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________________ ( 206 ) इन्द्रजालिक जाणी करी, आया धरी अभिमान / गौतमादि ग्यारे विप्रने, थाप्या गणधर ठान / / चंदना बंधन विसरामी रे ॥जि०-वि०॥४॥ शरणागत वत्सल विभु, भय भंजन जगदीश / / कृत अपराधि पण उद्धर्या, छो प्रतिपालक ईश // जगजीवन अंतरयामी रे ॥जि०-वि० // 5 // गगन नव निधीन्दु माघ में, सुदि ग्यारस भृगुवार / प्रतापधूरा संघ में, मेव्या भाव उदार // भक्ति विध विध हर्षे पामी रे ॥जि०-वि० // 6 // भद्रेश्वर तीरथपति, श्रीमहावीर जिनराय / यतीन्द्रगुरु नित वंदता, पातिक दूर पलाय // विद्यामुनि गुण ग्रामी रे ॥जि०-वि० // 7 // भद्रेश्वरमंडन-श्रीवीरजिन-स्तुतिः वसन्ततिलकावृत्तैःसिद्धार्थनन्दन ! विभो ! जगदुद्धरिष्णो ! भद्रेश्वराऽऽदिकसुतीर्थयते ! दयाब्धे / श्रीत्रैशलेय ! शुभशासननाथ ! वीड्य ! वीरप्रभो ! सततमस्तु नमस्त्वदचौ // 1 // श्रीभारते तरण-तारणशक्तिमच्छ्री नाभेयकाऽऽदिशुभतीर्थकृतां सुबिम्बैः /
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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