________________ ( 92 ) माणाबागाँव में भुजनेरश का सरहदी थाणा है / यहाँ सिला, या विना सिला हुआ कपडा, भोजन के वापरे, या विना वापरे हुए वरतन, घटित, या अघटित सोना चांदी और खाने योग्य अधिक वस्तु आदि का प्रतिसेंकडा 16) रुपया दाण चुकाना पड़ता है और यह दाण आवक जावक दोनों वस्तु पर समान ही है। लेकिन यह दाण (कर) संघवी प्रतापचंदधूराजी को संघ के मान के खातिर माफ किया गया था। माणावागाँव से ही भुजनरेश का सिक्का प्रचलित होता है / सिके के नाम इस प्रकार हैं-पावला ( एक आना ) आधियो ( दो आना ) कोरी ( चार आना-चोअन्नी ) अढीयो (दश आनी) पांचियो (सवा रुपिया) त्रांबियो ( एक पाई ) दोकड़ो ( दो पाई ) ढींगलो ( एक पईसा ) ढब्बु (दो पईसा) सारे कच्छदेश में इन्हीं सिक्कों का चलन है / व्यापारी वर्ग के सिवाय कलदार (गवर्मेन्टी) रुपये को कोईभी नहीं लेता। माणाबा से माघकृष्ण अमावस को संघ रवाने होकर अन्दाजन सुवह साढ़े दश बजे कटारियातीर्थ पहुंचा / सेठ वर्धमान-आणंदजी पेढीने संघ का सामेलादि स्वागत अच्छा किया / यहाँ संघने दो दिन मुकाम रखके तीर्थनायक श्रीमहाप्रभु की सेवा-पूजा का लाभ प्राप्त किया और संघपतिने जिनालय के जीर्णोद्धारखाते में सवासो कोरी अर्पण की। कटारियातीर्थसे माघशुक्ल द्वितीया के