SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 184 ) अगर कोई पूजा करेगा जो भाई, सुखी हो जायगा शिवराज तांई। अरे हा....मनवा ऐसों से प्रीति जोडिलें // आवो० // 3 // उठो ख्वाब गफलत की निंद को छोडी, अमूल्य समय में मत रहो प्यारे पोढी / अरे हाँ...प्यारे दो घडी प्रभु भजिलें / आवी० // 4 // हमारे तो दिल में इसीका रटन है, राजेन्द्र गुरु बिजली का बटन है। अरे हा...प्यारे यतीन्द्र अघ मेटिलें // आवो // 5 // खारचियामंडन-श्रीधर्मजिन-स्तवनम् / तर्ज-सारी सभा को जयजिनेन्द्र हो, जय०, जगनाथ तोरी मूरति की, महिमा अपार / सुखकार तोरी सूरति की, महिमा अपार // टेर / / धर्म रक्षक धर्म शिक्षक, धर्म जिनवरा / तुम नामकी महिमा रहे, जग में परंपरा // जग० // 1 // धर्म अधर्म आकाश काल, पुद्गल परिहरा। जीव द्रव्य उपादान कारण, निज सत्ता उर घरा ॥जग०॥२॥ शुद्ध स्वरूप सहजानंद प्रमटे, आत्म भाव अनुसरा / हय गय वस्तु पदार्थ तज, भजन प्रक्षु करा ॥जग०॥३॥
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy