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________________ ( 72) और शान्तिनाथ के पगल्या स्थापित हैं। सुधर्मगणधर के शिष्य चिल्लणतपस्वी संघसमूह के साथ यहाँ आये / संघ के मनुष्यों को जोर की प्यास लगी और जल विना उनके प्राण जाने का समय आ लगा / चिल्णमुनिने संघ की रक्षा के वास्ते स्वलब्धिबल से वहाँ तालाव बना दिया / वस, उसी समय से इसका नाम चिल्लणतलावडी प्रसिद्ध हुआ / जैनेतर लोग इस स्थान का नाम 'चन्दनतलावड़ी' कहते हैं। इसीके पास एक लंबी पत्थर की चटान है, जो 'सिद्धशिला' कहाती है। इस पर यात्री सोते, बैठे, या खडे रह कर ध्यान करते हैं और कोई कोई लोटते भी हैं। इसके आगे दो माईल जाने पर भाडवोडूंगर ( भद्रकगिरि) नामका शिखर आता है, जो गिरिराज का ही एक शिखर माना जाता है। इसके ऊपर कृष्णपुत्र शाम्ब और प्रद्युम्न फाल्गुनसुदि 13 के दिन साढी आठ क्रोड मुनि के परिवार से मोक्ष गये हैं / यहाँ से चार माइल आगे बढ़ने पर सिद्धवड (जूनी तलेटी) आती है / यहाँ एक देहरी में आदिनाथ के चरणयुगल और उसके पास एक विशाल वडका दरख़त है, जो सिद्धवड़ के नाम से प्रख्यात है / इसके नीचे अनशन करके अनन्तमुनि मोक्ष गये हैं, इसीसे यह सिद्धवड पूज्य समझा जाता है / यहाँ से चार माईल के फासले पर पालीताणे वापिस आने पर यह प्रदक्षिणा पूरी होती है /
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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