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________________ ( 102) 39) सणोसरा सांढेडा ढांकणकुंडो नवागाम अंकोलाण रतनपर जामणवाव 46) पालीताणा यह संघ पालीताणा से सीयाला (शीतऋतु) में रवाने हुआ और सीयाला में ही भद्रेश्वर पहुँचा / रास्ते में अतिशय ठंड पडी और मार्ग भी वेणासर के वाद खारीवाला था / लेकिन उत्तम मुहूर्त होने के कारण संघवाले छहरी पालते पैदल चलनेवालों में किसीका कभी शिर तक नहीं दुखा, और न शरंदी, ज्वर, दस्त आदि कि पीड़ा हुई। यह सब उत्तम मुहूर्त और मुसाफिरी की सावधानी रखने का ही प्रभाव है। जल से घिरे हुए प्रदेश का, या कच्छपाऽऽकार भाग का नाम 'कच्छ ' अथवा '. कच्छदेश' है / अनुपदेश, जर्त्तदेश, भोजकट, उमदेश, और सागरद्वीप ये कच्छदेश के प्राचीन नाम हैं / इसके पूर्व और उत्तर में रण (सूखा समुद्र ) है, पश्चिम में अरबी समुद्र और सिन्धुमुख है, और दक्षिण में कच्छी अखात और हिन्दी महासागर है / इसका विस्तार पूर्व-पश्चिम में 160 और उत्तर-दक्षिण में
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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