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________________ ( 205 ) प्रतापचंदधूराजी बागरा, वासी को संघ जाण / श्रीभद्रेश्वर जातरा कारण, खरच्यो धन प्रमाणअमिरस अर्पण करनारी ॥प्रभु० // 6 // श्रीजिनशासन आण प्रमाणे, वरते सूरिराजेन्द्र / तास शिष्य श्रीयतीन्द्रमुनि को, देना मुक्ति केन्द्रमेरे हो पूरण आधारी ॥प्रभु० // 7 // सिद्धाचले जाऊं रे, ए राहत्रिशलासुत स्वामी रे, विनवू शिरनामी रे / जिनजी मोरा साहिबा हो जी, अरज मोरी स्वामी उर अवधार // त्रि० // टेर // भव पाटण में मैं कर्या, नाटक बहुला वेश / कर्म रिपुदल फंदे पज्यो, पाम्यो भ्रमण किलेश // अगणित दुःख तिहाँ पामी रे ॥जि०-वि० // 1 // विकलेन्दि में अक्तर्यो, नरक निगोद मझार / छेदन मेदन वेदना, सही अनंती वार // आवा गमन निवारो स्वामी रे ॥जि०-वि० // 2 // चंडकोशिक शूलपाणिना, सहा उपसर्ग अनेक / रही अविचल ध्यानमां, आपी समकित टेक // अहि स्वर्माष्टम पद पामी रे ॥जि०-वि० // 3 //
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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