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________________ (31) स्कूल, पक्की सडकें और सर्वत्र विजली की रोशनी है। यहाँ प्रतिवर्ष जैनेतर यात्री बहुसंख्या में आते हैं और इसका दूसरा नाम 'मातृगया तीर्थ' है। 16 उंझा वडोदा रियासत का यह अच्छा कस्बा है, जो अपनी प्राचीनता को अब भी दिखा रहा है / इसमें पोरवाडजैनों के 50 और ओशवालजैनों के 200 घर है, जो विमलगच्छ के हैं। यहाँ अंग्रेजीफेसन का विशाल तिमंजिला उपाश्रय और उसीके लगती एक धर्मशाला है / कस्बे में जैनपाठशाला, जैनलायब्रेरी और सेठ मगन रविकिरणदास सार्वजनिक पुस्तकालय भी है / यहाँ तीन जिनालय हैंजिनमें प्रथम सबसे बड़ा कुन्थुनाथ का मन्दिर है, जो 25 देवकुलिकावाला, त्रिशिखरी और विक्रमीय 12 वीं शताब्दी का प्रतिष्ठित है। इसके वीचके जिनालय में मूलनायक श्रीकुन्थुनाथजी और दोनों बाजु के जिनालयों में श्रीमहावीरस्वामी तथा श्रीअजितनाथस्वामी सपरिकर विराजमान हैं। देवकुलिकाओं में पाषाणमय एक एक प्रतिमा, शिखर की मेडी पर श्रीशीतलनाथादि प्रतिमा और इस मन्दिर के वांये तरफ एक कमरे में चोमुख मन्दिर जिसमें पांच मेरू तुल्य पांच चोमुख प्रतिमा एक ही चत्वर पर स्थापित हैं। इस जिनालय में पाषाणमय कुल जिनप्रतिमा 42 और धातुमय पंचतीर्थयाँ 58 हैं, जो विक्रमीय 12
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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