________________ ( 152) अधिकार करके सं० 622 की प्रतिष्ठित श्रीमहावीरप्रतिमा कहीं से लाकर सं० 1622 में महामहोत्सव पूर्वक मूलनायक के स्थान पर श्रीमहावीरप्रभु की प्रतिमा विराजमान की, जो अभी तक वही प्रतिमा विद्यमान है। श्रीमहावीरप्रभु के विराजमान होने बाद बाबाने प्राचीन पार्श्वनाथमूर्ति श्रीसंघ को वापिस सुपुर्द की, संघने उसको पिछाडी के दूसरे बडे मन्दिर में मूलनायक के स्थान पर स्थापन कर दी / इस विशाल जिनमंदिर में कुलपाषाणमय 162 जिन मूर्तियाँ स्थापित हैं, जिसमें कई संपतिराजा की, कई कुमारपाल भूपाल की और कई चालु सीकी के आरंभ की प्रतिष्ठित हैं। का, धनुकुबेर जगडूशाह का, और राव प्रागमल प्रथम के राज्यकाल का, एवं तीन जीर्णोद्धार होने वाद चौथा उद्धार मांडवी निवासी रा०मोणसी तेजसी की पत्नी मीठीबाईने सं० 1939 में कराया / इसकी देवकुलिकाओं का उद्धार जुदे जुदे सद्गृहस्थोंने कराया है, जिनके नामके शिलालेख हरएक देवकुलिकाओं के द्वार की भींत पर लगे हुए हैं। जिनालय में सर्वत्र संगमरमर की पंचरंगी लादिया लगी हुई और भीतों के ऊपर नेमनाथ की जान, दीक्षा का वरघोडा, महावीर, ऋषभदेव, पार्श्वनाथ तथा शान्तिनाथ के कल्याणक, उपसर्ग आदि जीवनदृश्य के