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________________ ( 182 ) फर्शनायोगे अमरेली आये, देखा तुझ दीदार / संघके साथे भाव भक्तिसे, लीये जिन जुहार रे // सुधरेजिंदगानी, अमीयसी वाणी,जाणी तोरी अपार श्री सं.३ प्रभु आठ निवारी पाँचको धारी, बारह को समझाय / तेरह को तिलाञ्जली देई, अढार से मुक्ति पाय रे // तीन तामसी मारे, चार निवारे, देखे प्रभु किरतार श्री सं.४ पौषकृष्ण प्रतिपद दिवसे, संवत नेऊ की साल / सूरिराजेन्द्र का स्मरण करते, यतीन्द्र पति दयाल रे॥ प्रभु प्राण आधारा, जग हितकारा, दर्श दो वारं वार श्री सं.५ बगसरामंडन-श्रीवीरजिन-स्तनम् / देशी-हाय रे ! हुं तो जोबन में झूलती कुमारिका. हाँजी मुने प्यारं लागे छे वीर मुखर्छ / हाँजी म्हारूं जाशे आ वीरथी दुखदं ॥टेर // बगसरा मांहे प्रतिमा प्यारी, गुलबदन जैसे केशर क्यारीमुकुट मणीमय . रत्नजडित का, सुन्दर दिप्ति दीपावता // हाँजी मुने० // 1 // सिद्धार्थना छो आप दुलारा, त्रिशलाजीना नंदन सारा
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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