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________________ (154 ) 21-" संवत् 1921 वर्षे शाके 1786 प्र० माघसुदि 7 श्रीअंचलगच्छे कच्छकोठारावा० ओशवंशे शा० गांधी मोहता का० शा० श्रीनायकमाघसीगृहे भार्या हीरबाई पुत्र शा० केशवजीकेन / " 48 वांढिया ( आणंदपुर ) यह भुजनरेश के भायातों का गाव है, जो पतिताऽवशिष्ट कोट से शोभित है / इसमें वीसाश्रीमाली जैनों के 50 घर जो अच्छे भावुक हैं। एक धर्मशाला, दो उपा-- श्रय और एक शिखरबद्ध जिनालय है, जिसमें मूलनायक श्रीचन्द्रप्रभस्वामी की 12 अंगुल बडी श्वेतवर्ण प्रतिमा स्थापित है / इसके अलावा पाषाणमय 7, धातुमय पंचतीर्थियां 35 और धातु के गट्टाजी भी हैं। मन्दिर के मूलद्वार के वांये तरफ की भींत पर एक शिलालेख इस प्रकार लगा है__२२-" सं० 1857 वर्षे माघमासे शुक्लपक्षे 6 दिने वारशुक्रे जेतपरसंघेन श्रीचन्द्रप्रभविंबं प्रतिष्ठितं, भ० श्रीश्रीविजयदेवेन्द्रसूरीश्वरराज्ये तपागच्छे सकलपंडित श्रीमेघसागरगणि-भ० रत्नसागरगणि-पं० देवसागरगणि-पं० हेमसागरगणि तथा देवचंदजी प्रतिष्ठितं श्रीसमस्तसंघेन' श्रीजिनप्रासादकारापितं जाडेजाश्रीठाकुर भावांराज्ये श्रीआणंदपुरे पं० दयासागर तथा गुमानसागर जणने श्रीश्रीकरी कार छे को० 40000 दीनी छ / "
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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