________________ (149 ) यहीं पर कायम थी। ' कच्छनो बृहद् इतिहास' नामक गुजराती पुस्तक के पृष्ठ 70 में लिखा है कि" सं० 1315 में भयंकर दुष्काल पडा, कच्छीजनता अन्न वस्त्र के अभाव से अति पीडित होने लगी। इस समय भद्रावती ( भद्रेश्वर ) नगरी जल व्यापार में समुबत थी और यहाँ के वहाण एशिया के मुख्य बंदरों तक जाते आते थे / भद्रेश्वर के जल व्यापार का पिता जगडूशाह था, उसने दुष्काल पीडित कच्छियों का उद्धार किया, लाखों कच्छियों को अन्न वस्त्र दिया, इतना ही नहीं हिन्दुस्तान के अन्य प्रदेशों की जनता के लिये भी अन्न वस्त्र के हजारों वहाण वहाँ पहुंचाये / पनरोतेरा (1315) दुष्काल में जगडूशाहने वाघेला राजा से भद्रेश्वर को अपने कब्जे में लिया और पुरातन महावीरजिनालय का जीर्णोद्धार कराके उसके चोतरफ 52 देवकुलिकाएँ बनवाई। इसके अलावा कच्छ में नेमिमाधव, कुनड़ीया में हरिशंकर, ववाणीया में वीरनाथ, ढांक में महीनामंदिर और कच्छ तथा काठियावाड में वापी, कूप, अन्नक्षेत्र, जलपरब, धर्मशाला आदि स्थान बनवाये / " अपसोस ! जो भद्रेश्वर अपनी अपरिमित धन और जन संपत्ति से एक दिन स्वर्ग के साथ भी स्पर्धा करता था, वही आज दारिद्यता की स्पर्धा करनेवाला देख पडता है, यह कलियुगी लीला नहीं तो और क्या है ? किसी कविवरने ठीक ही लिखा है कि