________________ ( 60 ) प्रति वरतन का एक आना देना पड़ता है। यदि गोदडा गादला गम जाय, या रद हो जाय तो प्रतिगोदडे का 8) और प्रति गादले का 4) रुपया, तथा वरतन खो, या फूट जाय तो उसकी पूरी कीमत पेढी में भरना पड़ती है। शेष छुटकर यात्रियों से प्रति गोदडे का दो पैसा, प्रति गादले का और प्रतिवरतन का भाडा एक पैसा लिया जाता है / डूंगर पर, या नीचे पूजा, पखाल, आरति, वरघोडा आदि के घीकी बोली का भाव मण एक का 5) और सुपना, पालणा, उपधानमाल आदि के घीकी बोली का भाव एक मण का 2 // ) रुपया है। यहाँ किसी भी धर्मशाला, या वंडे में नवकारसी, स्वामीवच्छल, और टोलियों का जीमण किया जाय तो जीमनेवालों के सिवाय परोसा आदि में दूना माल उपडता है। किसी किसी वक्त ऐसा भी मौका बनता है कि माल को परोसावाले ले जाते हैं और जीमनेवाले जातिभाई अर्द्धभुक्त, या योंही रह जाते हैं / परोसा लेनेवाले पेढी, धर्मशाला और राज के नौकर हैं, जो जाति के जैनेतर राजपूत, कोली, भील और मुसलमान हैं, यात्रियों के ठहरने के लिये यहाँ बड़ी बड़ी दो मंजिली आलीशान धर्मशालाएँ बनी हुई हैं / जिनकी संख्या नीचे मुताबिक हैं