,१३ पालीयाद,१४ बोटाद, 15 लाठीदड आदि छोटे बडे गाँवों में स्थिरता करता और श्रीसंघसेवा का लाभ लेता लिवाता हुआ चैत्रवदि 1 के दिन लाखेणी पहुंचा / यहाँ के संघने संघ का प्रशंसनीय भक्तिभावादि स्वागत किया और यहाँ संघवीने संघजमण दिया। लाखेणी से चैत्रवदि. 2 को सुबह संघ रवाने होकर 2 पसेगाम, 3 पीपराली, 4 सांढेडा-महादेव, और 5 जमणवाव आदि गाँवों में स्थिरता करता चैत्र वदि 6 बुधवार के दिन 8 वजे सुबह सिद्धक्षेत्र-पालीताणे पहुंचा / आणंदजी कल्याणजी की पेढीने पेढी के लवाजमे और सरकारी बेन्ड आदि लवाजमे के साथ संघ का भारी समारोह से सामेला स्वागत किया। सप्तमी के दिन संघ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पतिने गिरिराज श्रीसिद्धाचल की नव टोंकों की यात्रा संघ सह करके निज आत्मा को पवित्र की और नौमी के दिन स्वामिवात्सल्य करके संघयात्रा कार्य को अपूर्व उत्साह के साथ निर्विघ्न परिपूर्ण किया / इस प्रकार सिद्धक्षेत्र-पालीताणा से श्रीसंघ का प्रयाण होने वाद संघपति प्रतापचंद धूराजी के तरफ से घेटी 1, गारीयाधार 2, अमरेली 3, बगसरा 4. खारचिया 5, गिरनार 6, जूनागढ 7, वडाल 8, गोंडल 9, राजकोट 10, बेला 11, जेतपुर 12, खाखरेची 13, कटारिया 14, ललियाणा 15, बोध 16, भचाऊ 17, अंजार 18, भूवड 19, चीरई 20, जंगी 21, घाटीला 22, वांटावदर 23, हलवद 24, ढवाणा 25, कोंढ 26, करमाद 27, परमारनीटीकर 28, सायला 29, सुदामडा 30, नोली 31, पालीयाद 32, बोटाद 33, लाठीदड 34 और लाखेणी 35, इन गावों में सेर सेर शक्कर की ल्हाणी और जिनमंदिरों में केसर, धूप, तथा यथाशक्ति पूजाखाते रोकड रकम दी गई थी। माऊंझूझवा 1, गलत 2, खारचिया 3, जूनागढ 4, गोंडल 5, मोरबी 6, वेणासर 7, कटारिया 8, भद्रेश्वर 9, पेथापर 10, लाखेणी 11, पालीताणा 12 इन गाँवों में स्वामिवात्सल्य और नवकारसियाँ संघवी के तरफ से हुईथीं। यह संघ छोटा था और श्रावक श्राविकाओं की संख्या तीस से अधिक नहीं थी, Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेकिन इसमें जैसी शान्ति पूर्वक यात्रा हुई, वैसी बडे संघों में भी होना असंभव है। इस लघुसंघ का बाह्य देखाव साधारण होने पर भी इसके कार्य बडे संघ के समान ही हुए हैं / अस्तु. संघ के रास्ते में भद्रेश्वरतीर्थ और भद्रेश्वर से पालीताणा तक जितने छोटे बड़े गाँव आये उनमें स्थानीय संघों के तरफ से संघ को स्थान स्थान पर अच्छा सन्मान मिला था / वस, पालीताणा से श्रीसिद्धाचल-तीर्थाधिराज की यात्रा-पूजा करके संघपति और संघ के श्रावक श्राविका सानन्द अपने अपने वतन को चले गये / संघ के जाने आने के मार्ग में जो गाँव आये, उनके नाम, कोशों का अन्तर, उनमें जैनवस्ती और जिनालय, आदि की दर्शक तालिका नीचे मुताबिक समझना चाहिये / सिद्धक्षेत्र-पालीताणा से भद्रेश्वर तक के गाँव गाँवों के नाम. .| कोश. | जैनघर देरासर. | उपासरा. धर्मशाला. मुकाम संवत् 1990 मगसिर सुदि 11 0 . . . m 0 0 1/ घेटी 2 लीलीवाव मानगढ गारियाधार 5 वाव 6 सनोलिया लीलिया ... * * . . 0 0 0 0 0 0 . 0 0 0 0 0 0 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34 पीठीया 33 जेतपुर 31 वडाल 30 जूनागढ तलेटी 32 जेतलसर-जंकसन 28 ऊपरकोट 27 सहसावन 26 हनुमानधारा 25 हस्तिनापर 24 जंबूडी 23 चांकली 22 खारचिया 21 राणपर गलत 19 हडमतियो 18 सरदारपुर माऊझूझवा पीपरीया बगसरा 14 पीपलिया केरालू जालिया भंडारीया अमरेली लालावदर 14सनली m sun = - - new w . * * * * * " " .: 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 . ( 98 ) 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 . . . 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 ___, कृष्ण . aw . 0 0 0 15 Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 99 ) ي 0 0 ه 0 , 14 पौ.व.३०,सु. 1.2 ه 0 0 - 0 ه 0 0 0 0 0 ه ه ه 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 nai 0 ه 0 35) वीरपुर 36/ गोमटा 37 गोंडल 38 रीबडा 39 राजकोट 40 हडमतियुं राजगढ खोराणा पीपराली सींधावदर पांचद्वारिका तिथवा जडेसर कोठारीयो हडमतियो लजाई 0 ه 0 0 0 0 0 0 ه ه 0 0 0 ه 0 0 0 0 0 0 0 ه ه 0 0 0 0 ه 0 0 0 ه 0 0 - ,, 10-11 वीरपुर 0 0 0 ه ه 0 0 सनारो मोरबी 0 0 م 0 2 2 . पो. सु. 12-15 मा. व. 1-6 0 سه = س 0 0 0 | 54 बेला रंगपर जेतपर खाखरेची 58 वेणासर 59 माणाबा 60 कटारिया , , 10 11 0 س س 8 0 "12-13 م 0 0 . ,, 14 मा.व. 30, मुदि 1 0 >> 1 1 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0 ܘ ܚ 0 ' ܩ ܩ 0 0 ܘ ( 100) ६१ललियाणा 62/ बोंध भचाऊ मोटी-चीरई 65) भीमासर 66 वरसामेडी 67 अंजार 68 भूवड भद्रेश्वर (मा.सु. 11-15 70 वसइ | फाल्गुन वदि 1 भद्रेश्वरतीर्थ से सिद्धक्षेत्र-पालीताणा तक के गाँव 0 ܘ ܚ 0 ܩ ܘ \la n 0 0 ܩ नंबर. गाँवों के नाम. | जैनधर. उपासरा. घमशाला, मुकाम संवत् 1990 " " < | कोश. भूवड़ फाल्गुनकृष्ण 2 खेडइ . . 5 0 0 . 0 0 0 0 0 चिनुगरो अंजार भीमासर 6 मोटी-चीरई भचाऊ सामखीयारी जंगी 10 बांढिया 193 सीकारपुर on a 0 0 0 0 . . . 0 0 20 / 11 Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Y 38 वावडी 37 पीपराली 36 उमराला 35 पीपला पसेगाम कथारिया जालिया नशीबपर लाखेणी लाठीदड बोटाद नोली पालीयाद कोंढ सुदामणा थोरियाली सायला मूलीरोड करमाद रामपुर ढवाणा हलवद परमारनीटीकर वांटावदर वेणासर 12/ पेथापर जूना-घाटीला و له ما م ه ه ه ه ه ه ک ه سه ک ه ه ه ه سه م ه ه سه ه ه ه >> . . . . . . : .. . . . . . . 2 . ( 101) ܘ ܘܘ ܩ ܘ ܩ ܘ ܘ ܘ ܩ ܩ ܚ ܩ ܘ ܩ ܘ ܩ ܘ ܩ ܘ ܘ ܩ ܩ ܘ ܩ ܘ ܘ 0 0 0 0 0 0 0 0. 0 0 0 0 0 0 0 0 . . . . . . . . . . . फाल्गुनसुदि 1-3 ,,14-30 Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 102) 39) सणोसरा सांढेडा ढांकणकुंडो नवागाम अंकोलाण रतनपर जामणवाव 46) पालीताणा यह संघ पालीताणा से सीयाला (शीतऋतु) में रवाने हुआ और सीयाला में ही भद्रेश्वर पहुँचा / रास्ते में अतिशय ठंड पडी और मार्ग भी वेणासर के वाद खारीवाला था / लेकिन उत्तम मुहूर्त होने के कारण संघवाले छहरी पालते पैदल चलनेवालों में किसीका कभी शिर तक नहीं दुखा, और न शरंदी, ज्वर, दस्त आदि कि पीड़ा हुई। यह सब उत्तम मुहूर्त और मुसाफिरी की सावधानी रखने का ही प्रभाव है। जल से घिरे हुए प्रदेश का, या कच्छपाऽऽकार भाग का नाम 'कच्छ ' अथवा '. कच्छदेश' है / अनुपदेश, जर्त्तदेश, भोजकट, उमदेश, और सागरद्वीप ये कच्छदेश के प्राचीन नाम हैं / इसके पूर्व और उत्तर में रण (सूखा समुद्र ) है, पश्चिम में अरबी समुद्र और सिन्धुमुख है, और दक्षिण में कच्छी अखात और हिन्दी महासागर है / इसका विस्तार पूर्व-पश्चिम में 160 और उत्तर-दक्षिण में Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (103) 35 से 70 माईल है / इसका क्षेत्रफल 7616 चोरस माईल का है, जिसमें 14 लाख 50 हजार एकर जमीन है। इस देश के मुख्य तीन विभाग हैं-१ वागड़ (वच्छदेश), 2 कंठी, और 3 अबड़ासो। इनमें भुज 1, मांडवी 2, अंजार 3, मुंद्रा 4, नलीया 5, जखौ 6, भचाऊ 7 और रापर 8 ये आठ मुख्य तालुके ( परगना) के शहर हैं, जिनके नीचे छोटे बड़े 940 गाँव हैं / इन गाँवों की समुचित घर-संख्या 117632 और उनमें 484547 मनुष्य वसते हैं। . कच्छबागड़ में कटारिया और भद्रेश्वर, तथा कच्छ अबडासो में सांधाण 1, सुथरी 2, नलिया 3, तेरा 4, जखौ 5, ये जैनपंचतीर्थी के मुख्य तीर्थ-धाम कहलाते हैं / इनमें श्रीभद्रेश्वर तीर्थ मुख्य,प्राचीनतम और सारे कच्छदेश में ' भद्रेश्वरवसइ' के नाम से प्रसिद्ध है / यहाँ प्रतिवर्ष फाल्गुनसुदि 5 का मेला भराता है, जिसमें कच्छदेश के बागड़, कंठी और अबडासो परगने के जैनयात्री अन्दाजन पांच छ हजार तक एकत्रित होते हैं और नवकारसी भी होती है। 1 रण की कांठी पर वसा हुआ भाग ' बागड़' दरियाइ कांठे पर बसा हुआ भाग ' कंठी' और दोनों के वीच में वसा हुआ भाग ' अबड़ासो' कहलाता है / तीनों विभाग में श्वेताम्बर जैनों की कुल आबादी 61375 स्त्री-पुरुषों की है। Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (104) कच्छदेश में जाने के लिये खुस्की और जल, ये दो ही रास्ते हैं / खुस्की रास्ते से जाने में वीचमें नव रणमार्ग हैं-१ मालिया और सिकारपुर वाला 3 कोशका, २-वेणासर और माणाबावाला ५कोश का, ३-वेणासर और काणवेरवाला 7 कोश का, ४-टीकर और पलासवांवाला 9 कोश का, ५-टीकर और वेणुजगावाला 12 कोश का, ६-पीपराला और आडीसरवाला 2 कोशका, 7 मढूतरा और सणवावाला 4 कोशका, 8- मोरा और मढूतरावाला 6 कोशका, तथा 9 नगर पारकर और वेलावाला 16 कोश का। इन रणों की दोनों तरफी कांठी ( तट) का नाम 'कांधी' है, जो रण के समान ही खारी जमीनवाली है / लेकिन उसमें ऊंची नीची ( सम-विषम ) जमीन है और उस पर छोटे छोटे कहीं कहीं झाड तथा चारा है, इसीसे वह कांधी कहलाती है / रण से 4, या 6 माईल दूर कांधी पर जो छोटे गाँव बसे हुए हैं, उनसे चारो तरफ एक, या दो माईल तक खेत हैं, उनमें वारिश के जलसे वाजरी और कपास पैदा होता है, दूसरी कोई वस्तु नहीं / रण से कांधी के गाँवों तक वीचमें पीने योग्य जल कहीं नहीं मिलता और कांधीगत गाँवों के तालाब में वारिश जल भरा गया हो तो चार छः महीना मीठा जल पीनेको मिलता है, वरना कुओं में तो खारा जल है, लोग उसीको पीते हैं / रण में Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (105) प्रवेश किये वाद उसके अन्त तक मार्ग में सम भूमितल, खारी काले रंग की मिट्टी और उस पर कहीं कहीं सफेदी (खारी) जमी हुई दिखाई देती है / रण में चारा, वृक्ष, लता आदि कुछ भी नहीं है और न चींटी आदि जन्तुजात है / हुतासनी (होली) के वाद पश्चिम दिशा की हवा चलने पर रण में सर्वत्र समुद्र का पानी भरा जाता है / जिसके कारण खुश्की रास्ते विलकुल बन्दसे हो जाते हैं / लेकिन अत्यावश्यकीय कार्य की उपस्थिति में रात्रिंदिवस घूमनेवाले रणचर मनुष्य को साथ में रखकर लोग बमुस्किल रण में गमनाऽऽगमन (जाना आना) करते हैं / जल से रण भराये वाद समुद्रसा देख पडता है और उसके मार्ग का लांघना मोत की निशानी बन जाता है / कई लोग तो वीचमें ही प्राण छोड देते हैं और कई आयु के प्रबलोदय से रण को पार कर जाते हैं। रण में गरमी अनहद पड़ती है, इससे लोग ग्रीष्मकाल में पीने लायक पानी साथ में रखकर रात्रि को रण का पन्थ पार करते हैं और शीतकाल में दिन को दश बजे तक रणमार्ग को उल्लंघन कर जाते हैं। इन्हीं मुसीबतों के कारण कच्छदेश के तरफ जैनसाधु साध्वियों का विहार कम होता है और कभी कोई तीर्थयात्रा, या देशदर्शन के लिये जाता भी है, तो रणमार्ग में योग्य प्रबन्ध मिलने पर जाता है / रेल्वे से इस तीर्थ की यात्रा करनेवाले भावुकों को जामनगर-रेल्वेस्टेशन पर Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (106 ) उतर कर और जामनगर से स्टीमर में बैठ कर कंडलाबंदर उतरना चाहिये / कंडलाबंदर से खुस्की रास्ते भद्रेश्वर 12 माइल दूर है, बंदर पर सवारी मिलती है और यह तीर्थ जामनगर के दरियामार्ग से 24 माईल ही दूर है। कच्छदेशीय जैनजनता में यह भी रिवाज सर्वत्र देखा गया कि १-साधु चाहे छः, या सात कोश का लम्बा विहार करके भरदुपहरी में तृषा, या क्षुधाऽऽकुल आया हो और कम्मर भी न खोल चुका हो उसके पहले श्रावकों के तरफ से पूछा जाता है कि महाराज ! व्याख्यान अभी वांचोगे या वाद में ? यदि साधुजीने व्याख्यान वांच दिया, या संध्या की वांचने की हामी भर ली, तब तो उनकी सेवा-भक्ति अच्छी होगी, अन्यथा नहीं / २-लम्बी दूर से विहार करके आने के कारण थकावट आ जाना स्वाभाविक है / इसलिये कोई मुनि किसी गाँव में दश पांच रोज विश्राम लेना चाहे तो उसको दर रोज दोनों टाइम फर्जियात व्याख्यान वांचना पडता है / अगर न वांचे तो उसकी सार-संभाल लेना और उसके पास श्रावकों का आना जाना बन्द / ३-साधु साध्वियों को मध्याह्न ( दुपहर ) के सिवाय कच्छदेश के किसी गाँव में गोचरी नहीं मिलती और गोचरी में सुबह बाजरी का अलूणा रोटा (टिक्कड ) तथा विना निमक मिरच की वाफी हुई गुवारफली का साग मिलता है। संध्या को पौन Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 107 ) घंटा दिन शेष रहते अनेक घरों में फिरने पर बमुस्किल से फीकी खीचडी और कढी मिलती है / चोविहार मी गोचरी के साथ ही चुकाना पडता है / ४-कच्छ के कंठी और अबडासा विभाग में तो व्याख्यान शेषकाल में भी दो टाइम और चातुर्मास में सुवह, दुपहर तथा रात्रि को तीन टाइम फर्जियात वांचना पड़ता है। अगर एक ही टाइम वांच के दूसरी टाइमों में न वांचा जाय, तो श्रोता (श्रावक) फौरन कहने लगते हैं कि-' मफतना रोटला खाओ छो, व्याख्यान केम नथी वांचता, तमारो बीजं शुं धंधो छ ? ' ५-कच्छ में अच्छा व्याख्यान देनेवाले और उसके साथ साथ सुन्दर रागवाले गायन गानेवाले मुनिवरों की अच्छी कदर है / जो व्याख्यान देना नहीं जानते, व्याख्यान वाचने में आलस रखते हैं, और स्तवन, सज्झाय आदि गाना नहीं जानते, या गाने में आलसु हैं उन साधु साध्वियों की बिलकुल कदर नहीं होती और कोई कोई श्रावक तो ऐसे साधुओं को कह भी देते हैं कि-'रोटला खुटाववा अहीं शा माटे आव्या छो ? ' वस; इन्हीं तकलीफों के कारण साधु साध्वी इस देश में कम विचरते हैं। कच्छीजैनों में वीसाश्रीमाली, दशाश्रीमाली, वीसा ओशवाल, और दशाओशवाल ये चार विभाग हैं, इनमें परस्पर भोजन व्यवहार है, परंतु लड़की देने लेने का Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 108) व्यवहार नहीं है / कुछ वर्षों से दशाओं में पुनर्लग्न की प्रवृत्ति चालु होने से अब परस्पर भी खान पान में संकोच होने लगा है / श्रीमालीजनों का मुख्य धंधा व्यापार और धीरधार करने का है और ओशवालों का मुख्य धंधा स्वयं खेती करने का है / कच्छी ओशवाल अपने आपको 'ओहवाल' या 'लोक' नाम से जाहिर करते हैं और खेती करना, राजबेठ में जाना, कड़िया का काम करना, दाड़की जाना, वरतन मांजना और पानी भरना यही इनका धंधा है। कच्छी ओशवालों में जैन मूर्तिपूजक स्वल्प और वैष्णव तथा स्थानकवासी अधिक हैं / पचास वर्ष पहले इनमें देरावासी अधिक और वैष्णव स्वल्प थे। लेकिन स्थानकवासियों के अधिक परिचय से अब ये उस संप्रदाय में अधिक हो गये और होते जा रहे हैं / कच्छदेश में सर्वत्र आषाढसुदि 1 से वर्षारम्भ होता है और सारे देश में जोशी हरजीवनगंगाधर, तथा त्रिपाठी-हरजीवनहरीरामकच्छी रचित 'कच्छी-आषाढी-पंचांग' प्रचलित है, जो भुजनरेश की आज्ञा से हरसाल छपकर जाहिर होता है / मालवा, या मारवाड में चारण लोग जैसा वेश पहिरते हैं, वैसा ही पहरवेश कच्छभर में सभी जातिवाले लोग एकसां रखते हैं। आदमी ढीला पायजामा 1 जांगीयो, चेनी, बेंजनी, इंजार, और सूंथडा ये इस देश में प्रचलित पायजामा (खुशनी ) के नाम हैं। Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 109 ) पहिरते और उसके ऊपर सवा हाथ चोडा अंगोछा (दुपट्टा ) लपेट लेते हैं। स्त्रियों का पहरवेश थरादरी की स्त्रियों के समान है। कच्छदेश में मुख्यतया 'आ उं खेत्र वंजाती तोके हलणुं अय तो हल, न कां उं वंजाती' इस प्रकार की कच्छी भाषा बोली जाती है, परन्तु गाँवों गाँव भुजनरेश के तरफ से सरकारी निशालें, मदर्से, स्कूल हो जाने से अब गुजराती बोली (भाश) का प्रचार भी अधिक होने लगा है। लिखने में तो गुजराती अक्षरों का ही उपयोग किया जाता है / कच्छ में सर्वत्र रेल्वे नहीं है, भचाऊ से अंजार तक, और तूणीबंदर से अंजार, अंजार से रतनाल, कुकमा तथा माधापर होकर भुज तक रेल्वे लाइन है, जो भुजस्टेट के तरफ से है। कच्छदेश की मुख्य राज्यधानी भुज-शहर है जिसको सं० 1605 में महाराव श्रीखेंगारजी प्रथमने किले सहित वसा कर कायम की है। कच्छ में मांडवी, भुज, मुंद्रा, सुथरी, जखौ, नलिया और अंजार, ये अच्छे शहर हैं और इनका परदेश से व्यापारादि संबन्ध होने के कारण रीत रिवाज भी अच्छा है / अबड़ासा परगना रसालु है, इसमें आम, मेवा, सांटा आदि सभी चीजें पैदा होती हैं और जैनों का 1 गुजराती, मारवाड़ी, सिंधी और अरबी भाषा के मिश्रण से कच्छी भाषा बनी है / 2 वागड़कच्छ के अखात के तट पर यह नया बनाया गया है / ... Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (110 ) विशेष भाग बम्बई में व्यापार करता है, जिनकी बड़ी बड़ी पेढ़ीयाँ भी हैं / अबड़ासा और कुछ भाग कंठी का श्रीमन्त है / अस्तु, कच्छमें प्रायः सर्वत्र यह दोहा मशहूर हैउन्हाले सोरठभली, शीते गुर्जर वास / वरसाले वागड भली, कछडो बारे मास // 1 // श्रीकच्छभद्रेश्वरतीर्थयात्रालघुसंघ के साथ हमारे विहार के दरमियान जो जो छोटे बडे गाँव आये, उनका संक्षिप्त ऐतिहासिक वर्णन यहाँ लिख देना अस्थान नहीं है, जो पैदल यात्रा करनेवाले साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविकाओं को अत्युपयोगी है। प्राचीनार्वाचीन ऐतिहासिक वर्णन१. घेटी गिरिराज श्रीसिद्धाचल से पश्चिम में सवा दो माइल दूर यह गाँव वसा है / इसमें बीसा श्रीमाली जैनों के 20 घर हैं, जो साधारणस्थिति के हैं और गिरिराज की छायां में रहने से इनमें कुछ तीर्थमुंडियापन भी है। गाँव में सं० 1940 और 1979 के बने दो मंजिले दो छोटे उपाश्रय भी हैं। इनके ऊपरी कमरे में श्रीशान्तिनाथप्रभु की धातुमय प्राचीन पंचतीर्थयाँ विराजमान हैं। . 2 मानगढ पालीताणा से गारीयाधार जानेवाली सडक के वायें Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (111) किनारे पर यह गाँव वसा है, जो पालीताणा संस्थान का है। इसमें वीसाश्रीमाली 1 और दशाश्रीमाली 1 एवं जैनों के दो घर हैं, जो साधु साध्वियों के अच्छे भावुक और धर्मप्रेमी हैं। 3 गारीयाधार पालीताणा के गोहेलठाकुरवंश की राज्यधानी का यह जूना नगर है, जिसकी आबादी अंदाजन 6000 मनुष्यों की है। इसमें वीसाश्रीमाली 5 और दशाश्रीमाली के 55 मिलके जैनों के 60 घर हैं, जिनमें 15 घर वैष्णव हैं। चारो तरफ किलेके समान कोट के मध्यभाग में छोटा, पर बडा सुन्दर सौधशिखरी एक जिनालय है, जो राजा संप्रति का बनवाया माना जाता है और इसका सं० 1895 में जीर्णोद्धार हुआ है / इसमें मूलनायक श्री शान्तिनाथ की वादामीवर्ण की एक बड़ी प्राचीन और सर्वाङ्ग सुंदर प्रतिमा स्थापित है। जिनालय सर्वत्र प्रस्तर की पचरंगी लादियों से अलंकृत है / इसके सामने अंग्रेजी फेसन के दो उपाश्रय नये बने हुए हैं, जिनमें ऊपर नीचे दो मंजिले हैं। 4 सनोलिया यह भावनगरस्टेट का गाँव है, जो छोटा है / इसमें श्रीमालीजनों के अच्छे भावुक और धर्मप्रेमी तीन घर हैं। Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 112) यहाँ उतरने के लिये सरकारी सराय है, साधु साध्वी उसीमें विश्राम लेते हैं। 5 सनली लीलाखारा रणसे अमरेली जानेवाली सडक के दहिने किनारे पर यह छोटा गाँव वसा है, जो भावनगर स्टेट का है / गाँव के बाहर सड़क के किनारे पर महादेव की धर्मशाला है, मुसाफर उसीमें उतरते हैं / गाँव में दशाश्रीमाली वैष्णवों के 3 घर हैं, जो साधु साध्वियों के भक्त हैं। 6 अमरेली वड़ोदारियासत के तालुके का यह मुख्य शहर है, जो पक्की सडकें और विजली की रोशनी से शोभित है / इसकी आबादी 50000 मनुष्यों की है / वीसाश्रीमाली जैनों के यहाँ 60 घर हैं, जो तपागच्छ और अंचलगच्छ दो भाग में विभक्त हैं, परन्तु प्रतिक्रमणादि क्रिया सब तपागच्छ की ही करते हैं / शहर में सुंदर कोरणीवाला सौधशिखरी विशाल जिनालय है, जो सं० 1857 में बनाया गया है / इसमें मूलनायक श्रीसंभवनाथजी की श्वेतवर्ण 20 अंगुलबडी और उसके दोनों बगल में आदिनाथ तथा अजितनाथ की सवा सवा हाथ बड़ी प्रतिमा विराजमान हैं। इस मंदिर के दहिने तरफ अंचलगच्छ का दो मंजिला उपासरा है / दूसरा लोंकागच्छ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 113) का उपासरा है, जिसके ऊपर के होल में धातुमय पंचतीथियाँ स्थापित हैं। यहाँ स्थानकवासियों के भी 100 घर हैं, जो सभी दशा श्रीमाली हैं और उन्हों का स्थानक भी जुदा है। 7 जालिया अमरेली से पश्चिम 12 माइल दूर यह छोटा गाँव है। इस में दशा श्रीमालीजनों के 7 घर हैं, जो स्थानकवासी संप्रदाय के हैं, लेकिन मन्दिरमार्गी साधु साध्वियों की भी भक्ति अच्छी करते हैं। यहाँ उतरने के लिये सरकारी स्कूल के सिवाय दूसरा कोई स्थान नहीं है। 8 बगसरा सातलीनदी के वांये तट पर यह शहर वसा हुआ है, जिस में अंदाजन 9 हजार घरों की आबादी है। यह काठीराजाओं की राज्यगादी का सदर स्थान माना जाता है और जेतपुर तालुका से प्रथम से ही अलग है / इसमें वीसा श्रीमालीजैनों के 25 घर, जो मूर्तिपूजक हैं और दशा श्रीमालीजैनों के 100 घर, जो स्थानकवासी संप्रदाय के हैं। दोनों के धर्मस्थान, उपाश्रय और जैनपाठशालाएँ अलग अलग हैं / तपागच्छ का उपाश्रय दो मंजिला है, उसके ऊपरी होल के एक कमरे में धातुमय श्रीमहावीर Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 114) और श्रीशान्तिनाथ की पंचतीर्थी विराजमान हैं, जो विक्रमीय 15-16 वीं शताब्दी की प्रतिष्टित हैं / उपाश्रय की भींत पर इस प्रकार शिलालेख लगा है સ્વર્ગસ્થ પારેખ કરસનજી ગગજીના સુપુત્ર શ્રીયુત જેચંદભાઈ તથા શ્રીયુત વિઠ્ઠલભાઈ તથા શ્રીયુત વીરજીભાઈએ આ ઉપાશ્રયને હોલ બંધાવરાવી શ્રીતપાગચ્છ સંઘને અર્પણ કર્યો છે. સંવત્ 1988 ના કારતિક સુદિ 11. 9 माऊं-झूझवा बगसरातालुके का यह गाँव है, इसमें वीसा श्रीमाली जैनों के 7 घर हैं, जो अच्छे भावुक हैं। एक उपाश्रय है, उसके एक जुदे विभाग में श्रीचन्द्रप्रभप्रभु की पंचतीर्थी स्थापित है, जो धातुमय और वणथली से यहाँ लाई गई है। 10 गलत जूनागढतालुके का यह छोटा गाँव है, जो नाम प्रमाणे गुणवाला है। यहाँ 1 उपाश्रय और साधारणस्थितिवाले वीसा श्रीमाली जैनों के पांच घर हैं जो नहीं जैसे हैं। 11 खारचिया जूनागढ जानेवाली सडक के दहिने किनारे पर यह गाँव है / इसमें वीसा श्रीमालीजनों के 10 घर जो अच्छे Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 115 ) भावुक हैं / एक दो मंजिला उपाश्रय है, उसके ऊपरी होल में धातुमय श्रीधर्मनाथजी की प्राचीन पंचतीर्थी विराजमान है / इस गाँव से सूर्यकुंड हो कर एक सीधा रास्ता गिरनार की पांचवी टोंक पर जाता है, परन्तु उसका चढाव बडा विकट है / यहाँ के रातदिन जानेवाले लोग ही इस रास्ते से जा सकते हैं। 12 चांकली जूनागढ की सडक के दहिने तरफ यह गाँव है, इसमें जैन या सभ्य जाति का बिलकुल अभाव है और न मुसाफिरों को उतरने का यहाँ कोई साधन है / यहाँ से एक रास्ता जूनागढ और दूसरा सीधा हनुमानधारा होकर सहसावन को जाता है। चांकलीगाँव से दो माइल जम्बूडीगाँव और जंबूडी से दो माइल हस्तिनापुर गाँव है / ये दोनों गाँव गिरनार पहाडी के वीचकी भूमि के समतल पर हैं / जंबूडी में चार पांच मकान और सरकारी ( जूनागढ नबाव का) बगीचा है, उसीकी रक्षा के लिये रहनेवाले नोकरों के मकान हैं / हस्तिनापुर किसी जमाने में अच्छा आबाद शहर था, जो चारों ओर 10 माइल के मेदान में था। अब यह वीस झोंपडे का छोटा गामडा रह गया है, इसके चोतरफ विशाल मेदान है जिसमें आम, पीपल, आमले, करोंदे, सागवान, आदि के Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 116 ) हजारों झाड़ ठसोठस हैं / एक दिन इस नगर में अमनचमन ( एश आराम ) का साम्राज्य था, वहाँ आज चारो ओर हाय और भय का साम्राज्य दिखाई देता है / यही पंचमकाल की विचित्र लीला समझना चाहिये / एक कविने ठीक ही कहा है किजे जे स्थले नृपतितणां नमस्पर्शी प्रासादो हतां, ते ते स्थले आजे ऊकरडा ने स्मशानो भासतां / नकशी करेलां मंदिरो प्राचीनना क्या हाल छे, रे रे पथिक जन ! जाण तुं आ विश्व क्षण-भंगुर छे / / हस्तिनापुर से रास्तागीर (भोमिया ) साथ लेकर एक कोश डूंगर तरफ जाने पर हनुमानधारा टेकरी आती है / इसके ऊपर चढने के लिये छोटी पगडंडी है और उसके दोनों तरफ सघनवृक्षों वाली ऊंडी खाडियाँ हैं, जो ब्रह्मखाड के नाम से प्रसिद्ध हैं / टेकरी की ऊंची तीखीधार पर आस्ते आस्ते (धीरे धीरे ) एक कोश चढने वाद ' हनुमानधारा' स्थान आता है / कैसा भी उतावल से चढनेवाला क्यों न हो, लेकिन इस धार पर चढने में कम से कम दो घंटा टाइम तो अवश्य लगेगी। इस रास्ता से चढते हुए पैर चूक गया तो हड़ियों का भी पता नहीं लग सकता और भोमिया साथ में न हो तो जाया भी नहीं जा सकता / हनुमानधारा पर हनुमान Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GRESGR- SERSa-se- as-sdesdo श्रीयतीन्द्रविहारदिग्दर्शन-तृतीय भाग 0. 00 1955ESSSSSSSSSSS=ess=S श्रीगिरनार-महातीर्थ-नेमनाथटोंक 1. 25 2 5 -25-25 -25 -2585श्री महोदय प्रेस-भावनगर / Page #129 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 117 ) का देवल, एक छोटी दो कोठरीवाली धर्मशाला और एक धूनीकुटी है / कुटी के पास ही हनुमानकुंड है, जिसमें टेकरी के झरने की जलधार पडती है। इसीसे इसका नाम हनुमानधारा रक्खा गया है और जैनेतर यात्री यात्रा करने को सेंकडों की संख्या में यहाँ आते हैं। हनुमानधारा से थोडा ऊंचा चढने पर सहसावन के रास्ते से वांये तरफ भरतवन है, जिसमें एक पक्के देवल में भरतादि पांच भाइयों की खड़े आकार की पाषाणमय श्वेतवर्ण मूर्तियाँ स्थापित हैं। इसके सामने कुटी और एक जलपूर्ण कुंड है। यहाँ बड़े बड़े आम्र, आमले आदि वृक्षों की सघन झाडी है, इससे इसका नाम 'भरतवन' रक्खा गया है / हस्तिनापुर से इस टेकरी पर चढने वाद वीच में जल कहीं भी नहीं है, हनुमानधारा और भरतवन में पहुंचने पर ही पानी पीने को मिलता है। 13 सहसावन (गिरनार ) हनुमानटेकरी से आधा कोश उतार में 'सहसावन' है, जिसमें हजारों आम्रवृक्ष हैं और इतने आम्रवृक्षों का समुदाय गिरनार के किसी स्थान पर नहीं है। इसीसे इसका नाम सहसावन (सहस्राम्रवन) रक्खा गया है। उष्णकाल में यह वन ठंडा, आनन्दजनक और मनको स्थिर करनेवाला है। बावीसवें तीर्थङ्कर का दीक्षा और Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 118 ) केवलज्ञान कल्याणक इसी वन में हुआ है और इसीसे यह स्थान पवित्र तथा पूज्य माना जाता है। दीक्षा और केवलज्ञान के स्थान पर यहाँ दो देवकुलिकाओं में नेमिनाथजी के चरणयुगल स्थापित हैं। इन्हीं के पास सेठ देवचंद लखमीचंद पेढी की तीन चश्मे की धर्मशाला है, जिसमें जैनयात्री दो घडी विश्राम लेते हैं। 14 ऊपरकोट ( गिरनार ) सहसावन से एक कोश ऊंचा चढने बाद 'ऊपरकोट' टेकरी आती है, जो गिरनार की प्रथम मुख्य टोंक कहलाती है और इसका दूसरा नाम श्रीनेमनाथ टोंक है / १-यहाँ तीर्थाधिप श्रीनेमिनाथजी का विशाल जिनालय है, जो उत्तुंग, सौधशिखरी, पांच बडे जिनमन्दिर और अनेक देवकुलिकाओं से परिवृत है। इसके अन्दर बाहर सर्वत्र संगमर्मर की पचरंगी लादियाँ जडी हुई हैं, जिससे यह देवविमान के समान दिखाई देता है। इसके मुख्य मन्दिर में मूलनायक श्रीनेमिनाथजी की श्यामवर्ण अतिप्रभावशालिनी प्रतिमा विराजमान है और देवकुलिका तथा भूमिगृह आदि में भी अति मनोहर जिनप्रतिमाएँ अपरिमित स्थापित हैं। २-इससे पूर्व लगते ही ' मेकरवसी' है, जो निज सजधज और कारीगिरी कला में अद्वितीय और चारो और देवकुलिकाओं से शोभित Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 119 ) है। इसके मुख्य जिनालय में मूलनायक श्रीसहस्रफणापार्श्वनाथ की श्वेतवर्ण भव्यप्रतिमा विराजमान है। इसके प्रवेशद्वार के पास दहिने भाग में अद्भुतबाबा (आदिनाथ) की विशालकाय प्रतिमा और वांये भाग के शिखरबद्ध जिनालय के होल में पांच सुमेरु चोमुख चार चार जिन प्रतिमा सहित स्थापित हैं / ३-इसके पास लगते ही 'सोनीसंगरामवसइ' है, जो विशाल दो वरते मंडप और देवकुलिकाओं से शोभित है। इसमें भी मूलनायक श्रीसहस्रफणा-पार्श्वनाथ की श्वेतवर्ण प्रतिमा स्थापित है। ४-इसके पास ही 'कुमारवसइ' है, इसमें मूलनायक श्रीअभिनन्दननाथ स्वामी की श्यामवर्ण भव्यप्रतिमा स्थापित है। ये चारों सौधशिखरी जिनालय एक ही कोट के कंपाउन्ड में एक के बाद एक स्थित हैं / इनके अलावा 1 चन्द्रप्रभस्वामी का मन्दिर, मानसंगभोजराज (संभवनाथ) का मंदिर 3 वस्तुपालतेजपाल (सुपार्श्वनाथ ) का मंदिर, 4 संप्रतिराजा (नेमिनाथ) का मंदिर, 5 ज्ञानवाव (आदिनाथ) का मन्दिर, 6 धर्मसी हेमचंद (शान्तिनाथ) का मन्दिर, 7 मलवाला ( शीतलनाथ ) का मन्दिर, 8 राजुलगुफा और 9 चोमुख ( नेमिनाथ, महावीर, पार्श्वनाथ शान्तिनाथ ) जिनालय एवं नौ जिनमंदिर कोट के बाहर हैं। परन्तु कोटगत 4, और बाहर के 9, एवं तेरह जिनालय Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 120 ) 'ऊपरकोट' में ही माने जाते हैं। ये सभी मंदिर शिखरबद्ध और कोरणी धोरणी में अद्वितीय और संगमर्मर की पचरंगी लादियों से सुसज्जित हैं। ऊपरकोट से गोमुखी के दहिने मार्ग से अर्धा माइल ऊंचा चढने पर रहनेमिटेकरी आती है / यहाँ एक शिखरबद्ध जिनालय में रहनेमि की श्यामवर्ण पद्मासनस्थ भव्य मूर्ति विराजमान है। इससे एक माइल ऊंचे जाने पर अंबाटेकरी (तीसरी टोंक) है, जिसकी टोंच पर अम्बिकादेवी का शिखरबद्ध देवल है, जो इस समय वैष्णवों के अधीन है और यह नेमनाथ की अधिष्ठायिका होने पर भी जैनयात्री इसका दर्शन-पूजन नहीं करते / इससे अर्धा माइल उतरने चढने वाद गोरखटेकरी (चोथी टोंक) आती है। यहाँ दो विसामें और एक छोटी देहरी में नेमनाथ के चरण स्थापित हैं / इससे एक माइल उतार और एक माइल चढाव पर वरदत्तटोंक (दत्तात्रयी टेकरी) आती है, जो गिरनार की पांचवीं टोंक कहाती है / इस टोंक पर नेमनाथप्रभु 1000 मुनि परिवार से और उनके वरदत्त गणधर मुक्ति गये हैं। उनके निर्वाणस्थान पर एक शिला में उकेरी हुई नेमनाथ की मूर्ति और वरदत्त गणधर के चरण स्थापित हैं। काठियावाड में गिरनार पहाड सब पहाडों से ऊंचा Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 121 ) और सजीवन विविध वृक्षावलीवाला है। यह शत्रुजयगिरि का पांचवा शिखर कहलाता है, जो सिद्धाचल के समान प्रायः शाश्वत है। 1 कोट, 2 रहनेमि, 3 अंबा, 4 गोरख, 5 दत्तात्रयी, 6 रेणुका और 7 कालिका; ये सात शिखर इसके टोंक हैं। जैनशास्त्रानुसार प्रथमारक में इसका कैलास, द्वितीयारक में उज्जयन्त, तृतीयारक में रैवत, तुर्यारक में वर्णगिरि, पंचमारक में गिरनार और षष्ठारक में नन्दभद्र नाम, तथा पहले आरे में 36 योजन, दूसरे में 20, तीसरे में 16, चौथे में 10, पांचवें में 2 योजन और छठे में 100 धनुष का प्रमाण समझना चाहिये / इसके पूर्व में उदयंती, दक्षिण में उज्जयंती, पश्चिम में सुवर्णरेखा और उत्तर में दिव्यलोला ये चार नदियाँ हैं / आधुनिक इतिहासज्ञों के मत से इसका विस्तार ऊंचाई में 3666 फुद, लम्बाई में 15 माइल और पहोलाई में 4 माईल का है / इसके ऊपर चढ़ने के लिये तलाटी से कोट, पांचवीं टोंक और सहसावन तक पत्थर की मजबूत सीडीयाँ बनी हुई हैं / जूनागढ के वाघेश्वरी दरबाजा से वाघेश्वरीमाता का देवल 1208 फुट, अशोकलेखभवन 2733 फुद, दामोदरकुंड 5033, भवेश्वरदेवल 11133 फुट, चडानीवाव 12043 (25. माईल ), मालीपरब 19028, ऊपरकोट (नेमनाथटोंक) 22043, अंबाटेकरी 24243, गोरखटेकरी Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 122 ) 25593, वरदत्तटोंक 27503 (5 माइल), रामानंदीपादुका 24143, पत्थरचटी 24268, सहसावन 26143 (5 माइल) और हनुमानधारा 27743 फुट का इसका अन्तर समझना चाहिये / गिरनारपहाड में कदली, कदंब, कुरुबक, मालती, तमाल, ताली, आम्र, आंबरा, अरीठा, पलाश, पीपर, बडला, मातुलिंग, माधव, चन्दन, कणेर, गूलर, ऊमर, देवदारु, पनस, पाटल, अंकोल, प्लक्ष, श्रीफल, नीम, दाडिम, सीताफल, अशोक, मन्दार, अश्वत्थ, वकुल, चम्पक, तिलक, लोद्र, करोंदा. आंबली, नारंगी, हरडे, बेडा, रायण, चिरोंजी, टिम्बरु, मरडासिंगी, सागवान, सीसम आदि अनेक जाति के वृक्ष, नगवल्ली, आदि लताएँ और विविध औषधियाँ सजीवन हजारों की संख्या में स्थान स्थान पर दिखाई देती हैं। 15 गिरनारतलाटी___ ऊपरकोट-गिरनार से तीन माइल नीचे उतरने पर यह तलाटी आती है, जो एक छोटे गाँव के समान है। यहाँ जैनेतर दुकानदार, यात्री, मजूरवर्ग और सरकारी नौकर रहते हैं, जिनकी संख्या अंदाजन 300 मनुष्य की है / इसके अलावा सेठ देवचंद लखमीचंद पेढी की विशाल धर्मशाला है और उसके एक कमरे में गृहजिनालय, जिसमें आदिनाथप्रभु की दो हाथ बड़ी श्वेतवर्ण प्राचीन प्रतिमा Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 123 ) विराजमान है / जो जैन यात्री ऊपर से यात्रा करके नीचे आते हैं, उनको यहाँ भाता दिया जाता है / इसके पास ही गिरनार जैनजीर्णोद्धार कमेटी के हस्तक का भोजनालय है, जिसमें जैनयात्रियों और साधु-साध्वियों को भोजन (आहार) मिलने का अच्छा प्रबंध है। यहाँ दिगम्बर-जैनमन्दिर और दिगम्बर-जैनधर्मशाला भी है, जिसमें दिगम्बर जैनयात्रियों के लिये सभी तरह का प्रबंध है। 16 जूनागढ___ इसका प्राचीन नाम जीर्णदुर्ग है, जिसका द्योतक वर्तमान जूनागढ के पास किला भी मौजूद है, जो जूनाकोट, या जूना किला के नाम से प्रसिद्ध है / जूनागढ के भी चारो तरफ नया किला-कोट बांधा हुआ है, जिसके चार बडे दरबाजे हैं और हरएक दरवाजा पर सरकारी पहरादार नियत हैं / काठियावाड एजन्सि में यह प्रथम दर्जे का संस्थान (राज्य) है, और इसका विस्तार 3283 चोरस माइल का, तथा इसकी जनसंख्या 433000 अन्दाजन है। इसमें गिरनार 1, गिर 2, सपाट 3, नांघेर 4, और घेडओझतमुख 5; ये पांच विभाग (प्रदेश) हैं। यह संस्थान पश्चिमकाठियावाड के दक्षिण पोरबंदर और अमरेली प्रान्त के मध्य में है। जूनागढ इसकी राज्यधानी का मुख्य शहर है, जो सर्वत्र जल के नल, इलेक्ट्री की Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 124 ) रोशनी, और पक्की सडकों से शोमित है। शहर की जनसंख्या 35000 के अन्दाजन है और इसमें वीसा पोरवाड, वीसा श्रीमाली तथा दशा श्रीमाली महाजनों के 500 घर हैं, जो देहरावासी, स्थानकवासी और वैष्णव; इन तीन संप्रदायों में विभक्त (वंटे हुए) हैं / जैनयात्रियों को उतरने के लिये यहाँ दो बडी दो मंजिली धर्मशाला बनी हुई हैं और दो शिखरबद्ध जिनालय हैं। बडाजिनालय त्रिशिखरी विशाल है, जिसमें मूलनायक श्रीमहावीरप्रभु की श्वेतवर्ण प्राचीन प्रतिमा सपरिकर विराजमान है / इसमें पाषाणमय 37, धातुमय 51, धातु की पंचतीर्थयाँ 36 और गट्टाजी 13 जिनप्रतिमा स्थापित हैं। इसके बाह्यभाग में श्रीनेमनाथजी की श्वेतवर्ण दो हाथ बडी प्राचीन प्रतिमा स्थापित है, जो सर्वाङ्ग सुंदर है / दूसरे जिनालय में मूलनायक श्रीआदिनाथ की और दूसरी 7 जिनप्रतिमा विराजमान हैं। 17 वडाल यहाँ वीसा श्रीमाली मूर्तिपूजक जैनों के 8 और दशा श्रीमाली स्थानकवासियों के 50 घर हैं / एक उपाश्रय और उसीके पास एक गृहमंदिर है, जिसमें श्रीअजितनाथ आदि की तीन पाषाणमय प्रतिमा विराजमान हैं। Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 125 ) 18 जेतलसरजंक्सन___ यह गोंडलताबे का रेल्वे स्टेशन है और एक भाकनगर, एक पोरबंदर, एक वेरावल और एक राजकोट, इस प्रकार वहाँ से रेल्वे की चार लाइनें जाती आती हैं / यहाँ श्वेताम्बरजैनों की 5 दुकाने हैं, जो स्थानकवासी हैं / दो कमरेवाला पका एक स्थानक (उपाश्रय ) है, जिसमें जैन साधु साध्वियों का उतारा होता है / इससे पूर्व में एक माइल दूर 'जेतलसर' गाँव है, जो जैन आबादी से शून्य और जूनागढ से राजकोट जानेवाली सडक के वांये किनारे पर वसा हुआ है। 19 जेतपुर भादर (भद्रा) नदी के वांये तट पर यह इस संस्थान की मुख्य राज्यधानी का शहर है, जो सडकों, बगलों, और इलेक्ट्री की रोशनी से देखनेवालों के चित्त को हरण करनेवाला है। इसके चारो तरफ मजबूत कोट और पांच दरबाजे बने हुए हैं। इस शहर की आबादी अन्दाजन 10,000 घरों की है और इसमें दशा श्रीमाली स्थानकवासियों के 300 और वीसा श्रीमाली मूर्तिपूजक जैनों के 100 घर आबाद हैं। दोनों के स्थानक, उपाश्रय, पाठशाला और कन्याशाला आदि धर्मस्थान अलग अलग हैं। इनमें परस्पर कलह, ईर्ष्या और धार्मिक अनबनाव होने Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 126 ) के कारण यहाँ योग्य मुनिराजों के स्थिरवास का हमेशा अभाव रहता है। 20 पीठडिया जेतपुर के काठी दरबार के हवाखोरी का यह छोटा गाँव है, परन्तु इसमें सरकारी बंगले, फोजदारी ऑफिस, जेलखाना, पोस्ट ऑफिस, तार ऑफिस और इलेक्ट्री कारखाना होने से यह छोटे शहर के समान देख पड़ता है / यहाँ जैन का एक घर और एक दो होलवाला छोटा उपासरा है, जिसके एक होल में साधु और दूसरे होल में साध्वियाँ उतरती हैं। उपाश्रय की भींत पर एक शिलालेख लगा है છે વીતરાગાય નમ:, જેતપુર નિવાસી કામદાર જીવરાજ દેવચંદ તરફથી આ મકાને જે હાલ જૂની નિશાલને નામે ઓલખાય છે તે તથા આજુબાજુની જમીન–કમ્પાઉન્ડ સહીત અઘાટ વેચાણ લઈ પોતાના ચીરંજીવી બચુલાલના જન્મની ખુશાલીમાં ઉપાશ્રય વગેરેને વાસ્તે ખુલ્લા મૂક્વામાં આવ્યા છે. સંવત 1986 ના વૈશાખ સુદ 9 બુધવાર મુ. પીઠડીયા. 21 गोमटा___ गोंडलस्टेट का यह गाँव है, जो गोंडल से 8 माइल नैऋत्यकोण में है और इसका विस्तार 7027 एकरजमीन का है। इसमें कुल आबादी 1400 मनुष्य की है और Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 127 ) यहाँ दशा श्रीमाली जैनों के 8 घर, जो विवेक शून्य हैं / यहाँ की अजैनप्रजा भी जैन साधु साध्वियों की द्वेषी है। 22 गोंडल यह इस संस्थान की राज्यधानी का मुख्य शहर है, जो डम्बर की पक्की सडकों, कैलासबाग और सर्वत्र ईलेक्ट्री की रोशनी से देखनेवालों को बड़ा अच्छा लगता है / शहर का क्षेत्रफल 1818 एकरभूमि और आबादी 24573 मनुष्यों की है / गोंडलीनदी के दहिने कांठे ( तट ) पर यह वसा हुआ है और इसके चारो तरफ मजबूत कोट बना हुआ है, जिसमें 6 दरवाजे और दो बारियाँ हैं। रेल्वेस्टेशन, पोस्ट ऑफिस, तार, टेलीफोन, और कई कारखाने भी हैं। शहर में वीसा श्रीमाली मूर्तिपूजक जैनों के 75 और स्थानकवासी जैनों के 400 घर हैं, जो सभी दशा श्रीमाली हैं। स्थानकवासियों में जो गोंडलसंप्रदाय है, वो इसी गाव में प्रगट हुआ है। शहर में तपागच्छ के दो उपाश्रय और उनके वीच में एक शिखरबद्ध जिनमन्दिर है / इसके मंडप की भींतपर शिलालेख लगा है कि___“१६-स्वस्तिश्री संवत् 1864 वर्षे, शाके 1729 प्रवर्त्तमाने, मासोत्तममासे वैशाख मासे, कृष्णपक्षे षष्ठीतिथौ, सोमवासरे, श्रीमत्तपागच्छे श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिउपदेशात् श्रीकुंभाजीनगरमध्ये राजा किसनाजी राज्ये, अणहिल्लपुर Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 128 ) पत्तनादिसंघेन नवीनप्रासादकारापितं प्रासादमध्ये प्राचीनप्रतिमा स्थापिता प्रतिष्ठिता श्रीचन्द्रप्रभजिनबिंबं / " ___ गोंडलसंस्थान का कुल विस्तार 1024 चोरस माइल का है और संस्थान की कुल जनसंख्या 205846 मनुष्यों की है, जिनमें 103758 पुरुष और 102088 स्त्रियाँ हैं / इस संस्थान में 1. गोंडल, 2 कोलिथड, 3 सुलतानपुर, 4 सरसाइ, 5 धोराजी, 6 पाटणवाव, 7 उपलेटा, और 8 मायावदर ये आठ महाल ( तालुके ) के सदर शहर हैं, जिनके नीचे कुल 175 गाव है और उनमें सूतीकपडा बुनने की 1300, ऊनीकपडा बुनने की शाला 62, शण-रेशमी कपडा बुनने की शाला 6, गुजराती निशालें 154, गुजराती कन्याशाला 3, पाठशाला 1, गामठी निशाले 26, और उर्दुमदर्से 23 हैं, जिनमें अंदाजन 18 हजार विद्यार्थी अभ्यास करते हैं और इनके लिये गोंडलस्टेट के तरफ से अन्दाजन दो लाख रुपया प्रतिवर्ष खर्च किया जाता है। 23 रीबडा गोंडल से उत्तर में 12 माइल दूर राजकोट जानेबाली सडक के वांये किनारे पर लगते ही यह गाव है, जो विस्तार में 2970 एकर भूमि और इसकी जनसंख्या 855 है। इसमें श्रीमालीजैनों के 3 घर हैं, जो दशा श्रीमाली और बिलकुल गरीब हैं। Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 129 ) 24 राजकोट___ पश्चिम काठियावाड के पूर्व नाके पर हालारप्रान्त के अग्निकोण में आजीनदी के दहिने तट पर काठियावाडएजंसी का यह मुख्य शहर ( सदरस्थान) है / इसको अढीसो वर्ष पहले राजुसंधीने वसाया था, इससे इसका नाम 'राजकोट' कायम हुआ / शहर, परा और सदर इस प्रकार यह तीन विभाग में विभक्त है। शहर के चोतरफ मजबूतकोट और उसमें चार बड़े दरबाजे हैं / राजकोट की जनसंख्या 36057 है और इस राज्य के अधिकार में राजकोट 1, सरधार 2, कुवाडवा 3 ये तीन महाल तथा कुल 64 गाँव हैं। शहर का 'लालपरी' नामका तालाव सारे शहर को और कतिपय खेतों को जल पहुंचाता है / अंग्रेजसरकार का सिविलस्टेशन जो सदर कहलाता है, उसकी जनसंख्या 9613 है / स्टेशन के पास ही 'रांदरडा' तालाव है, जो सदर को पूरा जल देता है / शहर में मूर्तिपूजक जैनों के 400 और स्थानकवासी जैनों के 400 घर हैं / दोनों संप्रदाय में पारस्परिक संप अच्छा है और दोनों के तरफ से जैनपाठशाला, कन्याशाला, लायब्रेरी आदि संस्थाएँ कायम हैं / एकही कंपाउन्ड में तपागच्छीय 3 उपाश्रय, दो धर्मशाला और शिखरबद्ध एक जिनालय है, जिसमें मूलनायक 'श्रीसुपार्श्वनाथ' आदि की पांच जिनप्रतिमा विराजमान हैं। Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 130 ) 25 खोराणा वांकानेर तावे का यह छोटा गाँव है और इसके पास राजकोट से वांकानेर जानेवाली रेल्वे का छोटा स्टेशन है / इसमें दशा श्रीमालीजैनों के 3 घर और एक छोटास्थानक है, जो आर्याओं को उतरने के लिये दिया जाता है, मुनिराजों को नहीं। . 26 तिथवा इसमें मुसलमानों की आबादी अधिक है, जो कास्त कारी का धंधा करते हैं। यहाँ दशा श्रीमाली स्थानकवासी जैनों के 7 घर हैं, जो मूर्तिपूजक साधु साध्वियों के निंदक और द्वेषी हैं / इस गाँव की जैनस्त्रियों में मुसलमानों के साथ परिचय अधिक देख पडता है। 27 जडेश्वर वांकानेर और मोरबी की सरहद पर यह वैष्णवों का तीर्थस्थान है, जो एक छोटी टेकरी पर स्थित है / चोतरफी विशाल धर्मशाला के कम्पाउन्ड में सिखरबद्ध शंकर का देवालय है, जो संगमरमर और पचरंगी स्टालों से सजा हुआ है / यहाँ प्रतिसोमवार के दिन राजकोट, वांकानेर, टंकारा और मोरबी आदि शहरों से हजारों जैन जैनेतर मोटरों में दशनार्थ आते जाते हैं। श्रावण में Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 131 ) यहाँ मेला भराता है जिसमें 15, या 20 हजार दर्शक एकत्रित होते हैं और सालियाना अंदाजन 40 हजार रुपयों की आवक होती है, जिसको यहाँ का महन्तबावा लेता है। महन्त के तरफ से प्रतिदिन दो रसोडे चालु रहते हैं जिनमें बावा, योगी, खाखी, फकीर आदिको रहें वहाँ तक भोजन मिलता है। अगर कोई जैनमुनि, या जैनसाध्वी आ जाय और वे दो चार दिन यहाँ ठहरना चाहें, तो उनके लिये उनके योग्य आहार पानी की व्यवस्था की जाती है / महन्त सर्वमतों को समानरूप से माननेवाला है, इससे यहाँ किसी मत के साधु को किसी तरह की तकलीफ नहीं पड़ती। यहाँ धर्मशाला और शंकर के देवल में सर्वत्र वीजली की रोशनी लगी हुई हैं, और उसका कारखाना भी है। पानीका नल भी है, जिसमें दो माइल दूर गंगावाव से मसीन द्वारा पानी लाया जाता है। शंकर के देवल में प्रवेशद्वार की दहिनी भींत पर एक शिलालेख लगा है१८-श्रीमद्गायकवाडसेवनसमुद्भुतप्रतिष्ठावनीवानाज्याहितविड्वलः स्वनयतः स्वायत्तसौराष्ट्रकः / अन्देकोऽङ्गभुजङ्गचन्द्रविमिते मासे सिते फाल्गुने, पुष्यः शनिवासरे हरितिथौ जान्टेशसन व्यधात् // 1 // यद्गांगाधरनोयेन, मया गंगाधरोऽर्चितः / मत्पूर्तपूर्वकेतनः, प्रीतो मेऽस्तु जटेश्वरः // 2 // Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 132 ) जयं मूलमिति प्राहुः, कारणं चेति तद्विदः / जगजन्मादिहेतुत्वात् , वदतीमं जटेश्वरम् // 3 // सं० 1869, शाके 1734, फाल्गुनशुक्ला 12 शनी, पुष्यनक्षत्रे आयुष्ययोगे बालवकरणे सूर्योदयादिष्टघटी 15/21 समये प्रासादप्रतिष्ठा, इष्टदास्तु / 28 हडमतियो___ मोरबीरियासत का यह छोटा गाँव है। इसकी आबादी 200 घरों की हैं, जिनमें वीसा श्रीमाली जैनों के 10 घर हैं, जो स्थानकवासी हैं / परन्तु मन्दिरमार्गी साधु साध्वियों को यहाँ आहारपानी मिलने की दिक्कत नहीं है, और ठहरने के लिये एक छोटा स्थानक भी है। 29 लजाई___ मोरबी ताबे का अच्छा गाँव है, और इसकी जनसंख्या 1126 है / इसमें वीसाश्रीमाली जैनों के 20 घर हैं, जो स्थानकवासी संप्रदाय के होने पर भी मन्दिरमार्गी साधु साध्वियों के अच्छे भक्त हैं / लेकिन यहाँ गर्मपानी कम मिलता है, सर्वत्र धोवन का जल व्होराने का प्रचार है / गाँवमें ठहरने के लिये अच्छा स्थानक भी है। 30 वीरपुर. यह 707 मनुष्यों की आबादीवाला मोरबीताबे का Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 133 ) गाँव है / यहाँ टेलीफॉन, पोस्टऑफिस और त्रांबरेल्वे का स्टेशन भी है / इसमें स्थानकवासीजैनों के 12 घर और 1 स्थानक है। 31 मोरबी___ काठीयावाड एजंसी के हालार विभाग में यह प्रथमवर्ग के संस्थानों में से एक है / इसका क्षेत्रफल 1090 चोरस माइल का और विस्तार उत्तर में वेणासर से दक्षिण में आणंदपर तक लम्बाई 62 माइल, पूर्व में नवादेवलिया से पश्चिम में नवलखी तक पहोलाई 42 माइल और कच्छमें वस्टवा से मोटा रामपर तक लम्बाई 13 माइल, तथा आधोई से धराणा तक पहोलाई 10 माइल का समझना चाहिये / मोरबी 1, पंचकोशी 2, टंकारा 3, नेकनाम 4, जेतपुर 5, ववाणिया 6, आधोइ 7 इस संस्थान के ये सात विभाग (परगने) हैं, जिनके कुल गाँव 152 हैं और जनसंख्या पुरुष 56923, स्त्रियाँ 56101 मिलकर 113024 की है। मोरबी से वांकानेर 15 // माइल, राजकोट से वढवाण 74 माइल, और थान से चोटीला 12 // माइल, सब मिलके 102 माइल लम्बी मीटरगेज रेल्वे संस्थान तरफ से बांधी हुई है, जिसकी 11 लाख रुपयों की वार्षिक आवक होती है / मोरबी से जेपुर, खाखराला, बरवाला, पीपलियारोड, मोटा दहीसरा, Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 134 ) नवलखी तक 30 माइल, मोरबी से पीपली, बेला, रंगपर, सापर, जेतपुर, अणियाली, खाखरेची, वेजलपर, घाटीला तक 31 माइल, मोरबी से सक्तसनाला, वीरपर, लजाई, टंकारा तक 14 माइल, मोटा दहीसरा से ववाणीआ तक 3 माइल, मोरबी से शक्तसनाला, राजपर, चांचापर, खातपर, आमरणरोड तक 17 माइल और मोरबी ट्रामवे सिटीस्टेशन से रेल्वेस्टेशन तक 2 माइल सब मिलकर 97 माइल लम्बी ट्राम्बे लाइन राज्य के तरफ से चलती है / संस्थान के प्रायः सभी गावों में कार्ट एक पैसे और लिफाफा आधा आना में राजकीय पोस्ट ऑफिस के द्वारा पहोंचाया जाता है और ये कार्ट लिफाफे मोरबीनरेश की तस्वीरवाले राज्य के तरफ से खप पूरते प्रतिवर्ष छपते रहते हैं। मोरबी इस राज्यधानी का मुख्य शहर है, जो मच्छु नदी के वांये तट पर आबाद है और जिसकी जनसंख्या 18934 है / यह दरिया की सपाटी से 131 फुट ऊंचा है और इसके चोतरफ मजबूत कोट है, जो खाजीठाकुर प्रथमने बनवाया है / इसकी बाजार लाइन 1800 फुट लंबी है, जिसकी बांधणी जयपुर के समान एक साइड की है। बाजार के वीच त्रिपोलिया दरबाजे पर 120 फुट ऊंचा टावर और ग्रीन चोक है / दरबारगढ से नजर Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 135 ) वाग तक मच्छुनदी का 650 फुट लम्बा झोलापुल है, जिसके नीचे कुछभी आधार नहीं है। यह पुल देखनेवालों को चकित करता है और इसको देखने की इच्छावालों को आठ आना फिस देकर पास कटाना पड़ता है। इसके दोनों नाके पर सरकारी पहरा लगा हुआ है, जो बिना पास देखे पुल पर किसीको नहीं जाने देते / दूसरा मच्छुनदी का पुल पत्थर का जो 800 फुट लम्बा है / इसके एक नाके पर लोर्डरे का खडे आकार का और दूसरे नाके पर सर वाघजी बहादुर का घोडे सवारवाला वावला ( हुवो हुव प्रतिकृति-मूर्ति ) है। पत्थर के पुल ऊपर से गाडी, तांगे, मोटरें और दाम्बें जाती आती हैं। यहाँ के दरबार सरवाघजी बहादुरने अपनी राणी मणी की यादगार में एक देखने लायक'मणिमन्दिर' बनवाया है, जो भूमितल से 160 फुट ऊंचा, और पूर्व-पश्चिम 325 फुद् तथा उत्तर-दक्षिण 200 फुट लम्बी चौड़ी विशाल भूमि पर स्थित है / इसका अन्दर और बाहर का भाग, इसके जुदे जुदे कोरणीवाले सुंदर झरोखे, सिल्पकारीवाली मेडियों की ओसारियाँ, हरएक कमरे की बांधणी और मध्य शिखरबद्ध मन्दिर की सजावट देखनेवालों को आश्चर्य पैदा करती है / इसके बनवाने में 40 लाख रुपया तो खर्च हो चुका है और हाल में काम चालु है / शहर में सर्वत्र पक्की सडकें, इलेक्ट्री की रोशनियाँ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 136 ) और पीनेयोग्य जल के नल लगे हुए हैं। पांडवों के समय मयूरध्वज जेठवाने इसे वसा कर इसका नाम मयूरध्वजपुर ( मयूरपुर ) रक्खा, जो मच्छु के तट पर हाल में त्राजपर गाँव है वहाँ था। वाद में मयूरपुर नष्ट होने पर मच्छु के तट पर मोरबो टेकरी के समीप पोरबंदर के राणा संगजीने वर्तमान ' मोरवी ' वसाया। संवत् 1754 में राव रायधणजी प्रथम के प्रपौत्र, रवाजी के पुत्र कांयाजी जाडेजाने मोरबी पर अपना अधिकार जमा कर राज्यगादी कायम की, जो अब तक उन्हीं के वंशजों के कब्जे में है। कच्छ के रावसाहेब, जामनगर के जामसाहेब और मोरवी के ठाकुर एकही वंश के होने से परस्पर भायात कहलाते हैं। मोरबी में पोटरीवर्क्स, सुगरफेक्टरी, वर्कशोप, पावरहाउस, जीन, प्रेस, नंदकुंवरबा-जनाना-होस्पिटल आदि अनेक कारखाने देखने लायक हैं। शहर में मूर्तिपूजक जैनों के 250 घर और लोंकागच्छ ( स्थानकवासियों) के 700 घर हैं, जिनमें वीसा श्रीमाली 150 और शेष दशाश्रीमाली हैं / दोनों संप्रदाय में संप अच्छा है और ये एक दूसरे के धर्मकार्यों में विना संकोच के परस्पर भाग लेते हैं। दशा श्रीमालीजैनों के तरफ से यहाँ 'जैनबालाश्रम' प्रचलित है, जिसमें अस्सी जैनबालकों को सरकारी स्कूल में अंग्रेजी सात चोपडी तक अभ्यास कराया जाता है / इसके अलावा बालाश्रम में रात्रिको एक घंटा Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (137 ) धार्मिक अभ्यास भी कराया जाता है, जिसमें मन्दिरमार्गी और लोंकागच्छ के जैनबालक अपने अपने धर्मानुकूल प्रतिक्रमणादि सीखते हैं। तपागच्छ का उपाश्रय 2, धर्मशाला 2 और भोजनालय एक है, जिसमें अमृतविजयजैनपाठशाला, और कन्याशाला चालु है। पाठशालामें 51 मूर्तिपूजक बालक और 51 जैनकन्या पंचप्रतिक्रमणादि ग्रन्थों का अभ्यास करते हैं / भोजनालय के सामने एक ही कम्पाउन्ड में दो शिखरबद्ध जिनालय हैं-एक में मूलनायक श्री धर्मनाथजी की श्वेतवर्ण 3 फुट बड़ी प्राचीन प्रतिमा और दूसरे में मूलनायक श्रीपार्श्वनाथस्वामी आदि की पाषाणमय 40, धातुमय 19 और धातुमय पंचतिर्थी चोवीसियाँ 33 प्रतिमा विराजमान हैं, जो विक्रम सं० 1311 से 1873 तक की प्रतिष्ठित हैं। तपागच्छीय उपाश्रय में एक ज्ञानभंडार भी है, जिसमें मुद्रित आगम और मुद्रित पुस्तकों का अच्छा संग्रह है। 32 बेला मोरबी तालुके का यह छोटा गाँव है, जिसकी जनसंख्या 963 है / इसमें वीसा श्रीमालीजैनों के 10 घर हैं, जो मूर्तिपूक और अच्छे भावुक हैं। यहाँ एक गृह'जिनालय है, जिसमें मूलनायक श्रीपद्मप्रभस्वामी की श्वेतवर्ण एक फुट बडी प्रतिमा स्थापित है / आंजणा, Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 138 ) रंगपर और बेला इन तीन गाँवों के जैनोंने मिलके यह एकही मन्दिर कायम किया है / पर्युषणादि पर्वदिवसों में तीनों गाँववाले यहाँ इकट्ठे होकर पर्वाराधना करते हैं। गाँव से लगते ही बाहर एक तालाव है, जिसमें बारहो मास जल भरा रहता है और सारा गाँव इसी तलाव का जल पीता है। 33 रंगपर____ यह भी मोरबी ताबे का गाँव है, जो 873 मनुष्यों की आबादीवाला है / इसमें वीसा श्रीमाली मूर्तिपूजक जैनों के 9 घर हैं, जो धर्मपिपासु, विवेकी और जैन साधु साध्वियों के पूर्ण भक्त हैं / गाँव के नाके पर शंकर की धर्मशाला है, जो उतरने के लिये अच्छी है। 34 जेतपुर-- मोरबीस्टेट के तालुके का यह मुख्य गाँव है और इसकी आबादी 2144 मनुष्यों की है। गाँव से पूर्व बड़ा तालाव है, जो बारहो मास जलपूर्ण रहता है / यहाँ एक स्थानक, एक उपाश्रय और उस उपाश्रय के एक कमरे में श्रीपार्श्वनाथ की तस्वीर दर्शनार्थ रक्खी हुई है। इसमें दशा श्रीमाली मूर्तिपूजक जैनों के 10, और स्थानकवासी के 4 घर हैं, जिनमें परस्पर द्वेष, ममत्वभाव, और कलह अत्यधिक है। Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 139 ) 35 खाखरेची मालियाठाकुर के ताबे का यह छोटा अच्छा कसबा है, जिसमें ट्रामवे स्टेशन, टेलीफोन, पोस्टऑफिस और अस्पताल है / कसबे के बहार बडा तालाव जो बारहो मास जलपूर्ण रहता है / लजाई गाँव से खाखरेची तक बंबूल की झाडी अत्यधिक होने से रास्ते कंटकाकीर्ण हैं / इसमें 2 उपाश्रय, 1 धर्मशाला और 1 गृहजिनालय है, जिसमें सुपार्श्वनाथ की एक फुट बडी प्रतिमा प्रतिष्ठित है / यहाँ जैनों के 20 घर हैं, जो वीसा श्रीमाली और अच्छे भावुक हैं / इस गाँव के विषय में यह कहावत प्रसिद्ध है किखाखरेचीमा खाखी बावो, माथे धोली धजा / खावा पीवानी खेर सला, न्हावानी छे मजा // 1 // 36 वेणासर कच्छबागड के रण के दक्षिण किनारे पर यह गाँव है, जो मोरबी ताबे 480 मनुष्यों की आबादीवाला है। इसके चोतरफ जंगली-प्रदेश कहीं ऊंचा, कहीं नीचा और कहीं समतल है / जंगल में सणी, करीर, खेजडी और बंबूल के छोटे झाड सिवाय बडा झाड एक भी नहीं है / खाखरेची से वेणासर तक मार्ग मारवाड के समान सामान्य रेतीवाला है। गांव में मीठे पानी का कुआ एक Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (140 ) ही है, जो साधारण कहनेमात्र का मीठा है / यहाँ एक छोटा उपाश्रय, एक छोटी धर्मशाला और सामान्यस्थितिक जैनों के 8 घर हैं, जो विधुर हैं और कच्छ में जानेवाले जैन जैनेतर यात्रियों को ठगने और धर्मद्रव्य उडाने में बडे हुशीयार हैं। 37 कटारिया भुजरियासत के भचाऊ तालुके का यह छोटा गाँव है, जो किसी जमाने में अच्छा आबाद शहर था / पूर्वकाल में यहाँ जैनों के 1500 और कंसाराओं के 300 घर थे, जो इस समय लाकडिया, सीकारपुर, वांढिया आदि कच्छबागड के गाँवों में जा वसे हैं / यहाँ प्राचीनकाल में बडा विशाल बावन देवकुलिकावाला जिनालय भी था, जो इस समय लुप्त है / परन्तु इसका मूल शिखर जो जीर्णशीर्ण अवस्था में था, उसका सं० 1979 में जीर्णोद्धार हुआ है। तब से यह कच्छबागड में तीर्थधाम तरीके माना जाने लगा है। यहाँ माघसुदि 5 का मेला भराता है-जिसमें कच्छवागड, मालिया, मोरबी आदि गांवों के दो तीन हजार जैनयात्री एकत्रित होते हैं और हरसाल संगवी पानाचंद सुंदरजी मोरवीवाले की तरफ से मेला की नवकारसी होती है। इसके मूलनायक श्रीमहावीरस्वामी की श्वेतवर्ण दो Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 141 ) हाथ बडी प्रतिमा विराजमान है, जो बांढिया से लाकर सं० 1988 में यहाँ बैठाई गई है / इसकी पलांठी के आसन पर लिखा है कि-" श्रीमहावीरबिंब कारितं प्र० आचार्यश्रीविजयसिंहमूरिराजैः, तपागच्छे कटारियाग्रामे सं० 1686 वर्षे वैशाखमासे शुक्लपक्षे तृतीयातिथौ / " दर असल में यह प्रतिमा बडी सुंदर और दर्शनीय है, परंतु नाक कान से खंडित है, जो प्रतिष्टा के समय सुधरा के यहाँ स्थापन की गई है / कहा जाता है कि कटारिया की पडती के समय इस प्रतिमा को बांढिया गाँववाले जिनालय के पास एक उपाश्रय नया बनाया हुआ है उसके एक कमरे में सेठ वर्द्धमान आणंदजी की पेढी है, जो इस तीर्थ का वहिवट करती है / इससे थोडी दूर ही छोटी धर्मशाला है, जिस में मुफतिया रसोड़ा चलता है। गाँव में जैनों के 3 घर हैं, जिन्हों का पालन इसी रसोड़े से होता है और यहाँ की पेढी का मुख्य लक्ष्य रसोड़ा चालु रखने का ही है, तीर्थसुधारे का नहीं / कच्छवागड के आसपास के गाँववाले भोजनानंदी दश पांच आदमी यात्रा करने के बहाने से यहाँ पडे रह कर मुफतिया रोटे उडाया करते हैं और तीर्थ के नाम से रकम उगा कर उसे स्वाहा किया करते हैं। Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (142 ) 38 ललियाणा भुजनरेशाश्रित भचाऊ तालुके का यह गाँव है और यहाँ वीसा श्रीमालीजैनों के 12 घर हैं, जो अच्छे भक्ति भाववाले हैं। एक अच्छा उपाश्रय भी है, उसके एक कमरे में प्रभु तस्वीरें दर्शनार्थ रक्खी हैं, यहाँ के जैन तस्वीरों के हमेशां दर्शन-पूजन करते हैं। 39 बोंध भचाऊतालुके का यह अच्छा गाँव है और इसका चारो तरफ का जंगली-प्रदेश भरपूर खारीवाला है, जिसमें दो चार कोश चलने पर पैरों में खून झरने लगता है / यहाँ के निवासी लोग पैरों में तेल लगा कर हिरते फिरते हैं और चूकते मनुष्य स्त्रियों के पैर फटने से बेडोल दिखाई देते हैं। यह गाव चीत्रोडी से भुज जानेवाली सडक के वांये तरफ आबाद है / इसके पास छोटी छोटी पहाडी टेकरियां हैं। जिन में से थोडा थोडा खारा पानी झरता रहता है। चातुर्मास में इस गाँव के चोफेर पानी भर जाता है, जिससे लोग गांव के किनारे (फला) पर ही जंगल (टट्टी) जाते हैं / यहाँ मक्खियों की अनहद उत्पत्ति है, इतनी मक्खियां दूसरे किसी गांव में नहीं देखी गई और इसीसे यहाँ के लोग रोगी तथा फीके चहरेवाले हैं। इसमें वीसा श्रीमालीजैनों के 10 घर, दो Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 143 ) उपाश्रय, एक धर्मशाला और एक गृहजिनालय है / जिनालय में मूलनायक श्रीसंभवनाथ आदि की तीनप्रतिमा स्थापित हैं, जो श्वेतवर्ण 3 फुद् बडी हैं / मूलनायक के आसन पर लिखा है कि 19-" श्रीसंभनाथविवं का विंधसंघेन, प्रतिष्ठितं आचार्यविजयसिंहमूरिभिः, तपागच्छे सं० 1682 वैशाखशुक्लपक्षे 3 तिथौ / 40 भचाऊ कच्छभुजरियासत में यह इस तालुके का सदर स्थान है और इसकी आबादी 3555 मनुष्यों की है, जिनमें 1739 पुरुष और 1816 स्त्रियाँ हैं। शहर जूने ढब का है और इसके चोतरफ मजबूत किलाकोट है, जो प्राचीन होने से कहीं कहीं पड गया है। पास ही में छोटी पहाडी के ऊपर जूना किला भी है, जो पतिताऽवशिष्ट है / यहाँ दिवानी फोजदारी महकमा, रेल्वेस्टेशन, पोस्ट और तार ऑफिस भी है / पहाडी की ढालू जमीन पर एक सुंदर छोटा शिखरबद्ध जिनमन्दिर है, जिसमें मूलनायक श्री अजितनाथ आदि की तीन प्रतिमा एक एक फुट बडी श्वेतवर्ण स्थापित हैं। मंदिर के पीछे भोजनालय, सामने और बगल में दो उपाश्रय हैं। यहाँ वीसा श्रीमाली जैनों के 40 और वीसा ओशवालों के 400 घर हैं। श्रीमालीजैन सभी मन्दिरमार्गी और ओशवालों में 50 घर मंदिरमार्गी, Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 144 ) 150 स्थानकवासी और 200 घर वैष्णव हैं। मंदिरमार्गी ओशवाल पर्युषण में संवच्छरी के दिन जिनालय के दर्शनार्थ आते हैं, लेकिन धर्मध्यान तो स्थानक में ही जा करके करते हैं। यहाँ के सभी ओसवाल खेती करनेवाले और बेठ, मजूरी करनेवाले हैं। इसलिये इन ओशवालों को खेड्डत (किसान) भी कहा जाय तो कोई अनुचित नहीं है / 41 मोटी चीरई भुज जानेवाली सडक के दहिने तरफ यह गाँव है, इसमें कास्तकारों के 250 घर के सिवाय वीसा श्रीमाली जैनों के सामान्यस्थितिवाले 8 घर हैं / यहाँ छोटे दो उपाश्रय और एक गृहजिनालय है, जिसमें पार्श्वनाथ की चार अंगुल बडी श्याम प्रतिमा है, जो यहीं की सीमा के बॉकला (नाला) से मिली है / यहाँ के जैनों में कस्तुरचंद महाजन मुख का मीठा और हृदय का बडा धीठा चलता पुर्जा है / इसके विषय में यहाँ यह काहवत भी सर्वत्र मशहूर है कच्छवागडमां मोटी-चीराई छे गाम / वसे कस्तुरो वाणियो, चोरोमा राखे नाम // 1 // दर असल में यदि अवसर मिल जाय तो यह साधु साध्वियों के कपडे आदि उपकरण भी उठा ले जाते देर Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 145) नहीं करता / इस कार्य में इसने अपने चार साधक भी तैयार कर रक्खे हैं, वे साधुओं के उतारे के चोतरफ टाइम बेटाइम ताकते रहते हैं और मौका पाकर उपकरण उठा ले जाते हैं। 42 भीमासर___ अंजार जानेवाली सडक के दहिने तरफ यह गाँव है, इसमें कणबी, आयर जाति के 150 घर हैं, जो स्वामिनारायण पंथ के माननेवाले हैं / इसको भीमसिंह जाडेजाने वसाया है, इसके पास चकाशा सरोवर है, जिसमें दो वर्ष तक जल नहीं खुटता / इसकी पाल परचकाशापीर का थान भी है, इसीसे इस तालावका नाम 'चकाशासरोवर' रक्खा गया है। इस गाँव में न जैन का घर और न साधुओं के उतरने योग्य कोई स्थान है। 43 अंजार भुजरियासत के तालुके का यह मुख्य शहर है, जो चोतरफ मजबूत कोट से घिरा हुआ है और इसके 1 गंगावाला, 2 सवासर, 3 सोरठिया, 4 देवलिया, 5 वरसामेडी, ये पांच दरबाजे हैं / इसको सं० 1602 में रावश्री खेंगारजी प्रथमने वसाया है, और वर्तमान में इसकी आबादी 13510 मनुष्यकी है जिनमें, 6434 पुरुष और 7076 Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (146 ) स्त्रियाँ हैं / शहरमें सरकारी लायब्रेरी, स्कूल, हरिजन-पाठशाला, पोस्ट, तारऑफिस भी है और पास ही में रेल्वे स्टेशन है। गंगावाला दरबाजा के बाहर मोडवणिग्ज्ञातीय धर्मशाला है, जो उतारा के लिये सुखप्रद है / अंजार में श्वानों की अधिकता है, इतने कुत्ते सायत ही किसी गाँव में होंगे ? श्वानोच्छिष्ट जलपान करने के कारण यहाँ की जनता में कुत्तोंकासा चिडचिडियापन अधिक देख पड़ता है / यहाँ तपागच्छीय 60, खरतरगच्छीय 20, अंचलगच्छीय 20 और लोंकागच्छीय 100, एवं श्वेताम्बरजैनों के 200 घर हैं और इनमें परस्पर गच्छसंबंधी खींचातान अधिक है। शहर में अंचलगच्छीय सोमचंद धारसीभाई बडे योग्य, विवेकी और गुणग्राही सद्गृहस्थ हैं / संवत् 1955 में हमारे संप्रदाय के मुनिश्रीटीकमविजयजी का चोमासा अंजार में इन्हीं सद्गृहस्थने कराया था। यहाँ चारों गच्छ के जुदे जुदे धर्मस्थानक बने हुए हैं और उनकी संभाल स्व स्व गच्छीय भावुक करते हैं। शहर में सौधशिखरी तीन जिनालय हैं-१ बडाम १-संवत् 1953 से 1961 तक मुनिश्री के कच्छ बागड, कच्छ कंठी और कच्छ अबडासा के जुदे गांवों में चोमासा हुए हैं। अभी तक उन गांवों के भावुक मुनिश्री को याद और उनके गुणवर्णन करते हैं। Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (147) दिर जो अच्छा रंगा, चंगा और दर्शनीय है / इसमें मूलनायक श्रीवासुपूज्यस्वामी की श्वेतवर्ण 3 फुद् बडी प्राचीन प्रतिमा विराजमान है और दूसरी पाषाणमय 25, धातुमय पंचतीर्थी 9 तथा गट्टाजी 5 एवं कुल 39 जिनप्रतिमा स्थापित हैं / द्वितीय मन्दिर में मूलनायक श्रीशान्तिनाथ की 2 फुट बडी श्वेतवर्ण प्रतिमा और तीसरे मन्दिर में मूलनायक श्रीसुपार्श्वनाथ की श्वेतवर्ण 3 फुट बडी प्रतिमा स्थापित है / प्रथम तपागच्छ का, द्वितीय खरतरगच्छ का और तृतीय अंचलगच्छ का जिनालय है / अंचलगच्छीय जिनालय के प्रवेशद्वार की सामने की भींत पर एक शिलालेख इस प्रकार लगा है 20-" ॐ नमः सिद्ध / श्रीवीरसंवत् 2386 विक्रमसं० 1916 वर्षे, शाके 1782 प्रवर्त्तमाने, ज्येष्ठसुदि 13 शुक्रे, श्रीकच्छदेशे अंजारनगरे, श्रीविधिपक्ष (अंचल) गच्छे पूज्यभट्टारक श्री 108 श्रीरत्नसागरसूरीश्वरजी राज्ये तस्याज्ञाकारी मुनिक्षमालाभजी उपदेशात् श्रीभुजनगर निवासी वडोडागोत्रे से० मांगजी भवानजी नवीनप्रासाद कारापितं, अंजार नगरे अंचलगच्छे संघमुख्य-सा०वालजी शांतिदाससहितेन श्रीसुपार्श्वनाथजिनबिंबं प्रतिष्ठितं, तं श्रीजिनभक्तमातंगयक्षशांतादेवी चक्रेश्वरी महाकाली मूर्ति च तस्या स्थापिता। Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (148) 44 भूवड____यहाँ वीसा श्रीमाली जैनों के 15 घर हैं, जिनमें 5 देरावासी और 10 स्थानकवासी हैं। एक उपाश्रय, 1 स्थानक और छोटा शिखरवाला एक मंदिर है, जिसमें मूलनायक श्री अजितनाथ की एक फुट बडी श्वेतवर्ण प्रतिमा स्थापित है / गाँव बाहर भी एक प्राचीन जिनालय था जिसमें इस समय महादेवलिंग स्थापित है। 45 भद्रेश्वर ( वसइ) कच्छवागड और कच्छकंठी परगने के मध्य सुकरी नदी के दक्षिण तट पर यह गाँव आबाद है, जो प्राचीन काल में बडा भारी शहर था / यहाँ चारो तरफ तीन कोश तक के भग्नावशिष्ट खंडेहर और जंगल में विखरे पडे हुए नकशीदार पत्थर अब भी इसकी प्राचीनता को दिखला रहे हैं / इसके पतिताऽवशिष्ट खंडेहरों में धनकुबेर जगदुद्धारक जगडूशाह की सप्तखंडी हवेली, उनकी बैठक का दरीखाना, उनका गुप्त खजाना (भूमिघर), कलापूर्ण कुआ, पांडवकुंड आदि स्थान देखनेवालों को आश्चर्यान्वित बनाते हैं / सं० 1195 का बना 'फूलसर' तालाव जो चोतरफ से मजबूत बांधा हुआ है, वो इसकी, प्राचीनता का द्योतक है / प्राचीनकाल में यहाँ अनेक क्रोडपति कुटुम्ब निवास करते थे और कच्छ की प्राचीन राज्यगादी Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (149 ) यहीं पर कायम थी। ' कच्छनो बृहद् इतिहास' नामक गुजराती पुस्तक के पृष्ठ 70 में लिखा है कि" सं० 1315 में भयंकर दुष्काल पडा, कच्छीजनता अन्न वस्त्र के अभाव से अति पीडित होने लगी। इस समय भद्रावती ( भद्रेश्वर ) नगरी जल व्यापार में समुबत थी और यहाँ के वहाण एशिया के मुख्य बंदरों तक जाते आते थे / भद्रेश्वर के जल व्यापार का पिता जगडूशाह था, उसने दुष्काल पीडित कच्छियों का उद्धार किया, लाखों कच्छियों को अन्न वस्त्र दिया, इतना ही नहीं हिन्दुस्तान के अन्य प्रदेशों की जनता के लिये भी अन्न वस्त्र के हजारों वहाण वहाँ पहुंचाये / पनरोतेरा (1315) दुष्काल में जगडूशाहने वाघेला राजा से भद्रेश्वर को अपने कब्जे में लिया और पुरातन महावीरजिनालय का जीर्णोद्धार कराके उसके चोतरफ 52 देवकुलिकाएँ बनवाई। इसके अलावा कच्छ में नेमिमाधव, कुनड़ीया में हरिशंकर, ववाणीया में वीरनाथ, ढांक में महीनामंदिर और कच्छ तथा काठियावाड में वापी, कूप, अन्नक्षेत्र, जलपरब, धर्मशाला आदि स्थान बनवाये / " अपसोस ! जो भद्रेश्वर अपनी अपरिमित धन और जन संपत्ति से एक दिन स्वर्ग के साथ भी स्पर्धा करता था, वही आज दारिद्यता की स्पर्धा करनेवाला देख पडता है, यह कलियुगी लीला नहीं तो और क्या है ? किसी कविवरने ठीक ही लिखा है कि Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 150) जिनकी नोबत के शब्द से गूंजते थे आसमां, दम बखुद है'मकबरों में हुं न हां कुछ भी नहीं / जिनके महलों में हजारों रंग के फानूस थे, झाड उनकी कब्र पर हैं और निशां कुछ भी नहीं // 1 // ___ इस समय भद्रेश्वर एक छोटे गामडे के रूप में है और इस में भाटिया, पुष्करणा, ग्रासिया, आदि अजैन जाति के अंदाजन 200 घर हैं। गाँव में पोस्टऑफिस और अस्पताल भी है और गाँव की जनता में सभ्यता का बिलकुल अभाव है। तीर्थपति श्रीमहावीरस्वामी का विशाल मंदिर भद्रेश्वर से पाव माइल दूर पूर्व में है, जो सारे कच्छदेश में 'वसइ' के नाम से प्रसिद्ध है / यह जिनालय 450 फुट लम्बे और 300 फुट पहोले मैदान में स्थित है। इसकी ऊंचाई 38 फुद, लम्बाई 150 फुट और पहोलाई 80 फुट की है। इसके चारों तरफ चार बडे मंदिर और 48 देवकुलिकाएँ हैं, जो मजबूत सफेद प्रस्तर की बनी हुई हैं। मूलमंदिर के चार घूमट बडे, दो छोटे और इसका रंगमंडप विशाल है / इसके दोनों बाजु अगासियाँ और उनमें छोटे शिखर बने हुए हैं। इसमें कुल स्तंभे 218 नकशीदार लगे हुए हैं, जो दो मनुष्यों की वाथ में आ सके इतने जाडे और कोई कोई स्तंभ इससे भी जाडा है। इसका प्रवेशद्वार अतिशय सूक्ष्म नकशीवाला, मोहक, Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 151 ) और उसके ऊपर विमानाकार झरोखा है, जो दर्शकों को चकित करनेवाला है। सारे जिनालय में मोहक नकशी (कोतरकाम ) बना हुआ है / परन्तु वह अन्तिम उद्धार के समय सीमट कली लपेट कर ढांक दिया गया है, तथापि कोई कोई स्थान प्राचीन शिल्पकारी का स्मरण कराने के लिये खुला रक्खा है / श्रीमहावीरप्रभु के निर्वाण सं० 23 में भद्रेश्वरनिवासी धनकुबेर परमाईत श्रावक देवचन्द्रने इस विशाल जिनालय को बनवा के, इसमें श्रीसुधर्मगणधर के करकमलों से प्रतिष्ठाञ्जनशलाका कराके मूलनायक श्रीपार्श्वनाथ भगवान् की श्यामवर्ण 5 फुट बड़ी प्रतिमा विराजमान की थी, जो इस समय मूल जिनमन्दिर के पिछले भाग के बडे शिखरबद्ध जिनालय में मूलनायक तरीके विराजमान है / कहा जाता है कि-भद्रावती (भद्रेश्वर ) के ध्वंस समय में इस जिनालय पर एक वैष्णव बाबा का अधिकार हो गया था / उसने इसमें शंकर की मूर्ति बैठाने के इरादे से पार्श्वनाथ प्रतिमा को उठा कर किसी गुप्तस्थान में छिपा दी / जैनसंघ को इसका पता लगते ही संघने बाबा से मूर्ति मांगी, मूर्ति प्राप्त करने के लिये बाबा को रुपयों का लोभ भी दिया, लेकिन बाबाने मूर्ति देना, या बतलाना किसी तरह मंजूर नहीं किया। संघने लाचार हो, राजकीय काररवाई से जिनालय पर अपना Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 152) अधिकार करके सं० 622 की प्रतिष्ठित श्रीमहावीरप्रतिमा कहीं से लाकर सं० 1622 में महामहोत्सव पूर्वक मूलनायक के स्थान पर श्रीमहावीरप्रभु की प्रतिमा विराजमान की, जो अभी तक वही प्रतिमा विद्यमान है। श्रीमहावीरप्रभु के विराजमान होने बाद बाबाने प्राचीन पार्श्वनाथमूर्ति श्रीसंघ को वापिस सुपुर्द की, संघने उसको पिछाडी के दूसरे बडे मन्दिर में मूलनायक के स्थान पर स्थापन कर दी / इस विशाल जिनमंदिर में कुलपाषाणमय 162 जिन मूर्तियाँ स्थापित हैं, जिसमें कई संपतिराजा की, कई कुमारपाल भूपाल की और कई चालु सीकी के आरंभ की प्रतिष्ठित हैं। का, धनुकुबेर जगडूशाह का, और राव प्रागमल प्रथम के राज्यकाल का, एवं तीन जीर्णोद्धार होने वाद चौथा उद्धार मांडवी निवासी रा०मोणसी तेजसी की पत्नी मीठीबाईने सं० 1939 में कराया / इसकी देवकुलिकाओं का उद्धार जुदे जुदे सद्गृहस्थोंने कराया है, जिनके नामके शिलालेख हरएक देवकुलिकाओं के द्वार की भींत पर लगे हुए हैं। जिनालय में सर्वत्र संगमरमर की पंचरंगी लादिया लगी हुई और भीतों के ऊपर नेमनाथ की जान, दीक्षा का वरघोडा, महावीर, ऋषभदेव, पार्श्वनाथ तथा शान्तिनाथ के कल्याणक, उपसर्ग आदि जीवनदृश्य के Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 153 ) सुंदर रंगीन चित्र बने दुए हैं। यहाँ फाल्गुनसुदि 3 / 4 / 5 तीन दिन का अच्छा मेला भराता है, जिसमें अंदाजन चार पांच हजार यात्री इकट्ठे होते हैं और उसीमें पांचम के दिन जिनालय पर ध्वजा चुढाई जाती है। यात्रियों के ठहरने के लिये यहाँ विशाल धर्मशाला बनी हुई है, और उशीमें सेठ वर्द्धमान कल्याणजी की पेढी है, जो इस तीर्थ का वहिवट और व्यवस्था करती है। तीर्थ दर्शनीय है और इसके मुकाबले की बांधणी क्वचित् ही कहीं होगी। 46 सामखियारी कच्छवागड में भचाऊ तालुके का यह गाँव है, जिसमें 75 घर मन्दिरामर्गी, 90 घर छकोटी स्थानकवासी एवं ओसवाल जनों के 165 घर आबाद हैं / इनमें परस्पर संप अच्छा है और एक दूसरे के साधु साध्वियों की सेवाभक्ति प्रेम से करते हैं / यहाँ एक उपाश्रय, एक स्थानक और एक छोटा जिनालय है, जो नया बना है और उसकी प्रतिष्ठा होना वाकी है। 47 जंगी यहाँ वीसा श्रीमालीजैनों के 20 घर हैं, जो मंदिरमार्गी और अच्छे भावुक हैं। इसमें 3. उपाश्रय, 1 'धर्मशाला और 1 गृहमंदिर है, जिसमें मूलनायक श्रीचन्द्रप्रभ की 16 अंगुल बड़ी श्वेतवर्ण मूर्ति स्थापित है / इस पर लिखा है कि Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (154 ) 21-" संवत् 1921 वर्षे शाके 1786 प्र० माघसुदि 7 श्रीअंचलगच्छे कच्छकोठारावा० ओशवंशे शा० गांधी मोहता का० शा० श्रीनायकमाघसीगृहे भार्या हीरबाई पुत्र शा० केशवजीकेन / " 48 वांढिया ( आणंदपुर ) यह भुजनरेश के भायातों का गाव है, जो पतिताऽवशिष्ट कोट से शोभित है / इसमें वीसाश्रीमाली जैनों के 50 घर जो अच्छे भावुक हैं। एक धर्मशाला, दो उपा-- श्रय और एक शिखरबद्ध जिनालय है, जिसमें मूलनायक श्रीचन्द्रप्रभस्वामी की 12 अंगुल बडी श्वेतवर्ण प्रतिमा स्थापित है / इसके अलावा पाषाणमय 7, धातुमय पंचतीर्थियां 35 और धातु के गट्टाजी भी हैं। मन्दिर के मूलद्वार के वांये तरफ की भींत पर एक शिलालेख इस प्रकार लगा है__२२-" सं० 1857 वर्षे माघमासे शुक्लपक्षे 6 दिने वारशुक्रे जेतपरसंघेन श्रीचन्द्रप्रभविंबं प्रतिष्ठितं, भ० श्रीश्रीविजयदेवेन्द्रसूरीश्वरराज्ये तपागच्छे सकलपंडित श्रीमेघसागरगणि-भ० रत्नसागरगणि-पं० देवसागरगणि-पं० हेमसागरगणि तथा देवचंदजी प्रतिष्ठितं श्रीसमस्तसंघेन' श्रीजिनप्रासादकारापितं जाडेजाश्रीठाकुर भावांराज्ये श्रीआणंदपुरे पं० दयासागर तथा गुमानसागर जणने श्रीश्रीकरी कार छे को० 40000 दीनी छ / " Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 155 ) मंदिर के दहिने भाग में जूना उपासरा है, जो जीर्णशीर्ण रूप में है, और इसका यहा कचरा भी साफ करनेवाला कोई नहीं है / इसकी कोठरी के किबाड पर एक ताम्रपत्र का लेख लगा है कि 23-" सं० 1868 वर्षे शाके 1734 प्रवर्त्तमाने चैत्रसुदि 15 दिने शुक्रे श्रीआणंदपुरना संघसमस्ते श्री देरासरनुं सर्वे काम संपूरण कराव्युं छे. भट्टारक श्रीविजयजिनेन्द्रसूरीश्वरराज्ये / तपागच्छे पं० मेघसागरगणि-पं० राजसत्क छे. दो मासे श्री देरानी प्रतिष्ठा तथा ध्वजादंड जाली थई छे संपूरण थयां छे. शा०लवजी मकनजी अणीई देरानुं काम पासे रहीने सर्वे पुरुं कराव्यु छे. कमाड तथा जालीसुं सामजी नारायण आणीइं कीनी छे." 49 सीकारपुर कच्छरण की कांधी पर यह छोटा गाव है और इसमें वीसा श्रीमालीजनों के.४, ओशवालों के 15 घर हैं। यहाँ एकधर्मशाला और एक उपाश्रय है। यहाँ से पूर्वदक्षिण में मालिया का रण है, जो दोनों तरफ दो दो कोश की कांधी के बीच में 3 कोश का चोडा है, इस रणमें एक माइल तक भूमितल आला रहता है, अतएव गाडिया तो इस रण से जा नहीं सकतीं, किन्तु रातदिन रणमें ही घूमनेवाले ऊंट और मनुष्य इस रण से जा आ सकते हैं। Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 50 पेथापर__ सीकारपुर से उत्तर तरफ रेतीली सात नदियों को पार करने पर वेणासर के रण की पश्चिम कांधी पर यह गाँव है, जो चित्रोल ठाकुर के अधिकार में है। यहाँ एक छोटा स्थानक और ओशवालजैनों के 30 घर हैं, जो स्थानकवासी होने पर भी मन्दिरमार्गी मुनिवरों की दिलोजान से भक्ति करने वाले हैं। यहाँ के सभी जैन स्वयं खेती करने पर जीवित हैं और इनके सिवाय जैनेतरों के 10 घर हैं, वो भी जैनों के समान ही अहिंसाधर्म के पालक हैं / इस गाँव से पूर्व-दक्षिण में 4 कोश की कांधी का मार्ग लांघने वाद पांच कोश का वेणासर का रण आता है / वेणासर के दक्षिण में दरिया और पश्चिम में रण है, जो जल से भरा जाने पर समुद्र के समान भयंकर दिखाई देता है। 51 जूनाघाटीला मोरबी संस्थान के जेतपुर-विभाग में ध्रांगध्रा की हद पर यह गाँव है, जो ग्याहरसो वर्ष पहले देवकाशाखा के चारणों का वसाया है और इसकी वर्तमान जनसंख्या 1853 के अंदाजन है। वेणासर से तीन माइल चोडा रण उल्लंघन किये वाद पांच माइल जाने पर यह गाँव आता है और इसके चोतरफ का जंगली-प्रदेश रण के समान Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 157 ) खारी मिट्टीवाला है / गाँव के बाहर बडा तलाव है, जो बारहो मास जलपूर्ण रहता है और इसका जल खारा है। यहाँ से टीकर का 10 कोश का रण उतर के कच्छ में जाया जाता है। इसमें वीसा श्रीमाली जैनों के 6 घर और एक छोटा उपाश्रय है। यहाँ के अजैन जैनों के साथ द्वेष रखने और जैन साधुओं की निंदा करनेवाले हैं। 52 वांटावदर चोटीला पहाड से निकली नित्यप्रवाहिनी स्वल्पतोया बांभणीनदी के वांये तटपर ध्रांगध्रा तालुके का यह गाँव है / इसमें वीसा श्रीमाली जैनों के 8 और दशा श्रीमाली जैनों के 2 घर हैं, जो अच्छे भक्ति भावनावाले हैं / एक छोटा और एक बडा उपासरा है / बडे उपाश्रय की मेडीपर रंगा चंगा सुंदर जिनालय है, जिसमें मूलनायक श्रीचन्द्रप्रभजिन की 2 फुट बडी प्रतिमा स्थापित है / कहा जाता है कि प्रथम (10 वर्ष पहले) यहाँ बहुलकुटुंबी श्रीमंत जैनों के 30 घर थे, परन्तु खोटे मुहूर्त में प्रतिष्ठा होने वाद उनका ह्रास होते होते अब 10 घर अल्पकुटुंबवाले रह गये हैं। 53 हलवद ध्रांगध्रा संस्थान की प्राचीन राज्यधानी का यह अच्छा शहर है, जो अंदाजन 4000 घरों की आवादी Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (158 ) वाला है / शहर में पोस्टऑफिस, तारऑफिस और पास ही में रेल्वेस्टेशन भी है। यहाँ 2 उपाश्रय और एक शिखरबद्ध जिनालय है, जिसमें मूलनायक श्रीवासुपूज्यस्वामी की श्वेतवर्ण 2 फुद् बडी प्रतिमा स्थापित है / वीसा श्रीमाली के 4 और दशा श्रीमाली के 30 एवं चोंतीस घर मंदिरमार्गी तथा 14 घर स्थानक वासी के हैं। 54 ढवाणा हलवद तालुके का यह छोटा गाँव है, जो कंकावटी नदी के वांये तटपर आबाद है / इसमें एक उपाश्रय और दशा श्रीमाली जैनों के 10 घर हैं, जो भावुक हैं। यहाँ से ध्रांगध्रा सात कोश है और वीचमें 2 कोश पर जीवा गाँव आता है, जिसमें जैनों के पांच घर हैं। 55 कोंढ ध्रांगध्रा रियासत का यह कसबा है, जिसमें दशा श्रीमाली जैनों के 40 घर आबाद हैं, जिनमें पांच घर लोंकागच्छ और शेष तपागच्छ के हैं / यहाँ दो उपासरा, एक धर्मशाला और एक छोटे शिखरवाला जिनालय है, जिसमें .2 फुट बडी श्रीपार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान है। 56 करमाद___ यहाँ राजपूत, सथवारा और कणबी आदि कास्त Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 159 ) कारों के 50 घर हैं, जो सत्संगी और धर्मप्रेमी हैं। इस में जैनों के दो घर हैं, जो साधु-साध्वियों के पूर्णभक्त हैं और यहाँ ठहरने के लिये ठाकुर का मठ है। 57 परमारनी टीकर___ मूली तालुके का यह गाँव है, जिसमें सरकारी स्कूल और पोस्ट ऑफिस भी है। यहाँ जैनों के 12 घर हैं, जो प्रायः स्थानकवासी हैं / एक उपासरा और एक गृहमन्दिर है, जिसमें श्रीसुमतिनाथ की धातुमय पंचतीर्थी विराजमान है। 58 मूली पूर्वकाठियावाड एजंसी के ताबे मूली संस्थान की राज्यगादी का यह मुख्य शहर है / इससे दो माइल दूर मूलीरोड नामका रेल्वेस्टेशन है और शहर में सर्वत्र पक्की सडक है। यह भोगावा (उमयारी) नदी के दहिने तट पर आबाद है और इसकी जनसंख्या 6000 मनुष्यों की है। गाँव के किनारे पर भोगावा के पास स्वामिनारायण का देवल और धर्मशाला है, जिसमें स्वामिनारायण पंथ के भोजनानंदी 75 साधु पडे रहते हैं, जिनकी लीला व्यमिचार पूर्ण है। वीसा श्रीमाली 25, दशा श्रीमाली 20, एवं, 45 घर मंदिरमार्गी जैन और 55 घर स्थानकवासी जैनों Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 160 ) के हैं। यहाँ एक उपाश्रय, एक धर्मशाला और एक जिनमदिर है, जिसमें श्रीपार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान है। 59 सायला ( भगत का गाँव ) पूर्वकाठियावाड एजंसी के झालावाड में यह इस संस्थान की राज्यधानी का मुख्य शहर है / इसके नीचे 42 गाँव है और सुबह विना खाये पीये लोग इस शहर का नाम लेना अमंगल समझते हैं, इस लिये लोगोंने इसका दूसरा नाम 'भगतनोगाम' ऐसा कायम किया है / इसकी आबादी 8000 मनुष्यों की हैं, जिनमें बहुत भाग परदेश में रहनेवाला है / इसके चोतरफ भग्नावशिष्ट कोट है और उसके बाहर बडा तालाव है, जो वर्षभर जलपूर्ण रहता है / सारा शहर तालाव का पानी पीता है और इसका जल कतिपय खेतों में भी पहुंचाया जाता है / सुदामना दरबाजा के पास एक शिखरबद्ध जिनालय है, जिसमें मूलनायक श्रीअजितनाथ आदि की जिन प्रतिमा विराजमान हैं। इसके पास ही एक कम्पाउन्ड में दो उपाश्रय और एक बडी धर्मशाला है। यहाँ वीसा श्रीमाली जैनों के 25, दशा श्रीमाली जैनों के 50 एवं 75 घर देरावासी और दशा श्रीमाली स्थानकवासी जैनों के 125 घर हैं, जिनमें परस्पर मेलजोल प्रशंसाजनक है / यहाँ से जोरावर नगर तक त्राम्बे रेल्वे-सायला ठाकुर के तरफ से नित्य जाती आती है। Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 60 सुदामना निम्बेलीनदी के दहिने तट पर झालावाड प्रान्त के पालीयाद तालुके का यह छोटा गाँव है / इसमें दशा श्रीमाली जैनों के 20 घर और स्थानकवासी लोंकागच्छ के 35 घर हैं / एक छोटा उपाश्रय, एक स्थानक और एक शिखरबद्ध सुंदर जिनालय है, जिसमें श्रीवासुपूज्यस्वामी आदि की 3 प्रतिमा विराजमान हैं, जो श्वेतवर्ण 2 फुट बडी हैं और यहाँ सं० 1978 में स्थापन की गई हैं / मूलनायक के आसन पर लेख है कि__२४-" संवत् 1606 वर्षे माघकृष्ण 5 रवी श्रीहेवाडा वा० उइसवालज्ञातीय श्रीदेल्हा, उ० आल्हणश्रे० वागदेवनाना खश्रे०, वासुपूज्य बि० का।" 61 नोली धोलेरा तालुके का यह गाँव है जिसमें काठी, कोली, खोजा आदि के 150 घर आबाद हैं / यहाँ पूर्वकाठियावाड एजंसी का थाना और लोकलबोर्ड स्कूल है, जिसमें पचास विद्यार्थी गुजराती शिक्षा पाते हैं। इसमें दशाश्रीमाली जैनों के 6 घर हैं, जो स्थानकवासी होने पर भी देरावासी मुनिराजों के भक्त हैं। 11 Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 162 ) 62 पालीयाद बोभीनदी के दहिने तट पर पूर्वकाठियावाड एजंसी के ताबे का यह अच्छा कसबा है, जो 500 घरों की आबादीवाला है। इसमें देरावासी 35 और स्थानकवासी 80 एवं जैनों के 115 घर हैं, जिनमें 20 घर वीसा श्रीमाली और शेष दशा माली हैं। यहाँ एक उपाश्रय, एक धर्मशाला और एक छोटा शिखरबद्ध जिनालय है, जिसमें श्रीशान्तिनाथ आदि की तीन जिनप्रतिमा विराजमान हैं, जो श्वेतवर्ण 2 फुटबडी अर्वाचीन हैं। यहाँ के जैन साधु साध्वियों के पूर्ण भक्त हैं / परन्तु स्थंडिलभूमि दूर होने के कारण यहाँ कोई क्रियापात्र योग्य (विद्वान् ) साधु स्थिरवास नहीं करता / 63 बोटाद___ भावनगर तालुके का यह छोटे शहर के समान कसबा है, जो भावनगरसंस्थान के ग्यारह महालों में से एक है। यहाँ रेल्वे का जंकसन स्टेशन है और यहाँ से एक रेल्वे लाइन जसदण, दूसरी अहमदावाद जाती आती है / शहर के चोतरफ कोट और उसमें चार दरबाजे हैं और इसकी जनसंख्या अंदाजन 17000 मनुष्यों की है। सरकारी स्कूल, पोस्टऑफिस भी है और सडकें व उनपर इलेक्ट्री की बत्तियाँ लगी हैं / इसमें वीसा श्रीमालीजैनों के 100 Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ( 163 ) और दसा श्रीमालीजैनों के 200 घर हैं, जिनमें आधे देरावासी तपागच्छ के और आधे स्थानकवासी लोकागच्छ के हैं / स्थानकवासियों की 'बोटादशाखा' इसी गाँव से निकली है / यहाँ के जैन कदाग्रही, ममत्वी और छिद्रग्राही हैं, जिससे यहाँ योग्य मुनिराजों का आगमन कम होता है / शहर में दो उपाश्रय, एक धर्मशाला और एक शिखरबद्ध जिनालय है-जिसमें श्रीऋषभदेव आदि की पांच प्रतिमा स्थापित हैं, जो श्वेतवर्ण 3 फुट बड़ी दर्शनीय प्राचीन हैं / एक श्वेताम्बरजैनपाठशाला भी है, जिसमें मूर्तिपूजक जैनबालकों को पंचप्रतिक्रमण और चार कर्मग्रन्थ तक अभ्यास कराया जाता है / 64 लाठीदड___ यहाँ वीसा श्रीमालीजैनों के 25 घर और एक छोटा उपाश्रय है / एक छोटे शिखरवाला जिनालय भी है, जो यहीं के निवासी संघवी लालचंद-नरसिंह-भूधर बेचर का बनवाया हुआ है / इसके मूलनायक श्रीचन्द्रप्रभस्वामी है, जो सं० 1958 में विराजमान किये गये हैं। मन्दिर के प्रतिष्ठोत्सव पर संघवी बेचर रामजीने सारे गाँव को तीन दिन तक भोजन दिया था। गाँव के लोग संघवीजी को चांदला देने को आये, परन्तु उनने चांदला नहीं लिया / उसके एवज में श्रावणमास से भाद्रवमास की Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 164 ) पंचमी तक कुंभारों को निभाडा नहीं जलाने का, तेलियों को घाणी नहीं चलाने का, और हरएक अमावास्या को खेती बंध रखने का कबूल कराया। इसके उपलक्ष्य में उनको हरसाल पारणा के बाद लाडू सोपारी चूला दीठ दी जाती है। 65 लाखेणी भावनगर तालुके का यह छोटा गांव है, जो अंदाजन 250 घरों की आबादीवाला है। इसमें वीसा श्रीमाली जैनों के 18 और दशा श्रीमाली जैनों के 2 घर हैं, जो सभ्यता, धर्मप्रेम और साधुभक्ति से रहित हैं / गाँव के बहार नदी के किनारे पर एक जीर्ण धर्मशाला है, जो अहमदावादनिवासी हठीभाई हेमाभाई की बनवाई हुई है। इसीके पास एक छोटा उपासरा और उसके एक कमरे में गृहमन्दिर है, जिसमें श्रीमुनिसुव्रतस्वामी की धातुमय प्राचीन पंचतीर्थी स्थापित है। 66 पसेगाम सोवनगढ तालुके का यह गाँव है, जो अंदाजन 350 घरों की आबादीवाला है। इसमें वीसा श्रीमाली जैनों के 30 घर जो तपागच्छ देरावासी हैं। यहाँ दो उपाश्रय, एक छोटी धर्मशाला और एक शिखरबद्ध जिनमन्दिर है-जिसमें श्रीधर्मनाथ आदि की श्वेतवर्ण सवा दो फुद् बडी तीन प्रतिमा स्थापित हैं / पोस्ट ऑफिस और गुजराती स्कूल है। Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 165 ) 67 पीपराला. रंगोलीनदी के दहिने तटपर यह गाँव है। इसमें वीसा श्रीमाली जैनों के साधारणस्थितिवाले 10 घर हैं, जो भक्तिभाव रहित हैं। एक दो मंजिला उपाश्रय है, उसके नीचे एक कोठरीमें श्रीसिद्धचक्र आदि की तस्वीरेंदर्शनार्थ रक्खी हुई हैं। 68 सांढेडा भावनगर तालुके का छोटी मगरेली टेकरी पर यह गाँव है, जो कास्तकारों के तीस घरों की आबादीवाला है / इससे चार फलांग दूर शंकर और हनुमान का देवल है, जो एक बडी धर्मशाला के कम्पाउन्ड में है / इसके पास ही बोंकरा नदी और उसके तटपर छोटा बगीचा है जिसमें आम, अमरुद, सीताफल आदि के वृक्ष लगे हुए हैं / बोंकरानदी पर पक्का बांधा हुआ एक जलकुंड भी है, जो सं० 1940 में बांधा गया है। सांढेडा गाँव सांढेडा महादेव को अर्पण किया हुआ है और इसकी आवक से देवल का खर्चा निभता है। उष्णकाल में यह स्थान बडा ठंडा रहता है और प्रति वर्ष यहाँ मेला भी भराता है। 69 पालीताणा गिरनार, कटारिया और भद्रेश्वर आदि पवित्रतम प्राचीन तीर्थों की संघसह यात्रा किये वाद मालवा, मेवाड, कच्छ, काठीयावाड और गुजरात देश के कतिपय श्रावक Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 166 ) श्राविकाओं के अत्याग्रह से सं० 1991 का चोमासा हमारा मुनि श्री अमृतविजयजी, विद्याविजयजी, सागरानन्दविजयजी, चतुरविजयजी और उत्तमविजयजी; इन पांच मुनिवरों के सहित सिद्धक्षेत्र-पालीताणा में ही हुआ / व्याख्यान में चारों महिना श्री उत्तराध्ययन सूत्र (अध्ययन 1012) सटीक और भावनाधिकार में 'चम्पकमाला चरित्र' वांचा / यहाँ तपस्या, पूजा, प्रभावनादि धर्मकार्यों के सिवाय शा० प्रतापचंद धूराजी बागरा ( मारवाड) वाले के तरफ से आसोजसुदि 15 से मगसिरसुदि 2 तक ( 47 दिनावधिक ) उपधानमहातपःक्रिया का आराधन अति उत्साह और उत्सव के साथ कराया गया। ॐ शान्तिः शान्तिः !! शान्तिः !!! श्रीसौधर्मबृहत्तपोगच्छमुखमंडन-सुविहितसूरिकुलतिलकसर्वतत्रस्वतत्र-जङ्गमयुगप्रधान-जैनशासनसम्राटपरमयोगिराज-प्रातःस्मरणीय-जगत्पूज्य-श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरीश्वरचरणारविन्दचतुरभृगायमाण-व्याख्यानवाचस्पत्युपाध्यायमुनिश्रीयतीन्द्रविजय-सङ्कलिते 'श्री यतीन्द्रविहारदिग्दर्शनो' नाम ऐतिहासिकग्रन्थे तृतीयो भागः समाप्तः। Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-नम्बर 1 इस दिग्दर्शन के तृतीय भाग में दर्ज किये गये जिनप्रतिमा, और जिनमन्दिरों के संस्कृत प्रशस्तिलेखों का सरल हिन्दी अनुवाद। मोटागाम (कोटडा मंदिर) १-बुहाडानगर के समस्त संघने श्रीगोडीपार्श्वनाथ के चरण-पादुका बनवाये और उनकी प्रतिष्ठा भट्टारक श्री विजयजिनेन्द्रसूरीश्वर के उपदेश से सं० 1845 माघसुदि 10 सोमवार के दिन महोपाध्याय लाभविजय के शिष्य पं० सौभाग्यविजय, उनके शिष्य मुनिसिंहने की / २-बीजोवानगर के संघने श्रीऋषभदेव का बिम्ब कराया और श्रीवरकाणातीर्थ में उसकी प्रतिष्ठा संवत् 1951 माघसुदि 5 के दिन तपागच्छीय भट्टारक श्री विजयराजसूरिने की। वरमाण के जिनालय में ३-सं० 1351 माघवदि 1 सोमवार के दिन पोर Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 168) वाड सेठ साजण भार्या राल्हा का पुत्र पूनसिंह, उसकी भार्या पड़ा और लज्जालू के पुत्र पद्म की स्त्री मोहिनी के पुत्रोंने विजयसिंहमूरि के उपदेश से जिनयुगल बनवाये / ४-ब्रह्माणगच्छ के जिनालय में मडाहडीय पूनसिंह की स्त्री पदमल के पुत्र पद्मदेवने जिनयुगल बनवाये और उनकी प्रतिष्ठा सं० 1351 में विजयसिंहसूरीजीने की। ५-सं० 1446 वैशाखवदि 11 बुधवार के दिन ब्रह्माणगच्छीय भट्टारक श्रीसुव्रतसूरि, उनके शिष्य ईश्वरसूरि, तच्छिष्य विजयपुण्यमूरि, तच्छिष्य रत्नाकरसूरि, उनके पटधर श्रीहेमतिलकसूरिने पूनसिंह के आत्मकल्याण के लिये मंडप कराया। ६-सं० 1242 वैशाखसुदि 15 सोमवार के दिन श्रीमहावीर का बिम्ब और अजितनाथ की देहरी की यह पद्मशिला पूणिग के पुत्र ब्रह्मदत्त, जिनहाप, वन्ना, मना, सायब आदिने बनवाई, सूत्रधार पूनडने बनाई। ब्रह्माणस्वामी देवल के स्तंभ पर ७-सं० 1356 ज्येष्ठवदि 5 सोमवार के दिन ब्रह्माणमहास्थान पर महाराजकुल विक्रमसिंह के शासनकाल में पाटीदार राजा वीसड की स्त्री लखनदेवीने ब्रह्माणस्वामी के देवल का मंडप कराया। Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 169 ) पालणपुर शांतिनाथ मंदिर (नोट में). ८-सं० 1747 वैशाखसुदि 6 शुक्रवार के दिन पालनपुर के समस्त संघने शान्तिनाथ प्रासाद का उद्धार कराया और पं० नयविजयगणि शिष्य मोहनविजयगणिने उसकी प्रतिष्ठा की। ९-संवत 1331 वैशाखवदि 4 के दिन कोरंटकगच्छीय जिनालय (शांतिनाथ-प्रसाद) में सेठ जगपाल भार्या जसमा के पुत्र वीराकने माता के श्रेय के वास्ते श्रीसीमंधरस्वामी का बिम्ब कराया और स्थापन किया। १०-समस्त श्रावक श्राविका समुदायने सत्तरिसय जिनप्रतिमा (पट्टक) कराया और उसकी कोरंटकगच्छीय श्रीमानाचार्यसंतानीय श्री सर्वदेवमूरिने प्रतिष्ठा की / लीबड़ी शान्तिनाथ मंदिर ११-संवत् 1893 माघसुदि 10 बुधवार के दिन बम्बइ वास्तव्य ओशवाल ज्ञातीय वृद्धशाखीय नाहटागोत्रीय सेठ करमचंद, उनके पुत्र सेठ अमीचंदने श्रीबाहुजिन का बिम्ब कराया और उसकी प्रतिष्ठा पालीताणा नगर में खरतरपिप्पलियागच्छीय जं० यु० भ० श्रीजिनचन्द्रसरि की विद्यमानता में जं० यु० भ० श्री जिनभद्रसरिजीने की। Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (170 ) चूडा श्रीसुविधिनाथ मंदिर १२-चूडानगराधिपति महाराज रायसिंहजी के समय सं० 1916 शाके 1781 उत्तरायण सूर्य में पौषसुदि 7 बुधवार के दिन लघुशाखीय श्रीमाल यशवंतशाह पुत्र सोमजी, मानजी, माधो, खेमा, रणमल, राजा, वस्ता, झपूर, नाथा आदि परिवार से सुविधिनाथ का चैत्य बनवाया और उसकी प्रतिष्ठा कराई, कल्याणकारक हो / राणपुर सुमतिनाथजी १३-सं० 1879 फाल्गुनवदि 12 शनिवार के दिन ओशवाल नीनाकने श्रीसुमतिनाथ का विम्ब कराया और उसकी प्रतिष्ठा लछमनपुरी में वृहत्खरतरगच्छीय भट्टारक श्रीहर्षमरिने की, शुभकारक हो। उमराला अजितनाथ पब्बासन पर १४-संवत् 1867 शाके 1732 उत्तरायणसूर्य में वैशाखवदि 6 बुधवार के दिन श्रवणनक्षत्र, ब्रह्मयोग, सूर्योदय से इष्टघटी 4, वृषलग्न में भृगुलग्न नवांश में तृतीय मीनलग्न और गुरुदैवतीय कल्याणवती वेला में उमरालानगर के तपागच्छीय वीसा श्रीमाली जैनसंघने नवीन जिनालय में श्रीअजितनाथ का निम्ब स्थापन किया और णस्वारक विजयदेवेन्द्रसूरीश्वर के राज्य में पं० प्रेमसत्क Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 171 ) पं० अमरविजयगणीने स्वहस्त से प्रतिष्ठा की। प्रभावसागर सत्क-मुनि झवेरसागरने लिखा, अजितनाथजी के प्रसाद से शुभकारक हो / सणोसरा आदीश्वर मन्दिर १५-विक्रमसं१९७२ माघसुदि 11 चन्द्रवार के दिन सणोसरा गांव में भावनगर निवासी वीसा ओशवाल परी० धोल, पुरुषोत्तम त्रस्टि दो के द्रव्य से श्रीआदीश्वर का बिंब स्थापन किया / तपागच्छीय गणिमुक्तिविजय शिष्य मुनिवर मोतीविजयने प्रतिष्ठा की, श्रीकारक हो / गोंडल श्रीचन्द्रप्रभ का मन्दिर १६-कल्याण कारक संवत् 1864 शाके 1729 वैशाखवदि 6 सोमवार के दिन तपागच्छीय विजयजिनेन्द्रसूरि के उपदेश से कुंभाजी के नगर में राजा किसनाजी के समय अणहिल्लपुरपत्तनादि संघने नवीन जिनालय बनवाया और उसमें श्रीचन्द्रप्रभ का प्राचीन विम्ब स्थापन किया। जडेश्वर महादेवदेवल में १७-श्रीमान् गायकवाड की सेवा से प्राप्त प्रतिष्ठा (प्रशंसा ) और भूमिवाले, स्वन्याय से सौराष्ट्र (सौरठ) को अपने आधीन करने और समस्त राज्य भारत Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 172) प्राप्त करनेवाले विड्वलने सं०१८६१ फाल्गुनसुदि 12 शनिवार के दिन पुष्य नक्षत्र में जडेश्वर का देवल बनाया, गांगाधर से प्रेरित होकर मैंने महादेव की पूजा की। यहाँ यह देवल प्रथम ही मैंने बनाया, इसलिये जडेश्वर मेरे ऊपर प्रसन्न हो / जय का मूल और जगत का जन्मादि कारण होने से विद्वान् इसको जटेश्वर कहते हैं। सं० 1869 शाके 1734 फाल्गुनसुदि 12 शनिवार के दिन पुष्पनक्षत्र, आयुष्ययोग, बालवकरण और सूर्योदय से इष्टघटी 15 / 21 के समय में देवल की प्रतिष्ठा हुई, जो इष्ट दायक हो। कटारिया महावीरप्रतिमा 18 सं० 1686 वैशाखसुदि३ के दिन श्रीमहावीर का बिंब कराया और उसकी प्रतिष्ठा कटारियागांव में तपागच्छीय आचार्य श्री विजयसिंहमूरिजीने की। ___इस प्रतिमा के पिछले भाग में भी तीन पंक्ति का लेख है जिसमें प्रतिष्ठा करनेवाले का विशेष परिचय और उस समय के ठाकुरवंश का हाल होगा। लेकिन प्रतिमा भीत के पास मजबूत चेपी हुई होने से वह वांचा नहीं जाता, शिर्फ अगले भाग में ऊपर मुताबिक लेख है। * बोध (बिंध ) संभवनाथप्रतिमागस्त १९-सं० 1682 वैशाखसुदि 3 के दिन बिंधनगर Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 173 ) के संघने श्रीसंभवनाथ का बिम्ब कराया और उसकी प्रतिष्ठा तपागच्छाचार्य श्रीविजयसिंहमूरिजीने की। अंजार सुपार्श्वनाथमंदिर २०-श्रीवीर सं० 2386 विक्रमसं०१९१६ शाके 1782 ज्येष्ठसुदि 13 शुक्रवार के दिन कच्छदेश के अंजारनगर में विधिपक्ष(अंचल)गच्छीय श्रीपूज्य भट्टारक श्री 108 श्रीरत्नसागरमूरिजी के राज्य में उनके आज्ञापात्र मुनिक्षमालाभजी के उपदेश से भुजनगर निवासी वडोडागोत्रीय सेठ मांगजी भवानजीने नवीन मन्दिर कराया और अंजारनगर में संघमुख्य सा वालजी शांतिदास सहित श्रीसुपार्श्वनाथ के बिम्ब की प्रतिष्ठा तथा जिनभक्त मातंगयक्ष, शांतादेवी, चक्रेश्वरीदेवी और महाकालीका की मूर्ति की स्थापना की। जंगी चन्द्रप्रभप्रतिमा-- २१-सं०१९२१ शाके 1786 प्रथम माघसुदि 7 के दिन कच्छकोठारा निवासी अंचलगच्छ में ओशवाल शा० गांधीमोहता शा० श्रीनायक माघसी की स्त्री हीरबाई के पुत्र शा० केशवजीने (चन्द्रप्रभ प्रतिमा) कराई। वांढिया चन्द्रप्रभमन्दिर-- २२-सं०१८५७ माघसुदि 6 शुक्रवार के दिन जेत Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 174 ) पर संघने श्रीचन्द्रप्रभ का बिम्ब कराया / उसकी प्रतिष्ठा तपागच्छीय भ० श्रीविजयदेवेन्द्रसूरीश्वर के राज्य में पं० मेघसागरगणि, भ० रत्नसागरगणि, पं० देवसागरगणि, पं० हेमसागरगणि और देवचंदजीने की / आणंदपुर के समस्तसंघने जाडेजा ठाकुर भावां के राज्य में यह जिनालय बनवाया और पं० दयासागर तथा गुमानसागर दोनों यतिने 40000 कोरी दी। २३-सं० 1868 शाके 1734 चैत्रसुदि 15 शुक्रवार के रोज आणंदपुर के समस्त संघने जिनमन्दिर का सभी काम संपूर्ण कराया और तपागच्छीय विजयजिनेन्द्रसूरीश्वर के शासन में पं० राजसत्क-५० मेघसागरगणि ने दो महीना वाद जिनालय की प्रतिष्ठा तथा ध्वजादंड जाली संपूर्ण कराई / शा० लवजी मकनजीने देरासर का काम अपनी देखरेख में पूर्ण कराया। किमाड और जाली शामजी नारायणने कराई / सुदामना वासुपूज्य प्रतिमा-- २४-सं० 1606 माधवदि 5 रविवार के दिन श्रीहेवाडावासी ओशवाल श्रीदेल्हा, ओशवाल आल्हण, सेठ वागदेवने स्व श्रेय के लिये श्रीवासुपूज्य का बिम्ब कराया। Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-नम्बर 2 श्रीसिद्धाचलमंडन-स्तवन चोढालियो। मंगलाचरणम् / देशी-नाटकीय-दादरा. आया प्रभू के दरबार, करो भवदधि पार / मेरे तूं है आधार, मुझे तार तार तार // 1 // आत्मगुण के भंडार, तेरी महिमा का नहीं पार / देखा सुंदर दीदार, करो पार पार पार // 2 // तेरी मूरति मनोहार, हरे मन के विकार / __ खरा हैयाना हार, वंदु वार वार वार // 3 // आया मंदिर मझार, किया जिन को जुहार / प्रभु चरण आधार, खरो सार सार सार // 4 // सूरिराजेन्द्र सुधार, मुनियतीन्द्र अपार / इनकी खूबी का नहीं पार, विनती धार धारधार // 5 // __ ढाल-प्रथम / देशी-भमरिया कुवाने कांठडे. चन्द्रवदने प्रभु शोभता हो राज, प्रेमे लागुं मैं नित्य पाय रे / सिद्धाचल वासी को मेरी वन्दना हो राज // 1 // Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 176 ) अनन्त भव्य सिद्ध हुए हैं जी राज / आगामि काल केई होवेंगे // सिद्धाचल० // 2 // पांडव वीस कोडी साथ में हो राज / सिद्ध हुए ए गिरि आय रे // सिद्धाचल० // 3 // __ थावच्चाऋषि इक सहस्र से हो राज / मुक्ति पहुंचे परिवार रे // सिद्धाचल० // 4 // __ एसे कईक देखो दाखले हो राज / किससे कहे न कदी जाय रे // सिद्धाचल० // 5 // विमलवसही नामे दीपती हो राज / देहरासर चउतीस रे ॥सिद्धाचल० // 6 // लघु देहरियाँ उनसाठ है जी राज / बिंब सहस्र सवा तीन रे // सिद्धाचल० // 7 // चरणपादुका के कई जोडले हो राज / देखत हर्ष बहु होय रे ॥सिद्धाचल० // 8 // मूलमंदिर ऋषभदेव का हो राज / रायणरूंखे सुखकार रे ॥सिद्धाचल० // 9 // ऐसे जिनेश्वर को मेटते हो राज / पातिक पलमें मिट जाय रे // सिद्धाचल० // 10 // संवत् उगणीस नेऊ साल में हो राज / भेटे राजेन्द्र-रविराय रे ॥सिद्धाचल० // 11 // यतीन्द्रउवज्झाय भावे वंदता हो राज / शिवपुर सहेजे भवि पाय रे // सिद्धाचल० // 12 // Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (177) ढाल-द्वितीय। देशी-मुखडा निरखन दे रे मिजाजन, प्रमुख जोवा चालो सखीरी, प्रभुमुख जोवा चालो / आज प्रभु प्यारे श्री आदिजिनंद को, भेटवा सखी सहू चालो // टेर॥ मीठी मधूरि लागे सलूणी, मुद्रा मन को लोभाय / प्रेम भणी भवि पीवे जो प्याला, कर्मन् के फंद मिट जाय आ. 1 द्वितीयटोंके सोलह मंदिर, दीपे झाकझमाल / देवकुलिकाएँ एकसो बत्तीस, मूर्ती गुणमणी माल आ. 2 संवत् अठारह तिराणुं वरसे, छेल्लो ए उद्धार / रौनक चंगी जिनगृह मांहे, वंदु वारं वार // आज० // 3 // तृतीयटोंक श्रीबालावसी की, प्रेमे पूजू पाय / शिखरबद्ध छ मंदिर छाजे, दिन दिन रंग सवाय आ० 4 द्विसहस्रऽरु सातसो पांसठ, दो टोंके बिंब सु जाण / पंचमकाले भूतल ऊपर, अविचल ऊग्यो भाण |आ०५॥ चतुर्थटोंक श्रीप्रेमाबाई की, पूर्व दिशा में द्वार / चिहुओर देवकुलिकाएँ सोहे, होवे हर्ष अपार // आ०६॥ संवत् एक निधि नेऊनी साले, मेटे श्रीजिनराज / राजेन्द्रभानु भलकत जगमें, यतीन्द्र राखो लाज आ. 7 12 Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 178 ) ढाल-तृतीय। देशी-सिद्धचक्रपद वंदो रे भविका. पंचमटोंके श्रीऋषभ जिनेश्वर, मेटे हम बहु भावे / चउविध संघसे जातरा कीनी, मनमें मोद न मावेहो भाविका सिद्धाचल सुखकार, ऊतारो भव पार हो भविका सिद्धा०१॥ ऊजमबाइ की टोंक में भारी, नन्दीश्वर की रचना / जाकर प्यारे भावे पूजो, शिवपुर सहेजे वसना हो भ० सि.२ शक्कर से भी मीठी अधिकी, शाकरवसही वखाणो। एकशत ऊपर चालीस प्रतिमा, तेज रवी सम जाणो हो भ०सि.३ छीपावसही टोंक के अन्दर, मंदिर शिखरी पाँच / बुद्धिबल से परीक्षा करके, रत्नखरा लोजाँच हो भवि० सि.४ षोडशशत पंचोत्तर अब्दे, जिर्णोद्धार सुमार। राज राजेन्द्रने वंदन करतां,यतीन्द्र अघ द्यो निवार हो भ.सि.५ ढाल-चतुर्थ / देशी-छोटी मोटी सुइयाँ रे, जालीका मेरे कातना / अहो प्रभु प्रियकार, फिर फिर से दर्श दिलावना ॥टेर // चउमुख टोंके बारह मंदिर-हाँ बारह / वाद करे आकाश, फिर फिर से दर्श दिलावना // 0 // 1 // जिन मूरतियाँ प्रेम की पतियाँ-हाँ प्रेमकी / सातसौ ऊपर तीन, फिर फिर से दर्श दिलावना // 0 // 2 // Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 179 ) खरतरवासे पूर्ण प्रकाशे-हाँ पूर्ण प्रकाशे / मंदिर ग्यारा सार, फिर फिर से दर्श दिलावना // 0 // 3 // कंचनगिरि की पूजा प्यारे-हाँ पूजा प्यारे। मवजल से देवे तार, फिर फिर से दर्श दिलावना ॥अ०॥४॥ ___ अगर प्यारे पूजन से दूर रहोगे-हाँ दूर रहोगे। होगा पश्चाताप, फिर फिर से दर्श दिलावना // 0 // 5 // __ तपगच्छराया, राजेन्द्र गवाया-हाँ राजेन्द्र० / यतीन्द्र आनंद पाय, फिर फिर से दर्श दिलावना // 10 // 6 // कलश-हरिगीतसंवत् उगणी नेऊ साले, आये हम सिद्धाचले। अषाढसुदि द्वितीया दिने, भेटे प्रभु चरणों बले // गिरिराज स्तवना ढाल चारों, भाषा सुंदर मैं भणी। राजेन्द्र शुभचर यतीन्द्र मुनिवर, राखजो किंकरगणी // 1 // घेटीमंडन-श्रीशान्तिजिन-स्तवनम् / तर्ज-रामायणी-गझल. दर्श करने का मजा, भावुक जनों ने ले लिया। दर्श करके दुर्गति का, सभी रास्ता खो दिया ॥टेर // दर्श के परताप से, आर्द्रकुमर पाया सही / पवन छोडा देश सारा, संजम साधन कर लिया॥०॥१॥ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 180) पा पंथे मुक्तिरमणी, वरा रंगे राजवी। . तस्य कई नर नार हाथे, पूजते प्रभुकी मया ॥द०॥१॥ प्रेम मक्ते करी पूजा, द्रौपदी साँची सती / दर्य कर शुद्ध हर्ष मन से, देव सुख पाई गया॥द०॥३॥ घेटीमंडन शान्ति सुंदर, एक शत अठ वंदना / तुम दर्श से कई जीव सीझे,ज्ञानाभ्यासी हो गया।।द०॥४॥ आश पूरण दास किंकर, राजेन्द्र दिल दया वहे / यतीन्द्रवाचक वंदते,गुण रूप से सुखिया थया॥द०॥५॥ गारीयाधारमंडन-श्रीशान्तिजिन-स्तवनम् / देशी-महोब्बत न कीजे जमाना बु०, प्रभुजी के नाम बिन, जियना बुरा है। विषयों के संग में, लिपटाना बुरा है ॥टेर // आरजदेश उत्तम कुल पाया। निशदिन फोगट, गुमाना बुरा है // प्रभु० // 1 // मात पिता सुत भाई भतीजा। बिन मतलब से बसाना बुरा है // प्रभु० // 2 // भव अटवी नटवी ज्यु नाच्यो / राच्यो रंग सहाना बुरा है ॥प्रमु०॥३॥ संसार माया बादल छाँया। काँचसी कायापे, घिसाना बुरा है // प्रभु०॥४॥ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 181) प्रभुजी की वाणी अमृत जाणी। नहीं पीवे प्राणी उसकी, प्यासा बुरा है // प्रभु० // 5 // गारीयाधारे आये भोमवारे / समय को व्यर्थ गुमाना बुरा है // प्रभु० // 6 // शान्तिजिनेश्वर तीर्थकर नामी / फोगट आडम्बरी, मुहाना बुरा है // प्रभु० // 7 // सोलम राजेन्द्र दीन दयालु / 'यतीन्द्र' आलम में, लुभाना बुरा है। प्रभु०॥८॥ अमरेलीमंडन-श्रीसंभवजिन-स्तवनम् / तर्ज-महाड. श्रीसंभव सारा, कामण गारा, मेरे तुं दुःख निवार / जनु मरण निवारा, प्रभुजी प्यारा, मेरे तुं दुःख निवार॥टेर॥ नृपजितारी कुलमें आये, सारी सेना मात / सावत्थी नगरी में जन्मज पाये, हुए जग विख्यात रे॥ प्रभु वंश दिपाया, संजम चाया, उतरे भवजल पार श्री सं.१ कोमल कुसुम की माल बनाई, चंदन चंपेली थाल / विविध प्रकारे मर्दन करता, मझधर से तारो बाल रे॥ यश तोरा गवाया,सुणी हम आया, लेना मेरी सार श्री सं.२ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 182 ) फर्शनायोगे अमरेली आये, देखा तुझ दीदार / संघके साथे भाव भक्तिसे, लीये जिन जुहार रे // सुधरेजिंदगानी, अमीयसी वाणी,जाणी तोरी अपार श्री सं.३ प्रभु आठ निवारी पाँचको धारी, बारह को समझाय / तेरह को तिलाञ्जली देई, अढार से मुक्ति पाय रे // तीन तामसी मारे, चार निवारे, देखे प्रभु किरतार श्री सं.४ पौषकृष्ण प्रतिपद दिवसे, संवत नेऊ की साल / सूरिराजेन्द्र का स्मरण करते, यतीन्द्र पति दयाल रे॥ प्रभु प्राण आधारा, जग हितकारा, दर्श दो वारं वार श्री सं.५ बगसरामंडन-श्रीवीरजिन-स्तनम् / देशी-हाय रे ! हुं तो जोबन में झूलती कुमारिका. हाँजी मुने प्यारं लागे छे वीर मुखर्छ / हाँजी म्हारूं जाशे आ वीरथी दुखदं ॥टेर // बगसरा मांहे प्रतिमा प्यारी, गुलबदन जैसे केशर क्यारीमुकुट मणीमय . रत्नजडित का, सुन्दर दिप्ति दीपावता // हाँजी मुने० // 1 // सिद्धार्थना छो आप दुलारा, त्रिशलाजीना नंदन सारा Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 183) क्षत्रियकुंडे गीत गवावता, चालो सखी हर्ष मनावता // हाँजी मुने० // 2 // इकवीस सहस्र वर्ष आण प्रमाणे, चालशे जनता हियडे आणेजयो जयो जयो प्रभुवीर वधावता, जगने प्रमोद पमावता // हाँजी मुने० // 3 // तपगच्छ मंडन सूरिश सारा, राजेन्द्र यतीन्द्र के प्राण आधाराखामी मेरी विनती चित्त में धारता, सेवकने रेजो संभालता ॥हाँजी मुने० // 4 // माऊं झुंझवामंडन-श्रीचन्द्रप्रभुजिन-स्तवनम् / देशी-चालो......जल्दी वीर कुंवर गाईये०, आवो...सब मिल, चन्द्रप्रभु को मेटिलें। आवो...सब मिल, भवजल दुःख मेटिलें ॥टेर // चन्द्रपुरी में महासेन राया, लक्ष्मणाराणी के लाडकवाया / अरे हाँ...मेरी कर्मजंजीर तोडिले // आवो० // 1 // माऊंझूझवा में देखे स्वामी, चन्द्रप्रभुजी का रंग बादामी / अरे हाँ...प्यारे नजरों से आई जोईलें // आवो०॥२॥ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 184 ) अगर कोई पूजा करेगा जो भाई, सुखी हो जायगा शिवराज तांई। अरे हा....मनवा ऐसों से प्रीति जोडिलें // आवो० // 3 // उठो ख्वाब गफलत की निंद को छोडी, अमूल्य समय में मत रहो प्यारे पोढी / अरे हाँ...प्यारे दो घडी प्रभु भजिलें / आवी० // 4 // हमारे तो दिल में इसीका रटन है, राजेन्द्र गुरु बिजली का बटन है। अरे हा...प्यारे यतीन्द्र अघ मेटिलें // आवो // 5 // खारचियामंडन-श्रीधर्मजिन-स्तवनम् / तर्ज-सारी सभा को जयजिनेन्द्र हो, जय०, जगनाथ तोरी मूरति की, महिमा अपार / सुखकार तोरी सूरति की, महिमा अपार // टेर / / धर्म रक्षक धर्म शिक्षक, धर्म जिनवरा / तुम नामकी महिमा रहे, जग में परंपरा // जग० // 1 // धर्म अधर्म आकाश काल, पुद्गल परिहरा। जीव द्रव्य उपादान कारण, निज सत्ता उर घरा ॥जग०॥२॥ शुद्ध स्वरूप सहजानंद प्रमटे, आत्म भाव अनुसरा / हय गय वस्तु पदार्थ तज, भजन प्रक्षु करा ॥जग०॥३॥ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ( 185) खारचिया में भेटे भावे, श्रीजिन धर्म-देव / दर्श से दुर्गति मिटे, पावेय अमृतमेव // जग० // 4 // श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरि, सेवना करूं / यतीन्द्र चरण कमल में, नित शीश को धरूँ॥जगनाथ सहसावनमंडन-श्रीनेमिजिन-स्तवनम् / दोहागढ़ बंका गिरनार का, तीन खूट के मांय / देखत दुर्भय दूर हो, दुख दोहग मिट जाय // 1 // तर्ज--आज मेरे स्वामी आज आनंद पाई. अहो मेरे लाला, आज आनंद वधाई। अहो मेरे प्यारे, आज की ज्योति सवाई // टेर / सहसावन में चल करके आये, सघन झाडी हम आम्र की पाये / पाये मेरे प्यारे, दिन दिन कीर्ति सवाई // अहो० // 1 // दीक्षा कल्याणक प्रभु का जाणो, केवलज्ञान का लेवो प्रमाणो / मानो मेरे प्यारे, लेलो प्रभु गुण गाई // अहो० // 2 // समुद्रविजय कुल उत्तम दीवो, कोटी वरसां लग प्रभुजी जीवो। जीवो मेरे प्यारे, भक्ति से भावना भाई // अहो० // 3 // Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 186 ) महिमा तुम तणी कहाँ लग गाईं, तोरे गुणों का पार न पावें / पावं मेरे प्यारे, मन में मोद न माई // अहो० // 4 // आबाल ब्रह्मचारी सुसारा, राजेन्द्र जगमें हुआ उजारा, उजार मेरे प्यारे, वाचक यतीन्द्र सहाई // अहो० // 5 // गिरनारमंडन-जिन-स्तवनानि / दोहाऊपर कोट गिरनार के, मंदिर महा विशाल / कइक देवकुलिकाओं सह, दीपे झाक झमाल // 1 // देशी-सिद्धाचल जावू रेनित्य गुण गाऊं रे, गिरनारे भणी जाऊं रे दादा आयो तोरे दरबार, सुणो नेमि लाला राखो कछु दरकार // टेर / साखीऊपर कोट की टेकरी, प्रथम टोंक कहेवाय / वहाँ बिराजे आप हो, दर्शन को भवि आय // . सुणो नेमिराया राजुलराणी का किया त्यागहो सुगुणा साहिब हियडे भरी वैराग // नित्य० // 1 // Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 187 ) साखी मेकर वसी बीजी कही, सहस्रफणा पार्श्वकुमार। पारस सम मुझने करो, तार तार मुझ तार / वामादे जाया लंछन अहि अणगारहो दीन दयालु अग्नि से लीयो उगार // नित्य० // 2 // साखीसोनीसंगराम वसई तणी, तृतीय टोंक गुलजार / सहस्रफणीधर वंदिया, मिले मुक्ति का द्वार // सुणो पारस प्यारा, अधम उद्धारक वीरहो मोहनगारा, संसार समुद्र करो तीर // नित्य० // 3 // साखीचतुर्थ टोंके अभिनंदजी, चौथाजिन समुदाय / कुमारवसई नामे भली, प्रेमे लागुं पाय॥ हो प्रभुजी प्यारा, अयोध्या नगरी रायहो राणी गिरुवा, सिद्धार्था हुलराय // नित्य० // 4 // साखीपंचम टोंके दीपता, सिद्धिधाम सुखकार / मंदिर बहुविध देखिया, संभव सुपार्श्व के द्वार॥ हो जिनजी मोरा, नेमिजिनेश्वर पायहो प्रभु मोरा से नित्य तिहाँ जाय // नित्य० // 5 // Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 188) . साखीसप्तम शान्तिनाथ को, मंदिर महाविशाल / राजुलगुफारलियामणी, चौमुख जिन दयाल // हो प्रभुजी प्यारा, मंदिर देव विमानहो जिनजी मोरा गिरनार गड़को जान // नित्य० // 6 // साखीत्रिभुवन उद्योतक आपहो, मैं तेरा हूँ दास / भूल चूक भक्ति विषे, होजो ते सवी नास // हो गिरनारना वासी, राजेन्द्रपति रघुरायहो गुरुवर मोरा, यतीन्द्र करूणा चाय // नित्य० // 7 // देशी-नमो जगवल्लभ किरतारे. नमो भव संतति हरनारे, प्रभु नेमिजिनेश्वर प्यारे // टेर॥ गिरनार मंडन, मोहराय खंडन / अतिशय धाम धरनारे ॥प्रभु० // 1 // राजन के राजा, तज राज्य समाजा। भोग करम क्षय कारे // प्रभु० // 2 // सहसावन में, घर व्रत मन में / केवलज्ञान पानारे // प्रभु० // 3 // राजीमति कन्या, सतीशिरो धन्या / उसको मी संजम दे तारे॥ प्रभु०॥४॥ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 189 ) पचमटोंके, सहस मुनि थोके / सिद्धिसौध सिधारे // प्रभु० // 5 // अंबर नव नंदा, भुवि अष्टमि दिन वंदा / पौषकृष्ण रविवारे // प्रभु० // 6 // सूरिराजिंदा, वंदित नरिंदा। . वाचक यतीन्द्र निस्तारे // प्रभु० // 7 // देशी-नेमकी जान बनी भारी०, रैवतगिरि तीरथ के इंदा, नमो नेमिप्रभु जिनचंदा / सिद्धनाथ निरंतर नामे, पूजाते जैनेतर धामे / अजर अमर निष्कामें, निहारे जिनराज दशा में // टेर // मुरति सुन्दर श्याम सलूणी, शमरस वर्षी जोय / सेवन पूजन भक्ति करतां, आनंद मंगल होय // ___ मिटावे भव भव के फंदा // नमो० // 1 // यदुवंशाम्बर-दिनमणि, ब्रह्मचारी भगवान / सहसावने दीक्षा केवल, पंचम टोंके है निर्वाण // आतम ध्याने विचरंदा // नमो० // 2 // मेकरवसी में आदि सुन्दर, मन्दिर नव सुखकार / संभव श्रीजिनचन्द्रने वंदो, चौमुख जिन जयकार // जुहारो रहनेमि नंदा // नमो० // 3 // Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 190) प्रतापधुरा वागरा वासी, संघ लई आवंत / भद्रेश्वर यात्रा प्रसंगे, मेव्या गिरि उजिंत // वाचक यतीन्द्र सह वंदा // नमो० // 4 // पूरण निधि नंद भू वर्षे, पौषकृष्ण रविवार / यात्रा वंदन सप्तमि दिवसे, कीनी भाव उदार // विद्यामुनि प्रभु गुण गाविंदा // नमो० // 5 // गिरनार-तलाटीमंडन-श्रीआदिजिन-स्तवनम् / देशी-नयनों में रामरस छाँय रह्यो री०, छाय रह्यो छाय रह्यो छाय रह्यो री / मेरे घट में ऋषभजिन छाय रह्यो री ॥टेर // नाभिराय नंदन, दुःख विखंडन / नंदन को चंदन, चढाय रह्यो री // मेरे० // 1 // __ मोरादेवी माता, जग में विख्याता। माता को मन हरखाय रह्यो री // मेरे० // 2 // मस्तक मुकुट, मुकुट में मोती। मोती से ज्योति, जगाय रह्यो री // मेरे० // 3 // .. केशर घोली, भरके कचोली। मोली से झोली, भराय रह्यो री // मेरे० // 4 // तलाटीमंडन, भवदुःख भंजन / प्रभु को अंजन, कराय रह्यो री // मेरे० // 5 // Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 191 ) अरिहा की पूजा, कर्म खपीजा / पूजन से पर्म पद, पाय रह्यो री // मेरे० // 6 // राजेन्द्र आणा, धारे जो शाणा / वाचक यतीन्द्र, समझाय रह्यो री // मेरे० // 7 // जेतपुरमंडन-श्रीवीरजिन-स्तवनम् / देशी-मिल पीवो वैद्य का प्याला, गावत आज वधाई, नगर में गावत आज वधाई // टेर॥ देश पूर्व नगरी अति सुंदर, क्षत्रियकुंड सुहाई / ऋषभ वंश श्रीज्ञातज कुल में, काश्यप गोत्र गवाई न०१ श्रीसिद्धारथ राजा सुहंकर, राणी विदेहा कहाई। त्रिशला राणी नाम अपर जस, गोत्र वाशिष्ठ सुहाई न० 2 चैत्रशुक्ल त्रयोदशी के दिन, मध्य रात जब थाई / चन्द्रयोग शुभ शुभ ग्रह मलीयां,शुभ वेला त्रिशला जाई न०३ छप्पन दिगू कुमरी मिलकर आवे, सूती कर्म कर जाई। चौसठ सुरपति सुरगिरि ऊपर, जनमत जिन ले जाई न०४ जन्म सनातर विधि से करके, फिर घर को ले आई। नन्दीश्वर जा आठ दिनों का, महोत्सव करत अठाई न०५ प्रातःकाल सिद्धारथ कुल में, मंगलाचार फेलाई। शतसहस्रऽ लाख प्रजा को, देवत राजा वधाई न०६ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 192 ) घर घर मंगल कुंभ भरे जब, तोरण हार बंधाई / घर घर थापे पंचरंग सोहे, मोती के चोक पुराई न०७ दश दिन निज कुल तिथि को करते, जिनेन्द्र पूजा रचाई। बारहवें दिन सुत नाम सुहंकर, वर्धमान सुखदाई न०८ रतन जवाहिर माणिक चमके, पालना हेम बनाई / छननन छननन घूघरु बाजे, मोती झालर झलकाई न०९ चालो चालो कहती माता, रेशम डोरी खिंचाई / वीरकुमर को झूले देते, रोम रोम हरखाई न०१० वीरकुमर का पालना सुंदर, जेतपुरे हम गाई। उगणीसौ नेऊ की साले, बारस पौष की आई न० 11 सूरिराजेन्द्र रमत निज रूपे, सारा ने सुखदाई / यतीन्द्रमुनि तुझ सेवा करतां,जगमें फिर नवि आई न०१२ गोंडलमंडन-श्रीचन्द्रप्रभुजिन-स्तवनम् / ___तर्ज-तमे जो जो न वायदा वितावजो रे०, पुर गोंडलशहरे आवजो रे, चन्द्रप्रभुना चरण पखालजो। सांची नित्य नवी भावना भावजो रे, चन्द्रप्रभुना चरण पखालजो // टेर // चन्द्रपुरी है जन्म कल्याणक, महासेन घर नीपजे माणक, राणी लक्षमणा कुंख दिपावजो रे ॥चन्द्र० // 1 // Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 193) शिखरबद्ध जिनगृहमां सोहे, ऊपर कलश नक्षी का मोहे / गुणी गिरुवाना गुण नित्य गावजो रे // चन्द्र० // 2 // संसार माया छोडी है सारी, संजम साधन कीनी तैयारी। रूडी रीते कर्म दहावजो रे ॥चन्द्र० // 3 // भव्यात्माओंने उपदेश देता, कर्म खपावी केवल लेता / जन्म मरण दुःख निवारजो रे ॥चन्द्र० // 4 // चन्द्रप्रभु प्यारा नैनों का तारा, तूं तारक मैं सेवक थारा / मेरी भी वीनती स्वीकार जो रे ॥चन्द्र० // 5 // संवत उगणी नेऊना वरसे, पौषशुक्ल श्रीद्वितीया दिवसे / संघ साथे प्रभुने जुहारजो रे ॥चन्द्र० // 6 // रहो रहो राजेन्द्र हमारा, यतीन्द्रमुनि के प्राण आधारा / शाश्वत वंदना मानजो रे ॥चन्द्र // 7 // राजकोटमंडन-श्रीसुपार्श्वजिन-स्तवनम् / ' तर्ज-गझल. प्रभु तुम दर्श करने से, तमन्ना हो गया हूँ मैं / जगत के झूठे फतवे छोड, तमन्ना हो गया हूँ मैं |टेर॥ सुपारस नाम जो तेरा, जिगर में जम गया घेरा / परम उपकारी तूं मेरा, तमन्ना हो गया हूँ मैं // 0 // 1 // 13 Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 194) वाराणसी नगरी अतिभारी, प्रतिष्ठ का राज्य सुखकारी / पृथ्वीमाता मनुहारी, तमन्ना हो गया हूँ मैं प्र०॥२॥ राजकोटे तुम्हें जोया, जनम के पापों को धोया / संघजन देखते मोद्या, तमन्ना हो गया हूँ मैं ॥प्र०॥३॥ आशपूरण कृपालु देव, करूँ शुद्धभक्ति से मैं सेव / पिलावो प्याला अमृत मेव, तमन्ना हो गया हूँ मैं |प्र०॥४॥ सुपारसनाथ जगस्वामी, पहुंचे मोक्षपुर धामी / करो प्रभु मुझ को भी नामी, तमन्ना हो गया हूँ मैं।प्र०॥५॥ हिन्दभूमि में मशहूरी, सूरिराजेन्द्र की पूरी / यतीन्द्र की वाणी सनूरी, तमन्ना हो गया हूँ मैं॥०॥६॥ ... मोरबीमंडन-श्रीपार्श्वजिन-स्तवनम् / देशी-ज्ञान कबु नहीं थाय, मूरखने. पार्श्वप्रभु विख्यात जगत में, पार्श्वप्रभु विख्यात / सहु जन मनमें भात जगत में, पार्श्वप्रभु विख्यात // 1 // घाम सुसागे मोरबी मंडन, सोरठदेश प्रख्यात ॥ज०॥२॥ वाराणसी नगरी के मांही, जन्म स्थान गवात ॥ज०॥३॥ पुष्पवृष्टि दिव्यध्वनि चामर, बींझत निशदिन तात।।ज०॥५॥ छत्राऽऽसन भामंडल भलके, दुंदुभि शब्द सुनात ज०॥६॥ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 195 ) द्वितीय मंदिर धर्म जिणंद का, अजरामर हो जात ॥ज०॥७॥ सूरिराजेन्द्र अरिहा की पूजा, यतीन्द्र सुखिया थात ॥ज०॥८॥ बेलामंडन-श्रीपद्मप्रभुजिन-स्तवनम् / तर्ज-आशागोडी. हक मरना हक जीना प्यारे, हक से भजो भगवाना। पद्मप्रभु का भजन करन से, मिलेगा मोक्ष का ठाणा ॥प्या० 1 कोशाम्बिपुर में जन्म है आपका, श्रीधर तात ठवाना / सुसीमादे की कुंख दिपावन, हे प्रभुपा गवाना ॥प्यारे०२ पद्मकमल का जंघा में लंछन, चन्द्र विकाशित जाना। द्विशत धनुष की काया कोमल,लेना जीग्रन्थ प्रमाना॥प्या०३ छत्रवृक्ष की निर्मल छाँये, केवलज्ञान प्रगटाना / भविजन का उद्धार करते, मोक्ष में झंडा जमाना ॥प्या०४ बेलामंडन भवदुःख खंडन, नित नित जातरा जाना। पूरण प्रेम से भक्ति करके, निष्कंटक सेज बिछाना ॥प्या० 5 क्या है सुन्दर पद्म की प्रतिमा, रंग बादाम समाना / उगणीस नेऊ साल में आये, मंडल मुनि तीन ठाना॥प्या०६ सूरिराजेन्द्र रवि महाराजे, आतम ध्यान जगाना / यतीन्द्रमुनि श्रीपद्म की सेवा, मांगे हो मस्ताना // प्या०७ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 196 ) खाखरेचीमंडन-श्रीसुपार्श्वजिन-स्तवनम् / देशी-कल्याण. प्रभु तुम दरिशन से, मन लुभाया / मनुआ लुभाया, यश तोरा गवाया ॥टेर // शिरपर छत्र अरु, भामंडल झलके / रतन का वृक्ष रचाया ॥प्रभु० // 1 // चौसठ सुरपति, हाजर खडे हैं। इन्द्राणी नाच नचाया // प्रभु० // 2 // जानु पगरमय, कुसुम की वृष्टि / दुंदुभि नाद सुणाया ॥प्रभु० // 3 // केवलज्ञाने, दुनी में प्यारे। वचनामृत वरसाया ॥प्रभु०॥४॥ खाखरेची मांहे सुपारस स्वामी / प्रेम से शीस नमाया // प्रभु० // 5 // संघ के साथे, जातरा करते / दिन दिन उज्वल काया ॥प्रभु० // 6 // सरिराजेन्द्र गुरु सुपसाये। . यतीन्द्रमुनि गुण गाया ॥प्रभु०॥७॥ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 197 ) कटारियामंडन-श्रीमहावीरजिन-स्तवनम् / देशी-बिहाग. श्रीवीरजिणंद भगवान, भवदधि पार करो // टेर // कटारिया में आप बिराजे, श्वेत वरण छबी जग में गाजे / कर्म कठिण को ततखिण भांजे, जो सेवे गुणवान, भवदधि पार करो // श्री० // 1 // तूं तारक मैं याचक तेरा, करदे बेडा पार हो मेरा। संसार मायाने मुझे घेरा, करो सुबुद्धि निधान, भवदधि पार करो // श्री० // 2 // अष्ट करम रिपु दूर हटाया, शुभध्याने प्रभु केवल पाया। यश तोरा आलम में गवाया, नित्य धोदरिशन दान, भवदधि पार करो // श्री० // 3 // श्रीमद्म॒रिराजेन्द्रजी राया, प्रेमे श्रीवीरप्रभु गाया। यतीन्द्रमुनि तुम लागे पाया, मेरे यूँ दिल में महान, भवदधि पार करो // श्री०॥४॥ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 198 ) बोंधमंडन-श्रीसंभवजिन-स्तवनम् / तर्ज-अर्ध महाड. दूर देश का यात्री हूँ मैं, कहाँ पर प्रभु निवास किया। अधम उद्धारक संभवजिनने, मुझ पापी को दर्श दिया।टेर॥ विकट विहारी जो कोई होगा, कच्छ जातरा जावेगा। भवभव संचित कर्मनिकाचित, क्षण इक में खपावेगा। दूर०१ सावत्थिपुर वासी को वंदे, सेना मात जितारी राया / प्रियालवृक्षे केवल प्रगटा, शिवपुर सुख पाय लिया / दूर०२ संवत उन्निस नेऊ साले, माघकृष्ण तृतीया दिवसे / सुख समाधी से करी जातरा,मुनिमंडल सहु मन हर्षे ॥दूर०३ कच्छ देश के बोध गाँव में, संघ साथ ले कर आये / प्रतापचन्द्र धूराजी साथे, भक्ति करी बहु दिल चाये॥ दूर०४ सूरिविजयराजेन्द्र हमारा, तपगच्छ नायक जान लिया। यतीन्द्रमुनिने जीवन अपना, गुरुचरणों में भेट किया दू०५ भचाऊमंडन-श्रीअजितनाथजिन-स्तवनम् / देशी-आवो बंधु जइये. चालो ए सैयर आजे, अजितप्रभु दरबाजे-अघभांजे, मेरो यह तारणहार है // टेर // Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 199) अनुपम श्रीअयोध्या नगरी, जितशत्रु महाराय / विजयादेवी स्वमे गजको, देखत जागी जाय अघ भांजे, मेरो यह तारणहार है // चालो० // 1 // स्वम अर्थ ज्योतिषी कहते, पुत्र होगा बलवान / द्वितीय तीर्थंकर अजितजिनेश्वर, जन्म्या श्रीअभिधान अघ भांजे, मेरो यह तारणहार है / चालो० // 2 // सकल कलासे दीपत जगमें, महा प्रभु प्रियकार / विश्ववंद्य श्रीअजितनाथजी, तार तार मुझ तार अघ भांजे, मेरो यह तारणहार है // चालो० // 3 // माघशुक्ल श्री चौथ के दिन, करी भचाऊ जात / धूराजी सुत प्रतापचंद और, साथे इनकी मात अध भांजे, मेरो यह तारणहार है ॥चालो० // 4 // तपगच्छ नायक सूरि सितारे, चमके त्रिजग मांय / श्रीराजेन्द्रसूरीश्वर की नित, यतीन्द्र वारी जायअघ भांजे, मेरो यह तारणहार है / चालो० // 5 // मोटीचीरईमंडन-श्रीपार्श्वजिन-स्तवनम् / . देशी-पैदा हुए हैं भगवन् . मिल गये हैं मुझे श्री, पारस प्रभुजी प्यारे / भटकत फिरत दुनीमें, उनके हैं तारणहारे // टेर० // Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (200) पारस जो नाम तेरा, वैसा ही गुण में गेरा / मजधर से नाव मेरा, करदो प्रभुजी प्यारे ॥मिल० // 1 // उपसर्ग केई आये, निर्भय हो दुहाये / जरी मनको न डिगाये, देखे प्रभुजी प्यारे // मिल० // 2 // कईएक कष्ट पाये, क्रोधांश जरी न लाये / / हम पार्क कुमरजी गाये, सुणलो प्रभुजी प्यारे ।मिल०॥३॥ अश्वसेन वंशी सारे, वामा के हैं हुलारे / भविजीव केई तारे, पारस प्रभुजी प्यारे // मिल० // 4 // मोटीचीरई में देखे, लगा है दिन लेखे / जो ज्ञानी भावे पेखे, पारस प्रभुजी प्यारे॥ मिल० // 5 // मुरत शान्त सारी, लगती मुझे दुलारी / भवसिन्धु सेति तारी, पारसप्रभुजी प्यारे // मिल०॥६॥ देवन के देव तुम हो, तुमसा न कोई जग हो / मेटे प्रभु मगन में, पारसप्रभुजी प्यारे // मिल० // 7 // प्रभु आपकी है माया, राजेन्द्रसूरि राया / यतीन्द्र पूजे पाया, पारसप्रभुजी प्यारे / मिल० // 8 // अंजारमंडन-वासुपूज्य-शान्ति-पार्श्वजिन-स्तवनम् / दोहावासुपूज्य जिन बारमा, अंजारे सुखकार / दान शील तप भावना, होवे एका कार // 1 // Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 201) द्वितीय श्री शान्तिजिन, शिखरबद्ध सुविशाल / पार्श्वप्रभु को भाव से, नजरे लीजे निहाल // 2 // देशी-नन्नादेवरा की. वासुपूज्यस्वामी रे, अंतरयामी रे, हाँ मोरा दीनदयालू . हाँ हाँ हाँ // टेर // वसुपूज्य तोरा तात कहाया, जया देवी के आप हो जाया / चंपापुरी ठवाया रे, हाँ मोरा दीनदयालू हाँ हाँ हाँ वा० 1 श्री अंजारे आप बिराजे, भक्तजनों के हो शिरताजे / मैं प्रभुचरणे आया रे, हाँ मोरा दीनदयालू हाँ हाँ हाँ वा० 2 शान्तिजिनेश्वर सोलम राजा, दर्श करन से तिरे केई समाजा। जीवदया मन लाया रे, हाँ मोरा दीनदयालू हाँ हाँ हाँ वा०३ सप्तफणा श्री पार्श्वकुमारा, जोया आजे अनूप दीदारा / आनंद पडह बजाया रे, हाँ मोरादीनदयालू हाँ हाँ हाँ वा०४ अंजारमंडन प्रभुजी बंका, रचना रची है जैसी लंका। देना दुःख निवारा रे, हाँ मोरादीनदयालू हाँ हाँ हाँ वा०५ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 202) पूरण रत्न नवे नव वरसे, माघसुदि एकादशी दिवसे / मेटे हम बहु भावे रे, हाँ मोरा दीनदयालू हाँ हाँ हाँ वा०६ वासुपूज्यजी मिले प्रभु प्यारा, राजेन्द्रसूरि ज्ञान भंडारा / यतीन्द्र हर्ष सवाया रे, हाँ मोरा दीनदयालू हाँ हाँ हाँ वा०७ भूवडमंडन-श्रीअजितनाथजिन-स्तवनम् / . देशी-जय जय.. नमो नमो श्रीजिन अजितप्रभु के, चरणे नमो नमो / टेर॥ नगरी अयोध्या है अति भारी, जितशत्रु तिहाँ है बल धारी / विजयादे तस राणी दुलारी // नमो० // 1 // विजया कुंखे चव कर आया, भविष्य प्रबल की है बड माया / शुभ समये प्रभु जन्म जी पाया ॥नमो० // 2 // घर घर मंगल गीत गवाते, जन्मोत्सव सुर करने आते / इक शत अठ अभिषेक कराते ॥नमो० // 3 // अजितप्रभु का नाम थपाया, सुर नर मिल प्रभु को हुलराया। इन्द्राणी मिल नाच नचाया // नमो० // 4 // Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 203) अष्ट कर्मरिपु नित्य निकंदन, जनता के प्रभु भव दुख भंजन / देखत दिल होता है रंजन // नमो० // 5 // भूवड ग्रामे किया है डेरा, श्वेतवर्ण तनु दीपत गेरा / जगत तिरैया नाम है तेरा ॥नमो० // 6 // सूरिराजेन्द्र की आणा सारी, यतीन्द्रमुनि को है हितकारी / लेना त्रिविध वंदना म्हारी ॥नमो० // 7 // भद्रेश्वरतीर्थमंडन-श्रीमहावीरजिन-चैत्यवन्दनम् / दोहावीराब्द त्रिविंशति समे, स्थापित तीरथ एह / श्याम वरण पारस विभु, हतां गुणमणि गेह // 1 // जगडू उद्धार थयां पछि, स्थाप्या चरम जिनेश / तीर्थ भद्रेश्वर अधिपति, वसति मंडन एष // 2 // ज्ञानवंत अवतंस जिन, परमेश्वर सुखकंद / अलख निरंजन साहिबो, त्रिशला देवी नंद // 3 // प्रतापधूरा संघ सह, आव्या प्रभुने पाय / दुःख दोहग दूरे गयां, आनंद मंगल थाय // 4 // Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 204 ) शासनपति सुरतरु समो, सूरीश्वरराजेन्द्र / चरण शरणे सुबोधता, लहे वाचकयतीन्द्र // 5 // भद्रेश्वरतीर्थमंडन-श्रीवीरजिन-स्तवनम् / ___देशी-नेम की जान बनी भारी, तीर्थ श्री भद्रेश्वर भारी, प्रभु श्रीवीर की छवि प्यारी / हुबोहुब बातें करनारी, प्रभु श्रीवीर की छबि प्यारी ॥टेर॥ आठ महामद गंजन रंजन, भंजन चउ भारी / सिद्धारथ नंदन त्रिजग वंदन, देखे सुखकारीचिमन गुल केशर की क्यारी ॥प्रभु० // 1 // क्षत्रियकुंड है जन्म कल्याणक, अविचल ऊग्यो भाण / त्रिशला सुत श्रीवीरजिनेश्वर, रत्नों केरी खाणलंछन श्रीसिंह को धरनारी ॥प्रभु० // 2 // जय जगदीश्वर तूं परमेश्वर, सहु जन में शिरताज / महाबली महावीर जिनेश्वर, रखना मेरी लाजजनम मरणान्तर दो टारी ॥प्रभु० // 3 // वसई नाम से दीपता, तीरथ यह उजमाल / भव भ्रमणता दूर करो री, लेना सार संभालसदा सुख शान्ति करनारी ॥प्रभु० // 4 // फाल्गुन कृष्ण प्रतिपद दिवसे, उन्निस नेऊ साल / संघ चतुर्विध साथ सुसागे, लिये वीर निहालकरम के रोग मिटाकारी // प्रभु०॥५॥ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 205 ) प्रतापचंदधूराजी बागरा, वासी को संघ जाण / श्रीभद्रेश्वर जातरा कारण, खरच्यो धन प्रमाणअमिरस अर्पण करनारी ॥प्रभु० // 6 // श्रीजिनशासन आण प्रमाणे, वरते सूरिराजेन्द्र / तास शिष्य श्रीयतीन्द्रमुनि को, देना मुक्ति केन्द्रमेरे हो पूरण आधारी ॥प्रभु० // 7 // सिद्धाचले जाऊं रे, ए राहत्रिशलासुत स्वामी रे, विनवू शिरनामी रे / जिनजी मोरा साहिबा हो जी, अरज मोरी स्वामी उर अवधार // त्रि० // टेर // भव पाटण में मैं कर्या, नाटक बहुला वेश / कर्म रिपुदल फंदे पज्यो, पाम्यो भ्रमण किलेश // अगणित दुःख तिहाँ पामी रे ॥जि०-वि० // 1 // विकलेन्दि में अक्तर्यो, नरक निगोद मझार / छेदन मेदन वेदना, सही अनंती वार // आवा गमन निवारो स्वामी रे ॥जि०-वि० // 2 // चंडकोशिक शूलपाणिना, सहा उपसर्ग अनेक / रही अविचल ध्यानमां, आपी समकित टेक // अहि स्वर्माष्टम पद पामी रे ॥जि०-वि० // 3 // Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 206 ) इन्द्रजालिक जाणी करी, आया धरी अभिमान / गौतमादि ग्यारे विप्रने, थाप्या गणधर ठान / / चंदना बंधन विसरामी रे ॥जि०-वि०॥४॥ शरणागत वत्सल विभु, भय भंजन जगदीश / / कृत अपराधि पण उद्धर्या, छो प्रतिपालक ईश // जगजीवन अंतरयामी रे ॥जि०-वि० // 5 // गगन नव निधीन्दु माघ में, सुदि ग्यारस भृगुवार / प्रतापधूरा संघ में, मेव्या भाव उदार // भक्ति विध विध हर्षे पामी रे ॥जि०-वि० // 6 // भद्रेश्वर तीरथपति, श्रीमहावीर जिनराय / यतीन्द्रगुरु नित वंदता, पातिक दूर पलाय // विद्यामुनि गुण ग्रामी रे ॥जि०-वि० // 7 // भद्रेश्वरमंडन-श्रीवीरजिन-स्तुतिः वसन्ततिलकावृत्तैःसिद्धार्थनन्दन ! विभो ! जगदुद्धरिष्णो ! भद्रेश्वराऽऽदिकसुतीर्थयते ! दयाब्धे / श्रीत्रैशलेय ! शुभशासननाथ ! वीड्य ! वीरप्रभो ! सततमस्तु नमस्त्वदचौ // 1 // श्रीभारते तरण-तारणशक्तिमच्छ्री नाभेयकाऽऽदिशुभतीर्थकृतां सुबिम्बैः / Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 207) देवाऽसुर-क्षितितलीयनरेशवन्द्यैः, ... शोशुभ्यमान! समचैत्य ! नमोऽस्तु तुभ्यम् // 2 // अज्ञान-तामस-निरासकरैकभानो! निक्षेपकादिबहुभागसुशोभिताऽङ्ग ! / सद्वादशाऽङ्गरचनात्मक ! वाङ्मयाऽऽशु, शश्वद्यतीन्द्रविजयाय सुखं प्रदद्याः // 3 // श्रीउपधानमहातपःक्रियोत्सव-स्तवनम् / देशी-अजब महेल ने अजब झरोखे०, श्रीउपधान महातप केरी, महिमा अपरं पार / कहेतां एहनो पार न आवे, भवजल तारणहार हो बेनी मोरी, संसारीने सुखकार // 1 // श्रीसिद्धाचलगिरिनी छॉये, चंपावास निवास / कार्तिकमासे यात्री आवे, समझी म्होटो वास हो बेनी मोरी, संसारीने सुखकार // 2 // परतापचंद धूराजी केरा, वासी वागरा जाण / श्रीउपधानना मंगल महोत्सवे, खरचे बहुविध नाण हो बेनी मोरी, संसारीने सुखकार // 3 // संवत उगणी नेऊ वरसे, आश्विन मासना अन्ते / पूनम दिवसे मुहूर्त भलेरो, जनता अतिहरखन्ते होबेनी मोरी, संसारीने सुखकार // 4 // Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 208 ) बीजो प्रवेश श्रीकार्तिककृष्णे, अष्टमी तिथी उजमाल / मागसिर वदिनी पंचमी दिवसे, चढशे श्रावक माल हो . बेनी मोरी, संसारीने सुखकार // 5 // विजयराजेन्द्रसूरीश्वर राजे, भूपेन्द्र आज्ञा प्रमाण / उपाध्याय श्रीयतीन्द्रमहामुनि, क्रियाकारक जाण हो बेनी मोरी, संसारीने सुखकार // 6 // सूत्र अनेक में ए तप महिमा, वर्णी है अभिधान / शुभ मनथी जो जन आराधे, पामे बहुलो ज्ञान हो बेनी मोरी, संसारीने सुखकार // 7 // अंगी पूजा आठ दिवस लग, अदभुत ज्योत जगाई / अष्टाहिकानो उत्सव करतां, हरखे जनता सवाई हो बेनी मोरी, संसारीने सुखकार // 8 // बेंड बाजा अरु बिजली केरी, रोशनी खूब लगाई। मंडली नाचत नित्य नव रंगे, मन में मोद न माई हो बेनी मोरी संसारीने सुखकार // 9 // ए तप मोटो भबियण करजो, भवजल होशो पार / शिष्य यतीन्द्रनो उत्तम पभणे, सिद्धाचल मझार हो बेनी मोरी, संसारीने सुखकार // 10 // Page #222 -------------------------------------------------------------------------- _