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________________ ( 187 ) साखी मेकर वसी बीजी कही, सहस्रफणा पार्श्वकुमार। पारस सम मुझने करो, तार तार मुझ तार / वामादे जाया लंछन अहि अणगारहो दीन दयालु अग्नि से लीयो उगार // नित्य० // 2 // साखीसोनीसंगराम वसई तणी, तृतीय टोंक गुलजार / सहस्रफणीधर वंदिया, मिले मुक्ति का द्वार // सुणो पारस प्यारा, अधम उद्धारक वीरहो मोहनगारा, संसार समुद्र करो तीर // नित्य० // 3 // साखीचतुर्थ टोंके अभिनंदजी, चौथाजिन समुदाय / कुमारवसई नामे भली, प्रेमे लागुं पाय॥ हो प्रभुजी प्यारा, अयोध्या नगरी रायहो राणी गिरुवा, सिद्धार्था हुलराय // नित्य० // 4 // साखीपंचम टोंके दीपता, सिद्धिधाम सुखकार / मंदिर बहुविध देखिया, संभव सुपार्श्व के द्वार॥ हो जिनजी मोरा, नेमिजिनेश्वर पायहो प्रभु मोरा से नित्य तिहाँ जाय // नित्य० // 5 //
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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