________________ ( 36 ) 22 श्रीभोयणी जैनों के पवित्र तीर्थों में से यह एक पवित्र तीर्थस्थान है, जो भोयणी रेल्वे स्टेशन से चार फर्लाग पूर्व में है। इसके चोतरफ का प्रदेश मारवाड के समान रेतीला और पीलुके वृक्षों से आच्छादित है / यहाँ का हवा पानी शुद्ध होने से गरमी के दिनों में गुजरात काठीयावाड के अनेक जैनयात्री यहाँ स्थिरवास करते हैं। यात्रियों के ठहरने के लिये यहाँ तीन विशाल धर्मशालाएँ बनी हुई हैं और खाने योग्य सभी सामान मिलता है। धर्मशाला के मध्यभाग में तीर्थनायक श्रीमल्लिनाथप्रभु का त्रिशिखरी अतिसुन्दर जिनालय है, उसमें श्री मल्लिनाथजी की सर्वाङ्ग-सुन्दर एक हाथ बडी श्वेतवर्ण जिनप्रतिमा मूलनायक के स्थान पर विराजमान है। यह प्रभावशालिनी मूर्ति सं० 1930 वैशाखसुदि 15 शुक्रवार के दिन भोयणी गाँव की सीमा में केवलपटेल के खेत से प्रगट हुई थी और उसके वाद संघ के तरफ से मन्दिर बनवा कर, उसमें सं० 1943 माघसुदि 10 गुरुवार, सन् 1887 फेबु. वारी ता, 3 के दिन महा-महोत्सव के साथ स्थापन की गई है। 23 कूकवा यहाँ श्रीमालजैनों के 2 घर, एक छोटा उपाश्रय,