________________ ( 136 ) और पीनेयोग्य जल के नल लगे हुए हैं। पांडवों के समय मयूरध्वज जेठवाने इसे वसा कर इसका नाम मयूरध्वजपुर ( मयूरपुर ) रक्खा, जो मच्छु के तट पर हाल में त्राजपर गाँव है वहाँ था। वाद में मयूरपुर नष्ट होने पर मच्छु के तट पर मोरबो टेकरी के समीप पोरबंदर के राणा संगजीने वर्तमान ' मोरवी ' वसाया। संवत् 1754 में राव रायधणजी प्रथम के प्रपौत्र, रवाजी के पुत्र कांयाजी जाडेजाने मोरबी पर अपना अधिकार जमा कर राज्यगादी कायम की, जो अब तक उन्हीं के वंशजों के कब्जे में है। कच्छ के रावसाहेब, जामनगर के जामसाहेब और मोरवी के ठाकुर एकही वंश के होने से परस्पर भायात कहलाते हैं। मोरबी में पोटरीवर्क्स, सुगरफेक्टरी, वर्कशोप, पावरहाउस, जीन, प्रेस, नंदकुंवरबा-जनाना-होस्पिटल आदि अनेक कारखाने देखने लायक हैं। शहर में मूर्तिपूजक जैनों के 250 घर और लोंकागच्छ ( स्थानकवासियों) के 700 घर हैं, जिनमें वीसा श्रीमाली 150 और शेष दशाश्रीमाली हैं / दोनों संप्रदाय में संप अच्छा है और ये एक दूसरे के धर्मकार्यों में विना संकोच के परस्पर भाग लेते हैं। दशा श्रीमालीजैनों के तरफ से यहाँ 'जैनबालाश्रम' प्रचलित है, जिसमें अस्सी जैनबालकों को सरकारी स्कूल में अंग्रेजी सात चोपडी तक अभ्यास कराया जाता है / इसके अलावा बालाश्रम में रात्रिको एक घंटा