________________ ( 141 ) हाथ बडी प्रतिमा विराजमान है, जो बांढिया से लाकर सं० 1988 में यहाँ बैठाई गई है / इसकी पलांठी के आसन पर लिखा है कि-" श्रीमहावीरबिंब कारितं प्र० आचार्यश्रीविजयसिंहमूरिराजैः, तपागच्छे कटारियाग्रामे सं० 1686 वर्षे वैशाखमासे शुक्लपक्षे तृतीयातिथौ / " दर असल में यह प्रतिमा बडी सुंदर और दर्शनीय है, परंतु नाक कान से खंडित है, जो प्रतिष्टा के समय सुधरा के यहाँ स्थापन की गई है / कहा जाता है कि कटारिया की पडती के समय इस प्रतिमा को बांढिया गाँववाले जिनालय के पास एक उपाश्रय नया बनाया हुआ है उसके एक कमरे में सेठ वर्द्धमान आणंदजी की पेढी है, जो इस तीर्थ का वहिवट करती है / इससे थोडी दूर ही छोटी धर्मशाला है, जिस में मुफतिया रसोड़ा चलता है। गाँव में जैनों के 3 घर हैं, जिन्हों का पालन इसी रसोड़े से होता है और यहाँ की पेढी का मुख्य लक्ष्य रसोड़ा चालु रखने का ही है, तीर्थसुधारे का नहीं / कच्छवागड के आसपास के गाँववाले भोजनानंदी दश पांच आदमी यात्रा करने के बहाने से यहाँ पडे रह कर मुफतिया रोटे उडाया करते हैं और तीर्थ के नाम से रकम उगा कर उसे स्वाहा किया करते हैं।