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________________ ( 207) देवाऽसुर-क्षितितलीयनरेशवन्द्यैः, ... शोशुभ्यमान! समचैत्य ! नमोऽस्तु तुभ्यम् // 2 // अज्ञान-तामस-निरासकरैकभानो! निक्षेपकादिबहुभागसुशोभिताऽङ्ग ! / सद्वादशाऽङ्गरचनात्मक ! वाङ्मयाऽऽशु, शश्वद्यतीन्द्रविजयाय सुखं प्रदद्याः // 3 // श्रीउपधानमहातपःक्रियोत्सव-स्तवनम् / देशी-अजब महेल ने अजब झरोखे०, श्रीउपधान महातप केरी, महिमा अपरं पार / कहेतां एहनो पार न आवे, भवजल तारणहार हो बेनी मोरी, संसारीने सुखकार // 1 // श्रीसिद्धाचलगिरिनी छॉये, चंपावास निवास / कार्तिकमासे यात्री आवे, समझी म्होटो वास हो बेनी मोरी, संसारीने सुखकार // 2 // परतापचंद धूराजी केरा, वासी वागरा जाण / श्रीउपधानना मंगल महोत्सवे, खरचे बहुविध नाण हो बेनी मोरी, संसारीने सुखकार // 3 // संवत उगणी नेऊ वरसे, आश्विन मासना अन्ते / पूनम दिवसे मुहूर्त भलेरो, जनता अतिहरखन्ते होबेनी मोरी, संसारीने सुखकार // 4 //
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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