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________________ ( 151 ) और उसके ऊपर विमानाकार झरोखा है, जो दर्शकों को चकित करनेवाला है। सारे जिनालय में मोहक नकशी (कोतरकाम ) बना हुआ है / परन्तु वह अन्तिम उद्धार के समय सीमट कली लपेट कर ढांक दिया गया है, तथापि कोई कोई स्थान प्राचीन शिल्पकारी का स्मरण कराने के लिये खुला रक्खा है / श्रीमहावीरप्रभु के निर्वाण सं० 23 में भद्रेश्वरनिवासी धनकुबेर परमाईत श्रावक देवचन्द्रने इस विशाल जिनालय को बनवा के, इसमें श्रीसुधर्मगणधर के करकमलों से प्रतिष्ठाञ्जनशलाका कराके मूलनायक श्रीपार्श्वनाथ भगवान् की श्यामवर्ण 5 फुट बड़ी प्रतिमा विराजमान की थी, जो इस समय मूल जिनमन्दिर के पिछले भाग के बडे शिखरबद्ध जिनालय में मूलनायक तरीके विराजमान है / कहा जाता है कि-भद्रावती (भद्रेश्वर ) के ध्वंस समय में इस जिनालय पर एक वैष्णव बाबा का अधिकार हो गया था / उसने इसमें शंकर की मूर्ति बैठाने के इरादे से पार्श्वनाथ प्रतिमा को उठा कर किसी गुप्तस्थान में छिपा दी / जैनसंघ को इसका पता लगते ही संघने बाबा से मूर्ति मांगी, मूर्ति प्राप्त करने के लिये बाबा को रुपयों का लोभ भी दिया, लेकिन बाबाने मूर्ति देना, या बतलाना किसी तरह मंजूर नहीं किया। संघने लाचार हो, राजकीय काररवाई से जिनालय पर अपना
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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