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________________ ( 181) प्रभुजी की वाणी अमृत जाणी। नहीं पीवे प्राणी उसकी, प्यासा बुरा है // प्रभु० // 5 // गारीयाधारे आये भोमवारे / समय को व्यर्थ गुमाना बुरा है // प्रभु० // 6 // शान्तिजिनेश्वर तीर्थकर नामी / फोगट आडम्बरी, मुहाना बुरा है // प्रभु० // 7 // सोलम राजेन्द्र दीन दयालु / 'यतीन्द्र' आलम में, लुभाना बुरा है। प्रभु०॥८॥ अमरेलीमंडन-श्रीसंभवजिन-स्तवनम् / तर्ज-महाड. श्रीसंभव सारा, कामण गारा, मेरे तुं दुःख निवार / जनु मरण निवारा, प्रभुजी प्यारा, मेरे तुं दुःख निवार॥टेर॥ नृपजितारी कुलमें आये, सारी सेना मात / सावत्थी नगरी में जन्मज पाये, हुए जग विख्यात रे॥ प्रभु वंश दिपाया, संजम चाया, उतरे भवजल पार श्री सं.१ कोमल कुसुम की माल बनाई, चंदन चंपेली थाल / विविध प्रकारे मर्दन करता, मझधर से तारो बाल रे॥ यश तोरा गवाया,सुणी हम आया, लेना मेरी सार श्री सं.२
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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