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________________ (177) ढाल-द्वितीय। देशी-मुखडा निरखन दे रे मिजाजन, प्रमुख जोवा चालो सखीरी, प्रभुमुख जोवा चालो / आज प्रभु प्यारे श्री आदिजिनंद को, भेटवा सखी सहू चालो // टेर॥ मीठी मधूरि लागे सलूणी, मुद्रा मन को लोभाय / प्रेम भणी भवि पीवे जो प्याला, कर्मन् के फंद मिट जाय आ. 1 द्वितीयटोंके सोलह मंदिर, दीपे झाकझमाल / देवकुलिकाएँ एकसो बत्तीस, मूर्ती गुणमणी माल आ. 2 संवत् अठारह तिराणुं वरसे, छेल्लो ए उद्धार / रौनक चंगी जिनगृह मांहे, वंदु वारं वार // आज० // 3 // तृतीयटोंक श्रीबालावसी की, प्रेमे पूजू पाय / शिखरबद्ध छ मंदिर छाजे, दिन दिन रंग सवाय आ० 4 द्विसहस्रऽरु सातसो पांसठ, दो टोंके बिंब सु जाण / पंचमकाले भूतल ऊपर, अविचल ऊग्यो भाण |आ०५॥ चतुर्थटोंक श्रीप्रेमाबाई की, पूर्व दिशा में द्वार / चिहुओर देवकुलिकाएँ सोहे, होवे हर्ष अपार // आ०६॥ संवत् एक निधि नेऊनी साले, मेटे श्रीजिनराज / राजेन्द्रभानु भलकत जगमें, यतीन्द्र राखो लाज आ. 7 12
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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