________________ ( 117 ) का देवल, एक छोटी दो कोठरीवाली धर्मशाला और एक धूनीकुटी है / कुटी के पास ही हनुमानकुंड है, जिसमें टेकरी के झरने की जलधार पडती है। इसीसे इसका नाम हनुमानधारा रक्खा गया है और जैनेतर यात्री यात्रा करने को सेंकडों की संख्या में यहाँ आते हैं। हनुमानधारा से थोडा ऊंचा चढने पर सहसावन के रास्ते से वांये तरफ भरतवन है, जिसमें एक पक्के देवल में भरतादि पांच भाइयों की खड़े आकार की पाषाणमय श्वेतवर्ण मूर्तियाँ स्थापित हैं। इसके सामने कुटी और एक जलपूर्ण कुंड है। यहाँ बड़े बड़े आम्र, आमले आदि वृक्षों की सघन झाडी है, इससे इसका नाम 'भरतवन' रक्खा गया है / हस्तिनापुर से इस टेकरी पर चढने वाद वीच में जल कहीं भी नहीं है, हनुमानधारा और भरतवन में पहुंचने पर ही पानी पीने को मिलता है। 13 सहसावन (गिरनार ) हनुमानटेकरी से आधा कोश उतार में 'सहसावन' है, जिसमें हजारों आम्रवृक्ष हैं और इतने आम्रवृक्षों का समुदाय गिरनार के किसी स्थान पर नहीं है। इसीसे इसका नाम सहसावन (सहस्राम्रवन) रक्खा गया है। उष्णकाल में यह वन ठंडा, आनन्दजनक और मनको स्थिर करनेवाला है। बावीसवें तीर्थङ्कर का दीक्षा और