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________________ - ( 185) खारचिया में भेटे भावे, श्रीजिन धर्म-देव / दर्श से दुर्गति मिटे, पावेय अमृतमेव // जग० // 4 // श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरि, सेवना करूं / यतीन्द्र चरण कमल में, नित शीश को धरूँ॥जगनाथ सहसावनमंडन-श्रीनेमिजिन-स्तवनम् / दोहागढ़ बंका गिरनार का, तीन खूट के मांय / देखत दुर्भय दूर हो, दुख दोहग मिट जाय // 1 // तर्ज--आज मेरे स्वामी आज आनंद पाई. अहो मेरे लाला, आज आनंद वधाई। अहो मेरे प्यारे, आज की ज्योति सवाई // टेर / सहसावन में चल करके आये, सघन झाडी हम आम्र की पाये / पाये मेरे प्यारे, दिन दिन कीर्ति सवाई // अहो० // 1 // दीक्षा कल्याणक प्रभु का जाणो, केवलज्ञान का लेवो प्रमाणो / मानो मेरे प्यारे, लेलो प्रभु गुण गाई // अहो० // 2 // समुद्रविजय कुल उत्तम दीवो, कोटी वरसां लग प्रभुजी जीवो। जीवो मेरे प्यारे, भक्ति से भावना भाई // अहो० // 3 //
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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