________________ ( 196 ) खाखरेचीमंडन-श्रीसुपार्श्वजिन-स्तवनम् / देशी-कल्याण. प्रभु तुम दरिशन से, मन लुभाया / मनुआ लुभाया, यश तोरा गवाया ॥टेर // शिरपर छत्र अरु, भामंडल झलके / रतन का वृक्ष रचाया ॥प्रभु० // 1 // चौसठ सुरपति, हाजर खडे हैं। इन्द्राणी नाच नचाया // प्रभु० // 2 // जानु पगरमय, कुसुम की वृष्टि / दुंदुभि नाद सुणाया ॥प्रभु० // 3 // केवलज्ञाने, दुनी में प्यारे। वचनामृत वरसाया ॥प्रभु०॥४॥ खाखरेची मांहे सुपारस स्वामी / प्रेम से शीस नमाया // प्रभु० // 5 // संघ के साथे, जातरा करते / दिन दिन उज्वल काया ॥प्रभु० // 6 // सरिराजेन्द्र गुरु सुपसाये। . यतीन्द्रमुनि गुण गाया ॥प्रभु०॥७॥