________________ ( 155 ) मंदिर के दहिने भाग में जूना उपासरा है, जो जीर्णशीर्ण रूप में है, और इसका यहा कचरा भी साफ करनेवाला कोई नहीं है / इसकी कोठरी के किबाड पर एक ताम्रपत्र का लेख लगा है कि 23-" सं० 1868 वर्षे शाके 1734 प्रवर्त्तमाने चैत्रसुदि 15 दिने शुक्रे श्रीआणंदपुरना संघसमस्ते श्री देरासरनुं सर्वे काम संपूरण कराव्युं छे. भट्टारक श्रीविजयजिनेन्द्रसूरीश्वरराज्ये / तपागच्छे पं० मेघसागरगणि-पं० राजसत्क छे. दो मासे श्री देरानी प्रतिष्ठा तथा ध्वजादंड जाली थई छे संपूरण थयां छे. शा०लवजी मकनजी अणीई देरानुं काम पासे रहीने सर्वे पुरुं कराव्यु छे. कमाड तथा जालीसुं सामजी नारायण आणीइं कीनी छे." 49 सीकारपुर कच्छरण की कांधी पर यह छोटा गाव है और इसमें वीसा श्रीमालीजनों के.४, ओशवालों के 15 घर हैं। यहाँ एकधर्मशाला और एक उपाश्रय है। यहाँ से पूर्वदक्षिण में मालिया का रण है, जो दोनों तरफ दो दो कोश की कांधी के बीच में 3 कोश का चोडा है, इस रणमें एक माइल तक भूमितल आला रहता है, अतएव गाडिया तो इस रण से जा नहीं सकतीं, किन्तु रातदिन रणमें ही घूमनेवाले ऊंट और मनुष्य इस रण से जा आ सकते हैं।